मध्यप्रदेश गुना जिले के
गाँव अरौन में
13 नवम्बर सन् 1901 में
सम्पन्न परिवार में
एक अद्भूत बालक का जन्म हुआ
शिक्षा-दीक्षा
खेलते-खाते बचपन बीता
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
के स्वयंसेवक बन
संघ कार्य में जीवन लगा
उन्तीस बरस में
घर-गृहस्थ में प्रवेश किया
रेल्वे के नौकरी के चलते हुये भी
संघ कार्य भी नहीं छुटा
पर विपदाओं ने भी
कठिन परीक्षा ली
पत्नी-बच्ची अल्पकाल में छोड़ चली
उनका भी दर्द उसे सहना पड़ा
असाध्य-छुत कुष्ठ रोग जीवन को मिला
नाक –कान-भवों को सिकोड़ते थे
सभी घृणा करते थे
सायकल चलाकर जीवन संघर्ष करते थे
छत्तीसगढ़ के मिशनरी अस्पताल में
शरण लिया
वहां डॉक्टर नहीं, हैरान थे
सेवा के नाम पर
लोगों का धर्म परिवर्तन कराते थे
पर वह स्वाभिमानी
निर्बल अशक्त-असहाय होते हुये भी
कमर कस कर खड़े हो गये
असंभव को संभव करने प्रबंधको ने
खाना-दाना, दवा-पानी सब बंद कर दिये
उसने भी अस्पताल छोड़ दिया
शिकायत किया तो भी
गुलाम मानसिकता के लोग
मिशनरियों में बढ़-चढ़ के
गुणगान करने लगे
गहरा झटका लगा उनको
और दृढ़ संकल्प लिया गुलामी के
इस मानसिकता को उखाड़ फेकूगा
जलते हुए दीप
प.पू. सरसंघचालक
माधवराव सदाशिव गोलवलकर जी से
सदाशिव ने आशीर्वाद लिया
फिर न रही चिन्ता –फिकर
स्वयंसेवको का दल लेकर चल पड़े
चांपा के पास सोंठी ग्राम में
असाध्य को साध्य करने के लिए
भारतीय कुष्ठ निवारक संघ
का स्थापना किया
ऐसे तो सेवा का कार्य
श्री सम्पन्न लोग ही करते है
जो स्वयं निर्बल अशक्त-असहाय है
छूत रोगों से घिरे हुये है
उन से ऐसी आशा समाज कैसे करे
हां वे हमारे आदर्श
प्रेरक प्रसंग है
इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठभूमि में
लिखा जायेगा उनका नाम
स्वर्गीय सदाशिव गोविन्द कात्रेजी
स्वर्ण जयंती के अवसर पर
उस महामानव को याद करते है
तन-मन-धन
उन के श्री चरणों में अर्पण करते है
और अपना जीवन भी
धन्य समझते है।
-फकीर सिंह क्षत्री
ग्रा.-अर्जुनी, जि.-रायपुर
छत्तीसगढ़