शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

चीन की चुनौतियों पर सरकार की उपेक्षा चिंताजनक




राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए प्रभावी  कदम उठाना जरुरी

                     राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सरकार्यवाह सुरेश भय्याजी जोशी ने कहा है कि अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार की समस्या से जुड़े विचार और आंदोलन के समर्थन में उन्होंने जो पत्र अण्णा हजारे को लिखा था, उसे कांग्रेस के महासचिव राजनीतिक षड्यन्त्र के रूप में देख रहे हैं और श्री अण्णा हजारे जैसे व्यक्ति भी कुटिल राजनीतिक चाल से प्रभावित हो गए, यह खेदजनक है।
                 दूसरी ओर संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मण्डल ने देश को चीन से मिल रही चुनौतियां तथा उनके प्रति सरकार की उपेक्षा के प्रति गंभीर चिंता जताई है तथा सरकार से आह्वान किया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर निरन्तर सजग रहते हुए सरकार को इस दिशा में प्रभावी कदम उठाना चाहिये।
                  श्री जोशी के मुताबिक अण्णा हजारे ध्येय समर्पित व्यक्ति हैं और देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन की सफलता का श्रेय भी उन्ही को मिलता है। विभिन्न कार्यक्रमों में उनके द्वारा व्यक्त विचार एवं उनके द्वारा किए गए विकासात्मक कार्यों से मैं और देशभर के हजारों कार्यकर्ता परिचित हैं एवं प्रभावित भी हैं। श्री जोशी ने साफ किया कीकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ककक्के पूज्य सरसंघचालक मोहन राव भागवत द्वारा अन्ना के आंदोलन के संदर्भ में व्यक्त किए गए विचार एवं आंदोलन के समर्थन में मेरे द्वारा भेजे गए पत्र को षड्यंत्र के रूप में देखना यह समझ के परे है, वेदनादायक है। राष्ट्रवादी शक्तियों को सामूहिकता से ऐसे प्रयासों को विफल करना चाहिए। भ्रष्टाचार के विरोध में चल रही यह लड़ाई सफल होने से ही देश के भ्रष्टाचार मुक्त होने का मार्ग प्रशस्त होगा। चीन की गतिविधि को गंभीरता से लें :-
               राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकारी मण्डल ने अपने प्रस्ताव में चिंता जताई कि चीन भारतीय सीमा पर सैन्य दबाव बनाने के साथ-साथ वहाँ पर बार-बार सीमा का अतिक्रमण करतेके हुए सैन्य व असैन्य सम्पदा की तोड़ फोड़ एवं सीमा क्षेत्र में नागरिकों को लगातार आतंकित कर रहा है। इसके अलावा भारत की सुनियोजित सैन्य घेराबन्दी करने के उद्देश्य से हमारे पड़ोसी देशों में चीन की सैन्य उपस्थिति, वहाँ उसके सैनिक अड्डों का विकास व उनके साथ रणनीतिक साझेदारी को भी गंभीरता से लेने की आवश्यकता है।

भारत को सतर्क रहना जरूरी :-

                  पाकिस्तान का भारत के विरुद्ध सशस्त्रीकरण व वहाँ पर भारत विरोधी आतंकवाद जो संरक्षण, पाक अधिकृत जम्मू कश्मीर में चीन की सैन्य सक्रियता, माओवाद के माध्यम से नेपाल में शासन के सूत्रधार के रूप में उभरने के प्रयत्न एवं बांग्लादेश, म्याँमार व श्रीलंका में चीनी सैन्य विषेशज्ञों की उपस्थिति चिंता का विषय है और केन्द्र सरकार को इसका माकूल जवाब देना चाहिये।
               राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मण्डल की बैठक में हिस्सा लेने के बाद छत्तीसगढ़ के प्रांत सह संघचालक श्री पूर्णेन्दु सक्सेना ने बताया कि चीन द्वारा अपने साइबर योद्धाओं के माध्यम से देश के संचार व सूचना तंत्र में सेंध लगाने की घटनाएँ एवं देश के विविध संवेदनशील स्थानों के निकट अत्यन्त अल्प निविदा मूल्य पर परियोजनाओं में प्रवेश के माध्यम से अपने गुप्तचर तंत्र का फैलाव भी देश की सुरक्षा के लिये गंभीर संकट उत्पन्न करने वाला है।

संसद के संकल्प को भी भुला दिया :-

कार्यकारी मण्डल ने खेद जताया कि चीन द्वारा १९६२ के युद्ध में हस्तगत की गयी देश की ३८,००० वर्ग किमी भूमि को वापस लेने के उसी वर्ष के १४ नवम्बर के संसद के संकल्प को भारत सरकार ने तो विस्मृत ही कर दिया है. दूसरी ओर चीन हमारे देश की ९०,००० वर्ग किमी अतिरिक्त भूमि पर और दावा जता रहा है जिस पर सरकार की प्रतिक्रिया अत्यन्त शिथिल रही है।

भारत के बाजार में चीनी दखल :-

भारतीय बाजारों में चीन के उत्पादों की भरमार से रुग्ण होते भारतीय उद्यमों के साथ-साथ चीन के साथ भारी व्यापार घाटा भी देश की अर्थव्यवस्था के लिये अत्यन्त गंभीर चुनौती बनकर उभर रहा है। दूरसंचार के क्षेत्र में प्रथम पीढ़ी की दूरसंचार प्रौद्योगिकी के विकास के आगे भारत द्वारा कोई प्रयत्न नहीं करने से आज तीसरी व चौथी पीढ़ी की अर्थात् ३जी व ४जी दूरसंचार प्रौद्योगिकी के सारे साज-सामान चीनी ही लगाये जा रहे हैं। यह हमारे सूचना व संचार तंत्र की सुरक्षा के लिये संकट का द्योतक है।

ब्रह्मपुत्र से चीनी खिलवाड़ :-

इसी तरह चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र नदी व अन्य अनेक नदियों के बहाव को मोडऩे की शुरुआत के विरुद्ध भी कड़ा रुख अपनाते हुए भारत को चीन व तिब्बत से निकलने वाली नदियों के बहाव को मोडऩे से प्रभावित होने वाले सभी देशों यथा बाँग्लादेश, पाकिस्तान, लाओस, वियतनाम, कम्बोडिया, थाईलैण्ड व म्याँमार को साथ लेकर नदी जल के न्यायपूर्ण वितरण के समझौते के लिए चीन को बाध्य करना चाहिए।

पाकिस्तान की गतिविधि चिंताजनक :-

श्री सक्सेना के मुताबिक संघ के कार्यकारी मण्डल ने चिंता जताई कि भारत की पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान की गतिविधियां भी चिन्ताजनक हैं। स्वयं प्रधानमंत्री ने सेना के कमाण्डरों को सम्बोधित करते हुए स्वीकार किया है कि सीमा पार से घुसपैठ  की घटनाओं में विगत कुछ माह के दौरान अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। एक अनुमान के अनुसार अकेले कश्मीर की सीमा पर विगत साढ़े चार माह के दौरान छिटपुट फायरिंग या घुसपैठ की ७० घटनाएँ घटी हैं।
पाक सेना में कट्टरपंथियों का बढ़ता प्रभाव वहां के परमाणु हथियारों की सुरक्षा को लेकर भी एक गंभीर चुनौती बनता जा रहा है. विगत दिनों सम्पूर्ण विश्व में आतंकवाद का सरगना माने जाने वाले ओसामा बिन लादेन का पाकिस्तान में मारा जाना और वहाँ उसकी सपरिवार वर्षों तक रहने की पुष्टि, पाकिस्तानी सेना व आई.एस.आई. के अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के साथ गहरे सम्बन्धों को प्रकट करता है।

आई.एस.आई और चीन की सांठगांठ :-

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आगे कहा कि विगत दिनों दिल्ली उच्च न्यायालय के बाहर हुए विस्फोट में एक बार पुन: आई.एस.आई. की संलिप्तता के प्रमाण मिले है। इधर इस बात के भी पर्याप्त प्रमाण मिल रहे हैं कि माओवादियों को मदद पहँचुचाने में आई.एस.आई. का नेटवर्क चीन की मदद कर रहा है परन्तु इस सारे परिप्रेक्ष्य में भारत सरकार का रवैया अभी भी निष्क्रियता का ही बना हुआ है।

बांग्लादेश से घुसपैठ का खतरा :-

सितम्बर २०११ में बाँग्लादेश के साथ हुई वार्ता में राष्ट्रीय हितों की ओर पूरा ध्यान नहीं दिया गया है। असम व प. बंगाल की कई हजार एकड़ भारतीय भूमि को यह कहकर बाँग्लादेश को सौंपना कि ‘‘वहाँ पर उनका अवैध अधिकार पहले से ही है’’, किसी भी तरह उचित नहीं माना जा सकता. भूमि की अदला-बदली में कम भूमि पाकर अधिक भूमि देने की बात विवेकहीन व अस्वीकार्य है साथ ही ऐसा करने से कूचबिहार व जलपाईगुड़ी जैसे जिलों में बड़ी संख्या में बाँग्लादेशी मुसलमानों को भारतीय नागरिकता मिल जाएगी, जिसके परिणामस्वरूप वहाँ की जनसांख्यिकी बदल जाने से वहाँ अलगाववाद का संकट बढ़ेगा। दुर्भाग्य की बात यह है कि ऐसी वार्ताओं में भारत में अवैध रूप से रह रहे करोड़ों बाँग्लादेशी घुसपैठियों के बारे में कोई चर्चा ही नहीं की जाती है। कार्यकारी मण्डल की माँग है कि बाँग्लादेश से होने वाले समझौतों में राष्ट्रहित, एकता और क्षेत्रीय अखण्डता के मुद्दों को सर्वोपरि रखा जाना चाहिए।     

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