मंगलवार, 27 सितंबर 2011

समाज परिवर्तन के योद्धा- मोरोपंत जी


          राष्ट्रीय स्वयंसेवक  संघ के संस्थापक  डॉ. हेडगेवार महान युगदृष्टा थे। संघ स्थापना के  पश्चात् ‘‘याची देहि-याची डोला’’ अर्थात् अपने जीवन काल में संघ को ‘‘अखिल भारतीय संगठन’’ के स्तर पर देखना चाहते थे। अत: नि:स्वार्थ, चारित्रवान, राष्ट्रप्रेमी एवं समर्पित कार्यकर्ता अल्प समय में निर्माण कर, भिन्न-भिन्न प्रांतों में प्रचारक  के रुप में भेजते रहे। उसी क्रम में प्रथम पंक्ति के ज्येष्ठ प्रचारक श्री मोरेश्वर नीककंठ पिंगले उर्फ मोरोपंतजी अल्प आयु में संघ एवं डॉ. हेडगेवार जी के संपर्क  में आये तथा डॉ. हेडगेवारजी के  महत्वपूर्ण गुण उनमें विद्यमान थे। अत: उनके  सभी कार्य एवं योजनायें सफल सिद्ध हुई।
                   स्व.मोरोपंत जी का जन्म 30 अक्टूबर 1919 में नागपुर में हुआ। 1930 से ही संघ के संपर्क  में आये। मॉरीस कालेज नागपुर से बी.ए.की परीक्षा पास होने के पश्चात उन्होंने अपना जीवन संघ कार्य हेतु समर्पित किया तथा सन् 1941 में प्रचारक  बने। 1946 में महाराष्ट्र प्रांत के  सहप्रांत प्रचारक  का दायित्व मिला। श्री बाबा राव भिडे महाराष्ट्र प्रांत के  संघचालक  बनते समय श्री मोरोपंतजी को प्रांत प्रचारक  का दायित्व दिया गया। उनकी उत्तम लोक  संग्रह वृत्ति एवं प्रभावी कार्य शैली के  कारण उत्कृष्ठ प्रचारक  सिद्ध हुए। तत्पश्चात् अखिल भारतीय स्तर की  जिम्मेदारियां श्री मोरोपंतजी को  दी गयी। अखिल भारतीय शारीरिक  प्र्रमुख, व्यवस्था प्रमुख तथा प्रचारक  प्रमुख भी वे रहे। कुछ समय तक  सहसरकार्यवाह का दायित्व उन्हें दिया गया। अंत में केन्द्रीय कार्यकारिणी अधिकारी में आमंत्रित सदस्य के रुप में मार्गदर्शन करते रहे।
                  सन् 1981 मिनाक्षीपूरम् घटना के  पश्चात् सन् 1983 में प्रथम एकात्म यात्रा का  आयोजन हुआ। आगे बढ़ते समय सन् 1984 में विश्व में विश्व हिन्दू परिषद द्वारा चार धामों से रथ यात्रा निकालने की  योजना की  गयी तथा गंगापूजन का कार्यक्रम लिया गया। यह चार धामों से आयी रथयात्रा का मिलन नागपुर में होने की  कल्पना मूलत: श्री मोरोपंथजी की थी। वह अत्यंत कुशलता से सम्पन्न हुआ। वे राम जन्मभूमि आंदोलन के प्रमुख शिल्पकार रहे। भारतीय इतिहास पुनर्लेखन योजना के लिए उनकी  प्रेरणा प्रमुख थी। ‘‘श्री बाबासाहेब आपटे इतिहास संकलन समिति’’ की  स्थापना उन्होंने की । गुप्त सरस्वती नदी शोध का जो कार्य श्री मोरोपंतजी ने किया वह अतुलनीय था। गौहत्या प्रतिबंध, गौरक्षा, गौसंवर्धन के वह पुरस्कर्ते थे। देवलापार गोविज्ञान अनुसंधान केन्द्र की उन्होंने स्थापना की तथा कार्य को देखने वे स्वयं वहां जाकर मार्गदर्शन करते थे।
                 मोरोपंतजी के परिवार में उनके  ज्येष्ठ बन्धु गुणाकरपंत, कनिष्ठ बंधु श्री दत्तोपंत तथा भागिनी निवया खरे है। श्री मोरोपंतजी का प्रभावी व्यक्तित्व था दांव विनोदी स्वभाव के  कारण सहजता के साथ व्यक्ति को जोड़ते थे। स्वयंसेवको  के गुणों का आकलन कर तद्नुनुसार वे कार्यकर्ताओं का अलग-अलग कार्यों के लिए उनका  चयन करते थे। केवल योजना बनाकर ही नहीं, अपितु उसका क्रीयान्वयन कर तथा यशस्वी बनाने तक  उनका  संपूर्ण लक्ष्य रहता था। अत: सभी योजनाओं में उन्हें सफलता प्राप्त हुई तथा सभी क्षेत्रों में कार्य वृद्धिंगत हुआ।
                   श्री मोरोपंतजी का प्रभावी व्यक्तित्व था दांव विनोदी स्वभाव के  कारण सहजता के साथ व्यक्ति को जोड़ते थे। स्वयंसेवको  के गुणों का आकलन कर तद्नुनुसार वे कार्यकर्ताओं का अलग-अलग कार्यों के लिए उनका  चयन करते थे। केवल योजना बनाकर ही नहीं, अपितु उसका  करियान्वय कर तथा यशस्वी बनाने तक  उनका  संपूर्ण लक्ष्य रहता था। अत: सभी योजनाओं में उन्हें सफलता प्राप्त हुई तथा सभी क्षेत्रों में कार्य वृद्धिंगत हुआ।
                      श्री मोरोपंतजी पिंगले के दिनांक  29 सितंबर 2003 दिन नागपुर में देवाज्ञा हुई। ऐसे ज्येष्ठ, तेजस्वी, तपस्वी, समाज परिवर्तन के  योद्धा तथा यशस्वी कर्मवीर के दर्शन एवं मार्गदर्शन से तब से हम वान्चित रहें। किन्तु उनके  ·क्रियाशील जीवन एवं कार्यशैली से हम प्रेरणा लेकर हमारा संगठन का  कार्य शीघ्र वृद्धिंगत कर सकेगे,इसी संकल्प के  साथ उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।   


                                                         - माधव एकनाथ राजहंस
                                                          एच.आई.जी.-७७ हुडको 
                                                          आमदी नगर ,भिलाई 
                                                          रायपुर   

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