गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

...तो संविधान हमारी रक्षा नहीं कर सकेगी


छत्तीसगढ़ में पहली बार भिलाई स्थित पं. दीनदयाल उपाध्याय परिसर में आयोजित भव्य नाद संगम घोष शिविर के समापन के अवसर पर हजारों स्वयंसेवकों, प्रमुख नगरवासियों को संबोधित करते हुए सरसंघचालक मोहन राव भागवत ने कहा कि संसद के अंदर भले ही एक दूसरे के विरोधी रहे परन्तु समाज में, देश में एक रहना होगा नहीं तो यह संविधान भी हमारी  रक्षा नहीं कर सकती...

छत्तीसगढ़ में पहली बार नाद संगम हुआ है, वह भी सक्रांति के शुभ अवसर पर। यह वही सक्रांति पर्व है जो पूर्व वर्षों में स्वामी विवेकानंद जी के जन्म दिवस पर आता था। इस कार्यक्रम को लेकर एक स्वाभाविक प्रश्न है कि इस कार्यक्रम का प्रयोजन क्या है ? यह संगीत का कार्यक्रम है कला का कार्यक्रम है, यह संगीत के रसीक वर्ग के लिए अच्छा है। लेकिन देश की परिस्थिति से इस कार्यक्रम का क्या संबंध है ? हमें सोचना होगा देश की परिस्थिति पर नियंत्रण करने वाला कौन है ?

 स्वमी विवेकानंद का वचन है कि  तुम्ही परिस्थिति के निर्माण करता हो और तुम्ही परिर्वतन के भी नियंत्रण करता है। ना जानते हुए भी हम परिस्थिति का निर्माण करते है। परिवर्तन करते है और भुल जाते है। हममें सारा समर्थ है परन्तु जुटेगा कैसे ? उस समर्थ से रुबरु कैसे होगा ? स्वयं के जीवन का विचार या देश की जीवन का विचार करना हो सबका यही प्रयास रहता है। लेकिन आदमी बाहर देखकर डरते रहता है। उसको पता नहीं है कि बाहर का सारा नियंत्रण उसके हाथ में है।

महाभारत  युद्घ के पश्चात का एक प्रसंग सुनाते हुए श्री भागवत जी ने कहा की पाकिस्तान बार बार युद्घ करता है और युद्घ में छोटा होता चला जाता है। बाहर की परिस्थिति हमको डराता है। 
  
 हम उस पर बहुत विचार करते है। सारी परिस्थिति के जिम्मेदार हम है। नहीं तो क्या कारण है कि सीमा के बाहर हजारों किलोमीटर दूर से मुट्ठी भर आक्रमणकारी देखते ही देखते सारे विश्व को जीतकर सैकड़ो वर्ष तक राज करते है। पहले अरबो की गुलामी बाद में यूरोपियो के गुलाम थे। हम किस बात में कम थे ? हमारे पास सब कुछ था। दुनिया में हमारा देश सोने की चिडिय़ा कहलाता था। हमारे देश के शुरवीरो की गूंज पूरी दुनिया में सुनाई पड़ती थी। किसी में भी इतनी हिम्मत नही थी कि भारत पर कोई आक्रमण करे।
यह कैसे हुआ इस पर संविधान सभा में डॉ. अंबेडकर राव ने कहा है कि हमें नही भुलना चाहिए कि हमारा देश का इतिहास  ऐसा रहा कि पूरी दुनिया की कोई ताकत हमे जितने में समर्थ नही थी। आपसी झगड़े में हमने अपने देश को तश्तरी में दुश्मन को पेश किया था। हम किसी से कम नही थे। हमें कोई हरा नही सकता था।  हम आपसी मतभेद की वजह से हारे। यही कारण है कि हम आज संसद में एक दूसरे के विरोधी बने बैठे है। परन्तु यह विरोध संसद के अन्दर है। लेकिन समाज में हमें एक सुत्र में रहना होगा। सारे देश को एक रखना होगा। नहीं तो यह संविधान अभी अपनी रक्षा नहीं कर सकता। अपने देश के लिए प्रमाणीकता से निस्वार्थ बुद्घि से काम करने वाले सब महा पुरुषो की यही सीख है। हम स्वार्थी हो गये है। हम एक दूसरे का नाता भूल गये है। हम आपसी मतभेदो में उलझ गये है। उसके चलते हमारी अवनती हुई है।

स्वतंत्रता के बाद क्या हुआ ? समस्याएं बहुत है। आंदोलन बहुत हुआ। परन्तु समाधान नहीं निकलता है।  समाज के लोगों जागृत हो चुके  है। जनता उठ खड़ी होती है। लगता है सब बदल जाएगा। जयप्रकाशजी आए लगा सम्पूर्ण क्रांति हो जाएगी। परन्तु समाधान नहीं निकला।

भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चल रहा है। उसको संघ का समर्थन है। इस मामले में संघ यह नहीं देखेगा कि कौन अपना है कौन पराया। संघ का कहना है कि भ्रष्टाचार के विरुद्घ कड़ा कानून बनना चाहिए। हम कहते है कि भ्रष्टाचार आया कहां से है ? और कौन भ्रष्टाचार कर रहा है? लोग कहते है कि सत्ता और नेता भ्रष्ट है।
परन्तु अपने अन्दर झांक कर देखें कि हम कैसे है? लोग कहते है कि काला धन वापस आना चाहिए। इसके लिए प्रयास करने वाले जो भी लोग है। इस प्रयास में संघ के स्वयंसेवक मदद करेगें।

संघ का प्रस्ताव भ्रष्टाचार मुक्त जीवन की दृष्टि की शिक्षा से है। यही संघ की शिक्षा है। हम कहते है कि हम हिन्दू है। हिन्दू कैसे हुए ? इस पर स्वामी विवेकानंद जी ने कहा कि हिन्दू-हिन्दू कहते हो तुम हिन्दू तब कहलाओगे जब कोई भी व्यक्ति निराश्रीत व्यक्ति के दुख का निवार्ण नहीं कर लेते है तब तक तुम हिन्दू नही कहलाओगे। हिन्दू का अर्थ ही दुसरे के सुख-दु:ख में साथ रहना है।

जैसा समाज वैसा नेता। भ्रष्टाचार अपने ही आचरण से आता है। हमारे यहां लोग उनकी पूजा करते है जिसने राज्य के लिए अपना सब कुछ ठुकरा दिया। हम राजा की पूजा नहीं करते, बल्कि समाज की सेवा करने वालों की पूजा करते है। सारी दुनियां  के हालात अच्छे नहीं है। सबकी निगाह भारत की ओर है। अमेरिका, चीन के हालात भी अच्छी नहीं है। वे भी भारत के ओर देख रहे है। आखिर क्यों हम अपने ही को भूल गये है ? इस पर उन्होंने हनुमानजी के प्रसंग सुनाते हुए कहा कि जिस प्रकार हनुमान जी अपनी शक्ति को भूल गये थे, तब जामवंत द्वारा याद दिलाने पर उन्हें अपनी शक्ति का अहसास हुआ। उसी तरह हमें भी अहसास होना चाहिए, हम वे लोग है जो कहते हैं दुनियां में सारी विविधता एक रहे, सृष्टि का शोषण न हो। सृष्टि ने हमें बहुत कुछ दिया है। जीतना उससे लिया है उससे दुगना उसे दो। भारत की यही संस्कृति है। भारत में रहने वाले यूरोप, अरब से नहीं आया है। सब यही के है। इसलिए संघ कहता है कि हम हिन्दू है। कुछ लोग जानते नहीं है। कुछ लोग जानते है, पर मानते नहीं।

रवीन्द्रनाथ जी ने कहा था कि अंग्रेजों ने हिन्दू मुस्लिम को तोडऩे के लिए बंग के  विभाजन का प्रयास किया, परन्तु लोग विरोध में खड़े हो गये। सरकार को फैसला बदलना पड़ा। भारत में सत्ता के आधार पर परिवर्तन नहीं हुआ। समाज के आधार पर परिवर्तन होता है।

भारतीय संगीत कान से मन में उतरता है और मन से आचरण में उतरता है। संगीत के स्वर सब को मील कर काम करने की प्रेरणा देते है। एक अकेले नहीं सभी साज एव ताल मिलाकर चलें। संघ यही सिखाता है। यह नाद संगम भाई-भाई है ऐसा रिश्ता हम सब के साथ जोड़ेगा। यदि जनता सोचें तो सत्ता के प्रशासन में दम नहीं होगा कि वह परिवर्तन को रोक सके। यह संघ का विचार नहीं यह भारतभूमि का विचार है।
इस कार्यक्रम के अध्यक्षता कर रही खैरागढ़ इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. मांडवी सिंह ने भी सभा को संबोधित किया। समारोह का समापन नाद संगम गीत के साथ हुआ।

राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ द्वारा प्रदेश में पहली बार १२ जनवरी को आयोजित नाद संगम घोष शिविर का समापन  अनुशासनात्मक ढंग से भिलाई के पंडित दीनदायाल उपाध्याय खेल परिसर में हुआ। इस मौके पर संघ के हजारों स्वयंसेवकों के साथ भाजपा के दिग्गज नेताओं ने भी शिरकत की। संघ प्रमुख डॉ. मोहन राव भागवत ने समापन के मौके पर जनसभा को संबोधित करते हुए यह भी साफ कर दिया कि भ्रष्टाचार के विरोध में आंदोलन करने वाले हर व्यक्ति को संघ का समर्थन रहेगा।

चार दिनों चक चले इस शिविर के समापन समारोह में लोगों की भारी भीड़ उमड़ आई।
डॉ. भागवत की जनसभा के अलावा छात्रों से सीधे संवाद कार्यक्रम में भी उम्मीद से कही ज्यादा विद्यार्थियों की भीड़ सिविक सेंटर स्थित कला मंदिर में देखने को मिली। शहर में उमड़ी भीड़ को नियंत्रित करने के लिए यातायात पुलिस के अलावा शहर के सभी थानों के पुलिस बल को मोर्चा संभालना पड़ा। शिविर में वाद्ययंत्रों को बजाने के लिए पूरे प्रदेश के ७0 केंद्रों से ५२६ स्वयंसेवकों द्वारा की गई मेहनत और अभ्यास का उम्दा प्रदर्शन समारोह के दौरान नाद अभिनंदन में देखा गया। समारोह में संघ के लोगों के साथ-साथ अनुशांगिक संगठनों का उत्साह जमकर छलका।

भाजयुमों ने सुपेला चौक से खुर्सीपार चौक तक बाइक रैली निकाली। जिसमें सैकड़ों बाइकों से भाजयुमों कार्यकर्ता सभा स्थल तक पहुचें। डॉ. भागवत को सुनने दुर्ग जिले के अलावा राज्य के अन्य जिलों से भी सैकड़ों लोगों की भीड़ स्टेडियम में जमा हुई। परिसर का मैदान भी भीड़ को अपने अंदर समेट नहीं पाया। डॉ. भागवत को सुनने की उत्सुकता स्टेंडियम के बाहर सडक़ पर खड़े लोगों में भी दिखाई दी। लगभग दो घंटे तक  चले समारोह को देखने हजारों की भीड़ स्टेडियम में उमड़ गई। समारोह को देखने जितनी भीड़ स्टेडियम के भीतर थी उससे ज्यादा लोग स्टेडियम के बाहर भी डॉ. भागवत को सुनते रहे। लगभग तीन घंटे तक खुर्सीपार चौक पर गाडिय़ों की आवाजाही में भारी अवरुद्ध रही। डॉ. भागवत को सुनने के लिए पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी उपस्थित हुई। समारोह में आए लोगों ने संघ के अनुशासन को अपने आप में बहुत खास बताया। दर्शकों ने यहां तक कहा कि इससे पहले इतना व्यवस्थित कार्यक्रम इस स्टेडियम में नहीं हुआ।

वितरित हुए १० हजार तिल के लड्डू

मकर संक्रांति को हुए समापन समारोह में आए लोगों को तिल का लड्डू बतौर प्रसाद के रुप में वितरित किया गया। इन लड्डूओं की खासबात यह रही की इसका संग्रहण जिले के प्रत्येक स्वयंसेवक के घर से किया गया था। जिससे सभी स्वयंसेवकों के यहां से आए तिल के लड्डूओं की मात्रा इतनी हो गई की लोगों को पूर्ण रूप से वितरित किया गया। पूरे जिले से वितरित करने के लिए लगभग १० हजार परिवार के घरों से तिल के लड्डूओं का संग्रहण किया गया था।

अनुशासन की पाठशाला

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नादसंगम घोष शिविर में मुख्य रुप से अनुशासन आकर्षण का केन्द्र बना। जो कि संघ के अलावा बाहरी लोगों के लिए भी प्रेरणा स्त्रोत रहा। एक ही गणवेश में एक ताल पर कदम से कदम मिलाकर विभिन्न वाद्य यंत्रों की प्रस्तुति स्वयंसेवकों ने दी।

पथ संचलन ने इस्पात नगरी की जनता को खास आकर्षित किया। समापन समारोह में भी स्वयंसेवकों ने अपने अनुशासन का परिचय देते हुए करीब आधें घंटे तक निर्बाध नाद अभिनंदन की प्रस्तुति दी। पूरे राज्य से आये स्वयंसवकों ने अलग-अलग वाद्य यंत्रों से उपस्थित लोगों को खासा प्रभावित किया।
खुर्सीपार स्टेडियम में समापन समारोह के कार्यक्रम में सिर्फ स्वयंसेवक और शहर के नागारिक ही नहीं बने बल्कि भाजपा के कई दिग्गज नेता समारोह स्थल पर दर्शक दीर्घा में नजर आए। पूरे आयोजन में राज्य के दिग्गजों ने संघ के अनुशासन और नाद अभिनंदन को नयनाभिराम तरीके से देखा।

सभी वर्गो को मिला मंच में स्थान

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा आयोजित नाद संगम शिविर के समापन समारोह में संघ    प्रमुख मोहन राव भागवत, डॉ. पूर्णेदु सक्सेना, सुश्री मांडवी सिंह, बिसरा राम यादव, गणेश शंकर देशपाण्डेय सहित समाज के विभिन्न लोगों को संघ के मंच पर महत्वपूर्ण स्थान मिला। मंच पर किसी धर्म विशेष के बजाय समाज के प्रत्येक वर्ग के प्रमुख लोगों को स्थान मिला। कार्यक्रम में संत महात्मा एवं समाज प्रमुख केंद्रीय एवं क्षेत्रीय अधिकारी, समाज प्रमुख एवं कलाक्षेत्र में बहुआयामी व्यक्तित्व रखने वाले लोगों को अहम स्थान मिला। जिनमें श्रीराम बालक दास जी महाराज, स्वामी युधिष्ठीर लाल, रुवार्मी इंदमावनंद, पंडित प्रेम नारायण शर्मा, श्री विजय गुरु, स्वामी परमानंद, पंडित वेदप्रकाश, संतों के खेमें में थे। केंद्रीय एवं क्षेत्रीय अधिकारियों में जगदेव राम उरांव, जगदीश, माधव सिंह, बीके नायर, एनबी लालसन, गणपत राय, विजय कुमार गुप्ता, हीरा भाई शाह  मंजीत सिंह, विपिन साहू,ध्रुव कुमार सोनी, तरुण हथेल, चतुर्भुज कुमार आर्य, विष्णु हिरवानी, मगनराम पंडा, अनूप बाइक, महेत्तराम टंडन, सूरज निर्मलकर, राजकुमार प्रजापति, ललित मिश्रा, रमेश पटाल, ईश्वर प्रसाद अग्रवाल,राजेश धुर्वे, रामगोपाल देवांगन, सुरेंद्र कश्यप, महेंच्र चंद्राकर, निरंजन नाग, हनुमान सिंह राठौर, तिलक दर्रो, बुधियार बारला, शकुन वर्मा,  विजय बघेल व मनमोहन कश्यप को स्थान मिला। कला क्षेत्र में ख्यति अर्जित करने वाले लक्ष्मण मस्तुरिया, श्रीमती रजनी रजक, सुश्री उषा बारले, श्रीमती रितु वर्मा, झामुक राम देवांगन, अर्जुन महिलांग, अंकुश देवांगन, डीएस विद्यार्थी, श्रवण चोपकर, अमर श्रीवास, प्रबंजय चतुर्वेदी, रिखीराम क्षत्री, वीके मुहम्मद, दुष्यंत हरमुख, भालचंद सेगेकर, पूनाराम साहू, कोदोराम वर्मा, बुद्घ सिंह ओदरिया, कृष्णारंजन तिवारी, कविता वासनिक व रमेश सिंह ठाकुर मंच पर बैठे।   

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें