संपादकीय
धर्मान्तरण का निरंतर पोषित होता कार्यक्रम नासुर बन चुका है। केवल छत्तीसगढ़ ही नहीं, देश भर में धर्मान्तरण कार्य जोरों पर है यह चिंतनीय है। आजादी के समय ईसाई धर्म को मानने वाले लोगों की जनसंख्या २ प्रतिशत से भी कम थी। परन्तु आज उनकी संख्या नीत बढ़ते जा रही है। महात्मा गांधी ने भी कहा था कि सेवा भाव से कार्य करने में कोई गुनाह नहीं। परन्तु सेवा के आड़ में धर्मान्तरण करना सबसे बड़ा गुनाह है और भारत इसकी इजाजत नहीं देगी। मिशनरियों ने भी धर्मान्तरण के लिए गरीब, दलित एवं जंगलों में रहने वाले वनवासियों को चिन्हांकित किया। कई राज्य सरकारों ने इस पर कानून बनाया। परन्तु कानून को सही अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका। आज हालात यह है कि छत्तीसगढ़ में ही धर्मान्तरित लोग अपने आप को छत्तीसगढ़वासी नहीं मानते और दूसरे धर्म के लोगों से दोयम दर्जे का व्यवहार करने लग जाते है। समस्या सिर्फ गांव में ही नहीं, शहरों में भी बढ़ते जा रही है। एक ईसाई हिन्दू बस्ती के बीच में किराये के मकान में रहने आया। लोगों से संपर्क बढ़ाया, अपने घर पास्टर को बुलाकर दुआ प्रार्थना करवाया। उस दुआ प्रार्थना में हिन्दू पड़ोसियों को भी सम्मिलित करवाया। यहां से सिलसिला शुरु हुआ हिन्दू धर्म के खिलाफ जहर उगलने का। पहले अगरबत्ती के धुएं को नुकसान बताया, फिर देवी-देवताओं के तस्वीर को हटाकर भटकने से बचने की सलाह दी। जब बात उससे नहीं बनी तो फिर उल्टे-सीधे आरोप लगाकर बदनाम करने की साजिश रचने लगे। इस प्रकार मिशनरियों के द्वारा धर्मान्तरित ईसाईयों को ऐसी ट्रेनिंग भी दी जाती है। इससे जाहिर होता है कि उनके योजना क्या है? सेवा कार्य कहीं भी किया जा सकता है। इसका मतलब यह नहीं कि सेवा कार्य की आड़ में धर्मान्तरण का जाल फैलाया जाये, भ्रमित किया जाये। केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश ने भी ईसाई संगठनों को अगाह करते हुए कहा कि नक्सली क्षेत्रों में सेवा कार्य करे, लेकिन सेवा के आड़ में धर्मान्तरण गतिविधि न चलाये। उन्हें लक्ष्मण रेखा का सम्मान करना चाहिए।
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