शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

चिंतन - असफलता ही सफलता की सीढ़ी



पहला कदम ही महत्वपूर्ण - असफलताओं की सीढ़ी चढ़र ही व्यक्ति सफलता  की मंजिल प्राप्त करता है। इसलिए असफलता को लेकर कतई निराश न हों। कभी एक जगह शांति से बैठकर सोचें- क्या इस दुनिया में कोई ऐसा इंसान है, जिसने कभी हार का सामना न किया हो, जिसने कभी दु:ख न देखा हो, जिसके राहों में कभी कांटे न आए हों। विचार करने पर आप पाएंगे कि ऐसा एक भी इंसान नहीं है। विचार करने पर आप एक और चीज पाएंगे कि कुछ लोग तकलीफों में बिलकुल हार जाते हैं, लेकिन कुछ ऐसे लोग भी हैं जो बार-बार असफल होने पर भी हिम्मत नहीं हारते और एक दिन अपनी मंजिल पा ही लेते हैं। आवश्यकता केवल इंसान को संकल्प लेकर मंजिल की ओर आगे बढऩे की है। यह संकल्प ही मंजिल की राह को आसान बनाती है। जीवन में कभी-कभी मंजिल बहुत ही मुश्किल दिखाई देती है, लेकिन मंजिल की ओर बढ़ाया गया पहला कदम ही महत्वपूर्ण होता है और यहीं पर मन का संकल्प संघर्ष के भंवर में फंसा रहता है। बस, आवश्यकता इससे बाहर आने की है
छोटे बच्चों को गेंद खेलते देखा है कभी।

जिन्दगी के बड़ी सीख - गेंद को जब वह जोर से जमीन पर मारते हैं, वह फिर ऊपर उछल जाती है। जितना जोर से उसे जमीन पर मारते हैं, वह उतना ही जोर से और ऊपर उछलती है। यह उदाहरण जिंदगी की बहुत बड़ी सीख है। भले ही आप धड़ाम से गिरें, पर उतनी ही तेजी से उठने की भी कोशिश करें। गिर कर भी उठना सीखें, हार कर भी जीतना सीखें। यह जीवन में सफलता का बहुत बड़ा मंत्र है। हम कभी-कभी राह की कुछ मुश्किलों से घबराकर इस बहुत ही मामूली सी बात को नजरअंदाज कर देते है।
हारने का मतलब यह नहीं होता कि आप उस काम को कर ही नहीं सकते। इसका तात्पर्य यह होता है कि उस काम को, जिसे आपने किया, उसे और सुधारा जा सकता है, कोई और तरीके से भी किया जा सकता है। हर हार से कुछ सीखें। अपनी कमियों को लिखें और फिर उनको दूर करने की कोशिश करें। गलतियों को दोहराने से बचें। पिछली गलतियों को सुधारना ही सफलता की राह में बढ़ाया गया पहला कदम है। सुधार की यह प्रक्रिया जब सतत जारी रहेगी तो सफलता निश्चित ही मिलेगी।

मेहनत का अंतर -  कई बार हम खुद में अति आत्मविश्वासी हो जाते हैं और समझने लगते हैं कि हमें सबकुछ आता है। इस कारण हमारा ध्यान उस काम से कम हो जाता है और यह लापरवाही जीवन के लिए कभी-कभी बहुत घातक सिद्ध होती है, परिणाम यह होता है कि हमें असफलता का सामना करना पड़ता है। यदि आपने अपने कार्य के लिए १०० प्रतिशत मेहनत किया है, तो हो सकता है कि दूसरे ने १०१ प्रतिशत मेहनत किया हो और इसी कारण वह दूसरा व्यक्ति सफल हो गया हो।
सफलता और आपके बीच में इसी एक प्रतिशत का फर्क है। इस फर्कको पाटें। प्रतिस्पर्धा में दो व्यक्तियों के मेहनत का अंतर ही जीत या हार तय करता है। प्रत्येक पराजय के साथ यह मंथन करें कि आखिर जीतने वाले और आप में कितना अंतर था और अगली बार इस अंतर को पूरा करने का प्रयत्न पूरी मेहनत के साथ करें। ध्यान रखें -
आप खुद पर विश्वास बनाए रखें। इससे कठिनाई में भी आप डगमगाएंगे नहीं।
असफलता के बाद लोग चाहे कुछ भी कहें, ध्यान मत दें। पुन: हौसले के साथ अभियान में जुट जाएं।
ऐसे लोगों के साथ रहें, जिन्होंने मेहनत और हिम्मत से जीवन में कुछ पाया है। इससे आपको भी बाधाओं से लडऩे की प्रेरणा मिलेगी।

नया सिखते रहे - हर वक्त कुछ न कुछ नया सीखते रहें। यही आदत आपकी सफलता की लड़ी बन जाएगी।
यह मान कर चलें कि हर विफलता के पीछे कोई-न-कोई वजह जरूर होती है। उसे दूर करने की कोशिश करें और लक्ष्य की ओर आगे बढ़ें। जब कदम आगे बढ़ाएंगे तो पीछे कभी नहीं जाएंगे और यह आत्मविश्वास आपका मूलमंत्र बन जायेगा। हो सकता है प्रतिदिन कोई आकर जाने या अनजाने में आपको निराश करता रहे। इसकी परवाह मत कीजिए बस, यह याद रखिए कि चांद की सुंदरता में भी लोग दाग ढूंढते है फिर आप तो मनुष्य है।     

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