सोमवार, 5 दिसंबर 2011

गाय की हड्डियों से बने सामान को त्यागें



मनुष्य जीवन में छोटी से छोटी घटना का भी बड़ा महत्व होता है। ऐसा ही वाक्या सांसद व पशु संरक्षिका श्रीमती मेनिका गांधी के साथ श्रीलंका में हुआ जब उन्हें यह पता चला कि श्रीलंका का राष्ट्रपति द्वारा दी गई भेंट पशुओं के हड्डियों से बनी है, तब उन्होंने शाकाहारियों को ऐसे चीजों को त्यागने के लिए प्रेरित करने के लिए इस घटना को विस्तार से आगे बताया है...

श्रीलंका के राष्ट्रपति डी.बी. विजयतुंगे ने मेरे श्रीलंका के दौरे में मुझे चाय पर बुलाया और मुझे एक नोरिटेक टी सैट उपहार के तौर पर दिया। उस पर अंदर की ओर बोन चाइना लिखा हुआ था। मैंने इस ओर कोई खास ध्यान नहीं दिया। मैं भी और लोगों की तरह समझती थी कि इस तरह की खास क्राकरी जो सफेद, पतली और अच्छी कलाकारी से बनाई जाती है, बोन चाइना कहलाती है। बहुत बाद में मुझे पता चला कि इस पर लिखे शब्द बोन का वास्तव में सम्बंध बोन (हड्डी) से ही है। इसका मतलब यह है कि मैं किसी गाय या बैल की हड्डियों की सहायता से खा-पी रही हूं। बोन चाइना एक खास तरीके का पॉर्सिलेन है जिसे ब्रिटेन में विकसित किया गया और इस उत्पाद का बनाने में बैल की हड्डी का प्रयोग मुख्य तौर पर किया जाता है। इसके प्रयोग से सफेदी और पारदर्शिता मिलती है।

बोन चाइना इसलिए महंगा होती है क्योंकि इसके उत्पादन के लिए सैकड़ों टन हड्डियों की जरुरत होती है, जिन्हें कसाईखानों से जुटाया जाता है। इसके बाद इन्हें उबाला जाता है, साफ किया जाता है और खुले में जलाकर इसकी राख प्राप्त की जाती है। बिना इस राख के चाइना कभी भी बोन चाइना नहीं कहलाता है। जानवरों की हड्डी से चिपका हुआ मांस और चिपचिपापन अलग कर दिया जाता है। इस चरण में प्राप्त चिपचिपे गोंद को अन्य इस्तेमाल के लिए सुरक्षित रख लिया जाता है। शेष बची हुई हड्डी को १००० सेल्सियस तापमान पर गर्म किया जाता है, जिससे इसमें उपस्थित सारा कार्बनिक पदार्थ जल जाता है। इसके बाद इसमें पानी और अन्य आवश्यक पदार्थ मिलाकर कप, प्लेट और अन्य क्राकरी बना ली जाती है और गर्म किया जाता है। इन तरह बोन चाइना अस्तित्व में आता है। ५० प्रतिशत हड्डियों की राख २६ प्रतिशत चीनी मिट्टी और बाकी चाइना स्टोन। खास बात यह है कि बोन चाइना जितना ज्यादा महंगा होगा, उसमें हड्डियों की राख की मात्रा भी उतनी ही अधिक होगी।

अब प्रश्न यह उठता है कि क्या शाकाहारी लोगों को बोन चाइना का इस्तेमाल करना चाहिए? या फिर सिर्फ शाकाहारी ही क्यों, क्या किसी को भी बोन चाइना का इस्तेमाल करना चाहिये। लोग इस मामले में कुछ तर्क देते है। जानवरों को उनकी हड्डियों के लिए नहीं मारा जाता, हड्डियां तो उनको मारने के बाद प्राप्त हुआ एक उप-उत्पाद है। लेकिन भारत के मामले में यह कुछ अलग है। भारत में भैंस और गाय को उनके मांस के लिए नहीं मारा जाता क्योंकि उनकी मांस खाने वालों की संख्या काफी कम है। उन्हें दरअसल उनकी चमड़ी और हड्डियों के मारा जाता है। भारत में दुनिया की सबसे बड़ी चमड़ी मंडी है और यहां ज्यादातर गाय के चमड़े का ही प्रयोग किया जाता है। हम जानवरों को उनकी हड्डियों के लिए भी मारते है। देखा जाए तो वर्क बनाने का पूरा उद्योग ही गाय को सिर्फ उसकी आंत के लिए मौत के घाट उतार देता है। आप जनवरों को नहीं मारते, लेकिन आप या आपका परिवार बोन चाइना खरीदने के साथ ही उन हत्याओं का साझीदार हो जाता है, क्योंकि बिना मांग के उत्पादन अपने आप ही खत्म हो जायेगा।

चाइना सैट की परम्परा बहुत पुरानी है और जानवर लम्बे समय से मौत के घाट उतारे जा रहे हैं। यह सच है, लेकिन आप इस बुरे काम को रोक सकते हैं। इसके लिए सिर्फ ापको यह काम करना है कि आप बोन चाइना की मांग करना बंद कर दें।


  

गंगा पर ८१५ फुट लंबा पुल



सामूहिकता की सराहनीय पहल
पिछले दिनों धर्म नगरी हरिद्वार में दो घटनायें घटित हुई लेकिन हर बार की तरह खबरियां चैनल व अखबारों ने समाचार को सनसनीखेज बनाने के चक्कर में सिर्फ दुखद घटना का बार-बार चित्रण अपने चैनल व अखबारों में किया। आखिर लोकतंत्र का यह चौथा स्तम्भ अपनी जिम्मेदारी के प्रति इतना लापरवाह कैसे होता जा रहा है। आज जब देश में कार्यपालिका, व्यवस्थापिका पर बार-बार प्रश्नचिन्ह लगाया जा रहा है तब लोकतंत्र के शेष दो स्तम्भ न्यायपालिका और खबरपालिका से लोगों को बहुत सी उम्मीदें है।  ऐसे में हरिद्वार में दो घटनायें घटित हुई जिसमें पहला सामुहिकता की सराहनीय पहल की थी जिसमें स्वयंसेवकों ने सिर्फ १३ दिन में ८१५ फुट लंबा पुल गंगा के दो तटों को जोडऩे के लिये तैयार कर दिया। वहीं दूसरी घटना में भगदड़ के कारण कुछ श्रद्धालुओं को अपने प्राण गंवाने पड़े। ऐसे में पहली घटना तो अखबार की सुर्खियां नहीं बटोर पाई लेकिन दूसरी घटना को खबरपालिका ने चटखारे देकर लोगों को बताया। ऐसे में समाज का मानस धर्म के  प्रति किस प्रकार का बनेगा यह तो खबरपालिका को सोचना चाहिए। मीडिया को समाज का  सही  विचार भी  प्रसारित करना चाहिए...

 गायत्री परिवार के स्वयंसेवकों ने बिना किसी सरकारी सहायता के १३ दिन में बना दिया गंगा नदी पर ८१५ फुट लंबा पुल। यह पुल गायत्री महाकुंभ के लिये गंगा के दोनों तटों पर बने सोलह नगरो को जोडने के लिये बनाया गया है। पुल के निर्माण कार्य में देश विदेश के करीब आठ सौ श्रद्धालुओं ने श्रमदान किया। यह पुल श्रीराम सेतु नाम से जाना जायेगा। अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुख डा. प्रणव पंड्या तथा अधिष्ठात्री शैल दीदी ने इस पुल का लोकार्पण के अवसर पर कहा कि यह पुल स्वयंसेवकों की श्रद्धा तथा भावनाओं के विलक्षण समन्वय का अनूठा उदाहरण है। इस अनूठी उपलब्धि से उत्साहित पुल का निर्माण कार्य देख रहे इंजीनियर महाकालेश्वर तथा हरिमोहन गुप्ता ने बताया कि एक महीने पहले जब वह इस जगह पर आये थे तो उनको पुल निर्माण करना बेहद कठिन कार्य लग रहा था। इस जगह न  केवल गंगा नदी का प्रवाह बहुत तेज था बल्कि यहां गहरायी भी काफी थी। तैराकों की मदद से भी ये काम संभव नहीं था। श्री गुप्ता का कहना था कि पानी की गहराई के बारे में नवम्बर के बाद ही पता चल पायेगा। तब बारिश भी हो रही थी। हमने सेतु निगम के इंजीनियरों की मदद भी लेनी चाही लेकिन पानी का तेज बहाव देखकर उन्होंने भी अपने हाथ खडे कर दिये। हमने भी हार नहीं मानी और गुरजी का नाम लेकर इस पुल को हरहालत में गायत्री महाकुंभ से पहले पूरा करने का संकल्प लिया। उन्होंने कहा, हमने लोहे के जाल के बक्से बनाये। उनमें गंगा नदी के पत्थर भरे। फिर इन बक्सों की मदद से १२ से १५ फुट लम्बे गार्डर रखे। उन पर लकडी के पांच इंच मोटे स्लीपर कसे और ८१५ फुट लम्बा पुल तैयार कर दिया। इस पूरे अभियान में १३ दिन लग। किसी दिन पुल निर्माण में आठ सौ लोगों ने श्रमदान किया। किसी दिन कुछ कम तो किसी दिन इससे ज्यादा हो गये। स्वयं सेवकों में महिलाएं, पुरुष, बुजुर्गों तथा बच्चों के अलावा विदेशों से आये लोग भी शामिल थे। इस पुल के निर्माण में लकडी से लेकर लोहे तक जितनी सामग्री लगी, वह उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम ने मुफ्त मुहैया करायी है। लोकार्पण कार्यक्रम में मौजूद उत्तर प्रदेश सेतु निगम के इंजीनियर राजेश चौधरी ने बताया कि कुंभ मेले के समय इस स्थान पर जो पुल निर्मित किया गया था उसमें पूरे ढायी महीने लगे थे और नदी का प्रवाह भी आधा था लेकिन १३ दिन के अंदर विपरीत हालात में इस पुल का निर्माण वाकई किसी सुखद आश्चर्य से कम नहीं है।

उन्होंने बताया कि यह पुल लालजीवाला नगर से गौरी शंकर क्षेत्र के चैतन्य महाप्रभु नगर, संत कबीरदास नगर, संत ग्यानेश्वर नगर, संत तुलसीदास नगर, संत रैदास नगर, संत सूरदास नगर, रामकृष्ण परमहंस नगर आदि को आपस में जोडेगा जिससे बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को यज्ञशाला, प्रवचन शाला तथा अन्य स्थानों पर जाने में कम दूरी तय करनी पडेगी।
श्री चौधरी ने बताया कि हरिद्वार में ६ से १० नवम्बर के दौरान होने वाले गायत्री महाकुंभ के लिये जो २४ नगर बसाये जा रहे हैं, उनको आपस में जोडने के लिये कुल पांच पुल बनाये जाने थे जिनमें से श्रीराम सेतु सहित चार पुल लगभग तैयार हो चुके हैं। बाकी एक पुल का निर्माण इसी सप्ताह पूरा हो जायेगा। लोकार्पण समारोह में शांतिकुंज के व्यवस्थापक गौरी शंकर शर्मा तथा केसरी कपिल सहित तमाम लोग मौजूद थे।  

भारतमाता : जगन्माता का दैवी आविष्कार



जननी जगन्माता की, प्रख्रर मातृभूमि की।
सुप्त भावना जगाने हम चले॥
हमारे लिए यह संपूर्ण भूमि तपोभूमि है। प्राचीन साहित्य में एक उद्बोधक प्रसंग आया है। एक बार एक प्रश्न किया गया कि योग्य फल की प्राप्ति हेतु तप और यज्ञ करने के लिए कौन-सा देश शुद्ध एवं पवित्र है? चरम सत्य की अनुभूति के लिए आदर्श स्थान कौन-सा है? उत्तर दिया गया कि इस उद्देश्य की सिद्धि के लिए ही स्थान उपयुक्त है, जहां कृष्णसार हिरन मिलते हैं। पशु-विज्ञान का कोई भी विद्यार्थी आप को बता सकता है कि इस विशिष्ट प्रकार का हिरन केवल हमारे देश में ही मिलता है।

हमारे देश का यह अनोखा स्वरुप प्राचीन परंपरा तक ही सीमित नहीं है। अधुनातन काल में भी नरेन्द्र (स्वामी विवेकानंद) का श्री रामकृष्ण से ऐतिहासिक मिलन का उदाहरण है। उन्होंने युवावस्था में ही, जब वे कालेज के विद्यार्थी थे, पौर्वात्य एवं पाश्चात्य दर्शनों में अवगाहन किया था, किन्तु उनकी जिज्ञासु आत्मा संतुष्ट नहीं हुई। अपने समय के अनेकों विद्वानों और पुण्य पुरुषों से मिले। वे भी उनकी आत्मा की पिपासा को शांत नहीं कर सके। उन्हें ज्ञात हुआ कि दक्षिणेश्वर मंदिर में एक परमहंस रहते हैं। वे उनके पास गए और जो प्रश्न वर्षों से उनके मस्तिष्क में मंडरा रहा था, उसे सीधे शब्दों में उनके समक्ष रख दिया-
महाशय, आपने ईश्वर को देखा है?’ एक क्षण के भी संकोच के बिना श्री रामकृष्ण परमहंस ने उत्तर दिया, ‘हां, मैं उसे ऐसे ही देखता हूं, जैसे यहां तुम्हें देख रहा हूं। मैं उसे तुम्हें भी दिखा सकता हूं। श्री रामकृष्ण ने नरेन्द्र के प्रति अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण भी की।

जैसा की हमें ज्ञात है, नरेन्द्र एक अति उच्च मेधा एवं प्रचंड इच्छाशक्ति संपन्न युवक थे। वे ऐसे नहीं थे, जिन्हें सम्मोहन द्वारा किन्हीं बातों पर अंधविश्वास करा लिया जाए, किन्तु उन्हें जब साक्षात् परमात्मा के सम्मुख खड़ा कर दिया गया, तब ईश्वर की सत्यता में विश्वास किए बिना वह नहीं रह सके। इस प्रकार की है ईश्वर भक्तों की हमारी जीवंत परंपरा, जिसने हमारे देश का नाम ईश्वरनुभूति की भूमि, धर्मभूमि एवं मोक्षभूति के रुप में सतत उन्नत रखा है।

कोई आश्चर्य नहीं की ऐसा देश, जिसकी धूलि का एक-एक कण दिव्यता से ओतप्रोत है, हमारे लिए पावनतम है, हमारी पूर्ण श्रद्धा का केन्द्र है और यह श्रद्धा की अनुभूति संपूर्ण देश के लिए है। उसके किसी एक भाग मात्र के लिए नहीं। शिव का भक्त काशी से रामेश्वरम् जाता है और विष्णु के विभिन्न आकारों एवं अवतारों का भक्त इस संपूर्ण देश की चतुर्दिक यात्रा करता है। यहि वह अद्वैतवादी है तो जगदगुरु शंकराचार्य के चारों आश्रम, जो प्रहरी के समान देश की चारों सीमाओं पर खड़े हैं, उसे चारों दिशाओं में ले जाते हैं। यहि वह शाक्त है-उस शक्ति का पुजारी जो विश्व की दिव्य मां है, तो उसकी तीर्थयात्रा के लिए बावन स्थान हैं, जो बलूचिस्तान में हिंगलाज से असम में कामाक्षीपर्यंत और हिमाचल प्रदेश में ज्वालामुखी से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक फैले हुए हैं। इसका यही अर्थ है कि यह देश विश्व की जननी का दिव्य एवं व्यक्त स्वरुप है।   

भ्रष्टाचार के खिलाफ है जनता



भारत में अब जनमानस सभी हदें पार कर चुकी भ्रष्टाचार के खिलाफ पूर्ण रूप से खड़ा दिखाई देने लगा है। इसकी रफ्तार सूचना के अधिकार अधिनियम लागू होने के बाद से बढ़ती जा रही है। लेकिन यूपीए - २ के घोटालों ने तो आम जनता को पूरी तरह से आक्रोशित कर दिया है। बाबा रामदेव, अण्णा हजारे और श्री श्री रविशंकर ने इस आक्रोश को एक मंच देने का कार्य किया है। यह सजगता सामाजिक और राजनैतिक संगठनों में भी अब दिखाई देने लगी है इसका सबूत है संघ द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रस्ताव पारित करना है। लेकिन इसके बावजूद राजनेताओं ने जिस तरह अपने आचरण से, अपने सभी विरोधियों को चुनाव लडऩे की खुली चुनौती दी है। उसके जवाब के रुप में भ्रष्टाचार के खिलाफ जन लोकपाल बिल के समर्थन में हुए सर्वे ने सबकी आंखें खोल दी है।
इस सर्वे में १६ लोकसभा क्षेत्र का जनमत संग्रह किया गया जिसमें ९५ फीसदी लोग जनलोकपाल के समर्थन में है, जहां अमेठी में ९८.३ फीसदी लोग, मैनपुरी में ९१.८ फीसदी लोग, छपरा में ९४.३ लोग और रायबरेली में ९९.९ फीसदी लोग जनलोकपाल के समर्थन में हैं।
इस प्रकार इस सर्वे ने जनमन के विचार को पूरे देश के सामने लाकर नेताओं को अपनी निंद्रा तोडऩे की राह दिखाई है। इसके बावजूद यदि राजनेता धृतराष्ट्र की तरह आंख में पट्टी बांधे रहेंगे तो निश्चित ही परिवर्तन होकर रहेगा। कुछ राजनेताओं द्वारा जिस प्रकार से बेसिर पैर की बयानबाजी से समाजसेवी संगठन संघ को बदनाम किया जा रहा है, यह केवल भ्रष्टाचार, महंगाई और आतंकवाद जैसे देश की गंभीर समस्याओं से आम जनता का ध्यान हटाने और वोट बैंक की राजनीति की साजिश के तहत किया जा रहा है।



टेलीविजन के संस्कार से बढ़ते बच्चे


  
पिछले दिनों एक समाचार पढ़ा कि मुम्बई के कुछ विद्यालयों में छोटे-छोटे बच्चे एक-दूसरे का अभिवादन हाथ मिलाकर, गले लगाकर और चुम्बन लेकर भी कर रहे है। बच्चों में बढ़ती इस प्रवृत्ति से शिक्षक परेशान है। नन्हे-नन्हे बच्चे वयस्कों जैसा व्यवहार करें, तो यह पूरे समाज के लिए चिंता की बात होनी चाहिए। यह भी विचार करना चाहिए कि ये बच्चे चुम्बन की ओर कैसे बढ़े? इसके लिए बहुत हद तक संयुक्त परिवार का विखण्डन जिम्मेदार है।
यह बात अब बच्चों तक ही सीमित नहीं है। टेलीविजन के प्रभाव ने पूरे घर के तानेबाने को परिवर्तित करके रख दिया है। आज हमारा उठना, बैठना, खाना-पीना और रहन-सहन पूरी तरह से टेलीविजन के प्रभाव में कैद होकर रह गया है। ऐसे में संस्कार की बातें बच्चों के बाल मन पर संस्कारों की छाप कैसे आयेगी?
इसके आगे हम विज्ञापनों की ओर जायें तो पता चलेगा कि विज्ञापन की आड़ में नारी देह का प्रदर्शन खुले आम इस प्रकार हो रहा है जैसे  हम कोई वयस्क फिल्म का दृश्य देख रहे हो। आखिर इन चैनलों को नियंत्रित करने वाली संस्था अपने दायित्वों को क्यों नहीं निभा पा रही है..?
भूमंडलीयकरण की तेज आंधी में संयुक्त परिवार उड़ गये। पारिवारिक ढांचा बिखर गया है, आपसी मेल-मिलाप छूटता जा रहा है, इन सबका सर्वाधिक प्रभाव बच्चों पर पड़ा है। नाना-नानी, दादा-दादी की गोद में किलकारियां भरता शैशव और उनकी बांहों से लिपटकर कहानियां सुनने वाला बचपन टी.वी. के सहारे विकसित हो रहा है। उदारीकरण के दौर में उपभोक्ता संस्कृति विकसित हुई है जिसके कारण आर्थिक दबाव बढ़े हैं। इन दबावों के चलते माता-पिता भी बच्चों के बचपन से अनुपस्थित होते जा रहे हैं। ऐसे में बच्चों की दुनिया टी.वी. वाडियों गेम्स आदि पर निर्भर हो जाती है। ऐसे वातावरण में बच्चों का कैसा विकास हो रहा है, इस पर सोचने को फुर्सत किसी के पास नहीं है। जहर घुल रहा है। बच्चों का कोमल मन-मस्तिष्क कच्ची मिट्टी सा होता है जैसा ढाला जाए वैसा ही बन जाता है।
अभद्रता की हदें पार करते टी.वी. कार्यक्रमों को देखते हुए ही अभिभावक फुर्सत के क्षण  बिताते हैं या यूं कहिए वे इन कार्यक्रमों के लती हो गए है। ऐसे में बच्चों से कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वे टी.वी. ना देखें। चिन्ता बड़ों की नहीं है, अवयस्क मस्तिष्क यानि बच्चों की है। घर के बड़े जिन अधखिले पौधों को चारदीवारी के बाहर के दुष्प्रभावो से बचाकर उनके खिलने के लिए वक्त का इंतजार करते थे, वे घर की चारदीवारी में ही समय से पहले वयस्क हो रहे हैं। अपरिपक्व, अविकसित मस्तिष्क के साथ वयस्क बनने की चाहत बुलंद हो रही है। बच्चों के दिमाग पर विज्ञापनों तथा टी.वी. द्वारा परोसी जा रही अश्लीलता और अभद्रता के लगातार होते हमलों के दौर में हम उनसे संस्कारित होने की अपेक्षा कैसे कर सकते है? समाज और माहौल उन्हें जो दे रहा है, वही तो वे लौटायेंगे।
दूसरे, पश्चिमी जीवनशैली को आधुनिकता का पर्याय मान लिया गया है। आधुनिक कहलाने की चाह में माता-पिता में इस अपनाने की होड़ लगी है। माता-पिता बच्चे को हाथ जोडक़र अभिवादन करने या पैर छूकर आशीर्वाद लेने के बजाए हवाई चुम्बन करना सिखाते हैं और बच्चे के ऐसा करने पर खुश होते हैं। बच्चों का बालमन चुम्बन और हवाई चुम्बन को विभाजित करती उस हल्की सी रेखा को समझ पाने में असमर्थ होता है।
सोचना अभिभावकों को है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि हम अमरीकी या पश्चिमी जीवनशैली अपनाने की अंधी होड़ में आने वाली पीढ़ी का भविष्य अंधेरे में धकेल रहे है? अभी भी वक्त है भागदौड़ और आपाधापी की तेज रफ्तार जिन्दगी में से चन्द क्षण फुर्सत के इन नन्हें-मुन्नों के लिए निकालें, क्योंकि बच्चों के लिए कल महत्वपूर्ण नहीं होता, आज होता है।      

यदि पाकिस्तान नासूर को खत्म कर दिया.. होता तो !




मुंबई में २६ नवंबर को हुए हमलों के बाद तत्कालीन विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी के कड़े शब्दों से पाकिस्तान इतना घबरा गया था कि उसने चीन से लेकर अमेरिका तक को कह दिया कि भारत ने युद्ध का फैसला कर लिया है। तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री कोंडोलीजा राइस के मुताबिक इस्लामाबाद ने व्हाइट हाउस को सूचित किया कि भारत ने उन्हें युद्ध का फैसला करने के लिए चेताया है। व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति के एक सहायक ने चिंतित हो कर राइस को इसकी सूचना दी और राइस भी परेशान हो गईं तथा उनके मुंह से निकला क्या ..?
काश यह काम हो गया होता तो आज भारत के नागरिक चैन से रहते होते। पाकिस्तान को समाप्त करने की कई बार मौका मिला लेकिन कमजोर नेतृत्व ने निर्णय करने में चूक  गए । इस काम में सेना तैयार था, लेकिन राजनीतिक नेतृत्व कमजोर था। आज जितने भी आतंकवाद हमला हो रहे इस राजनीतिक अकुशलता के कारण है। १९४८ में जब पाकिस्तान ने कबीलों को पैसा देकर कश्मीर में गुपचुप हमला किया था । तब महाराजा हरिसिंह जी कश्मीर का भारत में विलय किया लेकिन नेहरु उस समय कश्मीर में शेख अब्दुल्ला को राजा बनने के चक्कर में कश्मीर समस्याग्रस्त हो गया। मैने  सुरेश चिपलूनकर की ब्लॉग में पढ़ा है कि नेहरु का खानदान मुस्लिम था। इलाहबाद में आकार अपने को कश्मीर के पंडित बन गए। इंदिरा गाँधी फारसी थी, राजीव गांधी ईसाई हो गये और उनका पूरा खानदान आज ईसाई है।
दूसरी बार पाकिस्तान ने फिर से भारत पर हमला किया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने देश कि आम जनता को आह्वान कर देश को एक जुट कर पाकिस्तान को जबाब दिया। वे कहा करते थे कि मैं भारतीय टैंकमें बैठाकर लाहोर जाऊँगा। कांग्रेसियों ने सत्ता के लिए अपने प्रधानमंत्री को गलत सलाह दिया। सोवियत संघ ने देश के प्रधानमंत्री को ताशकंद में भारत और पाकिस्तान से समझौता करने को बुलाया। तब संघ के प्रमुख गोलवलकर जी ने जाने को मना किया था लेकिन लाल बहादुर ने ताशकंद गए। ताशकंद में हमारे देशभक्त प्रधानमंत्री से गलत समझौता कराया गया। यह जानते हुए कि भारत कि जनता नहीं मानेगी, इसलिए उन्होंने अपना प्राण ताशकंद में त्याग दिया।   
१९७१ में पाकिस्तान ने फिर हमला कर दिया। इस समय इन्दिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थी। इंदिरा जी के बारे में पहले हम विस्तार से जान लें कि उनका खानदान मुस्लिम था, मोतीलाल नेहरु इलाहाबाद में आकर अपने को कश्मीर पंडित कहलाने लगे। इंदिरा गांधी ने एक मुस्लिम से प्रेम किया लेकिन इज्जत बचाने के लिए फिरोज को गाँधी जी ने अपना दत्तक पुत्र बना कर विवाह करा दिया था।   १९७१ में जब पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया तो हमारे देश की सेना ने इतिहास रच दिया पूर्वी पाकिस्तान को जीत लिया। पाकिस्तान की १ लाख सेना ने भारत के सामने आत्मसमपर्ण किया।  शांति दूत बनने के आस में इंदिरा गाँधी ने शिमला के समझौता में जीती बाजी एक टेबल पर हार गयी। एक परिवार के मुस्लिम परस्ती ने देश को कितना बड़ा धोखा दिया है हम आज सोच नहीं सकते है ।
 तीन बार हार के बाद पाकिस्तान ने आंतकवाद और उग्रवाद का नया रूप लेकर लडऩा प्रारंभ किया लेकिन हमारे नेता शुतुरमुर्ग के समान आँख बंद किये हुये रहे। अब यह आंतकवाद ने भारत कि आम जनता के लिए नासूर बन गया है। हमने जितनी भी लड़ाई लड़ी है उससे कही अधिक लोगो की जान आतंकवाद ले चुका है व हमे आर्थिक हानि भी उठानी पड़ी है। पंजाब के लोगो को अलग खालिस्तान के नाम से बरगलाकर १० वर्ष तक खून की नदिया पंजाब में बहाई गयी। इसी प्रकार कश्मीर में २८ वर्षों से खुनी खेल चल रहा है। जिसका अंत होता नही दिखता है। चौथी बार युद्ध के बजाय पाकिस्तान की सेना ने आतंकवादियों को नार्दन लाइट इन्फैंट्री के नियमित सैनिकों के भेष में लाइन ऑफ कंट्रोल पार कर भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ कराया। इसकी वजह थी पाकिस्तान सेना के दो नापाक मकसद। पहला द्रास और कारगिल सेक्टर की सामरिक महत्व की ऊँची चोटियों पर कब्जा कर लेह, सियाचिन की आपूर्ति को बाधित करना। दूसरा संयुक्त राष्ट्र में एक बार फिर कश्मीर मुद्दे को उठाकर हताश हो रहे जेहादियों में नई जान फूँकना । कारगिल में बर्फ से ढंके नियंत्रण क्षेत्र पर घुसपैठियों का कब्जा था। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार पाकिस्तानी सेना की मदद से घुसपैठियों ने फरवरी १९९९ से ही इन क्षेत्रों पर कब्जा जमा लिया था। क्षेत्र में भारी बर्फ जम जाने के कारण भारतीय सेना जाड़ों के मौसम में अपने सैनिकों को वहां से हटा लेती थी और दुश्मनों ने इसी का फायदा उठाया। कारगिल में जब घुसपैठियों के कब्जे की बात खुली तो भारतीय सेना ने इसके जवाब में मई से कार्रवाई शुरू की। भारतीय थल सेना के लिए यह युद्ध आसान नहीं था क्योंकि उन्हें पर्वतीय क्षेत्र में ऐसे स्थलों पर लडऩा था। जहां दुश्मन पहाड़ की चोटियों पर कब्जा जमाए बैठा था। युद्ध के शुरू में भारतीय थलसेना को अपने कुछ जवानों का बलिदान देना पड़ाए लेकिन बाद में जब वायुसेना ने थलसेना के साथ मोर्चा संभाला तो पाकिस्तानी सेना और घुसपैठियों के पैर उखडऩे लगे और जल्द ही भारतीय सेना ने पूरे कारगिल क्षेत्र पर भारतीय झंडा फहरा दिया। कारगिल युद्ध में भारतीय पक्ष की ओर से आधिकारिक रूप से ५३३ लोगों की जान तथा १३०० सैनिक घायल हो गये । पाकिस्तान ने शुरू में तो अपने ज्यादा लोगों के मारे जाने की बात को नहीं कबूला, लेकिन बाद में तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने स्वीकार किया कि उनकी ओर से करीब ४००० लोग मारे गए।
रक्षा विश्लषेक ब्रिगेडियर सेवानिवृत्त, अरुण वाजपेई ने स्वीकार किया कि यदि भारतीय सेना बेहतर तालमेल के साथ काम करती और हमारे देश का राजनीतिक नेतृत्व फैसले लेने में शीघ्रता दिखाता तो कारगिल युद्ध में हम कम जानें गंवाते। उन्होंने कहा कि हमें कारगिल युद्ध के सबक को कभी नहीं भुलाना चाहिए। इस लड़ाई में पाकिस्तान की सीमा छोटा करने का मौका दुबारा हमारे हाथ से निकल गया। कारगिल विजय को यदि हम आगे और बढाते तो अधिकृत कश्मीर भी भारत के पास होता तथा कश्मीर कि समस्या को खत्म किया जा सकता था। अफगानिस्तान से हम सीधे जुड़ जाते और चीन का यहाँ दखल खत्म हो जाता। लेकिन हमारी चूक कितना घातक हुआ हम महसूस कर सकते है।
संसद पर हमला के बाद पुन:स्थिति हमारे पक्ष में था। देश के प्रधानमंत्री ने लड़ाई के संकेत दिए और देश कि सेना ने सीमा पर मोर्चा संभाल लिया था। लेकिन देश कि सत्ता ने न जाने, यूटर्न क्यों लिया? यदि सीमा पर दो-दो हाथ में हो जाता तो आज हम करोड़ों रूपये एवं जानें जाने से बच सकते थे। उच्चतम न्यायालय ने संसद के हमलावरों को फांसी कि सजा सुनाया।
इन हमला करने वालो को वोट कि राजनीति के कारण हम उन्हें बिरयानी खिला रहे है। हमारे देश के प्रधानमंत्री जी नेन जाने किसकी सलाह पर हमला नहीं किया। हमारे प्रधानमंत्री जी आकर इस मौके से चूक गए। जब मुम्बई पर हमला हुआ तो टीवी पर सब कुछ दिखा रहा था। देश कि मिडिया ने देश के दुश्मनों तक पूरा खबर पहुचती रही वह लोग राष्ट्र धर्म नहीं निभाया। अब अपने देश कि राजनीतिक नेतृत्व विदेशियों के पास है। इससे क्या उमीद किया जा सकता है। जिस प्रकार अफजल गुरु और कसाब को बिरयानी खिलाया जा रहा है। आज तक कोई इटली वाले ने एकभी लड़ाई नहीं जीती है तो वह क्या युद्ध कर सकते है।
सत्ता के लिए कोई भी समझौता नही किया जाना चाहिए। राइस ने अपनी नवीनतम किताब नो हाई ऑनर्सष् में लिखा है कि पाकिस्तान की ओर से आ रही अफवाहों भारत हमले की पूरी तैयारी कर लिया ह। पाकिस्तान डर गया था वह किसी भी तरह से युद्ध से बचना चाहता था। यदि प्रणव मुखर्जी में कुशलता होती तो वह कर कुछ सकते थे। लेकिन ये लोग रात में सोते लोगों पर लाठीचार्ज, देश के लिए जनलोकपाल पर विवाद पैदा करना, ईमानदार लोगों को परेशान कर सकते लेकिन देश हित युद्ध नही कर सकते।

स्वास्थ्य - बिमारियां दूर करती है खास पत्तियां



चेहरे के दाग-धब्बे और मुंहासे कुछ ही दिनों में फीके पड़ जाएंगे और बालों में एक्सट्रा शाइन आ जाएगी। झुर्रियों का तो सवाल ही नहीं उठेगा। ये कमाल करती हैं कुछ खास पत्तियां। एक कदम अपने बगीचे में तो रख कर देखिए। घर के इर्द-गिर्द जाने कितने ही ऐसे पेड़-पौधे होते हैं, जिनके पत्ते आप अपने सौंदर्य निखारने के लिए इस्तेमाल में ला सकती हैं। ज्यादातर हर्बल सौंदर्य प्रसाधनों में इन्हीं पत्तियों का प्रयोग होता है। क्यों न आप भी इनसे लाभ उठाएं।

तुलसी :- यह चेहरे की मृत त्वचा को निकाल कर मुलायम बनाती है। इसके सेवन से दाग-धब्बे दूर होते हैं। रोज इसकी ७ पत्तियां खाई जाएं, तो माहवारी के दिनों में पेट दर्द में आराम पहुंचता है।
नीम :-  नीम की पत्तियां खोपड़ी की त्वचा और बालों को आश्चर्यजनक रूप से लाभ पहुंचाती है। मुंहासों और प्रदूषण से प्रभावित त्वचा पर यह रामबाण का काम करती हैं। मुल्तानी मिट्टी के पैक में नीम की 3-4 पत्तियां पीस कर डालें। नीम की पत्तियां दांतों के दर्द में भी आराम पहुंचाती हैं। घमौरियां होने पर नीम की पत्तियों को उबाल कर उस पानी से नहाएं। राहत मिलेगी।
पोदीना :- पोदीने की भीनी महक के कारण मन तरोताजा हो उठता है और मन की थकान मिट जाती है। इसकी पत्तियां तैलीय त्वचा के लिए बढिय़ा एस्ट्रिंजेंट का काम करती हैं। इन पत्तियों से बने फेस पैक से मुंहासों के दाग आसानी से मिट जाते हैं। ये दांत के दर्द को भी दूर करने में सहायक होती है।
मेंहदी:- मेंहदी की पत्तियां बालों की प्राकृतिक कंडीशनिंग करती हैं। तलवों के नीचे जलन होने पर भी इन्हें लगाया जाता है।
करी पत्ता :- काले घने और चमकीले बालों के लिए करी पत्ते का हेअर पैक काफी अच्छी होता है। इससे बाल समय से पहले सफेद होने से बच जाते हैं। यह बालों की जड़ों को मजबूत करता है।
मेथी:-  प्राचीन समय से मेथीदाने और मेथी की पत्तियों को बालों और त्वचा को निखारने में इस्तेमाल किया जाता रहा है। मेथी की पत्तियों को पीस कर बालों में लगाने से पुरानी से पुरानी रूसी से छुटकारा मिलता है, बालों की जडें मजबूत होती हैं और बालों का झडऩा भी रुकता है।
सेज (कपूर का पत्ता) :- यह एक अच्छा एस्ट्रिंजेंट हैं, इसमें एंटीसेप्टिक से भरपूर भी माना जाता है। मुंहासों के लिए तैयार फेस पैक में 2-3 बूंदें डालकर लगाएं। मुंहासे बहुत जल्दी ठीक हो जाएंगे।
ट्री-टी :-  इन पत्तियों की काफी तीखी महक होती है, जो आपके मन को उत्साहित करती है। इसमें एंटीबायोटिक गुण होता है, जो मुंहासे, रूसी और त्वचा की बीमारी से दूर रखता है।
यूकिलिप्टस :- यूकिलिप्टस की पत्तियों की भी काफी तेज महक होती है। इन पत्तियों को पानी में उबाल लें। उबले पानी से भाप लें। सर्दी-जुकाम से भी छुटकारा मिलता है।
हिबिसकस की पत्तियां :- हिबिसकस (गुड़हल) की पत्तियों की पीस कर बालों में लगाएं। यह बेहतर कंडीशनर का काम करती हैं। इनकी पत्तियों को सुखा कर नारियल के तेल में भी भिगो कर रखें। बाल काले व घने बनेंगे और टूटेंगे भी नहीं। 
लेमनग्रास:- इस पत्तियों की महक कुछ खटास लिए हुए होती है। त्वचा पर क्लींजिंग का काम करती हैं, जिससे मुंहासे नहीं होते। मुल्तानी मिट्टी से बने फेस पैक में लेमनग्रास की पत्तियां पीस कर डालें और हफ्ते में 2 बार इस पैक का इस्तेमाल करें। जिन युवतियों के तैलीय बाल हैं, वे मेंहदी के पत्तों में लेमनग्रास की 1-2 पत्तियां पीस कर डालें।
थाइम :- थाइम की पत्तियां बढिय़ा क्लींजर का काम करती है। कुछ पत्तियों को चबाएं और पानी से कुल्ला करें। ये एंटीबैक्टीरियल माउथ वॉश का काम करेंगी।

अर्जेन्टीना का बड़ा धन्ना सेठ हिन्दुस्तानी



ब्यूनस आयर्स। भारतीय मूल के किसान सिम्मरपाल सिंह अर्जेन्टीना के सबसे बड़े धन्ना सेठ बन गए हैं। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार सिम्मरपाल ने कुछ साल पहले एक खेत में मूँगफली उगानी शुरू की थी और अब वे दक्षिण अमेरिका में धान तथा मक्का की खेती करने वाले सबसे धनी सेठ बन गए हैं। अर्जेन्टीना में उन्हें पीनट प्रिंसके नाम से जाना जाता है। अर्जेन्टीना, उरुग्वे तथा पैराग्वे में भारतीय राजदूत आर. विश्वनाथ ने बताया कि सिम्मरपाल सिंगापुर में अपनी एक कंपनी ओलमचलाते हैं जिसमें भारतीय मूल के लोग काम करते हैं। उन्होंने बताया कि वे विश्व के प्रमुख चावल व्यापारियों में से एक हैं। सिम्मरपाल के पास अब 20 हजार हेक्टेयर मूँगफली के खेत हैं। वे 10 हजार हेक्टेयर जमीन पर सोया तथा मक्का उगाते हैं तथा ऐटर रियोस प्रांत के कोनकोरडिया में 1700 हेक्टेयर क्षेत्र में धान की खेती करते हैं। उन्होंने बताया कि सिम्मरपाल ने सबको अपने भारतीय अंदाज में किए जाने वाले कठोर परिश्रम से प्रभावित किया है तथा इसके साथ ही शांत लातिन शैली में अपने अर्जेन्टीना के कर्मचारियों की देखभाल भी की है।

लड़कियों के जींस-टॉप पहनने पर रोक



मुजफ्फरनगर। उत्तर प्रदेश के नवगठित जिले प्रबुद्धनगर में लड़कियों के जींस, टॉप पहनने तथा मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने पर उसके परिवार वालों को पंचायत में पेश किया जाएगा और सजा दी जाएगी। ब्राह्मण खाप पंचायत की सोमवार को यहाँ हुई सभा में लड़कियों के जींस और टॉप पहनने तथा मोबाइल फोन के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया गया। श्री रामशरण शर्मा की अध्यक्षता में हुई पंचायत में कहा गया कि जींस, टॉप पहनने तथा मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने से लड़कियों में बेअदबी बढ़ रही है। पंचायत ने कहा यदि लड़कियों पर इस मामले में पाबंदी नहीं लगाई गई तो उनके परिजनों को पंचायत में आना होगा और उन्हें सजा का भी सामना करना होगा। -साभार, नई दुनिया

कश्मीर में राजनीतिक खेल



जम्मू-कश्मीर मं मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला अपनी गिरती साख को बचाने के लिए वोट राजनीति का खेल खेलते हुए राष्ट्रहित को दांव पर लगाने पर आमादा है और अपनी चुनावी वादा पूरा करने के नाम पर कश्मीर घाटी से सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम हटवाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। इस अधिनियम से प्रभावित कुछ क्षेत्रों को उन्होंने अशांत क्षेत्र के दारये रसे बाहर लाने और वहां से विशेषाधिकार अधिनियम हटवाने की फिर से घोषणा की है। इसका सीधा अर्थ है कि वे अलगाववादियों के आगे घटुने टेकते हुए जिहादी आतंकवाद के खतरे की अनदेखी कर रहे है। राज्य में जिहादी आतंकवाद की नाक में नकेल कसने का काम को मुख्य रूप से सेना बल ही कर रहे है और इसीलिए वे जिहादी आतंकवादियों के हितैषियों व पाकिस्तान परस्त अलगाववादी नेताओं की आंखों में खटकते हैं। ये नेता गाहे-बगाहे सशस्त्र बलों व सेना को तो अमानवीय व क्रूर बताकर उनका हौवा खड़ा करते रहते हैं, जबकि नृशंस आतंकवादी घटनाओं को हमेशा नरजअंदाज करते है। उनकी नजर में सिर्फ देशद्रोहियों व भारत विरोधी आतंकवादियों के ही मानवाधिकार हैं, इनकी हैवानियत से त्रस्त कश्मीरी हिन्दुओं व बेमौत मारे जा रहे नागरिकों और उनके पीडि़त परिजनों के कोई मानवाधिकार उन्हें नहीं दिखाई देते हैं। उमर अब्दुल्ला अपने पिता व दादा की राष्ट्रघाती राजनीति विरासत को पोसते हुए सिर्फ अपनी गद्दी की चिंता में निमग्न है और राष्ट्रहित के विपरीत जाकर कभी भारत में कश्मीर के विलय पर प्रश्न उठाते हैं, तो कभी राज्य को स्वायत्ता दिए जाने व सशस्त्र बल विशेषाधिकार  अधिनियम समाप्त करने की मुहिम चलाते है। वे भूल जाते है कि वह भारत संघ के एक संवैधानिक दायित्व को संभालने वाले व्यक्ति है। कश्मीर उनकी जागीर नहीं है, जहां उनकी मनमानी चलेगी और वे भारत विरोधी गतिविधियों को संरक्षण देते रहेंगे।

                         

गंभीर ने किया इतना बड़ा दान, सब रह गए हैरान



नई दिल्ली। टीम इंडिया के सलामी बल्लेबाज गौतम गंभीर ने यहां अंगदान की शपथ लेते हुए देशवासियों से इस अभियान से जुडऩे की मार्मिक अपील की। गंभीर ने अपोलो ट्रांसप्लांट इंस्टीटच्यूट के अभियान गिफ्ट ए लाइफ की वेबसाइट की शुरुआत करने के बाद संवाददाताओं से कहा कि मैंने अपने अंग दान करने की शपथ ली है।
उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूं कि देश के अधिक से अधिक लोग इस अभियान से जुड़े ताकि कई लोगों की ङ्क्षजदगी में रोशनी लाई जा सके। इस बारे में लोगों में जागरूकता फैलाने की जरूरत है। देश में लाखों लोगों को अंग प्रत्यारोपण की जरूरत है लेकिन उस हिसाब से अंग उपलब्ध नहीं हैं।

मैं मीडिया से भी अनुरोध करता हूं कि वह इस संबंध में देश में जागरुकता फैलाने में अहम भूमिका निभाए। यह पूछने पर कि क्या वह साथी क्रिकेटरों को भी इस अभियान से जोडेंग़े। बाएं हाथ के बल्लेबाज ने कहा कि क्रिकेटर ही क्यों मैं सभी देशवासियों से इस अभियान से जुडने की अपील करता हूं।

गंभीर ने कहा कि अंगदान का फैसला मेरा निजी फैसला था। मुझे लगता है कि हर किसी को यह शपथ लेनी चाहिए।

देश से बड़ा नहीं है भारतीय क्रिकेट बोर्ड: कपिल


 विश्व कप विजेता कप्तान कपिल देव ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) को एक बार फिर आड़े हाथों लेते हुए आज कहा कि बोर्ड देश से बड़ा नहीं है और उसे प्रस्तावित खेल विधेयक के दायरे में आना चाहिए। कपिल ने यहाँ कहा कि सरकार से बड़ा कोई नहीं है चाहे वह क्रिकेट बोर्ड ही क्यों न हो। किसी के निजी हित देश से उपर नहीं हो सकते। बीसीसीआई को अपना संकीर्ण दृष्टिकोण बदलना चाहिए।

उन्होंने कहा कि जब किसी को दर्द होता है तो उसे डाक्टर की जरूरत पड़ती है वैसे ही खेलके प्रशासन खिलाडिय़ों की जरूरत होती है। यह देख कर अजीब लगता है कि खिलाडिय़ों को ही खेल प्रशासन में आने से रोका जा रहा है। कपिल ने कहा हमें पहला ऐसा खेल मंत्री मिला है जो खिलाडिय़ों की भलाई की बात कर रहा है लेकिन ऐसे लोग भी हैं जो तीस चालीसवर्षों से एक पद पर जमे बैठे हैं और खेल मंत्री की पहल का विरोध कररहे हैं। उन्होंने साथ ही कहा क्रिकेट बोर्ड देश के अन्य खेल महासंघों सेअलग नहीं है और इस खेल विधेयक को अजय माकन बनामबीसीसीआई के नजरिए से भी नहीं देखा जाना चाहिए। देश के ६६ खेल महासंघों की तरह बीसीसीआई भी एक खेल महासंघ है और वहआरटीआई के दायरे से अलग नहीं रह सकता।

हिन्दुओं के हत्यारों को दंडित करे पाक



वाशिंगटन। अमरीका ने धार्मिक, नस्ली एवं दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय के विरुद्ध सभी प्रकार की हिंसा की निंदा करते हुए पाकिस्तान से सिंध प्रांत में तीन हिन्दुओं की हत्या में शामिल लोगों को सजा देने को कहा है। विदेश विभाग की ओर जारी बयान में कहा गया है, हमने इन हत्यारों की रपट देखी है। हमें मालूम है कि जांच चल रही है। हम आशा कर रहे हैं कि दोषियों को सजा मिलेगी। बयान में कहा गया है कि अमेरिका धार्मिक, नस्ली एवं अल्पसंख्यकों के साथ होने वाली सभी तरह की हिंसा की निंदा करते हैं। विदेश विभाग की वार्षिक मानव अधिकार रिपोर्ट एवं अंतर्राष्ट्रीय  धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट में उल्लेखनीय साम्प्रदायिक हिंसा पर ध्यान आकृष्ट करते हैं। पाकिस्तान के सिंध प्रांत स्थित शिकारपुर कस्बे के निकट तीन हिन्दू चिकित्सकों सहित चार लोगों की हत्या हो गई थी। अधिकारियों को आशंका है कि यह घटना साम्प्रदायिक हिंसा का परिणाम है।

पाकिस्तान में हिन्दुओं की हत्या से आक्रोश



पाकिस्तान के सिंध प्रांत में तीन हिंदुओं की हत्या पर पाक मानवाधिकार आयोग ने नाराजगी जताई है। आयोग का कहना था, इन हत्याओं से ऐसा लगता है कि अपराधी समझ बैठे हैं, गैर मुसलिमों की हत्या कर वे बच जाएंगे। पाक के सिंध प्रांत में  तीन डॉक्टर भाइयों की हत्या से अल्पसंख्यक हिंदुओं में चिंता है और वे हत्यारों को सजा दिलाने की मांग कर रहे हैं।
रिपोर्ट के अनुसार शिकारपुर जिले में हिंदुओं और मुसलिम संप्रदाय के कुछ लोगों के बीच हुए विवाद के बाद अज्ञात हमलावरों ने तीन भाइयों को गोलियों से भून डाला था। आयोग अध्यक्ष जोहरा यूसुफ का कहना था कि पाक मानवाधिकार आयोग इन हत्याओं से स्तब्ध है और हिंदू समुदाय में आक्रोश की भावना को समझता है। पुलिस ऐसा होने से रोकने या हत्यारों को गिरफ्तार करने में नाकाम रही जबकि उन्हें हिंसा फैलने की आशंका के बारे में सूचित कर दिया गया था।
सुरक्षा बल नहीं करते मदद
बयान में कहा गया कि तीन हफ्ते पहले स्थानीय मुसलिम कबीले के साथ विवाद हो जाने पर शिकारपुर में हिंदू समुदाय के लोगों को भयंकर परिणाम भुगत लेने की धमकी दी गई थी। इसके बाद हिंदुओं ने पुलिस से सुरक्षा की मांग भी की थी। आयोग ने कहा कि यह चिंताजनक है कि स्थानीय पुलिस स्टेशन से कुछ ही मीटर की दूरी पर तीन भाइयों की हत्या कर दी गई। इसके अलावा हिंदुओं ने शिकायत की है कि मुसीबत के समय मदद मांगने पर सुरक्षा बल के जवान पीडि़तों के बजाए अपराधियों की मदद करते हैं।
गिलानी से न्याय दिलाने की मांग
मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि पिछले कुछ सालों में आस्था आधारित हिंसा में बढ़ोत्तरी हुई है। आयोग ने अधिकारियों से यह महसूस करने को कहा है कि वे कहां पर धार्मिक अल्पसंख्यकों के मूल अधिकारों बल्कि उनके जीवन की रक्षा कर पाने में भी विफल रहे है। आयोग ने पाक पीएम यूसुफ रजा गिलानी के हत्याओं की निंदा करने का स्वागत किया है लेकिन पीडि़तों को न्याय दिलाने की मांग की है।
विश्व हिंदू परिषद की जम्मू प्रदेश इकाई ने पाकिस्तान में चार हिंदू डॉक्टरों की हत्या के मामले में यूपीए के स्टेंड पर नाराजगी जाहिर की है। विहिप के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. रमाकांत दुबे ने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और विदेश मंत्री एमएम कृष्णा की भूमिका पर भी सवाल उठाए। उन्होंने तुरंत इस मामले में यूपीए सरकार से दखल देने की मांग की है। ताकि पाकिस्तान में हिंदुओं के सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित की जा सके।
डॉ. रमाकांत दुबे के मुताबिक 1947 में देश के विभाजन के समय भारत में मुसलमानों की संख्या पौने चार करोड़ थी, जो अब बढक़र 16 करोड़ से भी अधिक हो गई है। वहीं, पाकिस्तान में हिंदुओं की संख्या नब्बे लाख थी, जो अब घटकर सिर्फ दस लाख रह गई है। जम्मू कश्मीर में मुसलिम समाज की जनसंख्या में अप्रत्याशित इजाफा हुआ है। इससे स्पष्ट होता है कि मानवाधिकारों का हनन पाकिस्तान में हुआ है। जबकि, जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान मानवाधिकार हनन के आरोप लगातार लगाता रहा है। डॉ. रमाकांत दुबे ने विदेश मंत्री एसएम कृष्णा द्वारा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री गिलानी को करांची में हिंदुओं की हत्याओं के बावजूद शांती पुरुष करार दिए जाने की भी कड़े शब्दों में आलोचना की है।
विपिह की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष डॉ. रमाकांत दुबे ने पाकिस्तान में हिंदुओं की हत्या के मामले में अमेरिका द्वारा इख्तियार किए गए कड़े रुख का स्वागत किया। अमेरिका न े इस संबंध में तुरंत पाकिस्तान से कार्रवाई कर हत्यारों को बेनकाब उनको सजा देने की मांग की है। डॉ. दुबे ने कहा कि इस संबंध में भारतीय सरकार द्वारा चुप्पी साधना बर्दाश्त से परे है। केंद्र सरकार को आगाह किया कि चेत जाए।

हिन्दू कभी अल्पसंख्यकों पर अत्याचार नहीं कर सकता



हिन्दू कभी भी आतंकवादी नहीं हो सकता और न ही वह कभी अल्पसंख्यकों पर अन्याय-अत्याचार कर सकता। उक्त उद्गार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री सुरेशराव जोशी उपाख्य भैयाजी जोशी ने गत दिनों सिल्वर में सम्पन्न हुई संगोष्ठी को संबोधित करते हुए व्यक्त किये। अ.भा. अधिवक्ता परिषद की ओर से आयोजित संगोष्ठी का विषय साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयक था। इसमें बड़ी संख्या में अधिवक्ता तथा शहर के प्रबुद्ध गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।

श्री भैयाजी जोशी ने आगे कहा कि साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयक कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने तैयार किया है, जिसमें हिन्दू विरोधी शामिल है। उन्होंने कहा कि यह पक्षपातपूर्ण और खतरनाक विधेयक इस मान्यता के आधार पर बनाया गया है कि हमेशा हिन्दू ही आक्रमण करता है और किसी मुस्लिम और ईसाई को ही पीड़ा उठानी पड़ती है। हिन्दू समाज ही साम्प्रदायिक हिंसा के लिए जिम्मेदार होता है इसलिए उसे ही कड़ी सजा मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह कानून मुख्यत: बहुसंख्यक हिन्दू समाज पर ही लागू होगा और लाखों हिन्दुओं को जेल में डाल दिया जाएगा। भैयाजी ने कहा कि इस विधेयक को वोट बैंक की घिनौनी राजनीति के चलते एक सोची समझी रणनीति के तहत तैयार किया गया है। उन्होंने कहा कि विधेयक को कानून का रूप धारण करने से पूरी ताकत के साथ रोका जाना चाहिए। अ.भा. अधिवक्ता परिषद के श्री जगदीप रेथ ने कहा कि साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयक को तैयार करने वाले पूरी तरह हिन्दू विरोधी है। अगर यह कानून बन गया तो हिन्दू समाज का अस्तित्व ही संकट में पड़ जाएगा और हिन्दुओं को अल्पसंख्यकों के दबाव में रहना पड़ेगा। संगोष्ठी में मुख्य रुप से उपस्थित प्रसिद्ध कवि श्री अतीन दास ने कहा कि विधेयक के द्वारा हिन्दू समाज को जानबूझकर दरकिनार करने की कोशिश की जा रही है। यह भारतीय संविधान की मूल भावनाओं के विपरीत है। कार्यक्रम की अध्यक्षता अधिवक्ता की अनिल चंद्र ने की। इस अवसर पर श्री भैैयाजी जोशी ने अधिवक्ता श्री शांतनु नायक द्वारा लिखित पुस्तक लॉ ऑफ डेन्जर एंड कम्पेनसेशन का लोकार्पण भी किया।

जैविक खेती के उपयोग से बेहतर पैदावार



रायपुर। छत्तीसगढ़ में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार द्वारा किसानों को लगभग आधी कीमत पर जैविक कल्चर मुहैया कराया जा रहा है। जैविक कल्चर के उपयोग से होने वाले लाभ को देखते हुए राज्य सरकार के कृषि विभाग ने किसानों को दलहनी, तिलहनी और अनाज फसलों की बेहतर पैदावार के लिये जैविक कल्चर के उपयोग की सलाह दी है। उल्लेखनीय है कि जैविक कल्चर के उपयोग से फसलोत्पादन में बढ़ोत्तरी होने के साथ ही प्रति हेक्टेयर २५ किलोग्राम नत्रजन उर्वरक की बचत होती है। जैविक खेती के लाभ को देखते हुए किसानों को इसके लिए प्रेरित एवं प्रोत्साहित किया जा रहा है।

कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया कि प्रदेश के किसानों को जैविक कल्चर लगभग ५० प्रतिशत छूट पर उपलब्ध कराये जा रहे है। उन्होंने बताया कि दलहनी फसलों में रोईजोबियम कल्चर तथा अनाज और तिलहनी फसलों में एजेक्टोबेक्टर कल्चर की ५ ग्राम मात्रा प्रतिकिलों बीज की दर से बुआई के समय उपयोग किया जाना की सर्वोत्तम है। इसके उपयोग से फसलों में नत्रजन की आपूति4 अच्चे से होती है। उत्पादन बढ़ता है तथा खेत की उर्वरा शक्ति में भी वृद्धि होती है।

उन्होंने बताया कि भूमि में पर्याप्त मात्रा में प्राकृतिक रुप से फास्फोरस उपलब्ध होता है, परन्तु यह फसलों को सहजता से मिल नहीं पाता है। फसलों को पर्याप्त मात्रा में फास्फोरस मिले इसके लिए जरूरी है कि बीज बोने से पहले १० ग्राम पीएसबी कल्चर प्रतिकिलो बीज की दर से बोनी के समय उपयोग में लाना चाहिए। इससे मिट्टी में उपलब्ध फास्फोरस को यह कल्चर घुलनशील स्थिति में ला देता है और इसका फायदा फसलों को मिलने लगता है। इससे पौधों में वृद्धि एवं फसलोत्पादन बढ़ता है। बुआई के समय कल्चर से बीज को उपचारित करने के लिए एक लीटर पानी में ५० ग्राम गुड़ को घोलकर इस घोल में कल्चर पाऊडर की निर्धारित मात्रा मिलाकर बीज के साथ अच्छी तरह मिलाया जाता है। इसके बाद उसकी बुआई की जाती है।

रविवार, 4 दिसंबर 2011

मन की आंखों से दौड़ लगाकर नीलूमति ने जीता गोल्ड मैडल



गरियाबंद। सफलता पाने में कुछ भी बाधक नहीं बन सकता। फिर चाहे नेत्रहीन बालिका का खेल के मैदान में जौहर दिखाने की बात ही क्यों न हो। यह साबित किया है यहां की नेत्रहीन छात्रा नीलूमति चुरपाल ने। राजधानी में हुए दौड़ स्पर्धा में उसने १०० मीटर में अव्वल आकर गोल्ड मैडल हासिल किया। जबकि २०० मीटर दौड़ में दूसरे नंबर पर रहकर सिल्वर मैडल पाया। अब वह नेशनल खेलने के लिए १६-१७ को बेंगलुरू जा रही है।
कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय के आरबीसी सेंटर में वह कक्षा पांचवीं में पढ़ती है। गोल्ड मैडल मिलने पर खुशी जाहिर करते हुए नीलू ने कहा कि नेत्रहीनों को समाज में सम्मान कभी नहीं मिलेगा वह ऐसा सोचती थी, लेकिन आंखें न होने के बावजूद नेशनल स्तर पर खेलने जाना उनके लिए गौरव से कम नहीं है। इसके लिए उसने स्कूल प्रशासन को श्रेय दिया। राज्य स्तरीय नि:शक्त पैरालंपिक एथलेटिक्स स्पर्धा ५ से ७ नवंबर को समाज कल्याण विभाग ने किया था। छात्रा ने जिले की ओर से प्रतिनिधित्व किया, जिसमें सब जूनियर वर्ग में ८-१४ वर्ष में १०० मी दौड़ प्रतियोगिता में प्रथम गोल्ड मैडल व २०० मीटर में सिल्वर मैडल से सम्मानित की गई। उसकी सफलता पर आश्रम अधीक्षिका चंद्रप्रभा फुलझेले, बीआरसी प्रभारी अमर दास कुर्रे और शिक्षिका शीला यादव ने खुशी जाहिर की है।



अधात्म से खत्म होगा भ्रष्टाचार



आर्ट ऑफ लिविंग के प्रमुख श्री श्री रविशंकर ने उत्तर प्रदेश की यात्रा में जनसभा को संबोधित करते हुए कहालोग कहते है कि आध्यमिक गुरु जन भ्रष्टाचार के बारे में बात क्यों करते है। वास्तविकता यह है कि आध्यात्म से ही भ्रष्टाचार समाप्त होगा। देश में अपनत्व की आध्यात्म का आभाव है। जिसकी वजह से भ्रष्टाचार पनप रहा है। अब मैं भ्रष्टाचार के विरुद्ध खड़ा हो गया हूं। आध्यात्मिक गुरु ने कहा कि किसानों के साथ देश में जितना अन्याय हुआ है उतना किसी दूसरे वर्ग के साथ नहीं हुआ।  दुनिया में सबसे ज्यादा अनाज व फल-फूल उगाने वाला देश भारत है। फिर भी यहां ये चीजें महंगी है।

किसान का करिश्मा, कबाड़ से बना डाली अनोखी मशीन



आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है। इन पंक्तियों को टीकमगढ़ जिले के मांडूमर गांव के किसान गोविंद दास ने साबित कर दिखाया है। बिजली की समस्या से परेशान गांव के लोगों का अनाज पीसने के लिए उसने साइकिल की तर्ज पर पैडल से चलने वाली आटा चक्की बना डाली है। बगैर बिजली के चलने वाली यह चक्की इलेक्ट्रिक चक्की से कमतर नहीं हैं। अब पूरे गांव का गेहूं देसी चक्की से ही पिस रहा है। महज कक्षा ९ वीं तक शिक्षित मांडूमर गांव के ४८ वर्षीय किसान गोविंद दास खंगार ने घर में पड़े कबाड़ के सामान से पाइपसाइकिल की सीटपैडलकुछ नट बोल्ट और जुगाड़ से पैडल आटा चक्की बनाना शुरू किया था। चक्की के पाट खरीदने की बारी आई तो आर्थिक तंगी के कारण काम रुक गया। छोटे बेटे हेमचंद ने स्कूल से मिली छात्रवृति के १७०० रुपए पिता को दे दिए। इससे उसने चक्की के २ पाट खरीदे और पैडल के सहारे चलने वाली बिजली रहित आटा चक्की बनकर तैयार हो गई।
 गोविंद दास ने बताया कि चक्की बनाते समय गांव वालों ने कई बार मजाक उड़ाया लेकिन जब वह तैयार हुई तो मोहल्ले के कई लोग गेहूं पिसाने उनके घर आने लगे। अब गांव में बिजली हो या न हो गांव के लोग अपना गेहूं पिसाने यहां आते हैं। इसके पहले भी वह आधा दर्जन से ज्यादा देसी अविष्कार कर चुका हैं। इनमें खेत जोतने के लिए लोहे का हलखेत में जानवरों को भगाने सर्च लाइट की तरह घूमने वाला बल्ब शामिल है। - साभारदै.भा.






काला कानून की पहल के खिलाफ प्रदर्शन




रायपुर में बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने साम्प्रदायिक हिंसा लक्षित अधिनियम २०११ के खिलाफ में जय स्तम्भ चौक पर प्रदर्शन कर केन्द्र की यूपीए सरकार का पुतला दहन किया। बजरंग दल के प्रदेश संयोजक घनश्याम चौधरी ने बताया कि राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के द्वारा राष्ट्रद्रोही एवं हिन्दुओं के विरुद्ध कालेकानून बनाने की जो पहल की जा रही है उसका हम विरोध करते है। विरोध प्रदर्शन के इस कार्यक्रम में बजरंग दल के प्रमुख कार्यकर्ता व पदाधिकारी उपस्थित थे।

मरने के पहले ही महिला ने किया कुछ ऐसा कि वह ‘अमर’ हो गई!



जगदलपुर। मेडिकल छात्रों की शिक्षा के लिए देह दान करने वाले लोग विरले ही मिलते हैं, लेकिन जिले के फरसागुड़ा निवासी एक ६५ वर्षीय महिला ने अपने मृत शरीर को मानव जीवन की सेवा लिए दे दिया।
मूलत: रायपुर पेंशन बाड़ा निवासी सुचेता ठाकुर वर्तमान में फरसागुड़ा में रह रही थी। दो दिन पूर्व अचानक उनकी तबीयत खराब हुई और उन्हें मेकाज में भर्ती करवाया गया।
यहां इलाज के दौरान उन्होंने बुधवार की सुबह दम तोड़ दिया, लेकिन वो मरने के बाद भी मानव सेवा की मिसाल छोड़ गई। उन्होंने अपना मृत शरीर वर्षो पूर्व ही मेडिकल छात्रों की पढ़ाई के लिए दान कर दिया था। इनके दामाद मनीष झा ने चर्चा में बताया कि उनकी सास ने वर्षो पूर्व ही अपने शरीर को दान करने का फैसला कर लिया था। उनकी इच्छा के अनुरूप ही मेडिकल कॉलेज जगदलपुर के प्रबंधन को उनका शव सौंप दिया गया है। सुचेता एफसीआई के पूर्व प्रबंधक केके ठाकुर की धर्मपत्नी है।
वर्षो तक आएगा काम -
सुचेता ठाकुर का देह शरीर वर्षो तक मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्रों के काम आएगा। सिविल सर्जन डॉ. विवेक जोशी ने बताया कि देह दान के शुरूआती १ वर्ष तक छात्र इनके देह से शरीर रचना का ज्ञान लेंगे। इसके अलावा शरीर के एक-एक नसों व अंगों का विच्छेदन कर ज्ञान प्राप्त करेंगे और आगामी कई वर्षो तक हड्डियों की जानकारी भी छात्र ले पाएंगे। मेकाज में छात्रों की पढ़ाई के लिए अब दो शव उपलब्ध हैं।

धार्मिक सप्ताह में जुटेंगे हजारो युवा



 रायपुर। प्रदेश धर्मसेना की वीआईपी मार्ग स्थित राममंदिर में १५ से २५ दिसंबर तक धार्मिक सप्ताह आयोजन संबंधी तैयारी बैठक हुई। बैठक में २५ दिसंबर को राजधानी में चार प्रमुख उद्देश्यों को लेकर युवा जागरण रैली निकालने का निर्णय लिया गया। इस दौरान प्रांत के सभी जिलों के पदाधिकारी शामिल हुए।
धर्मसेना के प्रदेश अध्यक्ष विवेक अग्रवाल ने बताया कि आज का युवा कल का भारत है। राष्ट्र को बचाने के लिये युवाओं का एकजुट होना आवश्यक है। प्रदेश में नक्सलवाद और आतंकवाद चरम पर है, एसे में देश आतंरिक और बाहरी संटों से जुझ रहा है। श्री अग्रवाल ने कहा कि धर्म सेना एकमात्र  युवाओं का गैर राजनीतिक संगठन है, जिससे जुडक़र राष्ट्रप्रेम और देशभक्त युवा अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।
हर घर में लगाएंगे भगवा झंडा :- श्री अग्रवाल ने बताया कि समीक्षा बैठक में धार्मिक सप्ताह आयोजन के चलते प्रदेश के हर घर में भगवा झंडा लगाने का प्रस्ताव पारित किया गया। इस प्रस्ताव को धर्म सैनिक अपने-अपने जिलों में प्रसारित कर धर्म जागरण सप्ताह मनाएंगे। २५ दिसंबर को राजधानी में आयोजित जागरण रैली में सभी जिलों के पदाधिकारी अपने कार्यकर्ताओं के साथ राजधानी पहुंचेंगे। धर्मसेना के जिलाध्यक्ष  पुष्पेन्द्र ने बताया कि बैठक में विशेष रुप से प्रदेश संयोजक सुबोध राठी, सह संयोजक विक्रम केवलानी, प्रचार प्रसार प्रमुख अमित सिंह, नगर उपाध्यक्ष वैष्णव भाटिया, रीटू तिवारी, सुभाष साहू, कल्याण सिंह, सहदेव महानंद, यतीश टिकरिया, श्याम सोनकर, राजीव बैनर्जी, भुनेश्वर साहू सहित सैकड़ों धर्म सैनिक उपस्थित हुए।
रैली के चार उद्देश्य - युवकों में राष्ट्रभक्ति जगाना, सामाजिक समरसता लाना, आंतरिक और बाहरी संकट से निपटना, राष्ट्रीय स्वाभिमान को जगाना।

छत्तीसगढ़ के गांव की प्रतिभा देश-विदेश में छायी



रायपुर। गांवों में अभावों के बीच पलने-बढऩे वाले साधारण परिवार के बच्चों को माना स्थित जवाहर नवोदय विद्यालय ने ऐसा गढ़ा कि वे आज सफलता की ऊँचाई छू रहे हैं। इस विद्यालय में पढ़ाई करने वाले दर्जनों छात्र देश-विदेश में महत्वपूर्ण पदों पर सेवाएं दे रहे हैं। इस बात की जानकारी तब हुई जब भूतपूर्व छात्रों ने समाज सेवा के लिए बीते दिनों एक एसोसिएशन का गठन किया। एसोसिएशन का भव्य सम्मेलन दिसंबर में होगा, जिसमें देश-विदेश में रहने वाले पूर्व छात्र शामिल होंगे।
पिता है साधारण किसान 
बसना क्षेत्र के ग्राम पलानसरी निवासी रामदास मलिक 1996 में नवोदय पास आउट होने के बाद नेवी में चले गए। यहांॅ १५ साल नौकरी करने के बाद वे अभी यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में पदस्थ हैं। उनके पिता एक साधारण किसान हैं। बसना के ही निवासी डॉ.मनोज पटेल के पिता एक शिक्षक हैं। उन्होंने कठिन परिश्रम कर डॉक्टरी की पढ़़ाई की और आज भिलाई सेक्टर-९ स्थित अस्पताल के नामी डॉक्टरों में से एक हैं।
समाज होगा अपराध मुक्त
डीएसपी संजय सिंह ध्रुव इस विद्यालय से १९९७ में पास आउट हुए। वे नगरी के सामान्य परिवार से हैं। वर्तमान में चिरमिरी में सीएसपी हैं। श्री ध्रुव ने बताया कि समाज को अपराध मुक्त करने की इच्छा ने उन्हें इस पद पर काबिज कराया। ग्राम धोधा के रहने वाले मनोज कोसले १९९५ में बाहरवीं पास हुए। तकनीकी विषय में रुचि ने उन्हें इतना आगे बढ़़ाया कि वे आज मंत्रालय में बतौर कार्यपालन अभियंता के रूप में पदस्थ हैं।
देश की रक्षा में तत्पर -
कसडोल क्षेत्र के ग्राम बलौदा निवासी लखन टंडन १९९६ बैच के पास आउट हैें। वर्तमान में भारतीय नौ सेना अधिकारी हैं। उनकी पदस्थापना अभी कोलकाता में है। उनके पिता निचले श्रेणी के कर्मचारी हैं। देवभोग के रहने वाले नित्यानंद सिन्हा १९९३ के पास आउट हैं। वे वर्तमान में बिलासपुर में लेखा अधिकारी के पद पर कार्ररत हैं।
गाँव की युवाओं की लंबी छलांग
तुमगांॅव के पास मधुबन गांॅव के सामान्य किसान के पुत्र प्रेमकुमार पटेल एकाउंट आफिसर राजस्थान के लिए चयनित हुए हैं। १९९९ के पास आउट श्री पटेल एमए अंग्रेजी में गोल्ड मैडलिस्ट हैं। यूपीएससी में तीन बार इंटरव्यू तक पहुंॅचे हैं। वे दिल्ली में लंबे समय से प्रतियोगी परीक्षाओं के अध्यापन कार्य से जुड़़े हुए हैं। उनकी लिखी कुछ किताबें बाजार में काफी प्रचलित हैं।
योग्यता से मिला मुकाम
विनोद कुमार नागवंशी बिलाईगढ़ इलाके हैं। बीई मेकनिकल, एमटेक व राजनीति शास्त्र में एमए करने वाले श्री नागवंशी वर्तमान में एक संसद सदस्य के निज सचिव हैं। वे बिलाईगढ़़ में डीईओ भी रह चुके हैं।
विदेशों में लहराया परचम
झलप के पास ग्राम बावनकेरा के पास रहने वाले हामिद खान वर्तमान में पाथ आईएएस एकेडमी के डायरेक्टर हैं। साथ ही दिल्ली के बाजीराम कोचिंग संस्थान के लिए समसामयिक घटनाओं के नोट्स तैयार करते हैं।
इसी प्रकार रायपुर के अनिमेष जोशी एवं कमलेश देवांगन अमेरिका में नौकरी कर रहे हैं, जबकि फैय्याज मेमन सिंगापुर में नौकरी कर रहे हैं। सभी मध्यम वर्गीय परिवार से हैं और नवोदय स्कूल माना के पूर्व छात्र हैं।