सोमवार, 5 दिसंबर 2011

यदि पाकिस्तान नासूर को खत्म कर दिया.. होता तो !




मुंबई में २६ नवंबर को हुए हमलों के बाद तत्कालीन विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी के कड़े शब्दों से पाकिस्तान इतना घबरा गया था कि उसने चीन से लेकर अमेरिका तक को कह दिया कि भारत ने युद्ध का फैसला कर लिया है। तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री कोंडोलीजा राइस के मुताबिक इस्लामाबाद ने व्हाइट हाउस को सूचित किया कि भारत ने उन्हें युद्ध का फैसला करने के लिए चेताया है। व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति के एक सहायक ने चिंतित हो कर राइस को इसकी सूचना दी और राइस भी परेशान हो गईं तथा उनके मुंह से निकला क्या ..?
काश यह काम हो गया होता तो आज भारत के नागरिक चैन से रहते होते। पाकिस्तान को समाप्त करने की कई बार मौका मिला लेकिन कमजोर नेतृत्व ने निर्णय करने में चूक  गए । इस काम में सेना तैयार था, लेकिन राजनीतिक नेतृत्व कमजोर था। आज जितने भी आतंकवाद हमला हो रहे इस राजनीतिक अकुशलता के कारण है। १९४८ में जब पाकिस्तान ने कबीलों को पैसा देकर कश्मीर में गुपचुप हमला किया था । तब महाराजा हरिसिंह जी कश्मीर का भारत में विलय किया लेकिन नेहरु उस समय कश्मीर में शेख अब्दुल्ला को राजा बनने के चक्कर में कश्मीर समस्याग्रस्त हो गया। मैने  सुरेश चिपलूनकर की ब्लॉग में पढ़ा है कि नेहरु का खानदान मुस्लिम था। इलाहबाद में आकार अपने को कश्मीर के पंडित बन गए। इंदिरा गाँधी फारसी थी, राजीव गांधी ईसाई हो गये और उनका पूरा खानदान आज ईसाई है।
दूसरी बार पाकिस्तान ने फिर से भारत पर हमला किया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने देश कि आम जनता को आह्वान कर देश को एक जुट कर पाकिस्तान को जबाब दिया। वे कहा करते थे कि मैं भारतीय टैंकमें बैठाकर लाहोर जाऊँगा। कांग्रेसियों ने सत्ता के लिए अपने प्रधानमंत्री को गलत सलाह दिया। सोवियत संघ ने देश के प्रधानमंत्री को ताशकंद में भारत और पाकिस्तान से समझौता करने को बुलाया। तब संघ के प्रमुख गोलवलकर जी ने जाने को मना किया था लेकिन लाल बहादुर ने ताशकंद गए। ताशकंद में हमारे देशभक्त प्रधानमंत्री से गलत समझौता कराया गया। यह जानते हुए कि भारत कि जनता नहीं मानेगी, इसलिए उन्होंने अपना प्राण ताशकंद में त्याग दिया।   
१९७१ में पाकिस्तान ने फिर हमला कर दिया। इस समय इन्दिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थी। इंदिरा जी के बारे में पहले हम विस्तार से जान लें कि उनका खानदान मुस्लिम था, मोतीलाल नेहरु इलाहाबाद में आकर अपने को कश्मीर पंडित कहलाने लगे। इंदिरा गांधी ने एक मुस्लिम से प्रेम किया लेकिन इज्जत बचाने के लिए फिरोज को गाँधी जी ने अपना दत्तक पुत्र बना कर विवाह करा दिया था।   १९७१ में जब पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया तो हमारे देश की सेना ने इतिहास रच दिया पूर्वी पाकिस्तान को जीत लिया। पाकिस्तान की १ लाख सेना ने भारत के सामने आत्मसमपर्ण किया।  शांति दूत बनने के आस में इंदिरा गाँधी ने शिमला के समझौता में जीती बाजी एक टेबल पर हार गयी। एक परिवार के मुस्लिम परस्ती ने देश को कितना बड़ा धोखा दिया है हम आज सोच नहीं सकते है ।
 तीन बार हार के बाद पाकिस्तान ने आंतकवाद और उग्रवाद का नया रूप लेकर लडऩा प्रारंभ किया लेकिन हमारे नेता शुतुरमुर्ग के समान आँख बंद किये हुये रहे। अब यह आंतकवाद ने भारत कि आम जनता के लिए नासूर बन गया है। हमने जितनी भी लड़ाई लड़ी है उससे कही अधिक लोगो की जान आतंकवाद ले चुका है व हमे आर्थिक हानि भी उठानी पड़ी है। पंजाब के लोगो को अलग खालिस्तान के नाम से बरगलाकर १० वर्ष तक खून की नदिया पंजाब में बहाई गयी। इसी प्रकार कश्मीर में २८ वर्षों से खुनी खेल चल रहा है। जिसका अंत होता नही दिखता है। चौथी बार युद्ध के बजाय पाकिस्तान की सेना ने आतंकवादियों को नार्दन लाइट इन्फैंट्री के नियमित सैनिकों के भेष में लाइन ऑफ कंट्रोल पार कर भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ कराया। इसकी वजह थी पाकिस्तान सेना के दो नापाक मकसद। पहला द्रास और कारगिल सेक्टर की सामरिक महत्व की ऊँची चोटियों पर कब्जा कर लेह, सियाचिन की आपूर्ति को बाधित करना। दूसरा संयुक्त राष्ट्र में एक बार फिर कश्मीर मुद्दे को उठाकर हताश हो रहे जेहादियों में नई जान फूँकना । कारगिल में बर्फ से ढंके नियंत्रण क्षेत्र पर घुसपैठियों का कब्जा था। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार पाकिस्तानी सेना की मदद से घुसपैठियों ने फरवरी १९९९ से ही इन क्षेत्रों पर कब्जा जमा लिया था। क्षेत्र में भारी बर्फ जम जाने के कारण भारतीय सेना जाड़ों के मौसम में अपने सैनिकों को वहां से हटा लेती थी और दुश्मनों ने इसी का फायदा उठाया। कारगिल में जब घुसपैठियों के कब्जे की बात खुली तो भारतीय सेना ने इसके जवाब में मई से कार्रवाई शुरू की। भारतीय थल सेना के लिए यह युद्ध आसान नहीं था क्योंकि उन्हें पर्वतीय क्षेत्र में ऐसे स्थलों पर लडऩा था। जहां दुश्मन पहाड़ की चोटियों पर कब्जा जमाए बैठा था। युद्ध के शुरू में भारतीय थलसेना को अपने कुछ जवानों का बलिदान देना पड़ाए लेकिन बाद में जब वायुसेना ने थलसेना के साथ मोर्चा संभाला तो पाकिस्तानी सेना और घुसपैठियों के पैर उखडऩे लगे और जल्द ही भारतीय सेना ने पूरे कारगिल क्षेत्र पर भारतीय झंडा फहरा दिया। कारगिल युद्ध में भारतीय पक्ष की ओर से आधिकारिक रूप से ५३३ लोगों की जान तथा १३०० सैनिक घायल हो गये । पाकिस्तान ने शुरू में तो अपने ज्यादा लोगों के मारे जाने की बात को नहीं कबूला, लेकिन बाद में तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने स्वीकार किया कि उनकी ओर से करीब ४००० लोग मारे गए।
रक्षा विश्लषेक ब्रिगेडियर सेवानिवृत्त, अरुण वाजपेई ने स्वीकार किया कि यदि भारतीय सेना बेहतर तालमेल के साथ काम करती और हमारे देश का राजनीतिक नेतृत्व फैसले लेने में शीघ्रता दिखाता तो कारगिल युद्ध में हम कम जानें गंवाते। उन्होंने कहा कि हमें कारगिल युद्ध के सबक को कभी नहीं भुलाना चाहिए। इस लड़ाई में पाकिस्तान की सीमा छोटा करने का मौका दुबारा हमारे हाथ से निकल गया। कारगिल विजय को यदि हम आगे और बढाते तो अधिकृत कश्मीर भी भारत के पास होता तथा कश्मीर कि समस्या को खत्म किया जा सकता था। अफगानिस्तान से हम सीधे जुड़ जाते और चीन का यहाँ दखल खत्म हो जाता। लेकिन हमारी चूक कितना घातक हुआ हम महसूस कर सकते है।
संसद पर हमला के बाद पुन:स्थिति हमारे पक्ष में था। देश के प्रधानमंत्री ने लड़ाई के संकेत दिए और देश कि सेना ने सीमा पर मोर्चा संभाल लिया था। लेकिन देश कि सत्ता ने न जाने, यूटर्न क्यों लिया? यदि सीमा पर दो-दो हाथ में हो जाता तो आज हम करोड़ों रूपये एवं जानें जाने से बच सकते थे। उच्चतम न्यायालय ने संसद के हमलावरों को फांसी कि सजा सुनाया।
इन हमला करने वालो को वोट कि राजनीति के कारण हम उन्हें बिरयानी खिला रहे है। हमारे देश के प्रधानमंत्री जी नेन जाने किसकी सलाह पर हमला नहीं किया। हमारे प्रधानमंत्री जी आकर इस मौके से चूक गए। जब मुम्बई पर हमला हुआ तो टीवी पर सब कुछ दिखा रहा था। देश कि मिडिया ने देश के दुश्मनों तक पूरा खबर पहुचती रही वह लोग राष्ट्र धर्म नहीं निभाया। अब अपने देश कि राजनीतिक नेतृत्व विदेशियों के पास है। इससे क्या उमीद किया जा सकता है। जिस प्रकार अफजल गुरु और कसाब को बिरयानी खिलाया जा रहा है। आज तक कोई इटली वाले ने एकभी लड़ाई नहीं जीती है तो वह क्या युद्ध कर सकते है।
सत्ता के लिए कोई भी समझौता नही किया जाना चाहिए। राइस ने अपनी नवीनतम किताब नो हाई ऑनर्सष् में लिखा है कि पाकिस्तान की ओर से आ रही अफवाहों भारत हमले की पूरी तैयारी कर लिया ह। पाकिस्तान डर गया था वह किसी भी तरह से युद्ध से बचना चाहता था। यदि प्रणव मुखर्जी में कुशलता होती तो वह कर कुछ सकते थे। लेकिन ये लोग रात में सोते लोगों पर लाठीचार्ज, देश के लिए जनलोकपाल पर विवाद पैदा करना, ईमानदार लोगों को परेशान कर सकते लेकिन देश हित युद्ध नही कर सकते।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें