बुधवार, 26 अक्तूबर 2011

जनजातियों की जमीन वापस दिलाने का निर्णय बरकरार



जशपुरनगर। छग भू राजस्व संहिता की बहुचर्चित धारा १७० ख को लेकर अनुविभागीय अधिकारी द्वारा पूर्व में जनजातियों को उनकी जमीन वापस दिलाये जाने के निर्णय पर अपील खारिज करते हुए जिलाधीश ने जनजातियों को जमीन वापस दिए जाने के निर्णय को बरकरार रखा है। ग्राम घोलेंग के एक मामले में २० साल से एक प्रकरण लंबित था। इस प्रकरण में आवेदिका सेवती बाई ने भू राजस्व संहिता की धारा १७० ख के तहत अनुविभागीय अधिकारी के न्यायालय में गुहार लगाते हुए अपनी जमीन वापस दिलाए जाने की मांग की थी। अनुविभागीय अधिकारी ने उक्त मामले में मिशन संस्था से जुड़े अनावेदक कैथोलिक आश्रम और सिस्टर एसोसिएशन के जमीन पर काबिज होने को अवैध बताते हुए आवेदिका के पक्ष में निर्णय दिया था, जिसके विरोध में  जिलाधीश के न्यायालय में अपील की गई थी। जिलाधीश ने अनुविभागीय अधिकारी के न्यायालय में हुए निर्णय को बरकरार रखते हुए अपील खारिज कर दी। जिला प्रशासन ने जब ऐसे सभी लंबित मामलों के निराकरण प्रारंभ किया, तो पूरे जिले में बवाल उत्पन हो गया। कई समूहों ने इसे राजनैतिक रूप देने का प्रयास किया। मामला पूरे देश में तब चर्चित हुआ जब पत्थलगांव बंधियाखार के एक प्रकरण में निर्णय सुनाते हुए २ फरवरी २००३ को मिशन संस्था की बांउड्री वाल तोडक़र मूल भूमि स्वामी को कब्जा दिलाया गया। इसके बाद जब जनजातियों को कब्जा दिलाने के लिए जिला प्रशासन की टीम ग्राम बड़ा करौंजा में २८ दिसंबर २००३ को पहुंची तो टीम को ही आठ घंटे तक बंधक बना लिया गया। इसी प्रकार ग्राम जुड़वानी में तहसलीदार को, जरिया में आरआई व पटवारी को बंधक बनाया गया। मामले को लेकर अल्प संख्यक आयोग के तात्कालीन अध्यक्ष हामिद अंसारी ने जिलाधीश को कार्रवाई रोकने और अल्प संख्यकों को प्रताडि़त करने का आरोप लगाते हुए जिलाधीश को पत्र भी लिखा था। जिसे जिलाधीश ने न्यायालयीन कार्रवाई में हस्तक्षेप मानते हुए न्यायालय की अवमानना का नोटिस आयोग के अध्यक्ष हामिद अंसारी को भेजा था। इसके बाद आयोग की दो सदस्यीय दल ने जिले की स्थिति का निरीक्षण किया और जन सुनवाई की, जिसमें आयोग के सदस्यों ने न्यायालयीन कार्रवाई को सही मानते हुए शिकायतों को निरस्त कर दिया।

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