मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

सहकारिता की मांग समय की आवश्यकता है


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह माननीय भैयाजी जोशी ने कहा –

जब कभी सामाजिक जीवन के संगठनों का इतिहास लिखा जायेगा तब सहकार भारती का वर्णन किया जायेगा। जिसमे भिलाई का यह महिला सम्मेलन भी इतिहास मे दर्ज होगा। १००० सालों के आक्रमणों की समीक्षा की जाये तो निष्कर्ष सामने आता है कि इन आक्रमणों का प्रभाव सांस्कृतिक जीवन मूल्यों पर नही पड़ा जिसका एक मात्र कारण सशक्त पारिवारिक ईकाईयां है परन्तु आज इन मूल्यों पर आघात कर समाप्त करने की कोशिश की जा रही है। पतन और क्षरण की इस प्रक्रिया को रोकने के लिये मातृशक्ति को दुर्गा के रूप मे आगे आना होगा। 


सहकार भारती के प्रथम अखिल भारतीय महिला सम्मेलन के समापन सत्र मे मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने सरकार्यवाह भैयाजी जोशी के समक्ष संयुक्त राप्ट्र संघ के को - ऑपरेटिव लोगो का भारत मे उद्घाटन किया। इस दौरान राप्ट्रीय अध्यक्ष सतीश मराठे ने जानकारी दी कि यूएनओ द्वारा वर्ष २०१२ को सहकार वर्ष घोषित कर एक लोगो बनाया गया है। यह लोगो शुभारंभ करने का अधिकार  यूएनओ ने सहकार भारती को दिया है। जिसे रमन सिंह इस कार्यक्रम में शुभारंभ कर रहे हैं।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. रमन सिंह ने कहा सहकारिता के माध्यम से छ.ग. मे भी अद्वितीय कार्य चल रहा है। छ.ग. की जीडीपी ग्रोथ दर ११.७० प्रतिशत है तो इसके पीछे सहकारिता का भी योगदान है उन्होंने पीडीएस सिस्टम मे महिला स्व. सहायता समूह की भूमिका और बस्तर क्षेत्र मे वन समितियों के माध्यम से पीडीएस संचालन की पूरी योजना को बताते हुए कहा कि सरकार मे आते ही हमने जाना कि पीडीएस को जिंदा रखना है तो धान खरीदी होनी जरूरी है। हमने छ.ग. की सैंकड़ों सहकारी समितियों के माध्यम से ६ हजार करोड़ रू. के लगभग ५५ लाख मिट्रिक टन धान खरीद कर मिलिंग करके गरीबों तक एक और दो रू. किलो मे पंहुचाने का सेटअप तैयार किया जो सफलता से चल रहा है और पूरे देश के लिये रोल मॉडल है। डॉ. रमन सिंह ने बस्तर मे लघु वनोंपज के क्षेत्र मे सैंकड़ो स्व. सहायता समूहों द्वारा बांस आधारित उत्पाद के साथ साथ ईमली, हर्रा, बहेरा और मुख्य रूप से तेंदुपत्ता व्यवसाय मे माध्यम से सफल हो रहा है सरकार ने महिला कोष स्थापना करके ७५ हजार रू. तक ऋण ब्याज मुक्त दिया जा रहा है। महिला स्व. सहायता समूहो के माध्यम से शराब बंदी की दिशा में अहम कदम उठाते हुए गांव गांव में भारत माता वाहिनी का गठन चल रहा है जिसे सरकार पूरा संरक्षण दे रही है।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन मे सतीष मराठे ने कहा सहकार भारती का कार्य पूर्वोत्तर राज्यों सहिंत ३५० जिलों मे विविध प्रकार की संस्थाओं के माध्यम से चल रहा है। उन्होने सहकारिता की शक्ति को महान शक्ति बताते हुए कहा देश मे समस्त स्व. सहायता समूहो की कुल सदस्यता संख्या २३ करोड़ से भी अधिक है जो कि विश्व के समस्त स्व. सहायता समूहों की सदस्यता का २५ प्रतिशत है। उन्होंने सहकार वर्ष २०१२ में ९ एवं १० फरवरी को सहकार भारती द्वारा अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस आयोजित कर पूरे विश्व में छोटे से छोटे व्यक्ति के वित्तीय सुदृढ़ीकरण पर देश विदेश के चिंतकों और विचारकों को आमंत्रित करने के कार्यक्रम की घोपणा की।

संध्या ताई कुलकर्णी ने कहा इस आयोजन मे २१ प्रांतों से ९४६ महिलाओं ने भाग लिया है और स्थानिय स्तर पर लगभग २००० महिलाएं शामिल हुई है। उन्होंने कहा घर सम्हालना भी सहकारिता है। घर का सहकार बिगड़ता है तो परिवार बिगड़ जाता है। महिला का विकास होने से समाज व राप्ट्र का विकास स्वमेव होगा।

मंचासीनों मे विधान सभा अध्यक्ष धरम लाल कौशिक, केबिनेट मंत्री हेमचंद यादव, सुश्री लता उसेंडी, संसदीय सचिव विजय बघेल, सांसद सरोज पाण्डे, प्रदेश अध्यक्ष सुधाकर कोण्डापुरकर, राप्ट्रीय महामंत्री सुभाष मांडगे, राप्ट्रीय संगठन मंत्री विजय देवांगन शामिल थे। समापन सत्र के दौरान मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने आयोजन समिति के व्यवस्था प्रमुख सुरेंद्र पाटनी, प्रदेष संगठन मंत्री कनिराम नंदेश्वर और संयोजिका स्मिता ताई जोशी को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। समापन सत्र के पूर्व हुए मुक्त चिंतन मे देश भर से आयी महिलाओं ने अपने अपने अनुभव मंच पर आकर बतायें और ३ अलग अलग प्रस्ताव पारीत किये जिसमे पहला प्रस्ताव देश की निर्णय प्रक्रिया मे महिलाओं की भागीदारी, दूसरा प्रस्ताव राप्ट्रीय पुर्ननिर्माण में महिलाओं की सहभागिता व तीसरा प्रस्ताव सहकारी संस्थाओं पर आयकर आरोपित करने का विरोध प्रस्ताव है।

शांति पाठ के साथ गायत्री महाकुंभ संपन्न


हरिद्वार। गायत्री महाकुंभ में पचास हजार लोगों ने एक साथ दीप यज्ञ करके मंगलवार को हुए दर्दनाक हादसे के शिकार लोगों के लिए शांति प्रार्थना की और अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुख डा. प्रणव पंड्या ने निर्धारित समय से एक दिन पहले गायत्री महाकुंभ को संपन्न करने की घोषणा कर दी। साथ ही प्रशासन के भारी दबाब को देखते हुए आज गायत्री परिवार ने इस आयोजन के लिए अस्थाई रूप से बनाये गये सभी २४ नगरों में रूके श्रद्धालुओं को अपनी-अपनी सुविधानुसार घर वापस जाने की सलाह दी। दीपयज्ञ का आयोजन आज सुबह यज्ञशाला की जगह ज्ञान मंच पर किया गया। लालजीवाला क्षेत्र में बनी विशाल यज्ञशाला के करीब घुटन व अफरा-तफरी की वजह से कल २० लोगों की निधन हो गई थी। इनमें १८ महिलाएं भी शामिल थी। हादसे के बाद प्रशासन ने यज्ञशाला को बंद करवा दिया था। उधर इस हादसे के बाद छाये दुख: मय के माहौल को देखते हुए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भुवनचंद्र खंडूरी ने राज्य स्थापना दिवस के सभी रंगारंग कार्यक्रम निरस्त कर दिये और कहा कि समूचा सरकारी महकमा सादगी के साथ अपना स्थापना दिवस मनाया और गायत्री महाकुंभ में मारे गये लोगों के प्रति शोक संवेदना व्यक्त कर उनको श्रद्धांजलि दिया। मृतकों के परिजनों को खंडूरी सरकार के अलावा मध्य प्रदेश की शिवराज चौहान सरकार व गायत्री परिवार ने दो-दो लाख व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक-एक लाख रूपये सांत्वना राशि देने की घोषणा की। घायलों को भी ५०-५० हजार रूपये दिये गये। गौरतलब है कि गायत्री महाकुंभ युगऋषि पं. श्रीराम शर्मा आचार्य के जन्मशताब्दी अवसर पर ६-१० नवंबर तक आयोजित किया गया था। इस आयोजन के लिए गायत्री परिवार के स्वयंसेवकों ने दो महीने रात-दिन एक करके स्वयं २४ नगर बसाये, इन नगरों को आपस में जोडने के लिए श्रमदान करके गंगा नदी पर पांच पुल बनाये गये। इस आयोजन में संयुक्त परिवार की जो भावना देखने को मिली, उसकी हर तरफ तारीफ हो रही थी लेकिन अचानक हुए हादसे की वजह से उत्साहजनक माहौल दुखद में बदल गई।

देश को एक करने का काम मातृछाया कर रही है - शशि डेका



मातृछाया के एक समारोह में असम के परिवार को एक बच्ची गोद दिया गया है। इस अवसर पर मातृछाया समिति के भास्कर वर्तक ने नन्हीं बच्ची को श्रीमती मानसी शर्मा के गोद में दिया, वैसे ही वहां पर उपस्थित बिलासपुर के गणमान्य नागरिकों ने ताली बजाकर स्वागत किया। इस अवसर पर बिलासपुर के अनेक गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। इस कार्यक्रम के प्रेरणा स्त्रोत शशिभूषण डेका भी उपस्थित थे। शशिभूषण ने कहा कि- मातृछाया पूरे देश को एक करने का काम कर रही है क्योंकि इस छोटे से मातृछाया से नि:संतान दंपतियों को अनेक हस्ते-खेलते शिशु उनके घर एवं जीवन को रोशन कर रहे है। श्री भास्कर राव जी वर्तक ने कहा कि मातृछाया के स्थापना होने के पश्चात छत्तीसगढ़ प्रांत के अनेक स्थानों से शिशु हमें प्राप्त हो रहे है तथा ऐसे परिवारों में उनका जाना हो रहा है जिनकी कल्पना इस संस्था के बगैर नहीं की जा सकती। अब तक लगभग १७७ परिवारों ने मातृछाया से अनेक हस्ते-खिलखिलाते बच्चे प्राप्त किये है तथा मातृछाया समाज में व पूरे प्रदेश में एक स्थान बना चुका है। 

जेनेटिक कोड के जनक थे डॉ. हरगोविन्द खुराना


जेनेटिक कोडिंग के जरिये पूरे विश्व को नई दिशा देने वाले नोबेल पुरस्कार विजेता भारतीय मूल के वैज्ञानिक डॉ. हरगोविन्द खुराना नहीं रहे। शरीर क्रिया विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण शोध के जरिए क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाले डॉ. हरगोविन्द खुराना के प्रयासों से ही चिकित्सा विज्ञान की नई शाखा जेनेटिक (आनुवांशिक) इंजीनियरिंग की स्थापना में मदद मिली। विभाजित भारत के पंजाब प्रांत में एक साधारण परिवार में पैदा हुए डॉ. खुराना २०वीं सदी की महान वैज्ञानिक विभूतियों में से एक थे जिनके कार्यों से चिकित्सा विज्ञान क्षेत्र में काफी मदद मिली। वर्तमान समय में डीएनए से संबंधित उनके कार्यों की वजह से वह दिन करीब आ गया है जब खराब मानव उत्तकों को ठीक किया जा सकेगा या मानसिक रुप से अविकसित लोगं को सामान्य बनाया जा सकेगा। खुराना को प्रयोगशाला में पहला मानवनिर्मित जीन तैयार करने का भी श्रेय है। १९६० के दशक में उनके उल्लेखनीय कार्यों के बीच १९६८ में उन्हें चिकित्सा क्षेत्र के लिए नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। अनुवांशिक कोड की व्याख्या और प्रोटीन संश्लेषण में उसके कार्यके विश्लेषण के लिए उन्हें यह सम्मान एमडब्ल्यू न्यूरोमबर्ग और आर डब्ल्यू हाली के साथ मिला था। डीएनए जीवन का आधार होता है। प्रकृति ने सभी जीवों की कोशिकाओं में एक ऐसा कम्प्यूटर प्रोग्राम भर रखा है जो उस जीव की समस्त गतिविधियों को नियंत्रित और संचालित करता है।

डॉ. खुराना ने कृत्रिम जीन के साथ डीएनए लाइगेज का भी संश्लेषण किया जो डीएनए के विभिन्न भागों को आपस में जोड़ता है। इस तरह संश्लेषित कृत्रिम जीन आज बायोतकनीक, क्लोनिंग व नए प्रकार के पादप व जीवों को विकसित करने में प्रचुरता से उपयोग किए जा रहे हैं। खुराना ने डीएनए पर भी कार्य किया। उनके शोध कार्यों से बाद के शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों को भी काफी मदद मिली। खुराना का जन्म ९ जनवरी १९२२ को पंजाब (अब पाकिस्तान) के रायपुर में हुआ था। उस गांव में शिक्षा को विशेष अहमियत नहीं थी, लेकिन उनके पटवारी पिता की अपने बच्चों को पढ़ाने में विशेष दिलचस्पी थी। डीएवी हाईस्कूल मुल्तान में स्कूली शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय लाहौर से उच्च शिक्षा हासिल की। स्कूल के दिनों में वह अपने एक शिक्षक से काफी प्रभावित थे। १९४५ में वह सरकारी छात्रवृत्ति पर इंग्लैण्ड गए और १९४८ में लिवरपुल विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि हासिल की। इसी दौरान वह पश्चिम के प्रभाव में आए। बाद में वह भारत लौटे, लेकिन ज्यादा दिन तक नहीं रुक सके। भारत में वह उपेक्षित ही रहे, उन्होंने यह पर नौकरी भी करनी चाही और जेनेटिक पर अपने शोध को भी आगे बढ़ाने की सोची पर ये सब यहां नहीं हो पाया। सरकारी स्तर पर भी इस अद्भूत व्यक्ति को कोई सहायता नहीं दी गई। वे देश में ब्रेनड्रेन के सबसे बड़े उदाहरण हैं। निश्चित ही हमारी व्यवस्था में ऐसा कोई दोष है, जिस कारण यहां योग्यता का सही मूल्यांकन नहीं होता। दरअसल, हम योग्यता को नहीं, बल्कि निष्ठा को महत्व देते है। डॉ. खुराना की खोज मानव प्रगति की दिशा में महत्वपूर्ण शुरुआत है जिसकी समाप्ति उस स्तर पर होगी जब मनुष्य के विकलांगता व कमी के लिए उत्तरदायी जीनों को कृत्रिम अच्छे जीनों से प्रतिस्थापित कर इंटेलिजेंट महामानव बनाया जा सकेगा। उनका आरएनए संश्लेषण कृत्रिम जीवन की ओर बढ़ाया गया पहला कदम है और अब किसी साइन्स फिक्शन फिल्म की तरह मनुष्य को इंतजार है प्रयोगशाला में सृजित पहले कृत्रिम जीव का।                                   - साभार, हरिभूमि    

हिन्दू सभी एक है


भूले सब भाषा प्रांत भेद जात्याभिमान का भ्रम भूले।
पर भूले मजहब हिन्दू है, पर भूले मजहब हिन्दू है॥

हिन्दू नाम, जो हमारे सर्वव्यापक धर्म को बोध कराता था, आज अप्रतिष्ठा को प्राप्त हुआ है। लोग अपने को  हिन्दू कहने में लज्जा का अनुभव करने लगे हैं। इस प्रकार वह स्वर्णिम सूत्र, जिसमें ये सभी विविध आभायुक्त आध्यात्मिक मोची पिरोए हुए थे, छिन्न हो गया है तथा विविध पंथ एवं मत केवल अपने ही नाम पर गर्व करने लगे हैं और अपने को हिन्दू कहलाने से इनकार करने लगे हैं

कुछ सिख, जैन, लिंगायत तथा आर्यसमाजी अपने को हिन्दुओं से पृथक घोषित करते हैं। कुछ प्रमुख सिख नेता भाषायी प्रांत (पंजाबी सूबे) के बहाने सिखों के एक अलग सांप्रदायिक राज्य की मांग के लिए आंदोलन कर रहे हैं। अपनी माँग को पुष्ट करने के लिए उनमें से कुछ तो इतने निम्न स्तर पर आ गए हैं कि अलग मुस्लिम राज्य अर्थात् पाकिस्तान का औचित्य सिद्ध करने लगे हैं। वे इस सीमा तक जा चुके हैं कि पाकिस्तान की सहानुभूति एवं सहायता भी चाहने लगे हैं और विभाजन के दिनों में पाकिस्तानियंो द्वारा हुए बर्बर अत्याचारों तथा अपमानों को विस्मृत कर बैठे हैं।

इससे दुर्भाग्य की बात भला और क्या होगी कि वर्तमान  सिख-नेता अपने पवित्र पंथ को देश और धर्म के कट्टर विनाशकों के समकक्ष ला खड़ा करने में कमर कसते हैं! इतना ही नहीं तो उन्हीं शत्रुओ से मदद पाने के इच्छुक हैं, जिनके आक्रमणों से मुकाबला कर हमारी रक्षा करने के लिए उसका जन्म हुआ था।

सिखों के नामधारी पंथ के प्रधान ने कहा था-जो व्यक्ति निष्ठावान हिन्दू नहीं है, सिख भी नहीं हो सकता। वह उन महान पुरुषों का शिष्य नहीं हो सकता, जिन्होंने इस मातृ समाज एवं मातृ-धर्म, अर्थात् हिन्दू के लिए अपना रक्त बहाया था। श्री गुरु गोविंदसिंह ने कहा था-सच्चा सिख वही है, जो वेदों और भगवद्गीता में विश्वास रखता है तथा राम और कृष्ण को पूजता है।गुरु के इन शब्दों के प्रति विशुद्ध निष्ठावान ही सच्चा सिख है। इन गुरुओ ने हिन्दू-समाज की रक्षा के लिए वीरों का यह दल गठित किया और उन्हें सिखकी संज्ञा दी, क्योंकि व निष्ठावान शिष्य थे, शीलवान एवं पराक्रमी थे। इसीलिए उन्हें खाससाकहा अथवा अकाल-काल से परे जो सत्य है, उसका पुजारी होने के नाते उन्हें अकालीकहा।    

सोनिया गाँधी की ‘वैधानिकता’ पर सवाल उठाने वाला पहले मुख्यमंत्री ?




उत्तराखण्ड में ॠषिकेश से कर्णप्रयाग की रेल लाइन के निर्माण का भूमिपूजन विशाल पैमाने पर किया जाना था। उत्तराखण्ड में आगामी चुनाव को देखते हुए इस रेल परियोजना की नींव का पत्थर रखने के लिए सोनिया गाँधी को आमंत्रित किया गया था (ये कोई नई बात नहीं है, कई राज्यों में एक संवैधानिक प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री का अपमान करते हुए सोनिया गाँधी से उद्घाटन करवाने की चरणपूजन परम्परा रही है।) अपनी रहस्यमयी बीमारीके बाद सोनिया गाँधी की यह पहली विशाल आमसभा भी होती। परन्तु ऐन मौके पर उत्तराखण्ड राज्य के मुख्यमंत्री श्री खण्डूरी ने कांग्रेस के मंसूबे को पूरा होने नहीं दिया।
हाल ही में अण्णा की मंशा के अनुरूप जनलोकपाल बिल पास करवा चुके और टीम अण्णा की तारीफें पा चुके भुवनचन्द्र खण्डूरी ने प्रोटोकॉलका सवाल उठाते हुए राष्ट्रपति भवन एवं प्रधानमंत्री कार्यालय से लिखित में पूछा, कि आखिर सोनिया गाँधी किस हैसियत से इस केन्द्रीय रेल परियोजना की आधारशिला रख रही हैं ?, न तो वे प्रधानमंत्री हैं, न ही रेल मंत्री हैं कांग्रेस और NAC अध्यक्ष का पद कोई संवैधानिक पद तो है नहीं? इस कारण यह साफ-साफ संवैधानिक परम्पराओं का उल्लंघन एवं प्रधानमंत्री और रेल मंत्री का अपमान है। इसके बाद सोनिया गाँधी का यह कार्यक्रम रद्द कर दिया गया और इस आधारशिला कार्यक्रम में एक सांसद ने सोनिया गाँधी का एक संदेश पढक़र सुनाया, वैसे यदि यह कार्यक्रम अपने मूलरूप में सम्पन्न होता भी तो दिनेश त्रिवेदी (रेलमंत्री), भरतसिंह सोलंकी और केएम मुनियप्पा (दोनों रेल राज्यमंत्री) सोनिया गाँधी के पीछे-पीछे खड़े होकर सिर्फ हें-हें-हें-हें-हें करते, लेकिन अब रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी को उनका उचित संवैधानिक सम्मानमिला।
ज़ाहिर है कि कांग्रेस खण्डूरी के इस वार से भौंचक्की रह गई है, क्योंकि अभी तक किसी मुख्यमंत्री की ऐसे असुविधाजनक सवालउठाने की हिम्मत’(?) नहीं हुई थी। मजे की बात देखिये कि राज्य की इस महत्वपूर्ण योजना के इस संवैधानिक कार्यक्रम में राज्य के मुख्यमंत्री को ही निमंत्रण नहीं दिया गया था, मानो यह रेल परियोजना गाँधी परिवारका कोई पारिवारिक कार्यक्रम हो। अब शर्म छिपाने के लिए कांग्रेस द्वारा उल्टा चोर कोतवाल को डाँटेकी तर्ज पर प्रदेश कांग्रेस ने खण्डूरी की कड़ी आलोचना की है। कांग्रेस ने कहा है कि सोनिया गाँधी बीमारी की वजह से उनका यहाँ आना रद्द किया गया है, इसका खण्डूरी के सवालों से कोई लेना-देना नहीं है
आए दिन गाँधी परिवार के नाम से शुरु होने वाली योजनाओं और सिर्फ एक सांसदकी संवैधानिक हैसियत रखने वाली सोनिया गाँधी जब-तब हर राज्य में जाकर केन्द्र की विभिन्न परियोजनाओं को झण्डी दिखाती रही हैं, मंच हथियाती रही हैं। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि पहली बार किसी मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक रूप से इस व्यवस्था’(?) पर सवाल उठाया है। कोई भी केन्द्रीय परियोजना जनता के पैसों से ही बनती और चलती है, तो इसकी आधारशिला और उदघाटन का अधिकार प्रधानमंत्री, सम्बन्धित विभाग के मंत्री अथवा राज्य के मुख्यमंत्री का होता है, जो कि संवैधानिक पद हैं, जबकि सोनिया गाँधी ५४५ में से एक सांसद भरहैं (न तो PA और न ही NAC , दोनों ही संवैधानिक संस्था नहीं हैं), हाँ वे चाहें तो राजीव गाँधी फाउण्डेशन के किसी कार्यक्रम की अध्यक्षता कर सकती हैं, क्योंकि वे उस संस्था की अध्यक्षा हैं। परन्तु एक आधिकारिक शासकीय कार्यक्रम में मुख्य आतिथ्य अथवा फीता काटना या हरी झण्डी दिखाना उचित नहीं कहा जा सकता। सोनिया गाँधी के पिछले दो वर्ष के विदेश दौरों और इलाज पर हुए खर्च का कोई ब्यौरा सरकार के पास नहीं है। इस साहस के लिए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भुवनचन्द्र खण्डूरी निश्चित रूप से बधाई के पात्र हैं। लगता है कि अब भाजपाई भी डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी की हिम्मत और प्रयासों से प्रेरणा ले रहे हैं, जो कि अच्छा संकेत है। 
 - सुरेश चिपलूनकर

हमारे वैज्ञानिक - डॉ. चन्द्रशेखर वेंकट रमन


भारतीय वैज्ञानिको में नोबल पुरस्कार विजेता सर सी.वी. रमन का नाम अग्रणी है, इस भारतीय सपूत का जन्म ७ नवंबर सन् १९८८ को दक्षिण भारत के एक प्रसिद्ध नगर त्रिचनापल्ली में हुआ था, उनके पिता श्री चन्द्रशेखर अय्यर भौतिक विज्ञान तथा गणित के उत्कृष्ट विद्वान थे, आपकी माता दयालु और निर्भीक स्वभाव की थी।
१४ वर्ष की अल्पायु में मद्रास विश्वविद्यालय से बी.ए. प्रथम श्रेणी में उत्र्तीण किया, उन्नीस वर्ष की अल्पायु में भारत सरकार के वित्त विभाग में डिप्टी एकाउन्टेंट जनरल नियुक्त हुए। १९०७ में भौतिक विज्ञान में एम.ए. पास किया। १९१७ में कलकत्ता विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्रोफेसर बन गए। रामन प्रभाव को खोजने की प्रेरणा इन्हें कैसे मिली, यह अपने-आप में एक दिलचस्प। १९२७ में प्रो. रामन अपने प्रयोगशाला में कार्य कर रहे थे, उसी समय इनका एक विद्यार्थी दौड़ते हुए आये और उन्होंने रामन को बताया कि प्रो. कोम्पटन को एक्स किरणों के प्रकीर्णन पर नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया है, यह बात सुनकर प्रो. रामन ने कहा, जिस प्रकार पदार्थ के गुजरने पर एक्स-किरणों में परिवर्तन आते हैं, क्या प्रकाश में भी उसे पारदर्शी माध्यम से गुजारने पर परिवर्तन नहीं आयेंगे ? यह विचार उनके मन-मस्तिष्क में कौंधता रहा। उन्होंने एक मर्करी आर्क से एक रंगी प्रकाश की किरण को कुछ पारदर्शी पदार्थों से गुजारकर एक साधारण स्पेक्ट्रोग्राफ पर डालकर उसका स्पेक्ट्रम लिया। कई पदार्थों से प्रकाश किरणों को गुजारने पर उन्हें स्पेक्ट्रम में कुछ नई रेखाएं प्राप्त हुई, जिन्हें रामन-लाइन कहा गया। चार माह तक अहर्निश रात-दिन कार्य करके १६ मार्च १९२८ तो ,को सर सी.वी. रमन ने रामन प्रभाव की घोषणा की। इस रामन प्रभाव पर सन् १९३० में उन्हें नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया। इन किरणंो से इस बात से पर्दा उठ जाता है कि आकाश हमें नीला क्यों दिखाई देता है ? वस्तुएं विभिन्न रंग की क्यों दिखाई देता है ? पानी में तैरने वाले हिम शैल हरे-नीले क्यों दिखाई पड़ते है ? सन् १९२४ में सर सी.वी. रमन लंदन की रायल सोसायटी के सदस्य नियुक्त हुए। रामन ने चुंबक तथा संगीत-वाद्य यंत्रों के क्षेत्र में अनेक अनुसंधान किए। बंगलौर के पास रामन रिसर्च इन्स्टीट्यूट की स्थापना की। १९७० में बंगलौर में इस महान वैज्ञानिक का देहान्त हो गया। भारत को ऐसे सपूत पर गर्व है जिसने यह सिद्ध कर दिया कि विज्ञान पर केवल पश्चिमी लोगों का ही आधिपत्य नहीं है। उनका संदेश था कि अनुसंधान कार्यों में उपकरण से कहीं अधिक महत्वपूर्ण स्वतंत्र विचार और कठिन परिश्रम है।                             
 - प्रफुल्ल शर्मा

संपादकीय – क्रिकेट - कीचड़ भरा दलदल


पूर्व क्रिकेटर विनोद काम्बली ने सनसनीखेज बयान देकर भारतीय क्रिकेट के अनेक खिलाडिय़ों को कटघरे में खड़ा कर दिया। १९९६ में खेला गया विश्वकप के सेमीफाइनल मैंच में श्रीलंका के हाथों भारत की हार पर काम्बली को शक है और नि:संदेह यह मैंच पहले से फिक्स था। उस समय टीम के कप्तान मोहम्मद अजरुद्दीन थे। बाद में आईसीसी ने भी सन् २००० में मोहम्मद अजरुद्दीन पर मैंच फिक्सिंग के आरोप पर आजीवन प्रतिबंध लगा दिया था। आज कांग्रेस के सांसद है।
काम्बली का कहना है भारतीय टीम ने पहले तय किया था कि टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करेंगे परन्तु श्रीलंका को बल्लेबाजी का न्यौता देकर कप्तान ने सबको हैरान कर दिया। श्रीलंका ने ८ विकेट खोकर २५१ रन बनाये थे। जिसके जबाव में भारत ने ३४ ओवर में ८ विकेट गंवाकर १२० रन ही बना सकी। प्रथम ९८ रन रन केवल २ विकेट गिरे थे परन्तु ऐसा क्या हुआ कि अगले २२ रनों में एक के बाद एक ६ विकेट गिर गये। भारत की इस तरह शर्मनाक हार को दर्शक भी पचा नहीं पाये थे तथा दर्शकों ने मैदान पर बोतले फेंकने लगे जिससे मैंच स्थगित हो गया। जनता को लगा कि मैंच फिक्स था। अजरुद्दीन ने काम्बली के आरोप का खंडन करते हुए कहा कि उनका बयान है कि उनके बातों में कोई दम नहीं है यदि मैंच फिक्सिंग था तो वह इतने वर्षों तक खामोश क्यों बैठा था? तत्कालीन मैंनेजर अजीत वाडेकर ने भी विनोद काम्बली के इतने दिनों तक चुप्पी पर प्रश्न खड़ा किया।
आज क्रिकेट मैंच दगाबाजी के दलदल में फंसा हुआ दिख रहा है। आरोप-प्रत्यारोप दोनों तरफ से लग रहे है। खिलाड़ी और राजनेता इसमें शामिल हो गये है। अजहर कांग्रेस के सांसद हैं। अब क्रिकेट में राजनीतिक लड़ाई शुरु हो गई है। केन्द्रीय खेलमंत्री अजय माकन चाहते है क्रिकेट भी सूचना के अधिकार के तहत आये, लेकिन उन्हीं के पार्टी ऐसा होने से रोक रहे है। क्रिकेट राजनैतिक, सट्टाबाजी व्यवसायिक खेल होकर रह गया है। इस फिक्सिंग से भी देश के दामन पर दाग लगा है इसलिए सच बातें सामने लाने के लिए इसके उच्च स्तरीय जांच कराई जानी चाहिए।

धर्म परिवर्तन कराने से मचा बवाल


धमतरी। नगर पंचायत आमदी में इन दिनों धर्मातरण को लेकर बवाल मचा हुआ है। धर्मातरण के विरोध में लोग लामबंद होकर सीधे थाने पहुंच गए।
मंगलवार को पूर्वाह्न् ११ बजे बड़ी संख्या में आमदी के लोगों ने अजरुनी थाना पहुंच कर धर्मातरण कराने वाले लोगों पर कार्रवाई की मांग की। धर्मसेना के प्रदेश संयोजक सुबोध राठी, पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष नीलकंठ साहू, हेमंत माला की अगुवाई में आए लोगों ने पुलिस अधिकारियों से मिलकर आमदी के हालात से अवगत कराया। इस मौके पर सुबोध राठी ने कहा कि ग्रामीणों को प्रलोभन देकर बहकाया जा रहा है। धर्म परिवर्तन कराकर हिन्दुओं की आस्था से भी खिलवाड़ किया जा रहा है। झाड़-फूंक और प्रार्थना के द्वारा बीमारियों से निजात दिलाने के नाम से लोगों को बुलाकर बहकाया जा रहा है। तबीयत खराब होने पर उन्हें अस्पताल न जाकर ऐसी सभाओं में जाने कहा जाता है। बताया गया है कि प्रलोभन से आमदी में इस दौरान करीब सौ परिवारों ने धर्म परिवर्तन कर लिया था, जिनकी घर वापसी विभिन्न समाजों के प्रयास से हुई। हेमंत माला ने बताया कि धर्म परिवर्तन किए तीन लोग अब भी गांव से गायब हैं। इनमें बीरबल साहू की पुत्री पुष्पा साहू (२४), रामप्रसाद साहू के पुत्र दयानंद साहू, लखन साहू के पुत्र कमल नारायण साहू शामिल है । परिजनों ने आरोप लगाया कि उनके बच्चों को छिपाकर रखा गया है। न उनसे मिलने देते है , और न घर आने देते हैं। उन्होंने पुलिस प्रशासन से कार्रवाई की मांग की है। शिकायत दर्ज कराने थाना पहुंचने वालों में हेमराज सोनी, दिलीपराज सोनी, यशवंत गजेंद्र, त्रिभुवन मटियारा, नारायण साहू, शिवप्रसाद साहू, लक्ष्मण साहू, राजू पटेल के साथ बड़ी संख्या में लोग शामिल थे।

सेवा संगम गहिरा में आयोजित


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ रायगढ़ के सेवा विभाग द्वारा आयोजित सेवा संगम रायगढ़ जिले के लैलूंगा ब्लॉक में हो रहा है। इस दो दिवसीय कार्यशाला में रायगढ़ जिला और जशपुर जिला के कार्य करने वाले सामाजिक संगठनों का मिलन एवं प्रदर्शनी होगा। लैलूंगा से १५ कि.मी. दूर गहिरा ग्राम में आयोजित किया जा रहा है। इस आयोजन से गांव में भारी उत्साह है क्योंकि यह ग्राम पूज्य गहिरा गुरुजी का जन्मस्थली है। पूज्य गहिरा गुरुजी ने सनातन धर्म को वनवासी जनों में खूब प्रचार-प्रसार किया। गांव के लोगों को सांस्कृतिक शिक्षा के लिए गहिरा, लैलूंगा, सरगुजा तथा झारखंड एवं उड़ीसा में अनेक विद्यालय प्रारंभ किये। ये विद्यालय समाज के सहयोग से संस्कृत एवं पारंपरिक शिक्षा देता है। उन्हीं के स्मृति में वनवासियों के लिए किया गया सेवा को देखते हुए सेवा विभाग ने सम वैचारिक संगठनों द्वारा समाज के लिए जो कार्य किये जा रहे है उन्हें एक स्थान पर प्रदर्शित कर अन्य लोगों में जागरुकता बढ़ाना तथा समाज को सेवा कार्य से जोडऩा। सेवा विभाग नर के सेवा से नारायण की सेवा होती है।
सेवा प्रमुख छतराम राठौर ने बताया कि २६ नवंबर प्रात: से २७ नवंबर दोपहर तक कार्यक्रम समाप्त होंगे। सभी जिले के सामाजिक संगठनों से (एनजीओ) सूचना एवं जानकारी भेजकर आने की सहमति ले ली गई है। पिछले वर्ष सेवा विभाग द्वारा कोरबा के देवपहरी नामक स्थान पर आयोजित किया गया था। उसी तर्ज पर लैलूंगा ग्राम गहिरा में आयोजित किया जा रहा है।

दिल्ली परेड में थिरकेंगे डिंडौरी के बच्चे


जिले के स्कूली छात्र- छात्राएं दिल्ली में २६ जनवरी २०१२ को गणतंत्र दिवस मुख्य परेड में हिस्सा लेंगे। गुदुम बाजा की धुन पर लगभग २०० बच्चों ने स्थानीय कस्तूरबा कन्या शाला प्रांगण में गुदुम नृत्य की तैयारी शुरू कर दी है।
भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय व सांस्कृतिक मंत्रालय के पत्र के बाद छह से अधिक स्कूलों के छात्र- छात्राएं तैयारियों में जुटे हैं। नोडल अधिकारी पीएस राजपूत ने बताया कि गुदुम बाजा के साथ गणतंत्र दिवस समारोह में गुदुम नृत्य प्रस्तुत करने के लिए रक्षा मंत्रालय ने जिले के लगभग २०० बच्चों को तैयार करने संबंधी पत्र भेजा है, जिसके परिप्रेक्ष्य में गुदुम बाजा वादकों के साथ विद्यार्थियों ने तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। श्री राजपूत ने बताया कि १३ और १४ नवंबर को रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों का दल डिंडौरी आएगा और छात्र-छात्राओं की तैयारियों का जायजा लेगा। उल्लेखनीय है कि गुदुम बाजा के साथ नृत्य में महारत हासिल करने वाले ललता राम, लखनलाल, जीवन धुर्वे, रमेश मरावी, रमेश धुर्वे और लेखपाल धुर्वे का छात्र- छात्राओं को पारंगत करने के लिए सहयोग लिया जा रहा है। वहीं प्राचीन डिंडौरी, कस्तूरबा कन्या शाला, एकलव्य विद्यालय, केन्द्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय के लगभग दो सौ छात्र- छात्राएं नृत्य की तैयारी कर रहे है। छात्र-छात्राओं के अलावा लगभग ५० गुदुम वादक व नर्तकों का दल भी दिल्ली में गणतंत्र दिवस समारोह में हिस्सा लेगा।    

चाईना का सामान चार दिन का


बिलासपुर निवासी गणपति रायल दो माह पूर्व हवा भरने का पंप गोल बाजार बिलासपुर से १५० रुपये में खरीदा। देखने में बहुत सुंदर पंप और एक माह तक वह पंप साइकिल में हवा भरता रहा। लेकिन धीरे-धीरे हवा भरने में कठिनाई होने लगा। पास के साइकिल मिस्त्री को दिखाने पर उसने बताया कि पंप का हवा भरने का प्रेसर कम हो गया है। आप जहां से खरीदे हैं वहीं लेकर जाये। जब पुन: गोल बाजार उसी दुकान में पहुंचे तो दुकानदार ने कहा हमें नहीं मालूम। आप ऐसा करो की दूसरा पंप ले जाओ। क्योंकि चाईना मॉडल का ऐसा ही होता है। चाईना मॉडल याने चार दिन चलने वाला। मैंने बिलासपुर के अनेक साइकिल मिस्त्री एवं दुकानदार के पास गया, सभी से पूछा कि साइकिल में हवा भरने वाला पंप अब हवा नहीं भर रहा है ये कैसे ठीक होगा? लेकिन इसका ठीक उत्तर किसी के पास नहीं था।
कई दिन हो गये मुझे हवा भरने के पंप खराबी का पता नहीं चला। पूछते-पूछते रोहरा साइकिल स्टोर्स शनिचरी बाजार पहुंचा तो उसके मालिक ने बताया कि इसमें यह एक रुपये का वायसर लगता है तथा इसको यहां से स्क्रू ड्रायवर से खोला जाता है। आप किसी साइकिल मिस्त्री के पास जाकर ठीक करवा लीजिए। तब मुझे समझ में आया कि चाईना का सामान चार दिन कैसे चलता है और मैंने फिर २०० रुपये का पुराना मॉडल का साइकिल में हवा भरने का पंप खरीदा। अब चाईना का सामान ना बाबा ना...

भारत में रह रहे पाकिस्तानियों के आंकड़े नहीं



नई दिल्ली। पाकिस्तान से आए और वीजा अवधि खत्म होने के बाद भी भारत में रह रहे लोगों के आंकड़े २००९ के बाद सरकार के पास नहीं हैं। जबकि २००९ तक के आंकड़े बताते हैं कि वीजा खत्म होने के बाद भी भारत में रहने वाले पाकिस्तानियों की संख्या सात हजार ६९१ है। इसी तरह इस अवधि तक ३२ हजार ६४४ बांग्लादेशी वीजा खत्म होने के बाद भी अपने देश नहीं लौटे। यह जानकारी सूचना का अधिकार (आरटीआइ) कानून के तहत दाखिल अर्जी में गृह मंत्रालय द्वारा दी गई है। आरटीआइ कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल द्वारा मांगी गई जानकारी में गृह मंत्रालय ने बताया कि वीजा अवधि खत्म होने के बाद भी भारत में रह रहे विदेशियों के पिछले वर्ष और इस वर्ष के आंकड़े तैयार नहीं हो सके हैं। आरटीआइ में कहा गया है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश समेत उन विदेशी नागरिकों की संख्या का सही अनुमान लगा पाना मुमकिन नहीं है, जो देश में गैरकानूनी ढंग से घुस आए या वीजा अवधि खत्म होने के बाद भी मौजूद हैं। गृह मंत्रालय के अनुसार पाकिस्तान से भारत में आकर रह जाने सात हजार ६९१ लोगों में ज्यादातर हिंदू और सिख हैं। आरटीआइ के अनुसार, हिंदू और सिख पाकिस्तान से यहां की नागरिकता पाने की मंशा के साथ आते हैं, लेकिन गृह मंत्रालय के पास ऐसे लोगों की सही संख्या नहीं है। आरटीआइ में बताया गया है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश के अतिरिक्त अन्य देशों के ३३ हजार १०६ नागरिक भी वीजा अवधि खत्म होने के बावजूद भारत में रह रहे हैं। इनमें अफगानिस्तान (१३ हजार ५६९), श्रीलंका (दो हजार ४९०), अमेरिका (एक हजार ५३५) और नाइजीरिया (एक हजार १२१) से आए लोग शामिल हैं। आरटीआइ में यह भी जानकारी दी गई है कि २००९ में १२ हजार १४७ विदेशी नागरिकों को पकड़ कर जबर्दस्ती उनके देश भेजा गया, इनमें पांच पाकिस्तान से थे और दस हजार ६०२ बांग्लादेश से।

२जी घोटाले का सच


नई दिल्ली। २जी स्पेक्ट्रम घोटाले से संबंधित ४०० पन्नों की पांच फाइलें सीबीआई ने सुब्रमंण्यम स्वामी को सौंप दी। इन फाइलों में मौजूद दस्तावेजों को लेकर संदेह बरकरार है। जहां सीबीआई आधिकारिक रूप से इन फाइलों में तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम और संचार मंत्री ए.राजा के बीच का एक भी पत्र नहीं होने का दावा कर रही है, वहीं स्वामी इन दोनों के बीच हुए पत्राचार के सुबूत मिलने पर खुशी जता रहे हैं।
घोटाले की जांच से जुड़े सीबीआइ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि स्वामी को जो पांच फाइलें सौंपी गई हैं, उनमें एक फाइल वित्त मंत्रालय और संचार मंत्रालय के अधिकारियों के बीच हुए पत्राचार से संबंधित है। अधिकारी के मुताबिक इसमें राजा और चिदंबरम के बीच का एक भी पत्र नहीं है। वहीं फाइल हासिल करने के बाद सीबीआइ मुख्यालय से निकलते हुए सुब्रमंण्यम स्वामी ने दावा किया कि इन फाइलों में राजा और चिदंबरम के बीच हुए पत्राचार भी शामिल हैं।
इसके अलावा सीबीआई ने जो फाइलें स्वामी को दी हैं, उनमें स्पेक्ट्रम पाने वाली कंपनियों की होल्डिंग में एक खास समय तक फेरबदल पर रोक लगाने के मुद्दे पर वित्त, संचार और कॉरपोरेट मंत्रालय के बीच हुए पत्राचार शामिल हैं। इस मुद्दे पर मंत्रालयों के बीच एक राय नहीं बन पाने के कारण लाइसेंस मिलते ही स्वान टेलीकॉम और यूनिटेक ने विदेशी कंपनियों को हिस्सेदारी बेचकर करोड़ों रुपये का मुनाफा कमाया था। सूत्रों के अनुसार स्वामी को दिए गए ४०० पेज में ३५ पेज की फाइल नोटिंग भी शामिल हैं। स्वामी २जी स्पेक्ट्रम घोटाले में पी चिदंबरम को आरोपी बनाने की मांग कर रहे हैं और इसके लिए उन्होंने पटियाला हाउस अदालत में अपील भी की है, जिस पर आगामी तीन दिसंबर को सुनवाई होगी। पिछले हफ्ते इसी अदालत ने सीबीआइ को संबंधित फाइलें स्वामी को सौंपने का निर्देश दिया था।  

२जी घोटाले का सच जनता के सामने नई दिल्ली। २जी स्पेक्ट्रम घोटाले से संबंधित ४०० पन्नों की पांच फाइलें सीबीआई ने सुब्रमंण्यम स्वामी को सौंप दी। इन फाइलों में मौजूद दस्तावेजों को लेकर संदेह बरकरार है। जहां सीबीआई आधिकारिक रूप से इन फाइलों में तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम और संचार मंत्री ए.राजा के बीच का एक भी पत्र नहीं होने का दावा कर रही है, वहीं स्वामी इन दोनों के बीच हुए पत्राचार के सुबूत मिलने पर खुशी जता रहे हैं। घोटाले की जांच से जुड़े सीबीआइ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि स्वामी को जो पांच फाइलें सौंपी गई हैं, उनमें एक फाइल वित्त मंत्रालय और संचार मंत्रालय के अधिकारियों के बीच हुए पत्राचार से संबंधित है। अधिकारी के मुताबिक इसमें राजा और चिदंबरम के बीच का एक भी पत्र नहीं है। वहीं फाइल हासिल करने के बाद सीबीआइ मुख्यालय से निकलते हुए सुब्रमंण्यम स्वामी ने दावा किया कि इन फाइलों में राजा और चिदंबरम के बीच हुए पत्राचार भी शामिल हैं। इसके अलावा सीबीआई ने जो फाइलें स्वामी को दी हैं, उनमें स्पेक्ट्रम पाने वाली कंपनियों की होल्डिंग में एक खास समय तक फेरबदल पर रोक लगाने के मुद्दे पर वित्त, संचार और कॉरपोरेट मंत्रालय के बीच हुए पत्राचार शामिल हैं। इस मुद्दे पर मंत्रालयों के बीच एक राय नहीं बन पाने के कारण लाइसेंस मिलते ही स्वान टेलीकॉम और यूनिटेक ने विदेशी कंपनियों को हिस्सेदारी बेचकर करोड़ों रुपये का मुनाफा कमाया था। सूत्रों के अनुसार स्वामी को दिए गए ४०० पेज में ३५ पेज की फाइल नोटिंग भी शामिल हैं। स्वामी २जी स्पेक्ट्रम घोटाले में पी चिदंबरम को आरोपी बनाने की मांग कर रहे हैं और इसके लिए उन्होंने पटियाला हाउस अदालत में अपील भी की है, जिस पर आगामी तीन दिसंबर को सुनवाई होगी। पिछले हफ्ते इसी अदालत ने सीबीआइ को संबंधित फाइलें स्वामी को सौंपने का निर्देश दिया था।



नई दिल्ली। २जी स्पेक्ट्रम घोटाले से संबंधित ४०० पन्नों की पांच फाइलें सीबीआई ने सुब्रमंण्यम स्वामी को सौंप दी। इन फाइलों में मौजूद दस्तावेजों को लेकर संदेह बरकरार है। जहां सीबीआई आधिकारिक रूप से इन फाइलों में तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम और संचार मंत्री ए.राजा के बीच का एक भी पत्र नहीं होने का दावा कर रही है, वहीं स्वामी इन दोनों के बीच हुए पत्राचार के सुबूत मिलने पर खुशी जता रहे हैं।
घोटाले की जांच से जुड़े सीबीआइ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि स्वामी को जो पांच फाइलें सौंपी गई हैं, उनमें एक फाइल वित्त मंत्रालय और संचार मंत्रालय के अधिकारियों के बीच हुए पत्राचार से संबंधित है। अधिकारी के मुताबिक इसमें राजा और चिदंबरम के बीच का एक भी पत्र नहीं है। वहीं फाइल हासिल करने के बाद सीबीआइ मुख्यालय से निकलते हुए सुब्रमंण्यम स्वामी ने दावा किया कि इन फाइलों में राजा और चिदंबरम के बीच हुए पत्राचार भी शामिल हैं।
इसके अलावा सीबीआई ने जो फाइलें स्वामी को दी हैं, उनमें स्पेक्ट्रम पाने वाली कंपनियों की होल्डिंग में एक खास समय तक फेरबदल पर रोक लगाने के मुद्दे पर वित्त, संचार और कॉरपोरेट मंत्रालय के बीच हुए पत्राचार शामिल हैं। इस मुद्दे पर मंत्रालयों के बीच एक राय नहीं बन पाने के कारण लाइसेंस मिलते ही स्वान टेलीकॉम और यूनिटेक ने विदेशी कंपनियों को हिस्सेदारी बेचकर करोड़ों रुपये का मुनाफा कमाया था। सूत्रों के अनुसार स्वामी को दिए गए ४०० पेज में ३५ पेज की फाइल नोटिंग भी शामिल हैं। स्वामी २जी स्पेक्ट्रम घोटाले में पी चिदंबरम को आरोपी बनाने की मांग कर रहे हैं और इसके लिए उन्होंने पटियाला हाउस अदालत में अपील भी की है, जिस पर आगामी तीन दिसंबर को सुनवाई होगी। पिछले हफ्ते इसी अदालत ने सीबीआइ को संबंधित फाइलें स्वामी को सौंपने का निर्देश दिया था।  

हिन्दुओं पर अत्याचार हो रहा है


पाक में भारतीय की सजा खत्म पर रिहाई नहीं

अदालत ने जेल विभाग से भी पूछा है कि वह उन भारतीय कैदियों को रिहा क्यों नहीं किया जिन की सजा पूरी हो चुकी है। पाकिस्तान की एक अदालत ने पंजाब की प्रांतीय सरकार से उन भारतीय कैदियों की जानकारी मांगी है जो अपनी सज़ा पूरी कर चुके हैं और प्रांत की विभिन्न जेलों में बंद हैं।
लाहौर हाई कोर्ट के मुख्य न्यायधीश जस्टिस ऐजाज अहमद चौधरी ने यह आदेश मौत की सजा का सामना कर रहे भारतीय कैदी सरबजीत सिंह के वकील औवैस शैख की ओर से दायर की गई याचिका पर दिया। सजा पूरी करने वाले भारतीय कैदियों की रिहाई के लिए अनुरोध किया गया था। मुख्य न्यायधीश जस्टिस ऐजाज चौधरी ने पंजाब प्रांत के अतिरिक्त एडवोकेट जनरल हनीफ खटयाना को आदेश दिया कि वह दो दिनों के भीतर भारतीय कैदियों की जानकारी अदालत में पेश करें। अदालत ने जेल विभाग को भी आदेश दिया कि वह दो भारतीय कैदियों की सजा पूरी होने के बावजूद उन्हें रिहा न करने के बारे में अपनी रिपोर्ट अदालत में पेश करें।
सरबजीत सिंह के वकील औवैस शेख़ ने अदालत को बताया कि दो भारतीय कैदी सत्यंद्र पाल सिंह और केराल भानवदास पाकिस्तानी सीमा का उल्लंघन करने के आरोप में लाहौर की एक जेल में बंद हैं और दोनों कैदी अपनी सजा पूरी कर चुके हैं लेकिन इसके बावजूद भी उन्हें रिहा नहीं किया जा रहा है। 


औवैस शेख ने अदालत को बताया कि केराल भानवदास की पत्नि और सत्यंद्र पाल सिंह के एक रिश्तेदार ने उन दोनों कैदियों की रिहाई के लिए उनसे संपर्क किया था और बाद में उन्होंने जेल अधिकारियों और विदेश मंत्रालय को लिखा था लेकिन अभी तक कोई प्रगति नहीं हुई है। उन्होंने अदालत में सुनवाई को दौरान कहा कि पाकिस्तान कैदियों की सजा पूरी होने के बावजूद भी उन्हें रिहा नहीं करते हैं, जो मानवाधिकारों का उल्लंघन है।उन्होंने बताया कि दोनों देशों के संबंधों में तनाव भी इसी के कारण है।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस ऐजाज चौधरी ने औवैस शख से कहा कि भारतीय जेलों में कैद पाकिस्तानी कैदियों की रिहाई के लिए भी सीमा पार से कोई आवाज उठनी चाहिए।
सरबजीत सिंह के वकील ने आखरी में अदालत से अनुरोध किया कि उन भारतीय कैदियों की रिहाई के लिए सरकार को आदेश दें जिन की सजाएँ पूरी हो चुकी हैं क्योंकि जेल नियमों के मुताबिक उन्हें जेल में कैद नहीं रखा जा सकता। अदालत ने याचिका पर सुनवाई दो नवंबर पर स्थागित कर दी।

पूर्वोत्तर में पादप एवं जंतुओं की कई दुर्लभ प्रजातियां विलुप्त


इंफाल। एक नये अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि जलवायु परिवर्तन के चलते पूर्वोत्तर में पादप एवं जंतुओं की कई दुर्लभ  और स्थानीय प्रजाति जल्द ही विलुप्त हो सकती है और सिर्फ संरक्षण की कोशिशें  बढ़ाने से यह खतरा टल सकता है।
असम के मुख्य वन संरक्षक एसपी सिंह ने बताया कि सीमित जलवायु श्रेणी की प्रजातियां या प्रतिबंधित आश्रय जरूरतों या कम आबादी वाले पादप एवं जंतु पर विलुप्ति का अधिक खतरा मंडरा रहा है। जैसे कि पेगमी हॉग’, जो असम के मानस राष्ट्रीय उद्यान के घास के मैदानों में पाया जाता है। साथ ही द्वीपों या आद्र्र इलाकों तक ही सीमित पादपों को भी खतरा है।
अध्ययन के मुताबिक इस क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन से जैवविविधता को बहुत अधिक खतरा होने की संभावना है। आश्रय के छिन्न-भिन्न होने और प्राकृतिक संसाधनों पर भारी जैविक दबाव के चलते प्रभाव की गंभीरता के बढऩे की भी संभावना है। यहां मणिपुर जैवविविधता बोर्ड द्वारा आयोजित एक कार्यशाला में यह अध्ययन पेश किया गया। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने अपने एक विश्लेषण में दावा किया है कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में अगले दो दशक में तापपान में १.८ से लेकर २.१ डिग्री सेल्सियस बढ़ोतरी होने की संभावना है।

अमर तिरंगे के रंगो को


अमर तिरंगे के रंगो को
भारत माँ के गालों पर
जो ऊग्रवाद के चाँटे है
फिर भी कायर बन के
वोटो के तलुवे चाटे है !
एटम बम वाली दिल्ली लाचार
दिखाई देती है
संसद भेंड़, बकरियो की
बाजार दिखाई देती है !
भगत सिंह की फाँसी पर जो
दो भी बोल नही बोले
अफजल की फाँसी पर जिनके
 दिल खाते है हिचकोले !
गहरे दफनाना होगा अब
ऊग्रवाद के खेमो को
फाँसी के फँदो तक भेजो,
जल्दी अबूसलेमोको !
यदि अफजल को क्षमा
दान का पुरस्कार दिलवाओगे
पृथ्वीराजकी भूले फिर से
दिल्ली में दोहराओगे !
अमर तिरंगे के रंगो को
दुनिया में फहराने दो
भारत माँ का आँचल धरती,
अंबर तक लहराने दो !
आजादी का दीप जलाना
पड़ता अपने प्राणो से
माँ का मस्तक ऊंचा होता
बेटो के बलिदानो से !!

संस्कृत की गूंज अब कैंब्रिज विश्वविद्यालय तक



दुनिया की सबसे प्राचीनतम भाषाओं में से एक संस्कृत में लिखा गया साहित्य आज भी प्रासंगिक है। इसके महत्व को समय-समय पर देश व दुनिया पहचाना है। ऐसे ही खोज के रुप में अब इंग्लैण्ड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय ने संस्कृत के पांडुलिपियों को अध्ययन करने का निर्णय लिया है...
भाषा विज्ञान के इतिहास को खंगालने की कसरत के तौर पर कैंब्रिज विश्वविद्यालय प्राचीन संस्कृत पांडुलिपियों सहित दक्षिण एशियाई पांडुलिपियों का अध्ययन करेगा।  भोज पत्ते, ताड़ के पत्ते और कागज पर लिखी २,००० पांडुलिपि विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में हैं जो धर्म, दर्शन, अंतरिक्ष विज्ञान, व्याकरण, कानून और कविता के बारे में दक्षिण एशियाई सोच को दर्शाते हैं। संस्कृत विशेषज्ञ डॉ. विंचेंत्सो वर्जिनी और डॉ. आइविंद कार्स की अगुवाई में इस परियोजना में प्रत्येक पांडुलिपि का अध्ययन किया जाएगा और उनकी सूची तैयार की जाएगी। विश्वविद्यालय की विज्ञप्ति में बताया गया कि इन पांडुलिपियों को वृहत ऐतिहासिक परिपेक्ष्य में देखा जाएगा। पुस्तकालय के सबसे पुराने पाठ्यों में से कुछ भारत से नहीं बल्कि नेपाल से मिले जहां मौसम ज्यादा समशीतोष्ण है।
१८७० के दशक में काठमांडो में ब्रिटिश रेजीडेंसी के सर्जन डॉ. डेनियल राइट ने इस अमूल्य सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों को एक मंदिर से प्राप्त किया।

समरसता के लिए यात्रा


परमपूज्य गुरुघासीदास जी के जन्मोत्सव पर छत्तीसगढ़ प्रांत ने सतनाम जागरण संदेश यात्रा की शुरुआत २ दिसंबर २०११ गिरौदपुरी धाम से होगी। जिसका समापन १५ दिसंबर २०११ चटुवाधाम में होगी। यह यात्रा छत्तीसगढ़ में सांस्कृतिक जागरण के लिए की जा रही है। यह यात्रा रायगढ़, बिलासपुर, कोरबा, जांजगीर, रायपुर, महासमुंद, धमतरी, दुर्ग, राजनांदगांव, कवर्धा आदि जिलों के विभिन्न स्थानों की दूरी तय करेगी। छत्तीसगढ़ की संत परंपरा में परमपूज्य गुरु घासीदास जी का जीवन सात्विकता की प्रतिमूर्ति थी। आज जब विभिन्न रुपों में भारतीय संस्कृति पर आघात हो रहा है, ऐसे समय में बाबा घासीदास की संदेश जन-जन तक पहुंचाने की आवश्यकता है। समाज में समरसता की अलख जगाने वाले संत शिरोमणि घासीदास जी हम सबकी जीवन में प्रेरणा का केन्द्र बने और उनके बताये आदर्श पर अधिक से अधिक संख्या में लोगों को ले जाने के लिए यह यात्रा मिल का पत्थर साबित होगी। कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए यात्रा में विभिन्न स्थानों पर दिन प्रमुख तय किये गये है। जो यात्रा की तैयारियों के संदर्भ में पूरी व्यवस्था देखेंगे। उक्त जानकारी सतनाम संदेश यात्रा आयोजन समिति, छत्तीसगढ़ प्रांत के संयोजक डॉ. भूषणलाल जांगड़े के द्वारा जारी पत्रक में दी गई है।

थ्री डी के युग में लोकरंजन



थ्री डी मनोरंजन की ओर ले जा रही है, वहां पाली, प्राकृत या संस्कृत के संवाद कौन समझेगा? रंगमंच तो दूर, अब तो लोग सिनेमा हॉल से भी कटने लगे हैं। आप गौर कीजिए कि टीवी पर दिखाए जाए रहे किस तरह के कार्यक्रम दर्शकों को लुभा रहे हैं। इनमें कहीं भी संस्कृत के कार्यक्रम शामिल नहीं हैं।

 आधुनिक दिल्ली के सौ साल पूरे होने पर जो सांस्कृतिक कार्यक्रम किए जा रहे हैं, उनमें संस्कृत के भी दो नाटक हैं। इनमें से एक नाटक अभिज्ञान शाकुंतलम का मंचन पिछले दिनों हो चुका। सेंट स्टीफेंस कॉलेज ने प्रस्तुत किया है।  दूसरा नाटक मृच्छकटिकमू है, जिसका मंचन अभी होना है। इसे संस्कृत विद्यापीठ प्रस्तुत करने जा रहा है। इन दोनों का आयोजन दिल्ली की संस्कृत अकादमी और कला, संस्कृति एवं भाषा विभाग द्वारा कराया जा रहा है।
संस्कृत भाषा के प्रति अपनी तमाम श्रद्धा के बावजूद यह समझना अब सरल हो गया है लेकिन इससे लोगों का मनोरंजन कैसे होगा? आज लोग हिंदी की सामान्य कविताएं भी नहीं समझ पाते और न ही साहित्य पढऩे में ही कोई विशेष रुचि रखते हैं, तो वे संस्कृत नाटक देखने क्यों जाएंगे। संस्कृति का एक हिस्सा पठन-पाठन के लिए होता है और दूसरा लोक रंजन के लिए। ये प्राचीन संस्कृत नाटक अध्ययन की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ये उच्चकोटि की साहित्यिक कृतियां हैं।

यह धारणा गलत है :-

यह धारणा गलत है कि आज के दर्शकों की दिलचस्पी संस्कृत के नाटकों में नहीं होगी। जिस दिन अभिज्ञान शाकुंतलम का मंचन किया गया, उस दिन भीड़ संभालने के लिए सभागार के दरवाजों पर गार्ड लगाने पड़े थे। हमें विश्वास है कि मृच्छकटिकमू के साथ भी यही होगा। मानव जीवन के कुछ भाव और प्रसंग कालजयी होते हैं। वे भाषा और देशकाल की सीमाओं को भी लांघ जाते हैं। जैसे आप शेक्सपियर के नाटक देखते हैं, चार्ली चैप्लिन की फिल्में देखते हैं। अभिज्ञान शाकुंतलम और मृच्छकटिकमू ऐसी ही कृतियां हैं। जहां तक भाषा की बात है, तो संस्कृत एक अतिरिक्त आकर्षण है। इसकी वजह से दर्शकों का कौतूहल और बढ़ जाता है। दर्शक तो देखना चाहते हैं, उन्हें दिखाया ही नहीं जाता तो वे क्या करें। सिनेमा, टीवी, धारावाहिकों के प्रचलन ने नाटकों की परंपरा को कुछ समय के लिए धूमिल किया था, पर इधर नाटकों के प्रति उनका आकर्षण फिर से बढ़ा है। मगर मंच पर पात्रों को बिल्कुल सामने देखने-सुनने का अपना अलग ही आनंद होता है। वैसे संवाद की सुविधा के लिए इन नाटकों में हिंदी-अंग्रेजी में सब टाइटल की व्यवस्था की गई है। भारतीय रंगमंच में यह भी एक नई शुरुआत है। 
 - श्रीकृष्ण सेमवाल (उपाध्यक्ष, दिल्ली संस्कृत अकादमी)

रमन सरकार नहीं रोक पा रही है गौ तस्करी


छत्तीसगढ़ के राजनांदगाँव शहर में एक ही हफ्ते में लगातार दूसरी बार गौ माँस की बड़ी खेप पकड़े जाने से इस काले कारोबार की परतें उजागर हुई हैं। मामले में मिली जानकारियों के अनुसार उक्त गौ माँस शहर के एक रसूख़दार व्यापारी की बोन मिल ले जाया जा रहा था। वाहन में गाय के तकरीबन १७००से ज्यादा कटे हुये सर वाहन में लदे हुये थे जिससे ताजा खून रिस रहा था वहीं पूरे मामले में पुलिस की लचर कार्यवाही के चलते भी लोगों में काफी गुस्सा देखने को मिला।
स्थानीय प्यारेलाल चौक में गौ माँस से भरे दो वाहनों को स्थानीय लोगों नें पकड़ कर पुलिस के हवाले किया था जबकि जिस जगह वाहन पकड़े गये थे उससे कुछ ही मीटर की दूरी पर लालबाग थाना स्थित है। इसके बाद १६ नवंबर की सुबह फिर चिखली थाने से कुछ ही दूरी पर फिर गौ माँस भरे दो वाहनों को स्थानीय लोगों नें दौड़ा कर पकडऩे की कोशिश की जिसमें से एक वाहन तेज़ गति से भागते हुये खैरागढ़ रोड स्थित एक बोन मिल में जाकर रूका जबकि दूसरे वाहन को ब्रेकर की चपेट में आकर पट्टा टूटनें के कारण लोगों ने पकड़ लिया।
उसके बाद पुलिस को खबर की गयी तब नगर पुलिस अधीक्षक दीपमाला कश्यप,टीआई विश्वास चंन्द्राकर, दल-बल सहित घटना स्थल पर पहुंचे. पिछली बार इसी मामले में पुलिस द्वारा की गयी लचर कार्यवाही के चलते लोगों में खासा गुस्सा था। विश्व हिन्दु परिषद एवँ अन्य हिन्दु संगठनों से जुड़े युवा वर्ग ने वाहन और ड्राईवर को पकड़ लिया। जन आक्रोश को देखते हुये वाहन को तत्काल वहां से हटा कर चिखली पुलिस चौकी ले जाया गया जहां पुलिस अधीक्षक बद्रीनारायण मीणा व अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक विजय अग्रवाल,बसंतपुर थाना प्रभारी सत्यप्रकाश तिवारी भी पहुंच गये।
इसी बीच आक्रोशित युवकों नें खैरागढ़ मार्ग पर चक्का जाम भी कर दिया। पुलिस अधीक्षक बी. एन. मीणा नें लोगों को आश्वस्त किया की इस मामले में कठोर से कठोर कार्यवाही की जायेगी। उन्होंने स्वयं उपस्थित रहकर आरोपियों के खिलाफ एफ. आई. आर. दर्ज कराई। मौके पर उपस्थित कुछ हिन्दु संगठनों के प्रमुखों नें मुख्यमंत्री निवास में दूरभाष पर चर्चा कर इस तरह की घटनाओं पर कारगर एवँ प्रभावी कार्यवाही करने की मांग की।
इस मामलें में वहाब अली पिता मुजफ्फर अली उम्र २३ वर्ष निवासी बकरा मार्केट नागपुर,तनवीर खान पिता मजीद खान उम्र २४ वर्ष निवासी नागपुर के खिलाफ आईपीसी की धारा २६९,२७८,३४ के साथ ही छत्तीसगढ़ पशु क्रूरता निवारण अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत अपराध पंजीबद्ध किया गया वहीं चवेली स्थित बोन मिल मालिक अमीर अली का नाम भी पुलिस के अनुसार एफ.आई.आर. में शामिल किया गया है तथा पुलिस अधीक्षक नें किसी को भी ना बख्शे जाने का आश्वासन दिया है।
यहां ये उल्लेखनीय है कि उक्त गौ माँस से भरे वाहन छत्तीसगढ़ की सीमा से सटे बागनदी थाना, चिचोला पुलिस चौकी सहित पाटेकोहरा स्थित परिवहन जाँच चौकी पार करते हुये शहर में बेखौफ प्रवेश कर रहे हैं, जिससे इन सभी जगहों की कार्यशैली पर भी प्रश्न चिन्ह लग रहे हैं।
बहरहाल गौ हत्या का मामला एक वर्ग विशेष की भावनाओं को आहत करता है जिस पर अंकुश लगाना बेहद जरूरी है वरना छत्तीसगढ़ जैसे शांति प्रिय राज्य को भी बेखौफ जारी इस महापाप का दंश झेलना पड़ेगा।

प्रशासन से नाराज प्रतिनिधि मंडल मुख्यमंत्री से मिले

अनेक गौ भक्तों का प्रतिनिधि मंडल प्रेमप्रकाश अग्रवाल के नेतृत्व में मुख्यमंत्री निवास आकर मुख्यमंत्री से भेंट की। राजनांदगांव में हो रहे गौ तस्करी तथा गौ परिवहन द्वारा दूसरे राज्यों में कत्लखानों में भेजा जा रहा है। इसे रोकने का प्रयास एवं कठोर कानून कार्यवाही करने की मांग की। जिस पर मुख्यमंत्री ने कहा-गौ वंश से संरक्षण के लिए राज्य सरकार विधानसभा के शीतकालीन सत्र में एक विधेयक लाने जा रही है। मुख्यमंत्री ड़ॉ रमन सिंह ने कहा कि अब ऐसे मामलों में  पकड़े जाने पर ७ साल की सजा का प्रावधान तथा ५० हजार रुपये जुर्माना प्रावधान रहेगा। इसके लिए गुजरात के विधेयक का अध्ययन किया जा रहा है तथा गौ वंश के तस्करी में दोषी व्यक्तियों के साथ कठोर कानूनी कार्यवाही तथा उनके परिवहन में लगे वाहन का राजसात करने की कार्यवाही की जाये। ऐसे कठोर विधेयक लाने की राज्य सरकार की कोशिश है। राजनांदगांव से आये प्रतिनिधि मंडल प्रदीप गौर, राजेश खांडेकर, मधुसूदन शुक्ला, शिवकुमार सोनी, धर्मजागरण के राधेश्याम जलक्षत्री उपस्थित थे।

सोमवार, 5 दिसंबर 2011

गाय की हड्डियों से बने सामान को त्यागें



मनुष्य जीवन में छोटी से छोटी घटना का भी बड़ा महत्व होता है। ऐसा ही वाक्या सांसद व पशु संरक्षिका श्रीमती मेनिका गांधी के साथ श्रीलंका में हुआ जब उन्हें यह पता चला कि श्रीलंका का राष्ट्रपति द्वारा दी गई भेंट पशुओं के हड्डियों से बनी है, तब उन्होंने शाकाहारियों को ऐसे चीजों को त्यागने के लिए प्रेरित करने के लिए इस घटना को विस्तार से आगे बताया है...

श्रीलंका के राष्ट्रपति डी.बी. विजयतुंगे ने मेरे श्रीलंका के दौरे में मुझे चाय पर बुलाया और मुझे एक नोरिटेक टी सैट उपहार के तौर पर दिया। उस पर अंदर की ओर बोन चाइना लिखा हुआ था। मैंने इस ओर कोई खास ध्यान नहीं दिया। मैं भी और लोगों की तरह समझती थी कि इस तरह की खास क्राकरी जो सफेद, पतली और अच्छी कलाकारी से बनाई जाती है, बोन चाइना कहलाती है। बहुत बाद में मुझे पता चला कि इस पर लिखे शब्द बोन का वास्तव में सम्बंध बोन (हड्डी) से ही है। इसका मतलब यह है कि मैं किसी गाय या बैल की हड्डियों की सहायता से खा-पी रही हूं। बोन चाइना एक खास तरीके का पॉर्सिलेन है जिसे ब्रिटेन में विकसित किया गया और इस उत्पाद का बनाने में बैल की हड्डी का प्रयोग मुख्य तौर पर किया जाता है। इसके प्रयोग से सफेदी और पारदर्शिता मिलती है।

बोन चाइना इसलिए महंगा होती है क्योंकि इसके उत्पादन के लिए सैकड़ों टन हड्डियों की जरुरत होती है, जिन्हें कसाईखानों से जुटाया जाता है। इसके बाद इन्हें उबाला जाता है, साफ किया जाता है और खुले में जलाकर इसकी राख प्राप्त की जाती है। बिना इस राख के चाइना कभी भी बोन चाइना नहीं कहलाता है। जानवरों की हड्डी से चिपका हुआ मांस और चिपचिपापन अलग कर दिया जाता है। इस चरण में प्राप्त चिपचिपे गोंद को अन्य इस्तेमाल के लिए सुरक्षित रख लिया जाता है। शेष बची हुई हड्डी को १००० सेल्सियस तापमान पर गर्म किया जाता है, जिससे इसमें उपस्थित सारा कार्बनिक पदार्थ जल जाता है। इसके बाद इसमें पानी और अन्य आवश्यक पदार्थ मिलाकर कप, प्लेट और अन्य क्राकरी बना ली जाती है और गर्म किया जाता है। इन तरह बोन चाइना अस्तित्व में आता है। ५० प्रतिशत हड्डियों की राख २६ प्रतिशत चीनी मिट्टी और बाकी चाइना स्टोन। खास बात यह है कि बोन चाइना जितना ज्यादा महंगा होगा, उसमें हड्डियों की राख की मात्रा भी उतनी ही अधिक होगी।

अब प्रश्न यह उठता है कि क्या शाकाहारी लोगों को बोन चाइना का इस्तेमाल करना चाहिए? या फिर सिर्फ शाकाहारी ही क्यों, क्या किसी को भी बोन चाइना का इस्तेमाल करना चाहिये। लोग इस मामले में कुछ तर्क देते है। जानवरों को उनकी हड्डियों के लिए नहीं मारा जाता, हड्डियां तो उनको मारने के बाद प्राप्त हुआ एक उप-उत्पाद है। लेकिन भारत के मामले में यह कुछ अलग है। भारत में भैंस और गाय को उनके मांस के लिए नहीं मारा जाता क्योंकि उनकी मांस खाने वालों की संख्या काफी कम है। उन्हें दरअसल उनकी चमड़ी और हड्डियों के मारा जाता है। भारत में दुनिया की सबसे बड़ी चमड़ी मंडी है और यहां ज्यादातर गाय के चमड़े का ही प्रयोग किया जाता है। हम जानवरों को उनकी हड्डियों के लिए भी मारते है। देखा जाए तो वर्क बनाने का पूरा उद्योग ही गाय को सिर्फ उसकी आंत के लिए मौत के घाट उतार देता है। आप जनवरों को नहीं मारते, लेकिन आप या आपका परिवार बोन चाइना खरीदने के साथ ही उन हत्याओं का साझीदार हो जाता है, क्योंकि बिना मांग के उत्पादन अपने आप ही खत्म हो जायेगा।

चाइना सैट की परम्परा बहुत पुरानी है और जानवर लम्बे समय से मौत के घाट उतारे जा रहे हैं। यह सच है, लेकिन आप इस बुरे काम को रोक सकते हैं। इसके लिए सिर्फ ापको यह काम करना है कि आप बोन चाइना की मांग करना बंद कर दें।


  

गंगा पर ८१५ फुट लंबा पुल



सामूहिकता की सराहनीय पहल
पिछले दिनों धर्म नगरी हरिद्वार में दो घटनायें घटित हुई लेकिन हर बार की तरह खबरियां चैनल व अखबारों ने समाचार को सनसनीखेज बनाने के चक्कर में सिर्फ दुखद घटना का बार-बार चित्रण अपने चैनल व अखबारों में किया। आखिर लोकतंत्र का यह चौथा स्तम्भ अपनी जिम्मेदारी के प्रति इतना लापरवाह कैसे होता जा रहा है। आज जब देश में कार्यपालिका, व्यवस्थापिका पर बार-बार प्रश्नचिन्ह लगाया जा रहा है तब लोकतंत्र के शेष दो स्तम्भ न्यायपालिका और खबरपालिका से लोगों को बहुत सी उम्मीदें है।  ऐसे में हरिद्वार में दो घटनायें घटित हुई जिसमें पहला सामुहिकता की सराहनीय पहल की थी जिसमें स्वयंसेवकों ने सिर्फ १३ दिन में ८१५ फुट लंबा पुल गंगा के दो तटों को जोडऩे के लिये तैयार कर दिया। वहीं दूसरी घटना में भगदड़ के कारण कुछ श्रद्धालुओं को अपने प्राण गंवाने पड़े। ऐसे में पहली घटना तो अखबार की सुर्खियां नहीं बटोर पाई लेकिन दूसरी घटना को खबरपालिका ने चटखारे देकर लोगों को बताया। ऐसे में समाज का मानस धर्म के  प्रति किस प्रकार का बनेगा यह तो खबरपालिका को सोचना चाहिए। मीडिया को समाज का  सही  विचार भी  प्रसारित करना चाहिए...

 गायत्री परिवार के स्वयंसेवकों ने बिना किसी सरकारी सहायता के १३ दिन में बना दिया गंगा नदी पर ८१५ फुट लंबा पुल। यह पुल गायत्री महाकुंभ के लिये गंगा के दोनों तटों पर बने सोलह नगरो को जोडने के लिये बनाया गया है। पुल के निर्माण कार्य में देश विदेश के करीब आठ सौ श्रद्धालुओं ने श्रमदान किया। यह पुल श्रीराम सेतु नाम से जाना जायेगा। अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुख डा. प्रणव पंड्या तथा अधिष्ठात्री शैल दीदी ने इस पुल का लोकार्पण के अवसर पर कहा कि यह पुल स्वयंसेवकों की श्रद्धा तथा भावनाओं के विलक्षण समन्वय का अनूठा उदाहरण है। इस अनूठी उपलब्धि से उत्साहित पुल का निर्माण कार्य देख रहे इंजीनियर महाकालेश्वर तथा हरिमोहन गुप्ता ने बताया कि एक महीने पहले जब वह इस जगह पर आये थे तो उनको पुल निर्माण करना बेहद कठिन कार्य लग रहा था। इस जगह न  केवल गंगा नदी का प्रवाह बहुत तेज था बल्कि यहां गहरायी भी काफी थी। तैराकों की मदद से भी ये काम संभव नहीं था। श्री गुप्ता का कहना था कि पानी की गहराई के बारे में नवम्बर के बाद ही पता चल पायेगा। तब बारिश भी हो रही थी। हमने सेतु निगम के इंजीनियरों की मदद भी लेनी चाही लेकिन पानी का तेज बहाव देखकर उन्होंने भी अपने हाथ खडे कर दिये। हमने भी हार नहीं मानी और गुरजी का नाम लेकर इस पुल को हरहालत में गायत्री महाकुंभ से पहले पूरा करने का संकल्प लिया। उन्होंने कहा, हमने लोहे के जाल के बक्से बनाये। उनमें गंगा नदी के पत्थर भरे। फिर इन बक्सों की मदद से १२ से १५ फुट लम्बे गार्डर रखे। उन पर लकडी के पांच इंच मोटे स्लीपर कसे और ८१५ फुट लम्बा पुल तैयार कर दिया। इस पूरे अभियान में १३ दिन लग। किसी दिन पुल निर्माण में आठ सौ लोगों ने श्रमदान किया। किसी दिन कुछ कम तो किसी दिन इससे ज्यादा हो गये। स्वयं सेवकों में महिलाएं, पुरुष, बुजुर्गों तथा बच्चों के अलावा विदेशों से आये लोग भी शामिल थे। इस पुल के निर्माण में लकडी से लेकर लोहे तक जितनी सामग्री लगी, वह उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम ने मुफ्त मुहैया करायी है। लोकार्पण कार्यक्रम में मौजूद उत्तर प्रदेश सेतु निगम के इंजीनियर राजेश चौधरी ने बताया कि कुंभ मेले के समय इस स्थान पर जो पुल निर्मित किया गया था उसमें पूरे ढायी महीने लगे थे और नदी का प्रवाह भी आधा था लेकिन १३ दिन के अंदर विपरीत हालात में इस पुल का निर्माण वाकई किसी सुखद आश्चर्य से कम नहीं है।

उन्होंने बताया कि यह पुल लालजीवाला नगर से गौरी शंकर क्षेत्र के चैतन्य महाप्रभु नगर, संत कबीरदास नगर, संत ग्यानेश्वर नगर, संत तुलसीदास नगर, संत रैदास नगर, संत सूरदास नगर, रामकृष्ण परमहंस नगर आदि को आपस में जोडेगा जिससे बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को यज्ञशाला, प्रवचन शाला तथा अन्य स्थानों पर जाने में कम दूरी तय करनी पडेगी।
श्री चौधरी ने बताया कि हरिद्वार में ६ से १० नवम्बर के दौरान होने वाले गायत्री महाकुंभ के लिये जो २४ नगर बसाये जा रहे हैं, उनको आपस में जोडने के लिये कुल पांच पुल बनाये जाने थे जिनमें से श्रीराम सेतु सहित चार पुल लगभग तैयार हो चुके हैं। बाकी एक पुल का निर्माण इसी सप्ताह पूरा हो जायेगा। लोकार्पण समारोह में शांतिकुंज के व्यवस्थापक गौरी शंकर शर्मा तथा केसरी कपिल सहित तमाम लोग मौजूद थे।  

भारतमाता : जगन्माता का दैवी आविष्कार



जननी जगन्माता की, प्रख्रर मातृभूमि की।
सुप्त भावना जगाने हम चले॥
हमारे लिए यह संपूर्ण भूमि तपोभूमि है। प्राचीन साहित्य में एक उद्बोधक प्रसंग आया है। एक बार एक प्रश्न किया गया कि योग्य फल की प्राप्ति हेतु तप और यज्ञ करने के लिए कौन-सा देश शुद्ध एवं पवित्र है? चरम सत्य की अनुभूति के लिए आदर्श स्थान कौन-सा है? उत्तर दिया गया कि इस उद्देश्य की सिद्धि के लिए ही स्थान उपयुक्त है, जहां कृष्णसार हिरन मिलते हैं। पशु-विज्ञान का कोई भी विद्यार्थी आप को बता सकता है कि इस विशिष्ट प्रकार का हिरन केवल हमारे देश में ही मिलता है।

हमारे देश का यह अनोखा स्वरुप प्राचीन परंपरा तक ही सीमित नहीं है। अधुनातन काल में भी नरेन्द्र (स्वामी विवेकानंद) का श्री रामकृष्ण से ऐतिहासिक मिलन का उदाहरण है। उन्होंने युवावस्था में ही, जब वे कालेज के विद्यार्थी थे, पौर्वात्य एवं पाश्चात्य दर्शनों में अवगाहन किया था, किन्तु उनकी जिज्ञासु आत्मा संतुष्ट नहीं हुई। अपने समय के अनेकों विद्वानों और पुण्य पुरुषों से मिले। वे भी उनकी आत्मा की पिपासा को शांत नहीं कर सके। उन्हें ज्ञात हुआ कि दक्षिणेश्वर मंदिर में एक परमहंस रहते हैं। वे उनके पास गए और जो प्रश्न वर्षों से उनके मस्तिष्क में मंडरा रहा था, उसे सीधे शब्दों में उनके समक्ष रख दिया-
महाशय, आपने ईश्वर को देखा है?’ एक क्षण के भी संकोच के बिना श्री रामकृष्ण परमहंस ने उत्तर दिया, ‘हां, मैं उसे ऐसे ही देखता हूं, जैसे यहां तुम्हें देख रहा हूं। मैं उसे तुम्हें भी दिखा सकता हूं। श्री रामकृष्ण ने नरेन्द्र के प्रति अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण भी की।

जैसा की हमें ज्ञात है, नरेन्द्र एक अति उच्च मेधा एवं प्रचंड इच्छाशक्ति संपन्न युवक थे। वे ऐसे नहीं थे, जिन्हें सम्मोहन द्वारा किन्हीं बातों पर अंधविश्वास करा लिया जाए, किन्तु उन्हें जब साक्षात् परमात्मा के सम्मुख खड़ा कर दिया गया, तब ईश्वर की सत्यता में विश्वास किए बिना वह नहीं रह सके। इस प्रकार की है ईश्वर भक्तों की हमारी जीवंत परंपरा, जिसने हमारे देश का नाम ईश्वरनुभूति की भूमि, धर्मभूमि एवं मोक्षभूति के रुप में सतत उन्नत रखा है।

कोई आश्चर्य नहीं की ऐसा देश, जिसकी धूलि का एक-एक कण दिव्यता से ओतप्रोत है, हमारे लिए पावनतम है, हमारी पूर्ण श्रद्धा का केन्द्र है और यह श्रद्धा की अनुभूति संपूर्ण देश के लिए है। उसके किसी एक भाग मात्र के लिए नहीं। शिव का भक्त काशी से रामेश्वरम् जाता है और विष्णु के विभिन्न आकारों एवं अवतारों का भक्त इस संपूर्ण देश की चतुर्दिक यात्रा करता है। यहि वह अद्वैतवादी है तो जगदगुरु शंकराचार्य के चारों आश्रम, जो प्रहरी के समान देश की चारों सीमाओं पर खड़े हैं, उसे चारों दिशाओं में ले जाते हैं। यहि वह शाक्त है-उस शक्ति का पुजारी जो विश्व की दिव्य मां है, तो उसकी तीर्थयात्रा के लिए बावन स्थान हैं, जो बलूचिस्तान में हिंगलाज से असम में कामाक्षीपर्यंत और हिमाचल प्रदेश में ज्वालामुखी से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक फैले हुए हैं। इसका यही अर्थ है कि यह देश विश्व की जननी का दिव्य एवं व्यक्त स्वरुप है।