प्रेमचंद का जीवन-परिचय
हिन्दी साहित्य के इतिहास में उपन्यास सम्राट के रूप में अपनी पहचान बना चुके प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था. वह एक कुशल लेखक, जिम्मेदार संपादक और संवेदशील रचनाकार थे. प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई, १८८० को वाराणसी से लगभग चार मील दूर लमही नामक ग्राम में हुआ था। जब वह केवल आठवीं कक्षा में ही पढ़ते थे, तभी इनकी माता का लंबी बीमारी के बाद देहांत हो गया। पहला विवाह असफल होने के बाद प्रेमचंद ने यह निश्चय कर लिया था कि वह विधवा से ही विवाह करेंगे। पश्चाताप करने के उद्देश्य से उन्होंने सन १९०५ के अंतिम दिनों में शिवरानी देवी नामक एक बाल-विधवा से विवाह रचा लिया।
संघर्षमय जीवन
गरीबी और तंगहाली के हालातों में जैसे-तैसे प्रेमचंद ने मैट्रिक की परीक्षा पास की। जीवन के आरंभ में ही इनको गांव से दूर वाराणसी पढऩे के लिए नंगे पांव जाना पड़ता था। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य, पर्सियन और इतिहास विषयों से स्नातक की उपाधि द्वितीय श्रेणी में प्राप्त की थी।
प्रेमचंद का साहित्यिक जीवन
धनपत राय ने साहित्य के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने के लिए अपना नाम बदलकर ‘प्रेमचंद’ रख लिया था। सोजे-वतन के बाद उनकी सभी रचनाएं प्रेमचंद के नाम से ही प्रकाशित हुईं। गोरखपुर में रहते हुए ही उन्होंने अपनी पहली रचना लिखी। गोरखपुर में प्रेमचंद को एक नये मित्र महावीर प्रसाद पोद्दार मिले और इनसे परिचय के बाद प्रेमचंद और भी तेजी से हिन्दी की ओर झुके।
प्रेमचंद के साहित्य की विशेषताएं
प्रेमचंद बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। उनकी रचनाओं में तत्कालीन इतिहास की झलक साफ दिखाई देती है। यद्यपि प्रेमचंद के कालखण्ड में भारत कई प्रकार की प्रथाओं और रिवाजों, जो समाज को छोटे-बड़े और ऊंच-नीच जैसे वर्गों में विभाजित करती है, से परिपूर्ण था इसीलिए उनकी रचनाओं में भी इनकी उपस्थिति प्रमुख रूप से शामिल होती है। वह भावनाओं और पैसे के महत्व को समझते थे। इसीलिए कहीं ना कहीं उनकी रचनाएं इन्हीं मानवीय भावनाओं को आधार मे रखकर लिखे जाते थे। उन्होंने अपनी रचनाओं में जन साधारण की भावनाओं, परिस्थितियों और उनकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण किया था। उनकी कृतियाँ भारत के सर्वाधिक विशाल और विस्तृत वर्ग की कृतियाँ हैं। प्रेमचंद को दिए गए सम्मान
प्रेमचंद की स्मृति में १९८० को उनकी जन्मशती के अवसर पर ३० पैसे मूल्य का एक डाक टिकट जारी किया गया। गोरखपुर के जिस स्कूल में वे शिक्षक थे, वहां प्रेमचंद साहित्य संस्थान की स्थापना भी की गई है। वहां प्रेमचंद से संबंधित वस्तुओं का एक संग्रहालय भी है। उनके बेटे अमृत राय ने ‘कलम का सिपाही’ नाम से पिता की जीवनी लिखी है। उनकी सभी पुस्तकों के अंग्रेजी व उर्दू रूपांतर तो हुए ही हैं, चीनी, रूसी आदि अनेक विदेशी भाषाओं में उनकी कहानियाँ लोकप्रिय हुई हैं। उनकी बेजोड़ रचनाओं और लेखनशैली से प्रभावित होकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें ‘उपन्यास सम्राट’ की उपाधि से नवाजा था।
प्रेमचंद का निधन
८ अक्टूबर, १९३६ को उनका देहावसान हुआ।
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