शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

चीन की चुनौतियों पर सरकार की उपेक्षा चिंताजनक




राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए प्रभावी  कदम उठाना जरुरी

                     राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सरकार्यवाह सुरेश भय्याजी जोशी ने कहा है कि अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार की समस्या से जुड़े विचार और आंदोलन के समर्थन में उन्होंने जो पत्र अण्णा हजारे को लिखा था, उसे कांग्रेस के महासचिव राजनीतिक षड्यन्त्र के रूप में देख रहे हैं और श्री अण्णा हजारे जैसे व्यक्ति भी कुटिल राजनीतिक चाल से प्रभावित हो गए, यह खेदजनक है।
                 दूसरी ओर संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मण्डल ने देश को चीन से मिल रही चुनौतियां तथा उनके प्रति सरकार की उपेक्षा के प्रति गंभीर चिंता जताई है तथा सरकार से आह्वान किया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर निरन्तर सजग रहते हुए सरकार को इस दिशा में प्रभावी कदम उठाना चाहिये।
                  श्री जोशी के मुताबिक अण्णा हजारे ध्येय समर्पित व्यक्ति हैं और देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन की सफलता का श्रेय भी उन्ही को मिलता है। विभिन्न कार्यक्रमों में उनके द्वारा व्यक्त विचार एवं उनके द्वारा किए गए विकासात्मक कार्यों से मैं और देशभर के हजारों कार्यकर्ता परिचित हैं एवं प्रभावित भी हैं। श्री जोशी ने साफ किया कीकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ककक्के पूज्य सरसंघचालक मोहन राव भागवत द्वारा अन्ना के आंदोलन के संदर्भ में व्यक्त किए गए विचार एवं आंदोलन के समर्थन में मेरे द्वारा भेजे गए पत्र को षड्यंत्र के रूप में देखना यह समझ के परे है, वेदनादायक है। राष्ट्रवादी शक्तियों को सामूहिकता से ऐसे प्रयासों को विफल करना चाहिए। भ्रष्टाचार के विरोध में चल रही यह लड़ाई सफल होने से ही देश के भ्रष्टाचार मुक्त होने का मार्ग प्रशस्त होगा। चीन की गतिविधि को गंभीरता से लें :-
               राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकारी मण्डल ने अपने प्रस्ताव में चिंता जताई कि चीन भारतीय सीमा पर सैन्य दबाव बनाने के साथ-साथ वहाँ पर बार-बार सीमा का अतिक्रमण करतेके हुए सैन्य व असैन्य सम्पदा की तोड़ फोड़ एवं सीमा क्षेत्र में नागरिकों को लगातार आतंकित कर रहा है। इसके अलावा भारत की सुनियोजित सैन्य घेराबन्दी करने के उद्देश्य से हमारे पड़ोसी देशों में चीन की सैन्य उपस्थिति, वहाँ उसके सैनिक अड्डों का विकास व उनके साथ रणनीतिक साझेदारी को भी गंभीरता से लेने की आवश्यकता है।

भारत को सतर्क रहना जरूरी :-

                  पाकिस्तान का भारत के विरुद्ध सशस्त्रीकरण व वहाँ पर भारत विरोधी आतंकवाद जो संरक्षण, पाक अधिकृत जम्मू कश्मीर में चीन की सैन्य सक्रियता, माओवाद के माध्यम से नेपाल में शासन के सूत्रधार के रूप में उभरने के प्रयत्न एवं बांग्लादेश, म्याँमार व श्रीलंका में चीनी सैन्य विषेशज्ञों की उपस्थिति चिंता का विषय है और केन्द्र सरकार को इसका माकूल जवाब देना चाहिये।
               राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मण्डल की बैठक में हिस्सा लेने के बाद छत्तीसगढ़ के प्रांत सह संघचालक श्री पूर्णेन्दु सक्सेना ने बताया कि चीन द्वारा अपने साइबर योद्धाओं के माध्यम से देश के संचार व सूचना तंत्र में सेंध लगाने की घटनाएँ एवं देश के विविध संवेदनशील स्थानों के निकट अत्यन्त अल्प निविदा मूल्य पर परियोजनाओं में प्रवेश के माध्यम से अपने गुप्तचर तंत्र का फैलाव भी देश की सुरक्षा के लिये गंभीर संकट उत्पन्न करने वाला है।

संसद के संकल्प को भी भुला दिया :-

कार्यकारी मण्डल ने खेद जताया कि चीन द्वारा १९६२ के युद्ध में हस्तगत की गयी देश की ३८,००० वर्ग किमी भूमि को वापस लेने के उसी वर्ष के १४ नवम्बर के संसद के संकल्प को भारत सरकार ने तो विस्मृत ही कर दिया है. दूसरी ओर चीन हमारे देश की ९०,००० वर्ग किमी अतिरिक्त भूमि पर और दावा जता रहा है जिस पर सरकार की प्रतिक्रिया अत्यन्त शिथिल रही है।

भारत के बाजार में चीनी दखल :-

भारतीय बाजारों में चीन के उत्पादों की भरमार से रुग्ण होते भारतीय उद्यमों के साथ-साथ चीन के साथ भारी व्यापार घाटा भी देश की अर्थव्यवस्था के लिये अत्यन्त गंभीर चुनौती बनकर उभर रहा है। दूरसंचार के क्षेत्र में प्रथम पीढ़ी की दूरसंचार प्रौद्योगिकी के विकास के आगे भारत द्वारा कोई प्रयत्न नहीं करने से आज तीसरी व चौथी पीढ़ी की अर्थात् ३जी व ४जी दूरसंचार प्रौद्योगिकी के सारे साज-सामान चीनी ही लगाये जा रहे हैं। यह हमारे सूचना व संचार तंत्र की सुरक्षा के लिये संकट का द्योतक है।

ब्रह्मपुत्र से चीनी खिलवाड़ :-

इसी तरह चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र नदी व अन्य अनेक नदियों के बहाव को मोडऩे की शुरुआत के विरुद्ध भी कड़ा रुख अपनाते हुए भारत को चीन व तिब्बत से निकलने वाली नदियों के बहाव को मोडऩे से प्रभावित होने वाले सभी देशों यथा बाँग्लादेश, पाकिस्तान, लाओस, वियतनाम, कम्बोडिया, थाईलैण्ड व म्याँमार को साथ लेकर नदी जल के न्यायपूर्ण वितरण के समझौते के लिए चीन को बाध्य करना चाहिए।

पाकिस्तान की गतिविधि चिंताजनक :-

श्री सक्सेना के मुताबिक संघ के कार्यकारी मण्डल ने चिंता जताई कि भारत की पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान की गतिविधियां भी चिन्ताजनक हैं। स्वयं प्रधानमंत्री ने सेना के कमाण्डरों को सम्बोधित करते हुए स्वीकार किया है कि सीमा पार से घुसपैठ  की घटनाओं में विगत कुछ माह के दौरान अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। एक अनुमान के अनुसार अकेले कश्मीर की सीमा पर विगत साढ़े चार माह के दौरान छिटपुट फायरिंग या घुसपैठ की ७० घटनाएँ घटी हैं।
पाक सेना में कट्टरपंथियों का बढ़ता प्रभाव वहां के परमाणु हथियारों की सुरक्षा को लेकर भी एक गंभीर चुनौती बनता जा रहा है. विगत दिनों सम्पूर्ण विश्व में आतंकवाद का सरगना माने जाने वाले ओसामा बिन लादेन का पाकिस्तान में मारा जाना और वहाँ उसकी सपरिवार वर्षों तक रहने की पुष्टि, पाकिस्तानी सेना व आई.एस.आई. के अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के साथ गहरे सम्बन्धों को प्रकट करता है।

आई.एस.आई और चीन की सांठगांठ :-

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आगे कहा कि विगत दिनों दिल्ली उच्च न्यायालय के बाहर हुए विस्फोट में एक बार पुन: आई.एस.आई. की संलिप्तता के प्रमाण मिले है। इधर इस बात के भी पर्याप्त प्रमाण मिल रहे हैं कि माओवादियों को मदद पहँचुचाने में आई.एस.आई. का नेटवर्क चीन की मदद कर रहा है परन्तु इस सारे परिप्रेक्ष्य में भारत सरकार का रवैया अभी भी निष्क्रियता का ही बना हुआ है।

बांग्लादेश से घुसपैठ का खतरा :-

सितम्बर २०११ में बाँग्लादेश के साथ हुई वार्ता में राष्ट्रीय हितों की ओर पूरा ध्यान नहीं दिया गया है। असम व प. बंगाल की कई हजार एकड़ भारतीय भूमि को यह कहकर बाँग्लादेश को सौंपना कि ‘‘वहाँ पर उनका अवैध अधिकार पहले से ही है’’, किसी भी तरह उचित नहीं माना जा सकता. भूमि की अदला-बदली में कम भूमि पाकर अधिक भूमि देने की बात विवेकहीन व अस्वीकार्य है साथ ही ऐसा करने से कूचबिहार व जलपाईगुड़ी जैसे जिलों में बड़ी संख्या में बाँग्लादेशी मुसलमानों को भारतीय नागरिकता मिल जाएगी, जिसके परिणामस्वरूप वहाँ की जनसांख्यिकी बदल जाने से वहाँ अलगाववाद का संकट बढ़ेगा। दुर्भाग्य की बात यह है कि ऐसी वार्ताओं में भारत में अवैध रूप से रह रहे करोड़ों बाँग्लादेशी घुसपैठियों के बारे में कोई चर्चा ही नहीं की जाती है। कार्यकारी मण्डल की माँग है कि बाँग्लादेश से होने वाले समझौतों में राष्ट्रहित, एकता और क्षेत्रीय अखण्डता के मुद्दों को सर्वोपरि रखा जाना चाहिए।     

बिस्किट-चॉकलेट में भी मांसाहार


शाश्वत राष्ट्रबोध ने ·किया था आगाह - अंक १० में मांस खिलाने की साजिश में...
                         जो ·काम सरकार और प्रशासनिक अधिकारियों   को करना चाहिए, वह समाज के विभिन्न स्तर पर हो रहे है, पर सरकारी हिस्सेदारी के बगैर चल रहे इन प्रयासों को उतनी सफलता नहीं मिल रही है, जितनी मिलना चाहिए। संतश्री आसाराम बापू, आचार्य विद्यासागर महाराज, संत नरायाण सांई जैसी शख्सियतों के अलावा जबलपुर के मुन्ना लग्हेटा, इंदौर के मनीष सोनी जैसे युवा स्थानीय  स्तर पर धर्म और स्वास्थ्य रक्षा ·के अभियान चला रहे है।
                      
                        शाकाहारी और मांसाहारी खाद्य पदार्थों को हरे और लाल रंग से वर्गीकृत करने के खेल में देश के शाकाहारी समाज के साथ जबरदस्त धोखा हो रहा है और इसमें सरकारें भी शामिल है। मांसाहारी पदार्थों के मिश्रण को प्रोडक्ट सोर्स ई कोड के जरिये अंकित करने के खेल से आम नागरिक और समाज अनजान है, पर जब इस मामले में खोज-खबर ली गई, तो सारा माजरा सामने आ गया। हर घर में पाए जाने वाले पारले, सनफीस्ट, कैडबरी, नेस्ले, ब्रिटेनिया, आईटीसी, प्रिया गोल्ड, गिरली, न्यूट्रीन, कैंडीमैन जैसी दर्जनों कंपनियों के प्रोडक्ट में मांसाहार का मिश्रण है। गौरतलब है कि दबंग दुनिया ने कुछ दिन पूर्व लेज और कुरकुरे जैसे खाद्य पदार्थों में मांसाहार व अपमिश्रण होने की खबर प्रमुखता से प्रकाशित की थी। इसके बाद भी धार्मिकात की पैरोकार समझी जाने वाली भाजपा सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया, पर इस खबर के बाद शहर के जागरुक नागरिकों धर्मगुरुओं और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं ने जरुर अपने-अपने स्तर पर प्रयास शुरु कर दिए हैं।

लाल-हरे सिम्बॉल के नाम पर धोखा :- यूरोपीयन देशों  में खाद्य पदार्थों के लिए बनाए गए कड़े कानूनों के बावजूद भारत में १९९३ में इस दिशा में प्रयास शुरु हुए और शाकाहार, मांसाहार ·के लिए लाल-हरे चिन्ह अंकित करने का नियम बनाया गया। सरकारी अधिसूचना के अंतर्गत पशु-पक्षियों के बाल, नाखून, पंख, चर्बी और अंडे की जर्दों को मांसाहार की श्रेणी से बाहर रखा गया, जिसके चलते विभिन्न देशी-विदेशी कंपनियां अपने खाद्य उत्पादनों पर हरा सिम्बॉल लगाकर शाकाहारी पदार्थों के रुप में बेच रही हैं, जबकि असलियत कुछ और ही है। इन पदार्थों में मांसाहार भी मिश्रित है।
                 भारत सरकार ने इन कंपनियों के धोखे में शामिल होते हुए इन पदार्थों में मिश्रित मांसाहार अवयवों को सीधे लिखने के बजाय ई नंबर के कोड में लिखने के नियम बना दिए। इसके चलते आम आदमी अनजाने में स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तत्व खा रहा है। सबसे खास बात यह है कि किसी अज्ञानता के चलते उसकी धार्मिक भावनाएं भी आहत हो रही है।

यह है ई नंबर कोड :-
मांसाहारी पदार्थों के मिश्रण को ई नंबर से लिखे जाने के नियम क्यों और किसके हित के लिए बनाए गए हैं, यह ज्यादा शोध का विषय नहीं, क्योंकि कोई अनपढ़ व्यक्ति भी समझ सकता है कि ये सारी कवायदें उत्पादकों को लाभ पहुंचाने के लिए की गई है। वहीं जहां तक बात कोड की पहचान की है, तो अच्छा-खासा पढ़ा-लिखा शहरी भी इस प्रोडक्ड कोड को आसानी से समझ नहीं सकता।
जीव हत्या कर प्राप्त मांस स्त्रोत को ई -४७१, ई -१०२ और संभावित जीव हत्या कर मांस के स्त्रोत को ई -४७२, ई -३२२, ई -४८१, ई -२७०, ई -३२२, ई -२२ नंबर दिए गए। इसके अलावा बच्चों के लिए हानिकारक स्त्रोत के लिए ई -२९६, ई -११०, ई -१०२, ई -१३३ नंबर दिए गए हैं।    

चिंतन - असफलता ही सफलता की सीढ़ी



पहला कदम ही महत्वपूर्ण - असफलताओं की सीढ़ी चढ़र ही व्यक्ति सफलता  की मंजिल प्राप्त करता है। इसलिए असफलता को लेकर कतई निराश न हों। कभी एक जगह शांति से बैठकर सोचें- क्या इस दुनिया में कोई ऐसा इंसान है, जिसने कभी हार का सामना न किया हो, जिसने कभी दु:ख न देखा हो, जिसके राहों में कभी कांटे न आए हों। विचार करने पर आप पाएंगे कि ऐसा एक भी इंसान नहीं है। विचार करने पर आप एक और चीज पाएंगे कि कुछ लोग तकलीफों में बिलकुल हार जाते हैं, लेकिन कुछ ऐसे लोग भी हैं जो बार-बार असफल होने पर भी हिम्मत नहीं हारते और एक दिन अपनी मंजिल पा ही लेते हैं। आवश्यकता केवल इंसान को संकल्प लेकर मंजिल की ओर आगे बढऩे की है। यह संकल्प ही मंजिल की राह को आसान बनाती है। जीवन में कभी-कभी मंजिल बहुत ही मुश्किल दिखाई देती है, लेकिन मंजिल की ओर बढ़ाया गया पहला कदम ही महत्वपूर्ण होता है और यहीं पर मन का संकल्प संघर्ष के भंवर में फंसा रहता है। बस, आवश्यकता इससे बाहर आने की है
छोटे बच्चों को गेंद खेलते देखा है कभी।

जिन्दगी के बड़ी सीख - गेंद को जब वह जोर से जमीन पर मारते हैं, वह फिर ऊपर उछल जाती है। जितना जोर से उसे जमीन पर मारते हैं, वह उतना ही जोर से और ऊपर उछलती है। यह उदाहरण जिंदगी की बहुत बड़ी सीख है। भले ही आप धड़ाम से गिरें, पर उतनी ही तेजी से उठने की भी कोशिश करें। गिर कर भी उठना सीखें, हार कर भी जीतना सीखें। यह जीवन में सफलता का बहुत बड़ा मंत्र है। हम कभी-कभी राह की कुछ मुश्किलों से घबराकर इस बहुत ही मामूली सी बात को नजरअंदाज कर देते है।
हारने का मतलब यह नहीं होता कि आप उस काम को कर ही नहीं सकते। इसका तात्पर्य यह होता है कि उस काम को, जिसे आपने किया, उसे और सुधारा जा सकता है, कोई और तरीके से भी किया जा सकता है। हर हार से कुछ सीखें। अपनी कमियों को लिखें और फिर उनको दूर करने की कोशिश करें। गलतियों को दोहराने से बचें। पिछली गलतियों को सुधारना ही सफलता की राह में बढ़ाया गया पहला कदम है। सुधार की यह प्रक्रिया जब सतत जारी रहेगी तो सफलता निश्चित ही मिलेगी।

मेहनत का अंतर -  कई बार हम खुद में अति आत्मविश्वासी हो जाते हैं और समझने लगते हैं कि हमें सबकुछ आता है। इस कारण हमारा ध्यान उस काम से कम हो जाता है और यह लापरवाही जीवन के लिए कभी-कभी बहुत घातक सिद्ध होती है, परिणाम यह होता है कि हमें असफलता का सामना करना पड़ता है। यदि आपने अपने कार्य के लिए १०० प्रतिशत मेहनत किया है, तो हो सकता है कि दूसरे ने १०१ प्रतिशत मेहनत किया हो और इसी कारण वह दूसरा व्यक्ति सफल हो गया हो।
सफलता और आपके बीच में इसी एक प्रतिशत का फर्क है। इस फर्कको पाटें। प्रतिस्पर्धा में दो व्यक्तियों के मेहनत का अंतर ही जीत या हार तय करता है। प्रत्येक पराजय के साथ यह मंथन करें कि आखिर जीतने वाले और आप में कितना अंतर था और अगली बार इस अंतर को पूरा करने का प्रयत्न पूरी मेहनत के साथ करें। ध्यान रखें -
आप खुद पर विश्वास बनाए रखें। इससे कठिनाई में भी आप डगमगाएंगे नहीं।
असफलता के बाद लोग चाहे कुछ भी कहें, ध्यान मत दें। पुन: हौसले के साथ अभियान में जुट जाएं।
ऐसे लोगों के साथ रहें, जिन्होंने मेहनत और हिम्मत से जीवन में कुछ पाया है। इससे आपको भी बाधाओं से लडऩे की प्रेरणा मिलेगी।

नया सिखते रहे - हर वक्त कुछ न कुछ नया सीखते रहें। यही आदत आपकी सफलता की लड़ी बन जाएगी।
यह मान कर चलें कि हर विफलता के पीछे कोई-न-कोई वजह जरूर होती है। उसे दूर करने की कोशिश करें और लक्ष्य की ओर आगे बढ़ें। जब कदम आगे बढ़ाएंगे तो पीछे कभी नहीं जाएंगे और यह आत्मविश्वास आपका मूलमंत्र बन जायेगा। हो सकता है प्रतिदिन कोई आकर जाने या अनजाने में आपको निराश करता रहे। इसकी परवाह मत कीजिए बस, यह याद रखिए कि चांद की सुंदरता में भी लोग दाग ढूंढते है फिर आप तो मनुष्य है।     

राष्ट्रीय अखण्डता का संकल्प : अमरनाथ



             १४ अगस्त की अर्ध रात्रि सन् १९४७ भारत के बंटवारे की तिथि है। वैसे यह कोई पहला विभाजन नहीं था।
राष्ट्रीय स्तर पर माओवाद, आतंकवाद, जातिवाद, प्रान्तवाद के नाम पर भारत की शान्ति को कमजोर करने वाले कई भयावह आंदोलन चल रहे है।
                     चीन की बढ़ती सामरिक शक्ति और भारत के अरुणाचल एवं आसपास के क्षेत्रों पर उसका दावा किसी से छिपा नहीं है। हमारा पड़ोसी बांग्लादेश है उसने एक नये प्रकार का आक्रमण कर रखा है वो है घुसपैठ। घुसपैठ कर भारत के सीमान्त प्रदेशों को मुस्लिम बाहुल्य बनाना व भारत पर कब्जा करना।
सन् १९३१ में रावी नदी के तट पर देश के नेताओं ने सौगंध खायी थी भारत के पूर्ण स्वराज्य की। १९४२ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अखण्ड भारत का प्रस्ताव पारित कर देश की जनता को आश्वस्त किया था कि भारत एक अखण्ड देश रहेगा। चाहे महात्मा गांधी हो या डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, सरदार पटेल हो  या पंडित जवाहर लाल नेहरु। सभी अखण्ड भारत के पुजारी थे। फिर भी देश का बंटवारा हुआ। यह बंटवारा विश्व की कुछ चुनिंदा त्रासद घटनाओं में से एक है। जिसमें २० लाख से ज्यादा लोग मारे गये। दो करोड़ लोग विस्थापित हुए। अरबों की सम्पत्ति नष्ट हुई। मानव पशु कैसे हो जाता है इसका वर्तमान के सबसे बड़े पद चिन्ह भारत के विभाजन में दिखते है। वैसे तो इस्लाम इस देश में अक्रान्ता के रुप में आया। तलवार के बल पर आया। ७२६ ई. में मोहम्मद बिनकासिम ने सिन्धु पर आक्रमण किया तो उसने हत्या, लूट, बलात्कार, छल कौन सा हथकंडा नहीं अपनाया। अंग्रेजों ने काले अंग्रेज, सेवक अंग्रेज तैयार करने के लिए शिक्षा का सहारा लिया। जो इस्लाम की तलवार से ज्यादा घात· रहा। अंग्रेजों से अत्याचारों के प्रतिकार की ज्वाला १८५७ में स्वतंत्रता समर के रुप में सामने आयी।
चतुरसुजान अंग्रेजों ने भारत में कम्पनी राज्य के स्थायित्व के लिए विधिवत भारत के मर्म स्थलों का अध्ययन किया और कहा कि-

                    भारत नामक कोई राष्ट्र नहीं, यह तो उप महाद्वीप है।
                    वर्तमान का ही यानी आर्य भी आक्रान्ता है।
                      
                       मुसलमान देश में राज्य करता है। अंग्रेजी राज्य मुसलमानों के हित में काम करना चाहता है।
 कांग्रेस कभी भारत का प्रतिनिधित्व कर सकती है जब उसमें भारत की सभी जातियां एवं मत विशेषकर मुसलमान आयें। इसी चक्कर में कांग्रेस ने मुसलमानों की तुष्टिकरण शुरु किया। मार्लेमिन्टो के साम्प्रदायिक सुधारों से भी ज्यादा प्रतिनिधित्व कांग्रेस ने देना स्वीकार किया। हमारे नेता इस भ्रम के शिकार हो गये कि मुसलमानों को किसी कीमत पर कांग्रेस के साथ रखना है तथा यह स्वतंत्रता के लिए परम आवश्यक है। १९१६ में कांग्रेस का अधिवेशन लखनऊ में हुआ, जिसमें मुसलमानों को मुफ्त में आने जाने का किराया, मुफ्त का भोजन ऊपर से खूब आदर-सत्कार किया गया था। महात्मा गांधी ने सन् १९१९-२२ में खिलाफत आंदोलन के दौरान जिस प्रकार मुसलमानों का तुष्टिकरण किया, वह किसी से छिपा नहीं है। इतना ही नहीं गांधीजी ने १९४४ में राजाजी उस फार्मूले को  मान लिया जिसमें  मुसलमानों के पूर्ण बहुमत वाले जिलों का हिन्दुस्थान से प्रकंठ होने का निर्णय करने के लिए जनमत संग्रह करने की बात थी। इससे जिन्ना को बड़ी प्रसन्नता हुई और केई की तरह वह और भी कांग्रेस से रूठ गया। गांधी जिन्ना के सामनें नतमस्तक हो गये जो शायद सद्गुण विकृति का सबसे बड़ा उदाहरण है। गांधी जी ने जिन्ना के दरवाजे पर जाकर १९ दिनों तक बात की। उसे संतुष्ट करने के लिए कायदे आजम की उपाधि दी।
                       यह जो हिन्दू नेतृत्व ने मुस्लिम तुकुष्टिकरण की विषवेल वोयी उसका ही फल पाकिस्तान बनने में हुआ। परन्तु विचारनीय प्रश्न यह है कि क्या भारत विभाजन से भारत की समस्यायें सुलझ गई? या मुसलमान पाकिस्तान लेर संतुष्ट हो गये क्या?
                       भारत के विभाजन तथा पाकिस्तान के रूप में इस्लामी राज्य ·के निर्माण के जो विषैले बीज बोये गये आज उनकी फसल आतंकवाद, घुसपैठ, लव जिहाद, धर्मान्तरण, नकली नोट का धंधा एवं सर्वोपरि भारत पर एटमी हमले के रुप में लहलहा रही है। अमरीका-इंग्लैण्ड की दादागिरि पाकिस्तान बनने के कारण ही भारत में चल रही है। अब तक यह बात किसी से छिपी नहीं है कि पाकिस्तान की गुप्तचर संस्था आई.एस.आई. भारत सहित पूरे विश्व में आतंकवाद को राजनैतिक, वैचारिक, आर्थिक एवं प्रशिक्षण के स्तर पर मजबूती से आगे बढ़ा रही है। पाकिस्तान की विदेश मंत्री अभी हाल में ही भारत के दौरे पर जब आयी तो सबसे पहले व उन आतंकी नेताओं से मिली जो भारत को तोडऩा चाहते हैं। फिर भी भारत मौन रहा। उसे अपनी संसद का वह संकल्प  याद नहीं, जिसमें पाक अधिकृत कश्मीर को पुन: भारत में लाने की बात कही गयी हो।
कुछ हमारे हिन्दू भाई ऐसे भी है जो कह सकते है कि देश का अखण्ड करने की बात आज बेमानी है। झगड़ा-लड़ाई की बात है। इससे देश का विकास रुप जायेगा। पाकिस्तान आज एक सीमित सत्य है। ऐसे वंधु से मेरा सवाल है कि यदि अखण्ड भारत का स्वप्न जल्दी नहीं साकार किया जाता, देश पर आतंकवाद के हमले को महामारी के रुप में फैलने से रोकना मुश्किल होगा। भारत की लचर सीमा सुरक्षा, गिरे मनोबल के साथ तैनात भारतीय सैनिक हमारी वाह्य सीमाओं की सुरक्षा नहीं कर सकते।
परिणाम सही होगा कि मिली आजादी कही पुन: खो न जाये। वैसे भी देश का नेतृत्व आज जिनके हाथों में है, उन्हें न तो इस देश की चिन्ता है, और वही उसका इस देश की माटी के साथ लगाव। राष्ट्रीय जीवन के हर क्षेत्र में जिस प्रकार से भ्रष्टाचार का बोलबाला होता जा रहा है, उससे देश के खोखला होने का अंदेशा पैदा हो गया है। आज देश की तरुणाई देख रही है यदि हमारे आदर्श ही सीमित हो गये हैं। तो हम क्या करें?
अत: सभ्य समाज एवं जागरुक नागरिकों का यह परम कर्तव्य है कि वे समाज में आस्था का प्रचार करें। क्योंकि यतो धर्म: ततो जयम्।
                                       - लेखक समाजसेवी तथा अवध प्रांत में सह-प्रचार प्रमुख है। 

संपादकीय - खेल, खेल भावना की



                                         लंदन की न्यायालय ने क्रिकेट में हुए मैंच फिक्सिंग के आरोपियों को सजा आखिर में दे दी। इससे कई प्रश्नों के उत्तर तो मिल गये, लेकिन अंधेरा अभी भी छाया हुआ है।
न्यूज ऑफ वर्ल्ड  के पत्रकारों ने गत वर्ष इंग्लैण्ड में लाड्र्स टेस्ट के दौरान पाकिस्तान के कुछ खिलाडिय़ों के साथ गोपनीय अभियान (स्टिंग ऑपरेशन) के द्वारा उनके बातों को रिकॉर्ड कर लिया था। जिसमें खेल के दौरान खिलाडिय़ों द्वारा पैसे लेकर खेल हारने का जिम्मेदार बताया गया था। कई वर्षों से चल रहे न्यायालयीन प्र·रण के बाद लंदन के साउथ वर्क क्राउन न्यायालय ने पाकिस्तान के तीन खिलाडिय़ों को सजा सुनाया। जिसमें पाकिस्तान के तत्कालीन कप्तान सलमान बट्ट तथा दो बॉलर मो. आसिफ, मो. आमीर को सजा सुनाई तथा इनके खेलने पर भी प्रतिबंध लगा दियेके। इस प्रकार के मामले में इंग्लैण्ड की न्याय प्रक्रिया का प्रशंसा करना पड़ेगा कि यह महत्वपूर्ण प्रकरण में उन्होंने तुरंत अपना न्याय दिया। इसी प्रकार अपने भारत में ११ वर्ष पूर्व इसी प्रकार की मैंच फिक्सिंग का मामला निर्णय नहीं हो पाया है। दक्षिण अफ्रीका के पूर्व कप्तान हैंसी क्रोनिये तथा तत्कालीन भारत टीम के कप्तान अजरुद्दीन, अजय जडेजा तथा अन्य खिलाडिय़ों के बीच इसी प्रकार का मैंच फिक्सिंग हुआ था। लेकिन एक हवाई दुर्घटना में हैंसी क्रोनिये की मृत्यु के बाद यह प्रकरण दिशाहीन हो गया। क्या हमारी न्यायप्रणाली इतनी अप्रभावी है?
                                    खेल, खेल भावना से खेलना चाहिए। यह बात खेल के साथ जुड़ा हुआ है लेकिन खेल देश के साथ खेला जा रहा है। यह खेल, खेल न होकर एक प्रकार का जुआ और पैसे उगाही का केन्द्र (अड्डा) बन गया है। आज क्रिकेट के कारण देश की खेल दुनिया में बदनामी छा गया है। इसी क्रिकेट ने अपने भारत की अन्य खेलों को पछाड़ दिया है। हम ओलंपिक तथा एशियाई खेलों में नाम मात्र के पदक प्राप्त करते है। खिलाड़ी अपनी व्यक्तिगत प्रतिभा के कारण वहां पर अपने देश का नाम रोशन कर रहा है। लेकिन क्रिकेट की चमक-दमक ने हमें अंधा बना दिया है। यह अंधापन (जुनून) का लाभ व्यापारिक संगठन उठा रहे है। अब यह हमें सोचने की जरूरत है। 

चीन अब भारत से परेशान क्यों है ?




                                   चीन अपनी विभिन्न प्रतिक्रियाओं से भारत समेत पूरी दुनिया को यह बताने-जताने की बराबर कोशिश कर रहा है कि संपूर्ण दक्षिण चीन सागर ही नहीं, वरन् स्प्रेतली द्वीप भी उसके है। इन द्वीपों में काफी मात्रा में तेल और गैस मिलने की संभावनाएं है। इस कारण दक्षिण चीन सागर में तेल और गैस की खोज करने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ उसका है। चीन का आरोप है कि भारत का वियतनाम के साथ तेल की खोज का अनुबंध करना गंभीर राजनीतिक उकसावा है। वह इस क्षेत्र के देशों के दावों को तो एक बार मान भी सक्ता है, किन्तु उसे दूसरे देशों की अपने इलाके  में हस्तक्षेप मंजूर नहीं है। चीन के इस दावे के विपरीत वियतनाम का कहना है कि संयुक्त राष्ट्रसंघ के समझौते के  अनुसार ब्लाक संख्या और पर उसके सम्प्रभु अधिकार है। इनमें तेल की खोज के लिए चीन से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। दक्षिण सागर को लेकर चीन की वियतनाम समेत इस क्षेत्र के दूसरों देशों के साथ तनातनी नयी नहीं है। 
                                   चीन अपने नौसैनिक शक्ति के बल पर दक्षिण चीन सागर और इसके तेल तथा गैस पर अपने एकमात्र स्वामित्व होने का दावा कर रहा है जबकि यह सागर ही इस इलाके के मुल्कों को आर्थिक गतिविधियों के संचालन का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है। उसके इस दावों को अमरीका भी नहीं मानता, लेकिन वह इस क्षेत्र चीन, ताइवान, फिलीपींस, मलेशिया, इण्डोनेशिया, वियतनाम के विवादित दावों का मध्यस्थता कर अंतर्राष्ट्रीय तंत्र गठित करने में सहयोग करने को तैयार है, यह संकेत गत वर्ष अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने जरुर दिया था।

भारत को घरेलू इस्लामी आतंकवाद से खतरा



                    अमेरिकी कांग्रेस की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में स्वदेशी इस्लामी आतंवाद में खतरनाक वृद्धि हो रही है जबकि नई दिल्ली इसे सार्वजनिक रुप से स्वीकार करने में हिचकिचा रही है। सीआरएस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में इस तरह का प्रमुख संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन है।
इसमें कहा गया कि नई दिल्ली की इस तथ्य को खुले रुप से स्वीकार करने में अनिच्छा के बावजूद भारत को भी अपने देश में पैदा इस्लामी आतंकवाद से खतरा है।
                      कांग्रेशियल रिसर्च सर्विस ने कहा कि नए उभरते संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन के बारे में बड़े तौर पर माना जाता है कि यह स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया के नया रुप है और यह संगठन हाल में हुए कई विस्फोटों में लिप्त पाया गया है जबकि सरकारी नेता इन घटनाओं के लिए लगातार पाकिस्तान को उकसाने वाला करार दे रहे हैं।
सीआरएस द्वारा तैयार ९४ पेज की यह रिपोर्ट एक सितंबर को जारी की गई थी और इसकी एक प्रति कल फेडरेशन ऑफ अमेरिन साइंटिस्ट्स द्वारा गत दिनों सार्वजनिक की गई।