बुधवार, 12 अक्तूबर 2011

भारत की विदेश नीति का सच



प्राचीन आदर्शों को ध्यान में रखकर बने विदेश नीति

आखिर सच सामने आ गया जब देश के प्रधानमंत्री ने कहा कि बांग्लादेश की २५ प्रतिशत आबादी भारत के कट्टर विरोधी जमाते इस्लामी के साथ है। इसके अलावा एक भयानक सच यह भी है कि पिछले साल जयपुर में हुए बम धमाकों में बांग्लादेशियों का हाथ है। १९७१ में विश्व भूगोल के नक्शे पर जिस बांग्लादेश को भारत ने स्थान दिलवाया, वही आज भारत के लिए घुसपैठ की बड़ी समस्या पैदा कर रहा है। १९९१ में असम के मुख्यमंत्री ने ३० लाख घुसपैठिये की बात स्वीकार की थी। आज तो वह आंकड़ा करोड़ों में आ गया है। ऐसे में बांग्लादेश जिस कट्टरपंथ के प्रभाव में है वह भारत की शांति भंग करने के लिए काफी है।  अमेरिका जहां पाकिस्तान में इसाईयों पर जरा सा भी अत्याचार होता देख हंगामा मचाने लगता है वहीं भारत पाकिस्तान व बांग्लादेश से प्रयोजित आतंकवाद की ठोस जानकारी होने के बावजूद बार-बार शांति वार्ता और सहिष्णुता की बात करता है।

आखिर अहिंसा व अत्याचारियों को दंड देने वाले राम व कृष्ण के देश में हिन्दू संस्कृति से ओतप्रोत विदेश नीति क्यों नहीं बनायी जाती? संसार में वैकेसे भी भय के बिना मित्रता नहीं हो सकती। ऐसे में विश्व के देशों को भारत अपना शौर्य दिखाकर ही शांति व सहअस्तित्व बनाये रख सकता है...

बंगलादेश कट्टरपंथियों के प्रभाव में

प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने यह स्वीकार कर ही लिया कि बांगलादेश की २५ फीसदी आबादी जमाते इस्लामी के प्रभाव में है जो भारत के कट्टर विरोधी हैं| हालांकि उन्होंने यह स्वीकारोक्ति देश के वरिष्ठ संपादकों के साथ हुई एक ऑफ द रिकॉर्ड बातचीत में कही. यह टिप्पणी रात को उनकी वेबसाइट पर भी डाली गई तथा लगभग ३० घण्टे तक साइट पर रहने के बाद उसे हटा लिया गया. सरकार को डर था कि इससे दोनों देश के बीच खटास ना पैदा हो जाये।

कांग्रेस ने कभी सच नहीं स्वीकारा

सालों बाद किसी प्रधानमंत्री ने यह कहा क्योंकि कांग्रेस पार्टी और उसके नेतृत्व वाली सरकारें हमेशा से इसे नकारते रही हैं क्योंकि उन्हें भारत और बांगलादेश के रिश्ते खराब होने और पार्टी की सेकुलरवादी छवि पर बुरा असर पडऩे का इतना डर सताता रहा है, लेकिन सालों बाद किसी प्रधानमंत्री ने इसकी परवाह ना करते हुए यह तो स्वीकार कर ही लिया ·कि बांगलोदश की २५फीसदी आबादी देश विरोधी है। जयपुर में हुए बम धमाकों में जिस तरह बांगलादेशियों के नाम सामने आये, उसने प्रधानमंत्री के कथन पर मुहर तो लगा ही दी है।

बांग्लादेश में हिन्दुओ की स्थिति

बांगलादेशी घुसपैठियों का मुद्दा हो या बांगलादेश में हिन्दुओं की दयनीय स्थिति का, देश के राष्ट्रभक्त संगठन, धार्मिक संत और राजनीतिक पार्टियां हमेशा से इस मुद्दे ·को उठाते रहे हैं| पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने भी एक प्रस्ताव पारित करते हुए केन्द्र सरकार पर बांगलादेशी घुसपैठ पर सख्ती बरतने को कहा था। संघ वर्षों से इस मुद्दे को उठाते आया है और बांगलादेश में हिन्दुओं के धर्मांतरण तथा उन पर होते जेहादी अत्याचार के विरोध में कई मंचों से अपनी आवाज बुलंद की और सरकार का ध्यान आगाह किया लेकिन अपने आपको धर्मनिरपेक्ष दिखने का ढोंग करने वाली राजनीतिक पार्टियों ने इस गंभीर मुद्दे पर कान ही नहीं धरे क्योंकि उन्हें देशहित से ज्यादा वोट बैंक की चिंता रही है। भारत-विभाजन, पाकिस्तान, बांगलादेश और श्रीलंका जैसे देशों के जन्म के पीछे भी यही कमजोरी थी|

भारत में घुसपैठ से बढ़ता खतरा

देश में बांगलादेशियों की घुसपैठ असम से शुरू हुई। १९९१ में तीस लाख बांगलादेशियों के रहने की बात तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. हितेश्वर सैकिया ने स्वीकारी थी. आश्चर्य कि पूरे देश में यह संख्या एक करोड़ से ऊपर पहुंच गई है। असम में बांगलादेशियों को खदेडऩे के लिये छह सालों तक आंदोलन चला और जब यह चरम पर था तो तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने आंदोलनकारी संगठनों के साथ वादा किया था कि असम-बांगलादेश सीमा पर बाड़ लगाई जायेगी मगर वह आज तक पूरा नहीं हो पाया। दरअसल कांग्रेस हो या भाजपा, दोनों के ही नेता बांगलादेशी घुसपैठ को लेकर कभी गंभीर नही रहे। मुस्लिम तुष्टीकरण के चलते कांग्रेस ने बांगलादेशियों को हमेशा ही बचाया. याद दिला दें कि भारी दबाव के बीच असम में आईएमडीटी (विदेश) कानून एक्ट लागू किया गया था और यही देश के लिये सरदर्द बन गया. इस एक्ट के मुताबिक शिकायत करने वाले व्यक्ति को ही यह प्रमाणित करना पड़ेगा कि वह जिस व्यक्ति पर आरोप लगा रहा है, वह बांगलादेशी है. नतीजन लोगों ने घुसपैठ पर आपत्ति करना बंद कर दिया. नतीजन अगप सांसद सर्वानंद सोनोवाल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी और आईएडी एक्ट रद्द हो गया. इस मुददे पर भाजपा ने भी सिर्फ दिखावे की कार्रवाई की जैसा कि उसने कश्मीरी पंडितों के साथ किया. सत्ता में आने तक उसने कश्मीरी हिन्दुओं की खासी चिंता की सहानुभूति रखी और उसे वोट बैंक में तब्दील कर जम्मू-कश्मीर में अपना जनाधार बढ़ाया लेकिन केन्द्र में लगभग दस वर्षों तक काबिज रहने के बाद भी उसने कश्मीरी पंडितों के लिये कुछ खास नहीं किया।

बांग्लादेश में बढ़ती कट्टरता 

बांग्लादेश के संविधान में अल्लाहशब्द शामिल किए जाने की मांग को लेकर हुए प्रदर्शनों के हिंस· रूप लेने से १०० से ज्यादा लोग घायल हो गए हैं। चश्मदीदों के मुताबिक प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के समर्थकों ने हिंसक प्रदर्शन कर रहे लोगों का विरोध किया, जिसके बाद स्थिति और विकट हो गई।
कई जगहों पर पुलिसकर्मियों के हथियार भी छीन लिए गए। घायलों में १० पुलिसकर्मी शमिल हैं। एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया, ‘जमात के कार्यकर्ताओं ने राजमार्ग पर पंचवटी इलाके में पुलिस की टीम को चारों ओर से घेर लिया। इसके बाद झड़प की शुरुआत हुई। हिंसा के दौरान पुलिस को दो हथियार खोने पड़े।जमात के इस प्रदर्शन को मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेशी नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और कई अन्य दलों का समर्थन प्राप्त था।

क्या है विवाद

विवाद इस बात को लेकर है कि खुदा के लिए संविधान में किस नाम का इस्तेमाल किया जाए। जानकारी के मुताबिक कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामीके कार्यकर्ताओं ने ढाका-चटगांव राजमार्ग पर उपद्रव मचाया। इस संगठन का कहना है कि हाल ही में संशोधित हुए बांग्लादेश के संविधान में अल्लाहशब्द को फिर से शामिल किया जाए। बांग्लादेशी संविधान में क्रिएटरशब्द का इस्तेमाल किया गया है।

भारत व बांग्लादेश की नीति का फर्क

जो मुसलमान अल्पसंख्य· होने का दावा कर हिन्दुस्तान में विशेष रियायतें या सुरक्षा चाहते हैं, वे मुस्लिम देशों में हिन्दुओं के साथ हो रही बर्बरता तथा धर्मांतरण के खिलाफ आवाज बुलंद क्यों नहीं करते? पाकिस्तान से लेकर बांगलादेश और जम्मू कश्मीर, सभी जगहों पर हिन्दुओं की दयनीय स्थिति है। उन्हें इस्लाम कबूल ना करने पर प्रताडऩा दी जाती है, मां-बेटियों के साथ अत्याचार होता है और जेहादी बनने से इंकार करने पर देश छोडऩे या जान से मारने की धमकी दी जाती है. आंकड़ों पर जायें तो बांगलादेश में ८ से १० प्रतिशत हिन्दु ही बचे हैं जबकि पहले यह संख्या २८ फीसदी के आसपास थी. डॉ. सब्यसाची घोष ने अपनी पुस्तक इंपायर्स लास्ट कैजुअलटी में दावा किया है कि इस्लाम स्वीकार न करने के कारण अब तक ३० लाख हिन्दुओं की हत्या हो चुकी है।

पूजा करना मना है बांग्लादेश में

 हिन्दुओं के पास बांगलादेश में कोई अधिकार नहीं हैं। बांग्लादेश में यह बदलाव  जिया-उर-रहमान ने किया। 
उन्होंने धर्मनिरपेक्ष की नीति को बदलकर इस्लामी रूप देने का प्रयास किया और जनरल इरशाद ने जब से इस्लाम को राष्ट्रधर्म का दर्जा दिया, उसके बाद हिन्दू, ईसाई और बौद्ध सभी दूसरे दर्जें के नागरिक कहलाने लगे। नतीजन हिन्दुओं का दमन अभी भी जारी  है। दुर्गा पूजा, कृष्ण जन्माष्टमी पर शाम तक पूजा करना सरकार ने निषेध कर रखा है. इस्लामी चरपंथी हिन्दुओं के उपासना स्थलों को तबाह कर रहे हैं, उनकी जमीनों पर कब्जा और हिन्दु लड़कियों से बलात्कार और बाद में धर्मांतरण आम बात हो चली है. ढाका विश्वविद्यालय में हिन्दु लड़कियों के साथ बदसलूकी आम बात है. उन्हें सिंदूर और बिंदी तक नहीं लगाने दी जाती. ऐतिहासिक रामना काली मंदिर को इसलिए तोड़ दिया गया क्योंकि हिन्दुओं ने चंदा देने से इंकार कर दिया था. दुखद यह है कि ऐसा करने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं होती और ना ही सजा मिलती है. भारत में एक नये तरह का जेहाद आ चुका है जिसमें पाकिस्तान और बांगलादेश के चरमपंथी मिले हुए हैं।

अमेरिका की नीति और भारत

पाकिस्तान में इसाईयों पर जरा सा भी अत्याचार होता देख अमेरिका तथा यूरोप के राजदूत इस्लामाबाद दौड़े चले आते है। भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहां बहुसंख्यक हिन्दू समाज पर आघात होते हुए भी न तो भारतीय  समाचार पत्रों में स्थान पाते है और न ही शासन तथा अन्य राजनैतिक दल विचलित होते है। हमारे देश की राजनैति· दल अल्पसंख्यकों की वोटो की चिंता करती है। ये राजनैतिक दल कुछ भी ऐसा नहीं करना चाहते हैं जिससे उन्हें इन वोटो के दूर होने का खतरा हो। चाहे देश की एकता अखंडता संप्रभुता ही खतरे में पड़ जाये। यदि ऐसा ही रहा तो आने वाले समय में भारत में ही कई बांग्लादेश और पाकिस्तान का निर्माण हो जायेगा और तब भी शायद सत्ता के भूखे राजनीतिक दल उन क्षेत्रों के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति बनने के लिए देश का विभाजन करवा दे। क्योंकि ऐसा १९४७ व उससे पहले भी देश के सत्ता लोलूप राजनीतिज्ञों ने करके दिखाया है। आने वाला कल शायद उनके उस कृत्य को कभी मांफ न करें जिसकी सजा आज हर शांति प्रिय भुगत रहा है। विश्व मानवता को हिन्दुत्व की विचारधारा ही बचा सकती है।

बांग्लादेश जन्म से ही अशांत रहा

  बांगलादेश के निर्माण के मात्र चार वर्ष बाद मुजीबुर रहमान का उनके ही अंगरक्षकों के द्वारा उनके सरकारी अवास में हत्या कर दी गई। शेख हसीना, जो उनकी बेटी हैं और जो इस समय बांग्लादेश की प्रधानमंत्री हैं, बच गईं क्योंकि वे उस समय वहां मौजूद नहीं थी। उसके बाद बांगलादेश का शासन ऐसे लोगों के हाथ में आ गया जो उन आदर्शों और सिध्दांतों को नहीं मानते थे जो बांगलादेश के आधार थे। बीच-बीच में वहां सैनिक शासन भी कायम हुआ।

तीस्ता नदी का विवाद 

तीस्ता नदी के जल बंटवारे पर संभावित समझौते को लेकर राजनीतिक विवाद भी पैदा हो गया है। पश्चिम बंगाव की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा इस समझौते पर अपना तीखा विरोध दर्ज कराया गया है और इसी मुद्दे पर वे प्रधानमंत्री के साथ जाने वाले दल शामिल भी नहीं हुईं। कूटनीतिक सूत्रों ने बताया कि दोनों देश द्रिपक्षीय संबंधों को नई दिशा देने वाले एक लंबी अवधि के फ्रेमवर्क पर काम कर रहे हैं और इस यात्रा के दौरान उस समझौते पर दस्तखत होने की संभावना है। भारत-बांगलादेश के बीच मित्रता, सहयोग और शांति के एक समझौते पर १९ मार्च १९७२ को दस्तखत हुए थे। हालांकि जब करीब २५ साल पुराने इस  समझौते की समयावधि १९९७ में खत्म हुई तो उसके बाद दोनों देश इसके नवीकरण पर राजी नहीं हो सके।

भारत का डरावना सच- 

भारत में प्रतिवर्ष ४ लाख हिन्दुओं को मुसलमान व ४ लाख हिन्दुओं को इसाई बना लिया जाता है और १ लाख महिलाओं को प्रेम अथवा बलात उठा लिया जाता है| जनसँख्या के हिसाब से लग रहा है उनकी’ ·ही बात सच हो जाएगी कि लड़ कर लिया है पाकिस्तान, हंस के लेंगे हिन्दुस्थानभोला हिन्दू सोमनाथ मंदिर की तरह महाकाल के प्रकट होने पर विश्वास कर रहा है।

भोला भाला  हिन्दू समाज

भगवान शंकर भी भी सोचते होंगे कि यदि सब कुछ मुझे ही प्रकट होकर करना था तो तुम्हे नीचे क्यों भेजा है। योजनाबद्ध तरीके से जो अटूट मेहनत करेगा, सफलता उन्हें मिलेगी. इसलिए विश्व में ६० देश मुसलमानों व १२५ देश ईसाईयों के हैं| कोई श्रेष्ठ विचारधारा नहीं केवल लक्ष्य के लिए अटूट परिश्रम जहाँ भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं गीतासुनाई हो वहां लोग कर्म छोड़कर चमत्कार की प्रतीक्षा कर रहे हैं| बबूल बोने पर आम कभी भी नहीं जो सकते.सोचिये जहां-जहां हिंदु काम हो रहे है वह के हालात हिन्दुओ के लिए कठिन होते जा रहे है| यदि हमारा अंग रहा पाकिस्थान और बांग्लादेश में केवल सत्ता बदलने से ऐसा हो सकता है तो भारत में क्यूँ नही?      

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