बुधवार, 21 सितंबर 2011

संस्कृत को मिलेगा बढ़ावा

छत्तीसगढ़ में संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए छत्तीसगढ़ संस्कृत विद्यामंडलम ने अब संस्कृत में डिप्लोमा का पाठ्यक्रम प्रारंभ करने का निर्णय लिया है.आगामी सत्र से निजी संस्कृत विधालयो में यह पाठ्यक्रम उपलब्ध होगा . पाठ्यक्रम पूरी तरह संस्कृत में होगा .अब तक होता यह आया है की विधालयो में बारहवी तक ही में संस्कृत  की पढाई करायी जा रही है.पहली बार डिप्लोमा कोर्स की योजना बनाई गयी है.यह संस्कृत को बढ़ावा देने वाला कदम है..

क्रिकेट से आगे भी है देशभक्ति ...

                                        भारत की जीत पर सड़को में झंडा लहराना स्वाभाविक देशप्रेम है.इससे खेल भावना की संस्कृति को बल मिला है.जिससे सामुहिक रूप से कार्य को पूर्ण करने का भाव समाज में निर्मित होता है .भारत-पाक के बीच का यह मैच पूरे देश के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न था और भारत के जीत ने पूरे राष्ट्र को आल्हदीत कर दीया .यह खेल भावना केवल खेल तक सीमित न रहकर राष्ट्र के हर समस्या के प्रति भी ऐसा ही सामूहिक दृष्टीकोण होना चाहिए .
               देश आज भ्रष्टाचार ,आतंकवाद ,कुपोषण .चीनी षड़यंत्र,बंग्लादेशी घुसपैठ व कश्मीर की समस्या से जूझ रहा है.दुर्भाग्य की बात यह है की पिछले एक साल में उजागर हुए घोटालों के सन्दर्भ में देश की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा का पुरा सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया .परन्तु करोड़ो रूपये की इस बर्बादी पर जनता के बीच  से कोई तीखी प्रतिक्रिया देखने को नही मिली .जबकि अमेरिका के अप्रवासी भारतीयों ने भ्रष्टाचार के खिलाफ दांडी मार्च निकालकर भारत के प्रति अपने दायित्वों का निर्वाह किया है .भारत में जो दीवानगी क्रिकेट के जीत के साथ आयी है वह भ्रष्टाचार के खिलाफ भी सड़क पर दिखे .हमें अब भी ऐसा लगता है की उत्सवों एवं खेलों से उपजी सामुदायिक भावना राष्ट्र के समस्याओं से संघर्ष के समय भी परिलक्षित होगी.भारत के विश्वकप जीतने से आम जनजीवन में कोई फर्क नही आयेगा .इसके लिए तो हमें फिर से एक दांडी मार्च का इंतजार करते रहना होगा ..

मंगलवार, 20 सितंबर 2011

एकता कम विरोध ज्यादा

राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम बिल का भारी विरोध 
राष्ट्रीय एकता परिषद कि बैठक में अरुण जेटली ,प्रणव मुखर्जी,
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ,चिंदम्बरम,विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज .
               केंद्र सरकार द्वारा बुलाई गई राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में एका की जगह अलग-अलग स्वर गूंजे. सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम  विधेयक जैसा काला कानून इसका कारण था. इस विरोध में कांग्रेस की सहयोगी  दलों के साथ-साथ राजग  दलों ने भी विरोध किया जिसमें प्रमुख गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री जैसे नीतीश कुमार ,नरेन्द्र मोदी ,प्रकाश सिंह बादल,जयललिता और मायावती ने  शामिल थे .हालंकि किसी कारणवश ये बैठक में शामिल नही हो आ पाये.  सप्रंग के प्रमुख घटक दल तृणमूल की ममता बनर्जी ने बैठक में न होते हुए भी विरोध किया तृणमूल के नेता दिनेश त्रिवेदी ने कहा कि उनकी पार्टी विधेयक के मौजूदा स्वरूप का विरोध करती है .
               इन सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने केन्द्र सरकार द्वारा प्रस्तावित सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक के मौजूदा प्रारूप का विरोध करते हुए इसे संघीय ढांचे के लिए खतरनाक बताया है.ममता ने भी विपक्ष के सुर में सुर मिलाकर सप्रंग की एकता पर उँगली उठाने का मौका विरोधियों को दे दिया है . इस विधेयक का मसौदा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने तैयार किया है .भाजपा ने भी इस विधेयक को खतरनाक बताते हुए आपत्ति जता दी है .,लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज और राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने इस विधेयक का विरोध किया है.इसके साथ भाजपा व राजग शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों जैसे मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ ,कर्नाटक,उत्तराखंड,पंजाब, बिहार थे इसी तरह गैर राजग दलों वाले राज्य में उड़ीसा ,तमिलनाडू ने भी विधेयक के मौजूदा स्वरूप के खिलाफ आवाज उठाई है.इस प्रकार हम देखता है की विधेयक का वर्तमान स्वरूप देश को तोडने वाला साबित होगा .