इंफाल। एक नये अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि जलवायु परिवर्तन के चलते पूर्वोत्तर में पादप एवं जंतुओं की कई दुर्लभ और स्थानीय प्रजाति जल्द ही विलुप्त हो सकती है और सिर्फ संरक्षण की कोशिशें बढ़ाने से यह खतरा टल सकता है।
असम के मुख्य वन संरक्षक एसपी सिंह ने बताया कि सीमित जलवायु श्रेणी की प्रजातियां या प्रतिबंधित आश्रय जरूरतों या कम आबादी वाले पादप एवं जंतु पर विलुप्ति का अधिक खतरा मंडरा रहा है। जैसे कि ‘पेगमी हॉग’, जो असम के मानस राष्ट्रीय उद्यान के घास के मैदानों में पाया जाता है। साथ ही द्वीपों या आद्र्र इलाकों तक ही सीमित पादपों को भी खतरा है।
अध्ययन के मुताबिक इस क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन से जैवविविधता को बहुत अधिक खतरा होने की संभावना है। आश्रय के छिन्न-भिन्न होने और प्राकृतिक संसाधनों पर भारी जैविक दबाव के चलते प्रभाव की गंभीरता के बढऩे की भी संभावना है। यहां मणिपुर जैवविविधता बोर्ड द्वारा आयोजित एक कार्यशाला में यह अध्ययन पेश किया गया। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने अपने एक विश्लेषण में दावा किया है कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में अगले दो दशक में तापपान में १.८ से लेकर २.१ डिग्री सेल्सियस बढ़ोतरी होने की संभावना है।
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