शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

संपादकीय - खेल, खेल भावना की



                                         लंदन की न्यायालय ने क्रिकेट में हुए मैंच फिक्सिंग के आरोपियों को सजा आखिर में दे दी। इससे कई प्रश्नों के उत्तर तो मिल गये, लेकिन अंधेरा अभी भी छाया हुआ है।
न्यूज ऑफ वर्ल्ड  के पत्रकारों ने गत वर्ष इंग्लैण्ड में लाड्र्स टेस्ट के दौरान पाकिस्तान के कुछ खिलाडिय़ों के साथ गोपनीय अभियान (स्टिंग ऑपरेशन) के द्वारा उनके बातों को रिकॉर्ड कर लिया था। जिसमें खेल के दौरान खिलाडिय़ों द्वारा पैसे लेकर खेल हारने का जिम्मेदार बताया गया था। कई वर्षों से चल रहे न्यायालयीन प्र·रण के बाद लंदन के साउथ वर्क क्राउन न्यायालय ने पाकिस्तान के तीन खिलाडिय़ों को सजा सुनाया। जिसमें पाकिस्तान के तत्कालीन कप्तान सलमान बट्ट तथा दो बॉलर मो. आसिफ, मो. आमीर को सजा सुनाई तथा इनके खेलने पर भी प्रतिबंध लगा दियेके। इस प्रकार के मामले में इंग्लैण्ड की न्याय प्रक्रिया का प्रशंसा करना पड़ेगा कि यह महत्वपूर्ण प्रकरण में उन्होंने तुरंत अपना न्याय दिया। इसी प्रकार अपने भारत में ११ वर्ष पूर्व इसी प्रकार की मैंच फिक्सिंग का मामला निर्णय नहीं हो पाया है। दक्षिण अफ्रीका के पूर्व कप्तान हैंसी क्रोनिये तथा तत्कालीन भारत टीम के कप्तान अजरुद्दीन, अजय जडेजा तथा अन्य खिलाडिय़ों के बीच इसी प्रकार का मैंच फिक्सिंग हुआ था। लेकिन एक हवाई दुर्घटना में हैंसी क्रोनिये की मृत्यु के बाद यह प्रकरण दिशाहीन हो गया। क्या हमारी न्यायप्रणाली इतनी अप्रभावी है?
                                    खेल, खेल भावना से खेलना चाहिए। यह बात खेल के साथ जुड़ा हुआ है लेकिन खेल देश के साथ खेला जा रहा है। यह खेल, खेल न होकर एक प्रकार का जुआ और पैसे उगाही का केन्द्र (अड्डा) बन गया है। आज क्रिकेट के कारण देश की खेल दुनिया में बदनामी छा गया है। इसी क्रिकेट ने अपने भारत की अन्य खेलों को पछाड़ दिया है। हम ओलंपिक तथा एशियाई खेलों में नाम मात्र के पदक प्राप्त करते है। खिलाड़ी अपनी व्यक्तिगत प्रतिभा के कारण वहां पर अपने देश का नाम रोशन कर रहा है। लेकिन क्रिकेट की चमक-दमक ने हमें अंधा बना दिया है। यह अंधापन (जुनून) का लाभ व्यापारिक संगठन उठा रहे है। अब यह हमें सोचने की जरूरत है। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें