मंगलवार, 27 सितंबर 2011

हिंदुओं के लिए आ रहा है काला कानून

देश पुनः विभाजन की ओर...


१९४७ में देश का विभाजन करने वाली कांग्रेस पार्टी अब फिर से देश को विभाजित करने के लिए  एक  काले कानून का मसौदा तैयार कर चुकी है । जिसका विरोध कांग्रेस को छोड़कर सभी दलों ने किया है। इस कानून में समाज को स्पष्ट रुप से दो भागों में विभाजित करने का प्रयास किया गया है जिसमें पहला समूह ईसाई मुसलमान भाषा के आधार पर अल्पसंख्यक  एवं अनुसूचित जाति एवं जनजाति है, वहीं दूसरी ओर बचे हुए हिन्दू धर्म के लोग है।  यह कानून स्पष्टत: समाज में चार प्रकार का विभाजन है। जिसमें धर्म, जाति, भाषा और वर्ग के आधार पर देश का विभाजन
कर देगा । देशभर में घटते जनाधार से घबराकर कांग्रेस वोट बैंक यह देश विभाजक  राजनीति को फिर से दोहरा रही है। आजादी के 65 सालों में अल्पसंख्यक कांग्रेस के हाथों वोट बैंक  से ज्यादा कुछ भी नहीं है। इस बात की सचचाई कांग्रेस द्वारा बनाई गई सच्चर कमेटी की रिपोर्ट खुद बता रही है। ऐसे में अब समय आ गया है कि संपूर्ण  हिन्दू समाज कांग्रेस कि  इस देश विभाजक  राजनीति का हर स्तर पर पूरजोर विरोध करे। नहीं तो कांग्रेस देश 1947 के देश विभाजक  घटना को दोहरायेगा...

            अन्ना हजारे के लोकपाल बिल के  समर्थन में शाही ईमाम के  फतवा जारी करने के  बाद भी मुस्लिम समाज का अन्ना को  समर्थन देखकर यू.पी.ए. गठबंधन द्वारा पुन: समाज को बांटने की साजिश की जा रही है। एक  ओर आज भी भारत के अंदर रहते हुए भी सिर्फ नक्शे में ही जम्मू-कश्मीर का भारत का अभिन्न अंग होने के बाद भी वहां भारत के  कानून का लागू न होने का दंश आज भी यह देश झेल रहा है।

हिंदु समाज को बाटने का प्रयास -
 इस विधेयक  को जिस समाज के रक्षार्थ लाया जा रहा है उसे समूह का नाम दिया गया है। इस समूह में कथित धार्मिक  व भाषाई अल्पसंख्यक  के अलावा दलित व वनवासी वर्ग को ही शामिल किया गया है। यह विधेयक  जहां अनुसूचित जनजाति एवं अनुसूचित जाति को हिन्दू समाज से अलग बांटने का  एक  प्रयास है। वहीं अलग-अलग भाषा बोलने वालों के बीच सामान्य विवाद भी भाषाई अल्पसंख्यक  एवं भाषाई बहुसंख्यक  विवाद का  रुप धारण करेंगे। यह विधेयक  यही मानता है कि बहुसंख्यक  समाज हिंसा करता है तथा अल्पसंख्यक  उसका  शिकार बनता है जबकि  सत्यता इससे बिलकुल विपरीत है। हिन्दुओं ने कभी गैर हिन्दुओं को नहीं सताया। महिला कि आबरू पर आक्रमण होना किसी भी समय समाज में अनुचित ही माना गया है परन्तु यह विधेयक  यह मानता है कि गैर हिन्दू महिला के साथ किया गया बलात्कार तो अपराध है परन्तु हिन्दू महिला के साथ गैर हिन्दू द्वारा किया गया बलात्कार अपराध नहीं है।

अफजल को फांसी  की मांग की तो जेल -
 इस विधेयक  के अनुसार यदि कोई अल्पसंख्यक  समुदाय का व्यक्ति यदि किसी बहुसंख्यक  के  साथ कोई सौदा करना चाहता है और बहुसंख्यक  सौदा करने से इंकार कर देता है तो भी बहुसंख्यक  अपराधी माना जायेगा। बहुसंख्यक  के  किसी भी बात से अल्पसंख्यक  को कष्ट हुआ वह अपराध की परिधि में आयेगा। किसी भी आपराधिक  मामले तय करने के लिए पर्याप्त होंगे। इसका  सीधा-सीधा अर्थ है कि अफजल गुरु को फांसी, बांग्लादेश को घुसपैठियों को निष्काशन, धर्मान्तरण पर रोक  कि मांग करना अपराध बन जायेगा।

हिन्दुओं अर्थात् बहुसंख्यको  पर ही लागू - 
यह विधेयक  कहता है कि  जब तक  कोई व्यक्ति दोषमुक्त न हो जाये तब तक  अपराधी माना जायेगा। यह केवल हिन्दुओं अर्थात् बहुसंख्यको  पर ही लागू होता है। यदि किसी भी गैर हिन्दू के लिए किसी हिन्दू को जेल भेजना आसान हो जायेगा। वह केवल आरोप लगायेगा, पुलिस अधिकारी उसे जेल में डाल देगा। यह विधेयक  पुलिस अधिकारी को  का नून से इतना बांध देगा कि उसे जेल में डालने का पूरा प्रयास करना होगा, क्योंकि  उसे अपनी प्रगति रिपोर्ट निरंतर शिकायतकर्ता के भेजनी होगी। यदि किसी संगठन के  का र्यकर्ता पर कोई साम्प्रदायिक  घृणा का  कोई आरोप लगता है तो उसका संगठन का मुखिया भी उस कानून के गिरफ्त में आयेगा। उसी प्रकार यदि कोई प्रशासनिक  अधिकारी उस हिंसा को रोकने में नाकामयाब रहता हैं तो उस राज्य का मुखिया भी जिम्मेदार माना जायेगा।

अधिनियम का नाम :-
धारा 1(1) इस अधिनियिम का  संक्षिप्त नाम ‘‘साम्प्रदायिक और लक्षित हिंसा न्याय तक  पहुंच और हानिपूर्ति अधिमियम, 2011 है।’’ इस कानून के द्वारा न्याय तक  पहुंचा ही नहीं जा सकता क्योंकि  यह पहले ही बहुसंख्यक  समाज को अपराधी मान लेता है।

प्रभाव :- धारा 1(2) - इस अधिनियम का प्रभाव क्षेत्र सम्पूर्ण भारतवर्ष होगा। केन्द्र सरकार जम्मू-कश्मीर राज्य की सहमति से इस अधिनियम को उस राज्य में विस्तारित कर सकेगी परन्तु देश में बनाया जाने वाला कोई भी कानून जम्मू-कश्मीर सहित सारे देश में एक  साथ लागू होना चाहिए।

धारा 1(3)  - यह अधिनियम पारित किये जाने की तारीख से एक  वर्ष के भीतर लागू होगा। लेकिन ऐसा आज तक  कभी भी किसी कानून के संदर्भ में नहीं हुआ।

धारा 2 - इस अधिनियम का  प्रभाव क्षेत्र सम्पूर्ण भारतवर्ष होगा। केन्द्र सरकार जम्मू-कश्मीर राज्य की सहमति से इस अधिनियम को उस राज्य में विस्तारित कर सकेगी परन्तु देश में बनाया जाने वाला कोई भी कानून जम्मू-कश्मीर सहित सारे देश में एक  साथ लागू होना चाहिए।

संगठन का अर्थ ही बदल गया :
धारा 3 (ख) - इस धारा के अनुसार संगठन का अर्थ ऐसे व्यक्तियों का समूह या निकाय है जो उस समय लागू किसी विधि के  द्वारा पंजीकृत हों या न हो। यह ऐसी भाषा है जिसमें किन्ही भी दो या अधिक  व्यक्तियों को  संगठन कहकर इस अधिनियम के  अन्तर्गत झूठा फंसाया जा सकता है, चाहे उसका  विधिक  अस्तित्व हो या नहो।

हिन्दुओं को आजीवन कारावास :-
धारा 3 (ग) - धारा 9 एवं धारा 116 - इन तीनों धाराओं का निहितार्थ यह है कि  अचानक अन्जाने के हुयी एक  अकेली घटना देश के धर्मनिरपेक्ष ताने बाने को  नष्ट करने वाली मानी जायेगी और वह व्यक्ति साम्प्रदायिक  और लक्षित हिंसा अधिनियम का  अपराधी बन जायेगा। अकेले व्यक्ति के  द्वारा किया गया कार्य चाहे वह केवल धमकी ही हो वह साम्प्रदायिक  व लक्षित हिंसा मानी जायेगी तथा वह व्यक्ति आजीवन कारावास के अन्तर्गत जीवनभर के  लिए जेल जायेगा।

धारा 3 (ड) - इस धारा के अनुसार समूह का अर्थ भारत संघ के किसी भी राज्य में कोई धार्मिक  या भाषायी अल्पसंख्यक  या भारत के  संविधान के अनुच्छेद-366 के  खण्ड 24-25 को  अन्तर्गत आने वाली अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों से है।
यह धारा इस अधिनियम की सबसे आपत्तिजनक  धारा है, क्योंकि यह अधिनियम केवल इन समूहों पर किये गये साम्प्रदायिक  एवं लक्षित हिंसा पर लागू होता है, बाहर के  बहुसंख्यक  लोगों पर नहीं।

धारा 11 (·) - यह अधिनियम अन्वेषण, गवाह, न्यायालय एवं न्याय सभी दाण्डिक प्रकरियाओं को  समूह (ईसाई व मुसलमान) एवं समूह के बाहर के  व्यक्तियों के  आधार पर विभाजित करता है।

धारा 3 च (1) - इस धारा के अनुसार कोई भी कार्य अधिनियम के  अधीन अपराध हो या न हो, परन्तु जिसका  प्रयोजन या प्रभाव शत्रुता का आपराधिक  वातावरण उत्पन्न करना है वह अपराध माना जायेगा। संसद भवन पर हमला करने वाले अफजल गुरु और मुंबई में हमला करने वाले कसाब की फांसी की  सजा पर खुशी व्यक्त करना भी इस अधिनियम के  अनुसार अपराध होगा।

नौकरी से हटाये जाने पर हिन्दुओं को सजा:-
धारा 3 च(1) - इस धारा के  अन्तर्गत बहुसंख्य· समाज को  बाध्य किया जायेगाकि  आप हर हाल में समूह कि व्यक्ति (ईसाई या मुसलमान) को  अवश्य नौकरी पर रखें। कभी भी नौकरी से हटाया नहीं जा सकता। समूह के व्यक्ति (ईसाई या मुसलमान) के द्वारा व्यापारिक  लेन-देन की पहल करने पर उन्हें मना नहीं किया जा सकता और न ही पहले से चले आ रहे व्यापारिक  अनुबंध को तोड़ा जा सकता है। क्योंकि इस धारा के अनुसार यह सभी कार्य साम्प्रदायक कि एवं लक्षित हिंसा के  अन्तर्गत अपराध माने जायेंगे।

पीडि़त :- 
धारा 3 (ञ) - इस धारा के अनुसार शारीरिक , मानसिक , मनोवैज्ञानिक  एवं शारीरिक  हानि से समूह (ईसाई, मुसलमान, अनुसूचितजाति,व अनुसूचित जनजाति) का व्यक्ति पीडि़त माना जायेगा। मानसिक  एवं मनोवैज्ञानिक  हानि एक  परिकल्पना है। कोई व्यक्ति किस बात पर अपने आप को मानसिक  या मनोवैज्ञानिक  रुप से पीडि़त मान लेगा यह कहना अत्यंत मुश्किल है। धार्मिक  परिचर्चा या अनौपचारिक  हास्य-विनोद से भी व्यक्ति अपने आप को मानसिक  या मनोवैज्ञानिक  रुप से पीडि़त कह सकता है। पीडि़त व्यक्ति स्वयं कहे या न कहे उसके  नातेदार विधिक  संरक्षक  और वारिस के कहने पर भी अपराध माना जायेगा।

धारा 40- पीडि़त व्यक्ति की पहचान को हमेशा छुपाकर रखा जायेगा।

धारा 3(ट) - किसी भी व्यक्ति को कभी भी साक्षी के रुप में प्रस्तुत किया जा सकता है।

धारा 86-87 - जो पीडि़त व साक्षी होंगे उनका सम्पूर्ण खर्च सरकार वहन करेगी।

अपराध एवं दण्ड-
धारा 6 - यह कानून एक  ही अपराध के लिए एक  से अधिक  बार (दो या तीन बार) दण्ड देने का विधान करता है। क्योंकि धारा 6 के अन्तर्गत इस कानून के साथ ही अभियुक्त एस.सी./एस.टी. के एक्त में भी अपराधी हो सकता है।

धारा 7/114 - समूह (ईसाई या मुसलमान) की किसी महिला के साथ दुराचार चाहे वह उस  इच्छा से ही किया या हो उसके लिए दस वर्ष, बारह वर्ष, चौदह वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक  की सजा होगी, लेकिन यदि किसी समूह के बाहर कि महिला के  साथ दुराचार होता है तो वह कानून लागू नहीं होगा।

धारा 7 (ख) - समूह (ईसाई या मुसलमान) की महिला का यदि अन्जाने में भी किसी के  द्वारा आंशिक  रुप से वस्त्र हट जाता है तो उसे सात साल कि सजा हो जायेगी।

धारा 82 - आरोपी व्यक्ति के  विरुद्ध वाद प्रक्रिया की सुनवाई के दौरान ही संबंधित न्यायाधीश आरोपी की  सम्पत्ति कुर्क करने का आदेश दे सकेगा।

धारा 83- दोष सिद्ध हो जाने के पश्चात न्यायाधीश के द्वारा अन्य दण्ड के साथ कुर्क  सम्पत्ति को  बेचने का आदेश भी दिया जा सकेगा। इस राशि का उपयोग क्षतिपूर्ति आदि में किया जायेगा।

घृणा एवं दुष्पचार :-
धारा 8/115- श्री रामलीला कमेटियों एवं अन्य धार्मिक  संगठनों के द्वारा निकाली जाने वाली झाकियां, पथसंचलन, कथा-प्रवचन, पुस्तको का प्रकाशन एवं धार्मिक  अनुसंधानिक  कार्य, आतंकवाद की गति विधियों में सम्मिलित समूह (मुस्लिम व ईसाई) के लोगं का नाम प्रकाशित करना, आतंकवाद के  ऊपर किसी परिचर्चा या राष्ट्रीय सेमिनार में समूह (मुस्लिम व ईसाई) के  लोगों की संलिप्तता पर चर्चा करना इस धारा के अनुसार घृणा एवं दुष्प्रचार के अन्तर्गत अपराध माने जायेंगे तथा इसके  लिए तीन वर्ष का कारावास होगा।

लोक  सेवक  द्वारा कर्तव्य की अवहेलना :-
धारा 9 (2) - यदि कहीं भी छोटी सी साम्प्रदायिक  एवं लक्षित हिंसा हो जाती है तो पूर्व धारणा मान ली जायेगी कि भारतीय लोक सेवक  (प्रशासनिक  अधिकारी/सुरक्षा अधिका री) अपने कर्तव्य के निर्वहन में असफल रहा है और वह बिना किसी भी बचाव के आजीवन कारावास का दोषी होगा।

धारा 12 - पुलिस अधिकारी किसी समूह (ईसाई या मुसलमान) के व्यक्ति को  किसी अपराध या चोरी के सन्देह में गिरफ्तार नहीं कर सकता। जबकि भारतीय दण्ड प्रकरिया संहिता के धारा 41 से लेकर 47 तक  यह विधान करता है, संदेह के आधार पर व्यक्ति को  गिरफ्तार किया जा सकता है।

धारा 13- यदि किसी हिंसाग्रस्त क्षेत्र के समूह के भीतर के व्यक्ति यदि यह हल्ला कर दें कि लोक सेवक  दंगा रोकने में असफल रहा है, तो वह अपराधी माना जायेगा।
वर्तमान में सेवा शर्तों के आधार पर लोक  सेवक  के विरुद्ध विभागीय या शासकीय कानूनी कार्यवाही की जाती है, परन्तु वह अब सीधे अपराध एवं सजा का भागी होगा।

धारा 14/121 - इस धारा के अनुसार सशस्त्र बलों या सुरक्षा बलों के कमान, नियंत्रण या पर्यवेक्षण करने वाला अधिकारी अपनी शक्ति के अधीन यदि दंगा रोकने में असफल रहता है तो न केवल वह अपराधी माना जायेगा, अपितु उसका प्रमुख भी अपराधी होगा, और उसे दो वर्ष, दस वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक  की सजा होगी। यह पूरी तरह कल्पना पर निर्भर करेगा कि अधिकारी अपनी शक्ति के अधीन दंगा रोकने में असफल रहा है।

धारा 16- इस धारा के अनुसार वरिष्ठ अधिकारी के आदेश पर भी यदि कोई सुरक्षाकर्मी समूह के व्यक्ति पर दण्डात्मक  कार्यवाही करता है तो वह अपराधी माना जायेगा। इससे सुरक्षा बलों में घोर अनुशासनहीनता पनपने की सम्भावनाएं है।

धारा 10/117 - समूह (ईसाई व मुसलमान) के बाहर के  किसी संगठन का  कोई एक  भी व्यक्ति साम्प्रदायिक  एवं लक्षित हिंसा को दोषी माना जाता है तो उसे संगठन को  धन या कोई सामग्री देने वाला व्यक्ति भी इस धारा के अनुसार साम्प्रदायिक  एवं लक्षित हिंसा का  दोषी माना जायेगा तथा इसके लिए उसे तीन वर्ष का कारावास होगा।

धारा 15/122 – किसी गैर सरकारी संगठन का यदि कोई ·कार्यकर्ता इस अधिनियम के  अन्तर्गत यदि दोषी पाया जाता है तो उस संगठन का  सर्वोच्च अधिकारी भी अपराधी माना जायेगा और आजीवन कारावास का भागी होगा।

धारा 20- साम्प्रदायिक  और लक्षित हिंसा की किसी एक  घटना के होने पर राष्ट्रीय प्राधिकरण के  रिपोर्ट के आधार पर केन्द्रीय सरकार, भारत के संविधान के अनुच्छेद 355 के अन्तर्गत आन्तरिक  अशान्ति मानकर राज्य सरकार को बर्खास्त कर देगी।

धारा 21- साम्प्रदायिक  सामंजस्य, न्याय और क्षतिपूर्ति के लिए बनाया जाने वाले राष्ट्रीय प्राधिकरण का पूरा स्वरुप साम्प्रदायिक  है। इसके सात में से चार सदस्य समूह (ईसाई या मुससमान ) के ही होंगे।

धारा 30 से 36 तक  - यह प्राधिकरण सूचना इकट्ठा करेगा, जांच करेगा, शिकायत करेगा, कार्यवाही करेगा, अदालती कार्यवाहियों का निरीक्षण करेगा, सरकारी अधिकारियों का  निलम्बन करेगा, स्थानान्तरण करेगा, पीडि़त व्यक्तियों को छुपाने में सहयोग ·करेगा तथा राहत के  पैसों का  नियंत्रण करेगा। अत: यह अपने आप में सब कुछ होगा।

धारा 44 - ·केन्द्र कि तरह राज्य स्तर पर भी एक  प्राधिकरण होगा, परन्तु यह केन्द्र के अधीन होगा।

धारा 42 - इस धारा के अनुसार प्राधिकरण के सम्मुख दिये गये किसी बयान के आधार पर बयान देने वाले व्यक्ति के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं होगी।

धारा 57 - भारतीय दण्ड प्रक्ररिया संहिता और सिविल प्रक्रिया संहिता की सारी शक्ति इस प्राधिकरण में है।

धारा 62 - विशेष जांच अधिकारी के रुप में ज्येष्ठ पुलिस निरीक्षक  स्तर का कोई अधिकारी अपराध का अन्वेषण करेगा।

धारा 74 - इस कानून के अन्तर्गत यदि कोई एफ.आई.आर. होती है तो यह मान लिया जायेगा कि अभियुक्त ने यह अपराध किया ही है। यह ऐसा उपलब्ध है जो अभी तक कानून में कहीं नहीं है।

क्षतिपूर्ति :-
धारा 104 - यात्रा दुर्घटना या फैक्टरी  में दुर्घटना वाली राष्ट्रीय क्षतिपूर्ति होती है उतनी ही इस धारा में दी गयी है परन्तु वहां अपराध सिद्ध होने पर मिलती है और यहां अपराध सिद्ध होने के पूर्व ही मिल जाती है।


3 टिप्‍पणियां:

  1. मै तो एक बात जानता हूँ जो लोग हिन्दी या हिन्दुस्तान के खिलाफ बोलता है उसकों खुलेआम गोली मार देनी चाहिए और ये काम हिन्दू युवाओं द्वारा होना चाहिये न.कि किसी सरकारी सिपाही का आम जनता का होना चाहिये

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  2. अच्छा हुआ लागु नही हुआ ये कानून बनानेवाले को ट्रोजन trojan लगे।

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