शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

बिस्किट-चॉकलेट में भी मांसाहार


शाश्वत राष्ट्रबोध ने ·किया था आगाह - अंक १० में मांस खिलाने की साजिश में...
                         जो ·काम सरकार और प्रशासनिक अधिकारियों   को करना चाहिए, वह समाज के विभिन्न स्तर पर हो रहे है, पर सरकारी हिस्सेदारी के बगैर चल रहे इन प्रयासों को उतनी सफलता नहीं मिल रही है, जितनी मिलना चाहिए। संतश्री आसाराम बापू, आचार्य विद्यासागर महाराज, संत नरायाण सांई जैसी शख्सियतों के अलावा जबलपुर के मुन्ना लग्हेटा, इंदौर के मनीष सोनी जैसे युवा स्थानीय  स्तर पर धर्म और स्वास्थ्य रक्षा ·के अभियान चला रहे है।
                      
                        शाकाहारी और मांसाहारी खाद्य पदार्थों को हरे और लाल रंग से वर्गीकृत करने के खेल में देश के शाकाहारी समाज के साथ जबरदस्त धोखा हो रहा है और इसमें सरकारें भी शामिल है। मांसाहारी पदार्थों के मिश्रण को प्रोडक्ट सोर्स ई कोड के जरिये अंकित करने के खेल से आम नागरिक और समाज अनजान है, पर जब इस मामले में खोज-खबर ली गई, तो सारा माजरा सामने आ गया। हर घर में पाए जाने वाले पारले, सनफीस्ट, कैडबरी, नेस्ले, ब्रिटेनिया, आईटीसी, प्रिया गोल्ड, गिरली, न्यूट्रीन, कैंडीमैन जैसी दर्जनों कंपनियों के प्रोडक्ट में मांसाहार का मिश्रण है। गौरतलब है कि दबंग दुनिया ने कुछ दिन पूर्व लेज और कुरकुरे जैसे खाद्य पदार्थों में मांसाहार व अपमिश्रण होने की खबर प्रमुखता से प्रकाशित की थी। इसके बाद भी धार्मिकात की पैरोकार समझी जाने वाली भाजपा सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया, पर इस खबर के बाद शहर के जागरुक नागरिकों धर्मगुरुओं और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं ने जरुर अपने-अपने स्तर पर प्रयास शुरु कर दिए हैं।

लाल-हरे सिम्बॉल के नाम पर धोखा :- यूरोपीयन देशों  में खाद्य पदार्थों के लिए बनाए गए कड़े कानूनों के बावजूद भारत में १९९३ में इस दिशा में प्रयास शुरु हुए और शाकाहार, मांसाहार ·के लिए लाल-हरे चिन्ह अंकित करने का नियम बनाया गया। सरकारी अधिसूचना के अंतर्गत पशु-पक्षियों के बाल, नाखून, पंख, चर्बी और अंडे की जर्दों को मांसाहार की श्रेणी से बाहर रखा गया, जिसके चलते विभिन्न देशी-विदेशी कंपनियां अपने खाद्य उत्पादनों पर हरा सिम्बॉल लगाकर शाकाहारी पदार्थों के रुप में बेच रही हैं, जबकि असलियत कुछ और ही है। इन पदार्थों में मांसाहार भी मिश्रित है।
                 भारत सरकार ने इन कंपनियों के धोखे में शामिल होते हुए इन पदार्थों में मिश्रित मांसाहार अवयवों को सीधे लिखने के बजाय ई नंबर के कोड में लिखने के नियम बना दिए। इसके चलते आम आदमी अनजाने में स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तत्व खा रहा है। सबसे खास बात यह है कि किसी अज्ञानता के चलते उसकी धार्मिक भावनाएं भी आहत हो रही है।

यह है ई नंबर कोड :-
मांसाहारी पदार्थों के मिश्रण को ई नंबर से लिखे जाने के नियम क्यों और किसके हित के लिए बनाए गए हैं, यह ज्यादा शोध का विषय नहीं, क्योंकि कोई अनपढ़ व्यक्ति भी समझ सकता है कि ये सारी कवायदें उत्पादकों को लाभ पहुंचाने के लिए की गई है। वहीं जहां तक बात कोड की पहचान की है, तो अच्छा-खासा पढ़ा-लिखा शहरी भी इस प्रोडक्ड कोड को आसानी से समझ नहीं सकता।
जीव हत्या कर प्राप्त मांस स्त्रोत को ई -४७१, ई -१०२ और संभावित जीव हत्या कर मांस के स्त्रोत को ई -४७२, ई -३२२, ई -४८१, ई -२७०, ई -३२२, ई -२२ नंबर दिए गए। इसके अलावा बच्चों के लिए हानिकारक स्त्रोत के लिए ई -२९६, ई -११०, ई -१०२, ई -१३३ नंबर दिए गए हैं।    

1 टिप्पणी:

  1. ऐसे कमपनी वालो को हमेसा लिऐ बंद करदेना चाहिए। और और उसे बिच सड़क गोली मार देना चाहिए।

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