गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

बिना कार्यक्रम कोई कार्य नहीं


हम वाद्य बजाते है। दुनिया में हम नहीं सभी लोग कुछ न कुछ बजाते है। पहले संगीत शुरु हुआ तालियों से हुआ। पहले विशिष्ट अंतर से ताली देते है। तो अच्छा लगने लगता है। अपने शरीर के अन्दर हृदय का ताल चल रहा है बिगड़ गया तो आदमी चला जाता है...

सम्पूर्ण प्रांत का पहला घोष वादको का शिविर है। स्वाभाविक वादक करने वाले सभी स्वयंसेवक आये। सीखने और करने के लिए आप पूरे शिविर में वादन की चर्चा रही थी क्या नया सीखा कार्यक्रम है। किसी कार्य करना है तो कोई न कोई कार्यक्रम करना है। कार्यक्रम बनाने से कार्य होता बिना कार्यक्रम कार्य नहीं।
कार्यक्रम ही काम हुआ या होना है। वह रहेगा ही रहेगा। बिना कार्यक्रम के कार्य नहीं होता बिना कार्यक्रम।
सायकल को आगे ले जाना है यह कार्य है। इसके लिए अनिवार्य कार्यक्रम सायकल का पैड मारने से पीछे चक्का चलने लगे तथा आगे का चक्का चलने लगे आगे हम दुर्ग तक चल सकते है। यदि सायकल स्टैण्ड पर लगाकर खुब पैडल मारे। लेकिन चक्का घुम रहा है हम दुर्ग नहीं पहुंच सकते है। क्योंकि उद्देश्य दुर्ग नहीं पहुंचा।

हम वाद्य बजाते है। दुनिया में हम नहीं सभी लोग कुछ न कुछ बजाते है। पहले संगीत शुरु हुआ तालियों से हुआ। पहले विशिष्ट अंतर से ताली देते है। तो अच्छा लगने लगता है। अपने शरीर के अन्दर हृदय का ताल चल रहा है बिगड़ गया तो आदमी चला जाता है। संगीत स्वाभाविक है। प्राचीन काल से किसी वाद्य के आधार पर, मनुष्य के स्वर के आधार पर पशु के जैसे कोयल की पंचम् स्वर है। मोर-मद का स्वर, गाय का रंभाना दोहतम स्वर है।

ताल सूर मिला हुआ संगीत यह पुराना कार्य करते है। शादी विवाह में बिगुल, बंशी बाकी वाद्य रहते है। वही वाद बजाते है हम वादक बजाते है। नागपुर में ४० गांव के बैड था। बहुत प्रसिद्ध था। शादी-विवाह में वे लोग जाते थे, शास्त्रीय गीत होते है। बजाने वाले अच्छे अफसर और जाने वाले अधिकारी थे। वह अच्छे वादन करते थे। छुट्टी रहता था संगीत में रुचि था। रोज आकर बजाते थे शादी के समय पैसा कमाने के लिए यही काम करते थेे। अच्छे ड्रेस और समय के लिए उपयोग करना यदि पैसा कमाना यदि कार्यक्रम करना पैसा मिलता है तो कार्यक्रम करते थे। अभ्यास रोज करते थे। कुछ वाद्यों को खर्च निकालने के लिए वे लोग बजाते है।

वह वादन करते है तो हम शौकिया वादन करते है क्या? एक-दो होंगे जो संगीत में रूचि होगा। हम लोग देशकार्य करने निकले है। इसलिए यह सब करते है।
भीमसेन जोशी का नाम सुना है- जब वह यादव राव जोशी आये तो तुरंत मंच से उतरे और यादव राव जोशी को प्रणाम किया। वापस जाकर पुन: गाना प्रारंभ किया। यादव राव जोशी के बारे में नागपुर में रजिस्टर्ड में लिखा है बड़े गुलाम अली खाँ - उनके सामने यादव राव जोशी का गाना हुआ। उन्होंने लिखा आने वाले दिनों में संगीत के जैसे कोई हीरा निकलता है लेकिन संघ के लिए निकले तो सब कुछ भूल गये। ४० वर्ष बाद उनका प्रवास हुआ, पुराने मित्रों से मिलने का कार्यक्रम मिला। कभी मैं गाने वाला था। जब से संघ का कार्य पकड़ा तब से संगीत मैं भूल गया हूं।
अपना कार्य आगे बढ़ाने के लिए उपयुक्त कार्यक्रम है। 

कामठी कैम्टाल कैंपस के बाहर सुनकर लिख लेते थे। आगे चलकर एक रचना सीखने के लिए १० बार जाते थे। साइकल या पैदल जाकर कम्पाउंड से जाकर सुनकर उसको लिपिबद्ध करते थे।
कर्नजोगी फिल्म में था मिलिट्री का धुन था। उस धुन को सिनेमा में जाकर सात बार सुनकर उसको लिखा गया। इतना परिश्रम किया जाता था। पुलिस और मिलिट्री के लोगो से सीखा गया। शुरु में एक ईसाई प्रशिक्षक से भी धुन और उसका प्रशिक्षण उस समय के स्वयंसेवकों ने परिश्रम से सीखा।
संघ में स्वयंसेवकों ने ऐसा सीखा कि बड़े-बड़े संगीतकार ने दांत खड़े किये। कहा कि रण संगीत में आप लोगों ने जो ग्रंथ लिखे है वह आधुनिक संगीत के लिए एक नया लिपि तैयार हुआ है। बापूराव दान्ते ने लिखा, मिलिट्री के लोग देेखते है कि ये पैड वर्क करने वाले लोग नहीं है लेकिन इनका संगीत उत्कृष्ट है। इसमें कोई समझौता नहीं है। पूजा का प्रयोग उत्कृष्ट होना चाहिए। इसलिए पूजा में उपयोग होने वाला उपकरण भी स्वक्छ होना चाहिए। हम पूजा के लिए पुष्प भी स्वयं जाकर अपने हाथों से तोड़ते है। जमीन पर अथवा गंदे पुष्प को पूजा के लिए उपयोग नहीं करते। बिहार में छठ की पूजा होती है, बहुत ही कठिन पूजा है। पूजा से पूर्व एक खेत जहां पर चिडिय़ा भी चोंच न मार पाये का चयन करते है। सब रिश्तेदार उस खेत की रखवाली करते है तथा उस खेत का अन्न अलग-अलग कर किसी प्रकार से जुठन न हो। छठ पूजा के लिए बिना जुठन के अन्न का उपयोग होता है। घर की माताएं स्नान कर इस अन्न से सूर्य भगवान के लिए भोग बनाती है तथा कठिन व्रत का पालन करती है। जब तक सूर्य की अर्घ न दे दे तब तक ग्रहण नहीं करती। क्या यह भगवान को नहीं चलता? नहीं। पर भावना हमारी ऐसा है। समाज पुरुष राष्ट्र पुरुष का आराधना है। इसलिए संगीत शास्त्र में भी नहीं चलता। एक स्वर अलग हुआ तो पूरा बेसुरा हो जाता है। आनख का ताल कसना बराबर स्वर श्रृंग वादकों का स्वर मिलना पड़ता है। किस शंख का कितना बजाने से ठीक से स्वर निकलेगा। इसलिए पहले स्वर मिलन या ताल मिलन करते है। क्योंकि वादन उत्कृष्ट होना चाहिए। ठीक से कदम से कदम मिलाकर हमें चलना चाहिए। क्योंकि हमारा कार्य मनुष्य निर्माण का कार्य है। कार्यक्रम ढिलाढाला हुआ तो उसमें से सीख कर बनने वाला मनुष्य ढिलाढाला होगा। इसलिए कार्यक्रम व्यवस्थित, अनुशासन उत्कृष्ट होना चाहिएए। क्योंकि हम राष्ट्र पुरुष की पूजा करते है। इसलिए भी हमारा वादन उत्कृष्ट होना चाहिए। शरबत में चार चम्मच चीनी डाले और एक चम्मच करेला का रस डालते है वह भी असर करेगा। लेकिन दूध में एक बूंद नींबू रस डाले तो पूरा दूध फट जायेगा। घोष शौक में नहीं बजाते, हम संघ के लिए इसका वादन करते है। इस वादन करने के लिए जिन-जिन गुणों की आवश्यकता आवश्यक होती है इस संगीत के लिए उसका विकास भी होता है। यह सब कार्यक्रम मनुष्य निर्माण के लिए है। संघ में यह शारीरिक विभाग के अंतर्गत आता है। अपना शारीरिक विभाग मजबूत हो, इसलिए घोष को इसमें शामिल किया गया है। बौद्धिक विभाग सुनना, विचार करना, अध्ययन करना, चिंतन करना इसलिए संघ में इस विभाग का यह कार्य है। किसी के गाने से भीड़ हो जाती है यदि कोई बेसुरा हो तो भीड़ भी भाग जाती है। 

दो बातें अनिवार्य है- समरसता और समन्वय। 

अलग-अलग भाषा विचार, व्यवहार का समन्वय है। यही संघ है। पूरे देश में लोग रहने वाले उनका समन्वय ही संघ में मिलता है। हम सभी लोग मिलकर घोष का वादन सभी स्वयंसेवक करते है। यह समन्वय का कार्य है। एक दूसरे के सुर मिले, सबको साथ लेकर चलना, प्रणव पर ताल मिलाना,  उसकी गति पर सभी को वादन करना पड़ता है। ताल एक स्थान पर मिलता है, आनक, वंशी और शंख सभी को अपना-अपना कार्य करना पड़ता है।

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