शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

छत्तीसगढ़ का त्यौहार जेठौनी


देव प्रबोधनी एकादशी पर मंदिरों व घरों में भगवान लक्ष्मीनारायण की पूजा-अर्चना की जाएगी। शालिगराम एवं तुलसी विवाह भी होंगे। दीपावली के ११ दिन बाद देव प्रबोध उत्सव और तुलसी विवाह को देवउठनी ग्यारस कहते हैं। एकादशी को यह पर्व बड़े उत्साह से मनाया जाता है। क्षीरसागर में शयन कर रहे श्री हरि विष्णु को जगाकर उनसे मांगलिक कार्यों की शुरुआत कराने की प्रार्थना की। मंदिरों व हिन्दुओं के घरों में गन्नों के मंडप बनाकर श्रद्धालु भगवान लक्ष्मीनारायण का पूजन कर उन्हें बेर, चने की भाजी, आंवला सहित अन्य मौसमी फल व सब्जियों के साथ पकवान का भोग अर्पित करेंगे। मंडप में शालिगराम की प्रतिमा व तुलसी का पौधा रखकर उनका विवाह कराया जाएगा। इसके बाद मंडप की परिक्रमा करते हुए भगवान से कुंवारों के विवाह कराने और विवाहितों के गौना कराने की प्रार्थना की जाती है। दीप मालिकाओं से घरों को रोशन किया जाएगा  और बच्चे पटाखे चलाकर खुशियां मनाते है। वास्तव में यह पर्व तुलसी का हमारे दैनिक जीवन में महत्व बताने का भी माध्यम है। तुलसी एक ऐसा पौधा जो हमें शुद्ध वायु देता है।

कैसे करें ग्यारस के दिन पूजन :-

देवउठनी ग्यारस के दिन ब्रम्ह मुहूर्त में जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए। इस दिन घर के दरवाजे को पानी से स्वच्छ करना चाहिए, फिर चूने व गेरू से देवा बनाने चाहिए। उसके ऊपर गन्ने का मंडप सजाने के बाद देवताओं की स्थापना करना

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