बुधवार, 12 अक्तूबर 2011

क्या मणिपुर भारत में नहीं है!



पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर ६५ दिनों से आर्थिक नाकेबंदी से गुजर रहा है भारत सरकार को चिंता क्यों नहीं, क्या मणिपुर भारत में नहीं है?

१ अगस्त से मणिपुर में आर्थिक नाकेबंदी है इस नाकेबंदी के कारण आम जनजीवन नरक जैसा जीवन भोगने के लिए मजबूर हो गया है। वहां पर भोजन तथा दैनिक उपयोग की कीमतें आसमान छू रही है। वहां पर पेट्रोल और डीजल २०० रुपये से अधिक प्रति लीटर तथा गैस सिलेण्डर काला बाजारी २००० रुपये में मिल रहा है। क्योंकि मणिपुर की जीवनदायिनी सड़क मार्ग ३९ व ५३ को बंद कर दिया गया है। वहां पर कुकी जनजातियों  द्वारा जिरिबाम  पूर्ण कालिक राजस्व जिला बनाने की मांग को लेकर है। यह मांग ४० वर्ष पुरानी है। इस मांग का नागा जनजाति विरोध कर रही है। 

अपनी मातृभूमि की सीमाए




सागर वसना पावन देवी,
सरस सुहावन भारत माँ।
हिमगिरि पीन पयोधर वत्सल,
जनमन भावन भारत माँ॥


हिमालय उत्तर, दक्षिण, पूर्व तथा पश्चिम में फैली अपनी शाखा-प्रशाखाओं के साथ तथा इन महती शाखाओं के अंतर्गत प्रदेशों के साथ हमारा रहा है। धार्मिक एवं अन्य भावुकताओं को छोड़कर यह एक शुद्ध व्यावहारिक व सामान्य बुद्धि की बात है कि कोई भी शक्तिशाली और बुद्धिमान राष्ट्र पर्वतों की चोटियों को अपनी सीमा नहीं बनाएगा। यह तो उसके लिए आत्मघाती होगा। हमारे पूर्वजों ने हिमालय के उत्तरांचल में हमारी तीर्थयात्राओं के लिए अनेक स्थानों की स्थापना कर उन भू-भागों को जागृत सीमा का स्वरुप प्रदान किया था। तिब्बत या त्रिविष्टप, जिसे आज हमारे नेता चीन का तिब्बतीय प्रदेश कहते हैं, देवताओं का स्थान था। कैलाश पर तो परमेश्वर का निवास है। मानसरोवर तीर्थयात्रा के लिए एक अन्य पवित्र स्थान था, जो हमारी गंगा, सिंधु और ब्रम्हपुत्र जैसी पवित्र नदियों का उद्गम माना जाता है।
हमारे महान राष्ट्रकवि कालिदास ने हिमालय का वर्णन इस प्रकार किया है:
अस्त्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा हिमालयो नाम नगाधिराज:।
पूर्वापरौ तोयनिधी वगाह्य स्थित: पृथिव्या इव मानदण्ड:॥
उत्तर दिशा में देवतात्मा हिमालय नाम का पर्वतराज है, जिसकी भजाएं पूर्व और पश्चिम में समुद्रपर्यंत फैली हुई हैं और जो पृथ्वी के मानदंड की तरह स्थित है।
हमारे राजनीति शास्त्र में जिनका वचन आप्त प्रमाण है, उन चाणक्य का वक्तव्य है :-
हिमवत्समुद्रान्तरमुदीचीनं योजनसहस्रपरिमाणम्।
(उत्तर में समुद्र से हिमालय पर्यंत इस देश की लंबाई एक सहस्र योजन है)
इसका अर्थ यही है कि कवि कालिदास का वर्णन राजनीति-विशारद चाणक्य के वक्तव्य के अनुरुप है और हमारे लिए हमारी मातृभूमि की विशालता का वास्तविक चित्र प्रस्तुत करता है।
 किन्तु वास्तविकता तो यह है कि पश्चिम ने जब कच्चे  मांस के स्थान पर भुना मांस खाना सीखा था, उससे बहुत पूर्व हम एक राष्ट्र थे और थी हमारी एक मातृभूमि तथा समुद्रपर्यंत भूमि में परिव्याप्त था एक राष्ट्र। पृथिव्याव्यै: समुद्रपर्यन्ताया एकराट् - हमारे वेदों का यह एक प्रिय उद्घोष है, युगों से हमारे सामने इसका स्पष्ट स्वरुप रहा है आसेतुहिमालय। हमारे पूर्वजों ने बहुत काल पूर्व कहा है :-

उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमादे्रश्चैव दक्षिणम्।
वर्ष तद् भारतं नाम भारती यत्र संसति:॥
(विष्णु पुराण २-३-१, ब्रम्ह पुराण १९-१)
(पृथ्वी का वह भू-भाग, जो समुद्र के उत्तर और हिमालय के दक्षिण में है, महान भारत कहलाता है तथा उसकी संतानों को भारती कहते है। 

भारत के उपन्यास सम्राट


प्रेमचंद का जीवन-परिचय

हिन्दी साहित्य के इतिहास में उपन्यास सम्राट के रूप में अपनी पहचान बना चुके प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था. वह एक कुशल लेखक, जिम्मेदार संपादक और संवेदशील रचनाकार थे. प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई, १८८० को वाराणसी से लगभग चार मील दूर लमही नामक ग्राम में हुआ था। जब वह केवल आठवीं कक्षा में ही पढ़ते थे, तभी इनकी माता का लंबी बीमारी के बाद देहांत हो गया। पहला विवाह असफल होने के बाद प्रेमचंद ने यह निश्चय कर लिया था कि वह विधवा से ही विवाह करेंगे। पश्चाताप करने के उद्देश्य से उन्होंने सन १९०५ के अंतिम दिनों में शिवरानी देवी नामक एक बाल-विधवा से विवाह रचा लिया।

संघर्षमय जीवन 

 गरीबी और तंगहाली के हालातों में जैसे-तैसे प्रेमचंद ने मैट्रिक की परीक्षा पास की। जीवन के आरंभ में ही इनको गांव से दूर वाराणसी पढऩे के लिए नंगे पांव जाना पड़ता था। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य, पर्सियन और इतिहास विषयों से स्नातक की उपाधि द्वितीय श्रेणी में प्राप्त की थी।

प्रेमचंद का साहित्यिक जीवन

धनपत राय ने साहित्य के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने के लिए अपना नाम बदलकर प्रेमचंदरख लिया था। सोजे-वतन के बाद उनकी सभी रचनाएं प्रेमचंद के नाम से ही प्रकाशित हुईं।  गोरखपुर में रहते हुए ही उन्होंने अपनी पहली रचना लिखी। गोरखपुर में प्रेमचंद को एक नये मित्र महावीर प्रसाद पोद्दार मिले और इनसे परिचय के बाद प्रेमचंद और भी तेजी से हिन्दी की ओर झुके।

प्रेमचंद के साहित्य की विशेषताएं

प्रेमचंद बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। उनकी रचनाओं में तत्कालीन इतिहास की झलक साफ दिखाई देती है। यद्यपि प्रेमचंद के कालखण्ड में भारत कई प्रकार की प्रथाओं और रिवाजों, जो समाज को छोटे-बड़े और ऊंच-नीच जैसे वर्गों में विभाजित करती है, से परिपूर्ण था इसीलिए उनकी रचनाओं में भी इनकी उपस्थिति प्रमुख रूप से शामिल होती है। वह भावनाओं और पैसे के महत्व को समझते थे। इसीलिए कहीं ना कहीं उनकी रचनाएं इन्हीं मानवीय भावनाओं को आधार मे रखकर लिखे जाते थे। उन्होंने अपनी रचनाओं में जन साधारण की भावनाओं, परिस्थितियों और उनकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण किया था। उनकी कृतियाँ भारत के सर्वाधिक विशाल और विस्तृत वर्ग की कृतियाँ हैं। प्रेमचंद को दिए गए सम्मान
प्रेमचंद की स्मृति में १९८० को उनकी जन्मशती के अवसर पर ३० पैसे मूल्य का एक डाक टिकट जारी किया गया। गोरखपुर के जिस स्कूल में वे शिक्षक थे, वहां प्रेमचंद साहित्य संस्थान की स्थापना भी की गई है। वहां प्रेमचंद से संबंधित वस्तुओं का एक संग्रहालय भी है। उनके बेटे अमृत राय ने कलम का सिपाहीनाम से पिता की जीवनी लिखी है। उनकी सभी पुस्तकों के अंग्रेजी व उर्दू रूपांतर तो हुए ही हैं, चीनी, रूसी आदि अनेक विदेशी भाषाओं में उनकी कहानियाँ लोकप्रिय हुई हैं। उनकी बेजोड़ रचनाओं और लेखनशैली से प्रभावित होकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राटकी उपाधि से नवाजा था।

प्रेमचंद का निधन
८ अक्टूबर, १९३६ को उनका देहावसान हुआ। 

भारत की विदेश नीति का सच



प्राचीन आदर्शों को ध्यान में रखकर बने विदेश नीति

आखिर सच सामने आ गया जब देश के प्रधानमंत्री ने कहा कि बांग्लादेश की २५ प्रतिशत आबादी भारत के कट्टर विरोधी जमाते इस्लामी के साथ है। इसके अलावा एक भयानक सच यह भी है कि पिछले साल जयपुर में हुए बम धमाकों में बांग्लादेशियों का हाथ है। १९७१ में विश्व भूगोल के नक्शे पर जिस बांग्लादेश को भारत ने स्थान दिलवाया, वही आज भारत के लिए घुसपैठ की बड़ी समस्या पैदा कर रहा है। १९९१ में असम के मुख्यमंत्री ने ३० लाख घुसपैठिये की बात स्वीकार की थी। आज तो वह आंकड़ा करोड़ों में आ गया है। ऐसे में बांग्लादेश जिस कट्टरपंथ के प्रभाव में है वह भारत की शांति भंग करने के लिए काफी है।  अमेरिका जहां पाकिस्तान में इसाईयों पर जरा सा भी अत्याचार होता देख हंगामा मचाने लगता है वहीं भारत पाकिस्तान व बांग्लादेश से प्रयोजित आतंकवाद की ठोस जानकारी होने के बावजूद बार-बार शांति वार्ता और सहिष्णुता की बात करता है।

आखिर अहिंसा व अत्याचारियों को दंड देने वाले राम व कृष्ण के देश में हिन्दू संस्कृति से ओतप्रोत विदेश नीति क्यों नहीं बनायी जाती? संसार में वैकेसे भी भय के बिना मित्रता नहीं हो सकती। ऐसे में विश्व के देशों को भारत अपना शौर्य दिखाकर ही शांति व सहअस्तित्व बनाये रख सकता है...

बंगलादेश कट्टरपंथियों के प्रभाव में

प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने यह स्वीकार कर ही लिया कि बांगलादेश की २५ फीसदी आबादी जमाते इस्लामी के प्रभाव में है जो भारत के कट्टर विरोधी हैं| हालांकि उन्होंने यह स्वीकारोक्ति देश के वरिष्ठ संपादकों के साथ हुई एक ऑफ द रिकॉर्ड बातचीत में कही. यह टिप्पणी रात को उनकी वेबसाइट पर भी डाली गई तथा लगभग ३० घण्टे तक साइट पर रहने के बाद उसे हटा लिया गया. सरकार को डर था कि इससे दोनों देश के बीच खटास ना पैदा हो जाये।

कांग्रेस ने कभी सच नहीं स्वीकारा

सालों बाद किसी प्रधानमंत्री ने यह कहा क्योंकि कांग्रेस पार्टी और उसके नेतृत्व वाली सरकारें हमेशा से इसे नकारते रही हैं क्योंकि उन्हें भारत और बांगलादेश के रिश्ते खराब होने और पार्टी की सेकुलरवादी छवि पर बुरा असर पडऩे का इतना डर सताता रहा है, लेकिन सालों बाद किसी प्रधानमंत्री ने इसकी परवाह ना करते हुए यह तो स्वीकार कर ही लिया ·कि बांगलोदश की २५फीसदी आबादी देश विरोधी है। जयपुर में हुए बम धमाकों में जिस तरह बांगलादेशियों के नाम सामने आये, उसने प्रधानमंत्री के कथन पर मुहर तो लगा ही दी है।

बांग्लादेश में हिन्दुओ की स्थिति

बांगलादेशी घुसपैठियों का मुद्दा हो या बांगलादेश में हिन्दुओं की दयनीय स्थिति का, देश के राष्ट्रभक्त संगठन, धार्मिक संत और राजनीतिक पार्टियां हमेशा से इस मुद्दे ·को उठाते रहे हैं| पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने भी एक प्रस्ताव पारित करते हुए केन्द्र सरकार पर बांगलादेशी घुसपैठ पर सख्ती बरतने को कहा था। संघ वर्षों से इस मुद्दे को उठाते आया है और बांगलादेश में हिन्दुओं के धर्मांतरण तथा उन पर होते जेहादी अत्याचार के विरोध में कई मंचों से अपनी आवाज बुलंद की और सरकार का ध्यान आगाह किया लेकिन अपने आपको धर्मनिरपेक्ष दिखने का ढोंग करने वाली राजनीतिक पार्टियों ने इस गंभीर मुद्दे पर कान ही नहीं धरे क्योंकि उन्हें देशहित से ज्यादा वोट बैंक की चिंता रही है। भारत-विभाजन, पाकिस्तान, बांगलादेश और श्रीलंका जैसे देशों के जन्म के पीछे भी यही कमजोरी थी|

भारत में घुसपैठ से बढ़ता खतरा

देश में बांगलादेशियों की घुसपैठ असम से शुरू हुई। १९९१ में तीस लाख बांगलादेशियों के रहने की बात तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. हितेश्वर सैकिया ने स्वीकारी थी. आश्चर्य कि पूरे देश में यह संख्या एक करोड़ से ऊपर पहुंच गई है। असम में बांगलादेशियों को खदेडऩे के लिये छह सालों तक आंदोलन चला और जब यह चरम पर था तो तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने आंदोलनकारी संगठनों के साथ वादा किया था कि असम-बांगलादेश सीमा पर बाड़ लगाई जायेगी मगर वह आज तक पूरा नहीं हो पाया। दरअसल कांग्रेस हो या भाजपा, दोनों के ही नेता बांगलादेशी घुसपैठ को लेकर कभी गंभीर नही रहे। मुस्लिम तुष्टीकरण के चलते कांग्रेस ने बांगलादेशियों को हमेशा ही बचाया. याद दिला दें कि भारी दबाव के बीच असम में आईएमडीटी (विदेश) कानून एक्ट लागू किया गया था और यही देश के लिये सरदर्द बन गया. इस एक्ट के मुताबिक शिकायत करने वाले व्यक्ति को ही यह प्रमाणित करना पड़ेगा कि वह जिस व्यक्ति पर आरोप लगा रहा है, वह बांगलादेशी है. नतीजन लोगों ने घुसपैठ पर आपत्ति करना बंद कर दिया. नतीजन अगप सांसद सर्वानंद सोनोवाल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी और आईएडी एक्ट रद्द हो गया. इस मुददे पर भाजपा ने भी सिर्फ दिखावे की कार्रवाई की जैसा कि उसने कश्मीरी पंडितों के साथ किया. सत्ता में आने तक उसने कश्मीरी हिन्दुओं की खासी चिंता की सहानुभूति रखी और उसे वोट बैंक में तब्दील कर जम्मू-कश्मीर में अपना जनाधार बढ़ाया लेकिन केन्द्र में लगभग दस वर्षों तक काबिज रहने के बाद भी उसने कश्मीरी पंडितों के लिये कुछ खास नहीं किया।

बांग्लादेश में बढ़ती कट्टरता 

बांग्लादेश के संविधान में अल्लाहशब्द शामिल किए जाने की मांग को लेकर हुए प्रदर्शनों के हिंस· रूप लेने से १०० से ज्यादा लोग घायल हो गए हैं। चश्मदीदों के मुताबिक प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के समर्थकों ने हिंसक प्रदर्शन कर रहे लोगों का विरोध किया, जिसके बाद स्थिति और विकट हो गई।
कई जगहों पर पुलिसकर्मियों के हथियार भी छीन लिए गए। घायलों में १० पुलिसकर्मी शमिल हैं। एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया, ‘जमात के कार्यकर्ताओं ने राजमार्ग पर पंचवटी इलाके में पुलिस की टीम को चारों ओर से घेर लिया। इसके बाद झड़प की शुरुआत हुई। हिंसा के दौरान पुलिस को दो हथियार खोने पड़े।जमात के इस प्रदर्शन को मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेशी नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और कई अन्य दलों का समर्थन प्राप्त था।

क्या है विवाद

विवाद इस बात को लेकर है कि खुदा के लिए संविधान में किस नाम का इस्तेमाल किया जाए। जानकारी के मुताबिक कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामीके कार्यकर्ताओं ने ढाका-चटगांव राजमार्ग पर उपद्रव मचाया। इस संगठन का कहना है कि हाल ही में संशोधित हुए बांग्लादेश के संविधान में अल्लाहशब्द को फिर से शामिल किया जाए। बांग्लादेशी संविधान में क्रिएटरशब्द का इस्तेमाल किया गया है।

भारत व बांग्लादेश की नीति का फर्क

जो मुसलमान अल्पसंख्य· होने का दावा कर हिन्दुस्तान में विशेष रियायतें या सुरक्षा चाहते हैं, वे मुस्लिम देशों में हिन्दुओं के साथ हो रही बर्बरता तथा धर्मांतरण के खिलाफ आवाज बुलंद क्यों नहीं करते? पाकिस्तान से लेकर बांगलादेश और जम्मू कश्मीर, सभी जगहों पर हिन्दुओं की दयनीय स्थिति है। उन्हें इस्लाम कबूल ना करने पर प्रताडऩा दी जाती है, मां-बेटियों के साथ अत्याचार होता है और जेहादी बनने से इंकार करने पर देश छोडऩे या जान से मारने की धमकी दी जाती है. आंकड़ों पर जायें तो बांगलादेश में ८ से १० प्रतिशत हिन्दु ही बचे हैं जबकि पहले यह संख्या २८ फीसदी के आसपास थी. डॉ. सब्यसाची घोष ने अपनी पुस्तक इंपायर्स लास्ट कैजुअलटी में दावा किया है कि इस्लाम स्वीकार न करने के कारण अब तक ३० लाख हिन्दुओं की हत्या हो चुकी है।

पूजा करना मना है बांग्लादेश में

 हिन्दुओं के पास बांगलादेश में कोई अधिकार नहीं हैं। बांग्लादेश में यह बदलाव  जिया-उर-रहमान ने किया। 
उन्होंने धर्मनिरपेक्ष की नीति को बदलकर इस्लामी रूप देने का प्रयास किया और जनरल इरशाद ने जब से इस्लाम को राष्ट्रधर्म का दर्जा दिया, उसके बाद हिन्दू, ईसाई और बौद्ध सभी दूसरे दर्जें के नागरिक कहलाने लगे। नतीजन हिन्दुओं का दमन अभी भी जारी  है। दुर्गा पूजा, कृष्ण जन्माष्टमी पर शाम तक पूजा करना सरकार ने निषेध कर रखा है. इस्लामी चरपंथी हिन्दुओं के उपासना स्थलों को तबाह कर रहे हैं, उनकी जमीनों पर कब्जा और हिन्दु लड़कियों से बलात्कार और बाद में धर्मांतरण आम बात हो चली है. ढाका विश्वविद्यालय में हिन्दु लड़कियों के साथ बदसलूकी आम बात है. उन्हें सिंदूर और बिंदी तक नहीं लगाने दी जाती. ऐतिहासिक रामना काली मंदिर को इसलिए तोड़ दिया गया क्योंकि हिन्दुओं ने चंदा देने से इंकार कर दिया था. दुखद यह है कि ऐसा करने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं होती और ना ही सजा मिलती है. भारत में एक नये तरह का जेहाद आ चुका है जिसमें पाकिस्तान और बांगलादेश के चरमपंथी मिले हुए हैं।

अमेरिका की नीति और भारत

पाकिस्तान में इसाईयों पर जरा सा भी अत्याचार होता देख अमेरिका तथा यूरोप के राजदूत इस्लामाबाद दौड़े चले आते है। भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहां बहुसंख्यक हिन्दू समाज पर आघात होते हुए भी न तो भारतीय  समाचार पत्रों में स्थान पाते है और न ही शासन तथा अन्य राजनैतिक दल विचलित होते है। हमारे देश की राजनैति· दल अल्पसंख्यकों की वोटो की चिंता करती है। ये राजनैतिक दल कुछ भी ऐसा नहीं करना चाहते हैं जिससे उन्हें इन वोटो के दूर होने का खतरा हो। चाहे देश की एकता अखंडता संप्रभुता ही खतरे में पड़ जाये। यदि ऐसा ही रहा तो आने वाले समय में भारत में ही कई बांग्लादेश और पाकिस्तान का निर्माण हो जायेगा और तब भी शायद सत्ता के भूखे राजनीतिक दल उन क्षेत्रों के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति बनने के लिए देश का विभाजन करवा दे। क्योंकि ऐसा १९४७ व उससे पहले भी देश के सत्ता लोलूप राजनीतिज्ञों ने करके दिखाया है। आने वाला कल शायद उनके उस कृत्य को कभी मांफ न करें जिसकी सजा आज हर शांति प्रिय भुगत रहा है। विश्व मानवता को हिन्दुत्व की विचारधारा ही बचा सकती है।

बांग्लादेश जन्म से ही अशांत रहा

  बांगलादेश के निर्माण के मात्र चार वर्ष बाद मुजीबुर रहमान का उनके ही अंगरक्षकों के द्वारा उनके सरकारी अवास में हत्या कर दी गई। शेख हसीना, जो उनकी बेटी हैं और जो इस समय बांग्लादेश की प्रधानमंत्री हैं, बच गईं क्योंकि वे उस समय वहां मौजूद नहीं थी। उसके बाद बांगलादेश का शासन ऐसे लोगों के हाथ में आ गया जो उन आदर्शों और सिध्दांतों को नहीं मानते थे जो बांगलादेश के आधार थे। बीच-बीच में वहां सैनिक शासन भी कायम हुआ।

तीस्ता नदी का विवाद 

तीस्ता नदी के जल बंटवारे पर संभावित समझौते को लेकर राजनीतिक विवाद भी पैदा हो गया है। पश्चिम बंगाव की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा इस समझौते पर अपना तीखा विरोध दर्ज कराया गया है और इसी मुद्दे पर वे प्रधानमंत्री के साथ जाने वाले दल शामिल भी नहीं हुईं। कूटनीतिक सूत्रों ने बताया कि दोनों देश द्रिपक्षीय संबंधों को नई दिशा देने वाले एक लंबी अवधि के फ्रेमवर्क पर काम कर रहे हैं और इस यात्रा के दौरान उस समझौते पर दस्तखत होने की संभावना है। भारत-बांगलादेश के बीच मित्रता, सहयोग और शांति के एक समझौते पर १९ मार्च १९७२ को दस्तखत हुए थे। हालांकि जब करीब २५ साल पुराने इस  समझौते की समयावधि १९९७ में खत्म हुई तो उसके बाद दोनों देश इसके नवीकरण पर राजी नहीं हो सके।

भारत का डरावना सच- 

भारत में प्रतिवर्ष ४ लाख हिन्दुओं को मुसलमान व ४ लाख हिन्दुओं को इसाई बना लिया जाता है और १ लाख महिलाओं को प्रेम अथवा बलात उठा लिया जाता है| जनसँख्या के हिसाब से लग रहा है उनकी’ ·ही बात सच हो जाएगी कि लड़ कर लिया है पाकिस्तान, हंस के लेंगे हिन्दुस्थानभोला हिन्दू सोमनाथ मंदिर की तरह महाकाल के प्रकट होने पर विश्वास कर रहा है।

भोला भाला  हिन्दू समाज

भगवान शंकर भी भी सोचते होंगे कि यदि सब कुछ मुझे ही प्रकट होकर करना था तो तुम्हे नीचे क्यों भेजा है। योजनाबद्ध तरीके से जो अटूट मेहनत करेगा, सफलता उन्हें मिलेगी. इसलिए विश्व में ६० देश मुसलमानों व १२५ देश ईसाईयों के हैं| कोई श्रेष्ठ विचारधारा नहीं केवल लक्ष्य के लिए अटूट परिश्रम जहाँ भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं गीतासुनाई हो वहां लोग कर्म छोड़कर चमत्कार की प्रतीक्षा कर रहे हैं| बबूल बोने पर आम कभी भी नहीं जो सकते.सोचिये जहां-जहां हिंदु काम हो रहे है वह के हालात हिन्दुओ के लिए कठिन होते जा रहे है| यदि हमारा अंग रहा पाकिस्थान और बांग्लादेश में केवल सत्ता बदलने से ऐसा हो सकता है तो भारत में क्यूँ नही?