शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

राष्ट्रपति ने माना था अयोध्या ही राम की जन्मस्थली


                                      तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा ने ७ जनवरी, १९९३ को संविधान के अनुच्छेद १४३ के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट को विचार करने और राय देने के लिए संदर्भ किया था, ‘कि ढांचे के मौजूदा स्थान पर रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद (ढांचे के अंदरूनी और बाहरी भवनों सहित) में निर्माण से पूर्व कोई हिंदू मंदिर अथवा कोई हिंदू धार्मिक ढांचा मौजूद था?’ सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय को अपने क्षेत्र से बाहर बताते हुए राष्ट्रपति को संदर्भ वापस लौटा दिया था।
                                                     ..अब उसी विषय पर हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय बैंच ने एकमत से फैसला किया  है, ‘हां, वहां हिंदू धार्मिक ढांचा मौजूद था। ..और, यही वह स्थल है जिसे हिंदू रामजन्मस्थान मानते हैं।हाईकोर्ट का स्पष्ट मानना है, ‘धार्मि· ढांचे के ऊपर निर्माण किया गया, जिसे इस्लामिक मान्यता के अनुरूप मस्जिद नहीं माना जा सकता..इस निर्माण में हिंदू धार्मिक ढांचे के अवशेष काम में लिए गए।
                                        उच्चन्यायलय का यह फैसला पुरातात्विक  उत्खनन और समकालीन यात्रा वृत्तांतों-ऐतिहासिक  विवरणों पर आधारित है..जो वैज्ञानिक दृष्टि से साक्ष्य के रूप में मान्यता प्राप्त हैं। यह स्पष्ट नहीं हो सका कि मंदिर तोड़कर उसे मस्जिद का रूप दिया गया या मंदिर के भग्नावशेषों पर मस्जिद का आकार बनाया गया। उच्चन्यायलय इसकी गहराई में जा सकता था और जाने पर और अधिक तथ्य सामने आ सकते थे लेकिन उसके बिना भी सच सामने आ गया। वैसे, इस बात के ऐतिहासिक प्रमाण भी मौजूद हैं कि रामजन्मभूमि पर कथित बाबरी मस्जिद बनाने का काम बाबर से लेकर औरंगजेब के समय तक हुआ..और, मस्जिद का आकार देने का काम औरंगजेब ने करवाया..जिसने धर्मांध होकर काशी विश्वनाथ मंदिर और मथुरा में कृष्ण जन्मस्थान पर बने मंदिरों को तुड़वाने का घृणित कृत्य किया। इलाहाबाद उच्चन्यायलय की लखनऊ खंडपीठ के एक न्यायाधीश एस.यू. खान का कथन ऐतिहासिक तथ्यों से मेल खाता है कि हिंदू धार्मिक स्थल के भग्नावशेषों पर इस्लामिक नियमों के विपरीत बनी बाबरी मस्जिद का निर्माण हुआ। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार बाबर के समय रामजन्मस्थान का स्वरूप बदला गया और औरंगजेब के समय कथित बाबरी मस्जिद बनी। और, जिस समय कथित बाबरी मस्जिद बनी..उस समय के ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार वहां रामजन्मस्थान मंदिर के भग्नावशेष ही थे।
                                   खंडपीठ के एक अन्य न्यायाधीश धरमवीर शर्मा का इस संदर्भ में फैसला महत्वपूर्ण है कि वह संपूर्ण स्थान पूजित है और रामजन्मभूमि के रूप में अनंतकाल से मान्यता प्राप्त है। और, यहीं जाकर न्यायाधीशों में मतभेद है। न्यायाधीश खान और सुधीर अग्रवाल वहां मस्जिद के अस्तित्व को भी मानते हुए उस भूमि के बंटवारे का फैसला सुनाते हैं; जबकि शर्मा इससे असहमत हैं। यक्ष प्रश्न यह खड़ा होता है कि क्या यह किसी के मकान में कब्जा करने वाले को हिस्सा देने जैसा विषय नहीं है..या बड़े रूप में सोचें तो क्या यह भारत विभाजन जैसे तुष्टि·रण का ही लघु रूप नहीं है..यदि ऐसा है तो इस विषय पर भारत की सर्वोच्च सत्ता संसद या सुप्रीम कोर्ट के विचार करने की जरूरत है। यह तुष्टिकरण रामजन्मभूमि के मुद्दे को राजनीतिक बनाने वाले वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के शब्दों वाली राष्ट्रीय एकता के नए अध्याय की शुरुआतनहीं बल्कि भारतीय विरासत के साझेदार हिंदू-मुसलमानों में सकारात्मक और स्पष्ट सोच पैदा होने में बाधा डालने के समान है। भविष्य में ऐसी सोच कश्मीर के बारे में भी कुछ इसी तरह का फैसला करवा सकती है।
                                   यह मुस्लिम भाइयों के लिए विशेष रूप से सोचने का समय है। वहां रामजन्मभूमि सिद्द होना उनकी हार नहीं है; बल्कि उस हककत का सामना है जिसके कारण मुगल शासन में कितने ही हिंदू धर्म परिवर्तन को मजबूर कर दिए गए और आस्था केंद्रों को नष्ट करके उसे अन्य रूप देने की कुत्सित कोशिशें हुईं। रामजन्मभूमि आंदोलन के दौरान अनेक मुस्लिम नेता कहते थे कि यदि यह सामने आ गया कि वहां मंदिर था तो वे खुद वह स्थल हिंदुओं को सौंप देंगे..अब सच सामने आ गया है और यह मुस्लिम समाज के लिए नई शुरुआत करने का समय है..नया अध्याय लिखने का समय है।
                                   संपूर्ण राम जन्मस्थल पूजित है; और, दूसरे के उपासना स्थल पर मस्जिद तामीर करवाना इस्लाम के खिलाफ है। ..वोटों की राजनीति के चलते वहां एक ओर मस्जिद बन तो सकती है लेकिन वह किसी भी रूप में मुसलमान भाइयों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण नहीं हो सकती। और, यह बनेगी भी तो किस शर्त पर..इक बाल के शब्दों वाले इमाम-ए-हिंद..भारत के आराध्य..भारतीय संविधान में आदर्श के रूप में चित्रित और करोड़ों हिंदुओं के भगवान राम के सबसे महत्वपूर्ण जन्मस्थल का एक हिस्सा लेकर..मुसलमान भाइयों के लिए भी यह उचित नहीं होगा। उन्हें वहां कब्जे के बदले मिलने वाला एक तिहाई हिस्सा भी हिंदुओं को सौंप देना चाहिए। इस महान कार्य से एक नए अध्याय की शुरुआत होगी। ऐसे भारत का निर्माण होगा, जिसमें सहअस्तित्व और सौहार्द की बुनियाद होगी और देश को परम वैभव पर पहुंचाने का सपना होगा। बाबर-औरंगजेब के  आपराधिकपूर्ण कृत्य का यही परिमार्जन होगा। 
                                                                     लेखक - गोपाल शर्मा 

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