गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

स्वामी विवेकानंद जी का जन्म... नाद संगम घोष


विश्व गगन पर हिन्दू गुन्जाय मान करने वाले स्वामी विवेकानंद जी का  १५० वीं वर्ष दिवस हैं तथा इस शुभदिवस पर नांद संगम घोष शिविर का अवसर प्राप्त हुआ हैं। 

स्वामी विवेकानंद जी ने पूछा-भगवान को देखा जा सकता हैं क्या? जो भी संत आते-जाते थे तो स्वामी विवेकानंद जी यहीं प्रश्न करते थे कि आप ने भगवान को देखा है क्या? तुलसी दास जी ने रामायण में कहा हैं कि भगवान को देखने के लिए बार-बार अनेकों बार जन्म लेने के बाद ही भगवान को देख पाते हैं। 

 असंख्य जन्म लेने के बाद ही भगवान का दर्शन होते हैं आप भी भगवान का दर्शन कर सकते हो -स्वामी रामकृष्ण पंरमहंस
 विवेकानंद ने कहा -क्या आप मुझे भगवान का दर्शन करा सकते हैं।  स्वामी परमहंस-हां,हां, क्यों नही जैसे तुम मुझसे बात कर रहे हो वैसे ही भगवान से बात कर सकते हों। मैं तो तुम्हारा प्रतिक्षा कर रहा था तुम इतनी दिनों तक कहा थे।
स्वामी विवेकानंदजी का परिवार धीरे-धीरे गरीब हो गया क्यों कि स्वामी विवेकानंद जी कमाई करते नही थे घर में जो भी थोड़ा बहुत था वह धीरे-धीर खत्म हो गया था। अब घर का खर्च चलना मुशकिल हो रहा था। अब घर की जिमेदारी स्वामी विवेकानंद के ऊपर आ गया था। अब स्वामी विवेकानंदजी ने अपने गुरू परमहंस जी से निवेदन किया की आप मेरे लिये मां शारदा से कुछ धन क्यों नहीं मांगते है। परमहंस ने कहा -ऐसा करो की तुम ही मां से मांग लो। जब स्वामी विवेकानंदजी मां के मूर्ति के पास गये तो उन्होंने मां के मूर्ति के सामने यह मांगा कि मां -मुझे ज्ञान दो, वैराग्य दो,भक्ति दो,यही मांग कर वह वापस आ गये। फिर परम हंस ने कहा कि क्या मांगे तब स्वामी विवेकानंदजी ने बताया कि मैं मुझे ज्ञान दो, वैराग्य दो, भक्ति दो,यही मैं मॉं से मांगा। परमहंस ने कहा कि पुन: जाकर मांगों। स्वामी जी फि र से गये मॉं के मूर्ति के सामने जाकर फिर से वही मांगा कि   मां -मुझे ज्ञान दो, वैराग्य दो,भक्ति दो,यही मांग कर वह वापस आ गये। परमहंस जी ने फिर से पूछा और कहा कि फिर से मांगों। स्वामी जी फि र से गये मॉं के मूर्ति के सामने जाकर फिर से वही मांगा कि मां -मुझे ज्ञान दो, वैराग्य दो,भक्ति दो,यही मांग कर वह वापस आ गये इस प्रकार तीन बार में स्वामी विवेकानंदजी ने मां शारदा से धन नही मांग पाये। स्वामी जी का जीवन अपने लिये नहीं था। उसका जीवन पूरे विश्व के लिये था। स्वामी जी शिला पर बैठकर समाधी लीन हो जाते स्वामी जी फि र से गये मॉं के मूर्ति के सामने जाकर फिर से वही मांगा कि   मां -मुझे ज्ञान दो, वैराग्य दो,भक्ति दो,यही मांग कर वह वापस आ गये। अमेरिका में धर्म सम्मेलन हुआ। ११ सिंतबर को १८९३ को स्वामी विवेकानंदजी को बोलने का अवसर प्राप्त हुआ। स्वामी जी ने अपने प्रथम संबोधन से -अमेरिका के मेरे प्यारे बहनों और भाईयों। इतना कहते ही पूरे उपस्थित जनता ने जोरदार तालिया बजायी। ११ सिंतबर से लेकर २७ सिंतबर १८९३ तक उनका धर्म पर उद्बोधन चलता रहा पूरे अमेरिका वासी स्वामी विवेकानंद को हृ्दय से उनका भाषण सुनाने के लिये धर्म सम्मेलन में जाते थे। 

संघ की प्रथम शाखा का स्वरूप अप्रैल १९२६ में शुरू हुआ आज वहां पर केन्द्रीय कार्यक्रय हैं। शाखा शुरू होने के बाद स्वयसेवकों  सेना की परेड जैसा कार्यक्रम करने की इच्छा हुई। उसी समय श्री मान्तडराव जोग जो १९२० में सेना से रिटायर होकर नागपुर में रहने लगे थे। वह प्रत्येक रविवार को आकर संचलन का प्रशिक्षण देने लगे स्वय सेवको में भारी उत्साह हुआ। बारी दिनों का अभ्यास डॉ. साहब लेते थे। इसके बाद विचार आया की संघ का गणवेश होना चाहिए। सेना जैसा संघ का गणवेश प्रांरभिक समय मेें तय हुआ। प्रथम संचलन ३० स्वयंसेवकों का सीटी के साथ हुआ था। वह संचलन रेल्वे पुल के नीचे से गुजर रहा था तो सुभाष चंद्रबोस उसी समय उस स्थान पर ट्रेन से गुजर रहे थे उन्होंने यह दृश्य देखकर कहा कि-यह भारत के लिये अदभूत है जहां इतनी सारे युवा सेना की गणवेश में एक साथ चल रहे हैं। बापू राव अंमबेडर ने प्रथम उत्साव हनुमान मंदिर में ले जाकर सीमा उल्लंखन किया यही से सभी स्वयंसेवक खाकी गणवेश में थे। ग्वालियर के उपासने जी मचिस के तिली से व्यूह रचना बनाना सिखाया तथा सेना की आज्ञा यदि का विस्तार से बताया उस समय जो आज्ञा थी वह अंग्रेजी की थी। 

संघ में घोष भी होना चाहिए इसके लिए सभी स्वयंसेवकों ने बम्हभोज कर धन इक्ठा किये और पहला शंख खरीदा गया उसके बाद आज संघ का घोष आज उन्नत घोष हैं
छत्तीसगढ़ प्रांत ने एक अभिनव प्रयोग किया है जिसमें घोष का शिविर। जब घोष वादन होता है तो स्वयंसेवको का कदम स्वय आगे-आगे बढऩे लगता है। घोष से सुन्दर अनुशासन का निर्माण होता हैं समुहिक मन तैयार होता है। मन एक दूसरे से जुड़ जाता हैं यही सबसे बड़ी विशेषता हैं। घोष शरीरिक विभाग का अभिन्न अंग है घोष अभ्यास वादन शुध्द् होना चाहिए। इसके लिये प्राथमिक पाठ का ठीक से अभ्यास हो हम जो भी अभ्यास किये उसका ठीक से प्रकटीकरण हो प्रत्येक स्वयंसेवक सब प्रकार से सिध्द् होना चाहिए। इसीलिए नित्य सिध्द् शक्ति कहा जाता हैं कभी भी बुलाया जाये तुन्रत उपस्थित होना चाहिए।


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