चीन अपनी विभिन्न प्रतिक्रियाओं से भारत समेत पूरी दुनिया को यह बताने-जताने की बराबर कोशिश कर रहा है कि संपूर्ण दक्षिण चीन सागर ही नहीं, वरन् स्प्रेतली द्वीप भी उसके है। इन द्वीपों में काफी मात्रा में तेल और गैस मिलने की संभावनाएं है। इस कारण दक्षिण चीन सागर में तेल और गैस की खोज करने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ उसका है। चीन का आरोप है कि भारत का वियतनाम के साथ तेल की खोज का अनुबंध करना गंभीर राजनीतिक उकसावा है। वह इस क्षेत्र के देशों के दावों को तो एक बार मान भी सक्ता है, किन्तु उसे दूसरे देशों की अपने इलाके में हस्तक्षेप मंजूर नहीं है। चीन के इस दावे के विपरीत वियतनाम का कहना है कि संयुक्त राष्ट्रसंघ के समझौते के अनुसार ब्लाक संख्या और पर उसके सम्प्रभु अधिकार है। इनमें तेल की खोज के लिए चीन से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। दक्षिण सागर को लेकर चीन की वियतनाम समेत इस क्षेत्र के दूसरों देशों के साथ तनातनी नयी नहीं है।
चीन अपने नौसैनिक शक्ति के बल पर दक्षिण चीन सागर और इसके तेल तथा गैस पर अपने एकमात्र स्वामित्व होने का दावा कर रहा है जबकि यह सागर ही इस इलाके के मुल्कों को आर्थिक गतिविधियों के संचालन का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है। उसके इस दावों को अमरीका भी नहीं मानता, लेकिन वह इस क्षेत्र चीन, ताइवान, फिलीपींस, मलेशिया, इण्डोनेशिया, वियतनाम के विवादित दावों का मध्यस्थता कर अंतर्राष्ट्रीय तंत्र गठित करने में सहयोग करने को तैयार है, यह संकेत गत वर्ष अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने जरुर दिया था।
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