गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

राजनीति से नहीं नीति पर करें काम



जनजाति सुरक्षा मंच एवं समाजनीति समीकरण केन्द्र दिल्ली द्वारा भारत की अनुसूचित जनजातियां धर्मानुसार जन सांख्यिकी एवं प्रतिनिधि विषय पर प्रकाशित पुस्तिका लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए गृह, जेल व सहकारिता मंत्री ननकीराम कंवर ने जनजाति समाज को एकजुट होने का आह्वान करते हुए कहा कि राजनेता राजनीति से हटकर समाज नीति पर काम करें। प्रदेश के आदिवासियों क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा की बदतर स्थिति पर चिंता जताते हुए श्री कंवर ने कहा कि इस दिशा में गंभीरता से प्रयास करने की जरुरत है। उन्होंने समाज की जनप्रतिनिधियों से सवाल किया हम अपने समाज के लिए क्या कर रहे हैं इस बात वे चिंतन करें...

श्री कंवर मेडिकल कालेज सभागार में आयोजित पुस्तक लोकार्पण समारोह के अवसर आयोजित सभा को संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे, अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष दिलीप सिंह भूरिया व अध्यक्षता गृह, जेल व सहकारिता मंत्री ननकीराम कंवर ने की। विशिष्ट अतिथि विश्लेषक जनसांख्यिकी अनुसूचित जनजाति डॉ. जितेन्द्र बजाज एवं अखिल भारतीय संयोजक जनजाति सुरक्षा मंच हर्ष चौहान शामिल हुए। प्रतिभागी वक्ता के रुप में राज्यसभा सांसद छत्तीसगढ़ नंदकुमार साय, पूर्व प्रतिपक्ष नेता, छत्तीसगढ़ विधानसभा महेन्द्र कर्मा, गोंडवाना गोंड महिला महासभा छत्तीसगढ़ की अध्यक्ष श्रीमती कमलादेवी नेताम, पूर्व मंत्री गणेशराम भगत ने विचार रखे।

सामाजिक सहमति की स्थितियां न बनना सबसे बड़ा संकट : कर्मा

पूर्व प्रतिपक्ष नेता, छत्तीसगढ़ विधानसभा महेन्द्र कर्मा ने आदिवासी समाज के प्रबुद्धजनों और राजनेताओं को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि समाज के प्रबुद्धजनों और मंत्री तक अपने समाज को समझने का प्रयास नहीं किया। इसे केवल राजनीतिक नजरिये से देेखा है। सामाजिक सहमति की स्थितियां न बनना बहुत बड़ा संकट है।
श्री कर्मा ने कहा कि आज जनजाति समाज में जागरुकता की नहीं जानकारियों का अभाव नजर आता है। उन्होंने समाजजनों से कहा कि आदिवासियों के हक को लेकर संसद में बहस होनी चाहिए। अनुसूची में संवैधानिक व्यवस्था है। क्या संशोधन हम चाहते हैं उसे मिलकर तय करें और मानसिक रूप से तैयार होकर सामाजिक स्तर पर संगठित होने की जरुरत है।

जशपुर क्षेत्र से आये पूर्व मंत्री गणेशराम भगत ने कहा सभी समस्याएं आदिवासी क्षेत्रों में ही क्यों हैं, कहां पर हम चूक रहे हैं इस पर चिंतन होना चाहिए। वन क्षेत्रों में धर्मान्तरण और नक्सलवाद क्यों?
वनवासी मेहनतकश व ईमानदार हैं बेईमान नहीं। उस नस को हम कैसे नहीं पकड़ पा रहे हैं, कौन पकड़ेगा कहां चूक हो रही है? वनवासी धन-दौलत का भूखा नहीं प्यार का भूखा है। नक्सलवाद के खात्मे के लिए आदिवासियों को आत्मरक्षा के लिए स्वयं को आगे जाने की जरुरत है।

राज्यसभा सांसद नंदकुमार साय ने कहा कि आरक्षण का ज्यादा फायदा धर्मान्तरित उठा रहे हैं। इसके मूल कारणों का विचार करें तो पाएंगे कि हमारे यहां जितने भी शासकीय शिक्षण केन्द्र हैं मृतप्राय हैं। उच्चशिक्षा में पिछडऩे के कारण छत्तीसगढ़ व मध्यप्रदेश में हमारे बच्चों को अंग्रेजी नहीं पढ़ाई गई। हमारे यहां शिक्षण का स्तर बहुत कमजोर हैं। दूसरी बात समाज में जागरुकता आवश्यक है। जनजातियों की अपनी समृद्ध सामाजिक व सांस्कृतिक पंरपरा रही है। उसे संरक्षित करने की जरुरत है। आदिवासियों को आरक्षण इसलिए दिया गया। ना कि आर्थिक कारणों से आरक्षण दिया गया। राज्य सरकार की एक रुपया किलो चांवल देने की योजना ने समाज को आलसी बना दिया है। हमारे समाज में गरीबी का कारण असंग्रही प्रवृत्ति  है। जो लोग कई पुरखों के लिए धन जमा कर रख रहे हैं उन्हें हमारे समाज को सीख लेना चाहिए।

सभा को विशिष्ट अतिथि विश्लेषक जनसांख्यिकी अनुसूचित जनजाति डॉ. जितेन्द्र बजाज एवं अखिल भारतीय संयोजक जनजाति सुरक्षा मंच हर्ष चौहान ने भी संबोधित किया। इस अवसर पर प्रदेश भर से आए समाज के प्रतिनिधि व प्रबुद्धजन उपस्थित थे।

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