सोमवार, 3 अक्तूबर 2011

भगवान वाल्मीकि का प्रकटोत्सव –

आश्विन मास की शरद पूर्णिमा को आदि कवि भगवान वाल्मीकि का जन्म दिवस मनाया जाता है। भगवान वाल्मीकि ने संस्कृत भाषा में रामायण की रचना की जो संसार का पहला लोककाव्य है। एक दिन अनायास ही विहार करते हुए क्रौंच पक्षी के जोड़े में से एक पक्षी को व्याध ने मार डाला। पक्षी की चीत्कार सुन, वहीं पर गिरता देख, उन्हें इतना दुख हुआ की उनके मुख से एक छंद निकल पड़ा, फिर उसी छंद में उन्होंने नारद से सुना हुआ श्रीराम का उज्ज्वल चरित्र निबद्ध किया।

श्रीराम ने अपनी पत्नी सीता का परित्याग किया तो देवर लक्ष्मण ने आम के पास गर्भवती सीता जी को छोड़ दिया था। ऋषि वाल्मीकि ने सीता जी को अपने आश्रम में रखा, जहाँ उन्होंने लव और कुश को जन्म दिया। उन्होंने दोनों बच्चों का लालन-पालन किया और महारानी सीता की जीवन लीला सुनाई। बच्चों के मधुर स्वर द्वारा श्लोको में संगीतमय राम-कथा सबके मन को मोहित करती थी। एकतारे पर दोनों भाई वाल्मीकि के निर्देशानुसार गायन करते थे। घोर तपस्या एवं भगवान के ध्यान में इतना मग्न हो गए की उनके शरीर पर चीटियों ने अपना घर बना लिया। उनके संपूर्ण शरीर पर बॉबी बन गई इसलिए उन्हें महातपस्वी भगवान वाल्मीकि के नाम से पुकारा जाने लगा। वाल्मीकि रामायण में तत्कालीन भारतीय समाज का संपूर्ण चित्र प्रस्तुत है। भारत का आचार विचार सदैव से आदर्श और मर्यादित रहा है। धर्म से अनुशासित होने के कारण सारे संस्कार तथा समय संपन्न होते थे। वेद का अध्ययन और अध्यापन सर्वव्यापी था। रामायण महाकाव्य को तत्कालीन समाज ने हृदय से स्वागत किया। रामायण गान उनके लिए नया, चमत्कारी और सुख देने वाला अनुभव सिद्ध हुआ।

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