मंगलवार, 4 अक्तूबर 2011

प्रधानमंत्री का राजधर्म - संपादकीय

प्रधानमंत्री जी कहते है कि भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए मेरे पास कोई जादू कि छड़ी नहीं, लेकिन जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार के सबूत आपके पास पहुंच रहे है उनके खिलाफ तो कार्यवाही करके राजधर्म का मान रखिये। नहीं तो आपकी ईमानदारी पर भी जनमत विश्वास नहीं करेगी। आपकी भी सरकार इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की सरकर की तरह भ्रष्टाचार के आरोप में जन विश्वास को न गंवा दे ।
                 प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संवाददाताओं से बातचीत करते हुए कहा कि पी.चिदंबरम पर उन्हें पूरा भरोसा है। कैबिनेट में मतभेद की जो भी खबरें आ रही हैं वे गलत हैं। उन्होंने कहा कि अपने सभी मंत्रियों पर मुझे पूरा भरोसा है।प्रधानमंत्री ने चुनाव का जिक्र छेड़ दिया। उन्होंने कहा कि विपक्ष देश पर मध्यावधि चुनाव लादना चाहता है, लेकिन मेरी सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी।चुनाव कि चर्चा छेड़ कर प्रधानमंत्री ने पार्टी के बाहर के ही नहीं पार्टी के अंदर के विरोधियों को भी चेतावनी दे दी है कि अगर कोई यह सोच रहा हो कि मौजूदा संकट का फायदा उठाते हुए नेतृत्व परिवर्तन का एजेंडा आगे बढ़ाया जा सकता है तो संभल जाए। मनमोहन सिंह का संदेश साफ है कि चुनाव के बगैर नेतृत्व परिवर्तन संभव नहीं।
                  इस पूरे घटनाकरम से यह बात सिद्ध होती है कि कांग्रेस में अंदरुनी तौर पर भारी उथल-पुथल मची हुई है। एक के बाद एक भ्रष्टाचार पर घिरती जा रही यूपीए सरकार कि मुश्किलें कम नहीं हो रही है। इसके बावजूद सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के द्वारा चिदम्बरम को बचाना राजधर्म के खिलाफ है। एक ओर ए.राजा और कनिमोझी के मामले में कांग्रेस न तत्परता दिखाई है, लेकिन अपने मंत्रियों के फंसते ही बौखलाकर  विपक्ष पर चुनाव थोपने का आरोप लगा रही है जबकि उनकी सरकार के मंत्री प्रणव मुखर्जी ने अपने मंत्रालय से भेजी गई चिट्ठी में चिदम्बरम को कटघरे में खड़ा किया है।     

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