सोमवार, 3 अक्तूबर 2011

हम शौर्य और पराक्रम भूल गये

राजबाला देवी लगभग साढ़े तीन महीने से जिंदगी और मौत से जूझती रही। आखिरकार वह जिंदगी की जंग हार गई। इस हालात तक उसे पहुंचाने में दिल्ली पुलिस की लाठी जिम्मेदार थी। यह बर्बरतापूर्ण घटना दिल्ली के रामलीला मैदान में ४ जून २०११ की रात में हुई, जब सोये हुए बूढ़े, बच्चों और महिलाओं पर दिल्ली पुलिस ने आंसु गैस और लाठियों का प्रयोग किया। शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन कर रहे लोगों को खदेडऩे के लिए दिल्ली पुलिस के ५००० जवानों ने यह कार्यवाही की। यह किस कारण हुआ, दिल्ली सरकार अब तक यह स्पष्ट नहीं कर पाई है। इस घटना में घायल राजबाला को जब अस्पताल में भर्ती कराया गया, तब ही स्पष्ट हो गया था कि लाठियों के प्रहार के कारण वह लकवाग्रस्त हो गई है। लेकिन देश का दुर्भाग्य है कि अफजल गुरु और देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों को क्षमा दान के लिए जो राज्य सरकारें विधानसभा में विधेयक पास करती है वह इस सत्याग्रही राजबाला देवी की हत्या पर पुलिस के खिलाफ कार्यवाही के लिए मौन साधे क्यों बैठी है? सरकार ने जिस तरीके से इस पूरी घटना को अंजाम दिया वह वास्तव में प्रशासनि· प्रक्रीया पर कई सवालिया निशान खड़े करता है।
आखिर देश आज अपने को इतना लाचार क्यों पा रहा है? आर्याव्रत सदियों से शक्ति का उपासक रहा। हम भगवान राम, कृष्ण के उपासक है। उन सभी देवताओं ने आसुरी शक्ति (अनीति व अन्याय) के विनाश के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। हम आज भी इनके शौर्य को अपनी संकृस्ति और परंपरा के रुप में आत्मसात करते है। इसके बावजूद अन्याय व अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले लोग अब यदा-कदा ही क्यों दिखाई देते है?

वर्तमान समय का शायद सबसे बड़ा सच यह है ·कि हम अपने दुखों के लिए एक अवतार की खोज मे है और सोचते है वह आकर हमारे सारे दुख-दर्द दूर कर देगा। लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि राम के पराक्ररम और कृपा को पाने के लिए हनुमान, जटायु, शबरी, अहिल्या और विभीषण की तरह विश्वास, त्याग और तपस्या करनी पड़ती है।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें