मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

संस्कृत की गूंज अब कैंब्रिज विश्वविद्यालय तक



दुनिया की सबसे प्राचीनतम भाषाओं में से एक संस्कृत में लिखा गया साहित्य आज भी प्रासंगिक है। इसके महत्व को समय-समय पर देश व दुनिया पहचाना है। ऐसे ही खोज के रुप में अब इंग्लैण्ड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय ने संस्कृत के पांडुलिपियों को अध्ययन करने का निर्णय लिया है...
भाषा विज्ञान के इतिहास को खंगालने की कसरत के तौर पर कैंब्रिज विश्वविद्यालय प्राचीन संस्कृत पांडुलिपियों सहित दक्षिण एशियाई पांडुलिपियों का अध्ययन करेगा।  भोज पत्ते, ताड़ के पत्ते और कागज पर लिखी २,००० पांडुलिपि विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में हैं जो धर्म, दर्शन, अंतरिक्ष विज्ञान, व्याकरण, कानून और कविता के बारे में दक्षिण एशियाई सोच को दर्शाते हैं। संस्कृत विशेषज्ञ डॉ. विंचेंत्सो वर्जिनी और डॉ. आइविंद कार्स की अगुवाई में इस परियोजना में प्रत्येक पांडुलिपि का अध्ययन किया जाएगा और उनकी सूची तैयार की जाएगी। विश्वविद्यालय की विज्ञप्ति में बताया गया कि इन पांडुलिपियों को वृहत ऐतिहासिक परिपेक्ष्य में देखा जाएगा। पुस्तकालय के सबसे पुराने पाठ्यों में से कुछ भारत से नहीं बल्कि नेपाल से मिले जहां मौसम ज्यादा समशीतोष्ण है।
१८७० के दशक में काठमांडो में ब्रिटिश रेजीडेंसी के सर्जन डॉ. डेनियल राइट ने इस अमूल्य सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों को एक मंदिर से प्राप्त किया।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें