शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

राष्ट्रीय अखण्डता का संकल्प : अमरनाथ



             १४ अगस्त की अर्ध रात्रि सन् १९४७ भारत के बंटवारे की तिथि है। वैसे यह कोई पहला विभाजन नहीं था।
राष्ट्रीय स्तर पर माओवाद, आतंकवाद, जातिवाद, प्रान्तवाद के नाम पर भारत की शान्ति को कमजोर करने वाले कई भयावह आंदोलन चल रहे है।
                     चीन की बढ़ती सामरिक शक्ति और भारत के अरुणाचल एवं आसपास के क्षेत्रों पर उसका दावा किसी से छिपा नहीं है। हमारा पड़ोसी बांग्लादेश है उसने एक नये प्रकार का आक्रमण कर रखा है वो है घुसपैठ। घुसपैठ कर भारत के सीमान्त प्रदेशों को मुस्लिम बाहुल्य बनाना व भारत पर कब्जा करना।
सन् १९३१ में रावी नदी के तट पर देश के नेताओं ने सौगंध खायी थी भारत के पूर्ण स्वराज्य की। १९४२ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अखण्ड भारत का प्रस्ताव पारित कर देश की जनता को आश्वस्त किया था कि भारत एक अखण्ड देश रहेगा। चाहे महात्मा गांधी हो या डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, सरदार पटेल हो  या पंडित जवाहर लाल नेहरु। सभी अखण्ड भारत के पुजारी थे। फिर भी देश का बंटवारा हुआ। यह बंटवारा विश्व की कुछ चुनिंदा त्रासद घटनाओं में से एक है। जिसमें २० लाख से ज्यादा लोग मारे गये। दो करोड़ लोग विस्थापित हुए। अरबों की सम्पत्ति नष्ट हुई। मानव पशु कैसे हो जाता है इसका वर्तमान के सबसे बड़े पद चिन्ह भारत के विभाजन में दिखते है। वैसे तो इस्लाम इस देश में अक्रान्ता के रुप में आया। तलवार के बल पर आया। ७२६ ई. में मोहम्मद बिनकासिम ने सिन्धु पर आक्रमण किया तो उसने हत्या, लूट, बलात्कार, छल कौन सा हथकंडा नहीं अपनाया। अंग्रेजों ने काले अंग्रेज, सेवक अंग्रेज तैयार करने के लिए शिक्षा का सहारा लिया। जो इस्लाम की तलवार से ज्यादा घात· रहा। अंग्रेजों से अत्याचारों के प्रतिकार की ज्वाला १८५७ में स्वतंत्रता समर के रुप में सामने आयी।
चतुरसुजान अंग्रेजों ने भारत में कम्पनी राज्य के स्थायित्व के लिए विधिवत भारत के मर्म स्थलों का अध्ययन किया और कहा कि-

                    भारत नामक कोई राष्ट्र नहीं, यह तो उप महाद्वीप है।
                    वर्तमान का ही यानी आर्य भी आक्रान्ता है।
                      
                       मुसलमान देश में राज्य करता है। अंग्रेजी राज्य मुसलमानों के हित में काम करना चाहता है।
 कांग्रेस कभी भारत का प्रतिनिधित्व कर सकती है जब उसमें भारत की सभी जातियां एवं मत विशेषकर मुसलमान आयें। इसी चक्कर में कांग्रेस ने मुसलमानों की तुष्टिकरण शुरु किया। मार्लेमिन्टो के साम्प्रदायिक सुधारों से भी ज्यादा प्रतिनिधित्व कांग्रेस ने देना स्वीकार किया। हमारे नेता इस भ्रम के शिकार हो गये कि मुसलमानों को किसी कीमत पर कांग्रेस के साथ रखना है तथा यह स्वतंत्रता के लिए परम आवश्यक है। १९१६ में कांग्रेस का अधिवेशन लखनऊ में हुआ, जिसमें मुसलमानों को मुफ्त में आने जाने का किराया, मुफ्त का भोजन ऊपर से खूब आदर-सत्कार किया गया था। महात्मा गांधी ने सन् १९१९-२२ में खिलाफत आंदोलन के दौरान जिस प्रकार मुसलमानों का तुष्टिकरण किया, वह किसी से छिपा नहीं है। इतना ही नहीं गांधीजी ने १९४४ में राजाजी उस फार्मूले को  मान लिया जिसमें  मुसलमानों के पूर्ण बहुमत वाले जिलों का हिन्दुस्थान से प्रकंठ होने का निर्णय करने के लिए जनमत संग्रह करने की बात थी। इससे जिन्ना को बड़ी प्रसन्नता हुई और केई की तरह वह और भी कांग्रेस से रूठ गया। गांधी जिन्ना के सामनें नतमस्तक हो गये जो शायद सद्गुण विकृति का सबसे बड़ा उदाहरण है। गांधी जी ने जिन्ना के दरवाजे पर जाकर १९ दिनों तक बात की। उसे संतुष्ट करने के लिए कायदे आजम की उपाधि दी।
                       यह जो हिन्दू नेतृत्व ने मुस्लिम तुकुष्टिकरण की विषवेल वोयी उसका ही फल पाकिस्तान बनने में हुआ। परन्तु विचारनीय प्रश्न यह है कि क्या भारत विभाजन से भारत की समस्यायें सुलझ गई? या मुसलमान पाकिस्तान लेर संतुष्ट हो गये क्या?
                       भारत के विभाजन तथा पाकिस्तान के रूप में इस्लामी राज्य ·के निर्माण के जो विषैले बीज बोये गये आज उनकी फसल आतंकवाद, घुसपैठ, लव जिहाद, धर्मान्तरण, नकली नोट का धंधा एवं सर्वोपरि भारत पर एटमी हमले के रुप में लहलहा रही है। अमरीका-इंग्लैण्ड की दादागिरि पाकिस्तान बनने के कारण ही भारत में चल रही है। अब तक यह बात किसी से छिपी नहीं है कि पाकिस्तान की गुप्तचर संस्था आई.एस.आई. भारत सहित पूरे विश्व में आतंकवाद को राजनैतिक, वैचारिक, आर्थिक एवं प्रशिक्षण के स्तर पर मजबूती से आगे बढ़ा रही है। पाकिस्तान की विदेश मंत्री अभी हाल में ही भारत के दौरे पर जब आयी तो सबसे पहले व उन आतंकी नेताओं से मिली जो भारत को तोडऩा चाहते हैं। फिर भी भारत मौन रहा। उसे अपनी संसद का वह संकल्प  याद नहीं, जिसमें पाक अधिकृत कश्मीर को पुन: भारत में लाने की बात कही गयी हो।
कुछ हमारे हिन्दू भाई ऐसे भी है जो कह सकते है कि देश का अखण्ड करने की बात आज बेमानी है। झगड़ा-लड़ाई की बात है। इससे देश का विकास रुप जायेगा। पाकिस्तान आज एक सीमित सत्य है। ऐसे वंधु से मेरा सवाल है कि यदि अखण्ड भारत का स्वप्न जल्दी नहीं साकार किया जाता, देश पर आतंकवाद के हमले को महामारी के रुप में फैलने से रोकना मुश्किल होगा। भारत की लचर सीमा सुरक्षा, गिरे मनोबल के साथ तैनात भारतीय सैनिक हमारी वाह्य सीमाओं की सुरक्षा नहीं कर सकते।
परिणाम सही होगा कि मिली आजादी कही पुन: खो न जाये। वैसे भी देश का नेतृत्व आज जिनके हाथों में है, उन्हें न तो इस देश की चिन्ता है, और वही उसका इस देश की माटी के साथ लगाव। राष्ट्रीय जीवन के हर क्षेत्र में जिस प्रकार से भ्रष्टाचार का बोलबाला होता जा रहा है, उससे देश के खोखला होने का अंदेशा पैदा हो गया है। आज देश की तरुणाई देख रही है यदि हमारे आदर्श ही सीमित हो गये हैं। तो हम क्या करें?
अत: सभ्य समाज एवं जागरुक नागरिकों का यह परम कर्तव्य है कि वे समाज में आस्था का प्रचार करें। क्योंकि यतो धर्म: ततो जयम्।
                                       - लेखक समाजसेवी तथा अवध प्रांत में सह-प्रचार प्रमुख है। 

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