कम ही लोगों को अंदाज़ा होगा कि चावल का औषधीय यानी दवा के रुप में भी इस्तेमाल हो सकता है। लेकिन अपनी जैव-विविधता के लिए विश्व के मानचित्र में अपना विशिष्ट स्थान रखने वाले छत्तीसगढ़ में उगाए जाने वाले चावल की कई ऐसी प्रजातियाँ हैं जिनका उपयोग स्थानीय समाज औषधि के रुप में करता आया है। छत्तीसगढ़ को धान के कटोरे के रूप में जाना जाता है। प्राचीन समय से ही यहाँ धान की प्राकृतिक किस्मों में बहुत अधिक विविधता है।
राज्य में औषधीय धान (मेडीसिनल राइस) की सैकड़ों किस्में उपलब्ध हैं -
इन दिनों इथनोबॉटनिकल सर्वेक्षणों और
अध्ययनों के माध्यम से इन औषधीय धान की किस्मों के विषय में पारंपरिक ज्ञान का दस्तावेज़ीकरण किया जा रहा है। दरअसल अधिक उत्पादन
देने वाली धान की किस्मों को प्रोत्साहन के कारण आम किसान औषधीय और सुगंधित धान को
भूलते गए और आज इनकी खेती केवल कुछ भागों तक सीमित रह
गई है।
पारंपरिक चिकित्सा :-
औषधीय धान का दैनिक जीवन में प्रयोग करने वाले पारंपरिक चिकित्सक ही इसकी खेती कर रहे हैं। इनमें से अधिकतर पारंपरिक चिकित्सक उम्र के अंतिम पड़ाव में हैं और उनका अमूल्य
ज्ञान उनके साथ ही समाप्त हो जाने की आशंका है।
छत्तीसगढ़ की प्रमुख औषधीय धान की किस्मों
में गठुअन, भेजरी, आल्वा, लाइचा, रेसारी, नागकेसर, काली मूंछ,
महाराजी, बायसुर आदि हैं। गठुअन का प्रयोग वात रोगों की चिकित्सा
में होता है. आल्चा के दानों को पकाकर उन नवप्रसूताओं को दिया जाता है जिनके
बच्चों को फोड़ा हो गया। करहनी का प्रयोग लकवा (पक्षाघात) से
प्रभावित रोगियों की चिकित्सा में होता है। प्रसव के बाद ताक़त के लिए महिलाओं को
महाराजी चावल खिलाया जाता है। नागकेशर का प्रयोग श्वांस संबंधी
रोगों से ग्रस्त रोगियों के लिए वरदान माना जाता है। लाइचा के पकाए हुए दानों का प्रयोग
माताएँ गर्भावस्था में करती हैं ताकि बच्चे को ‘लाइचा’ नाम· त्वचा रोग न हो। काली मूंछ का प्रयोग त्वचा रोगों की
चिकित्सा में होता है। रेसारी का प्रयोग पशु चिकित्सा में
बलवर्धक के रूप में होता
है. भेजरी नामक किस्म का प्रयोग प्रसव के बाद जरायु (प्लेसेंटा) को जल्दी निकालने
के लिए गायों को गुड़ के साथ खिलाया जाता है। इसके अलावा सैकड़ों ऐसी किस्में प्राकृतिक रूप से उपस्थित है जिनके विषय में पारंपरिक ज्ञान का
दस्तावेजीकरण अभी तक नहीं किया गया है।
उत्पादन की समस्या :-
औषधीय धान की किस्मों के अलावा इस पर
आक्रमण करने वाले कीटों, इसके साथ उगने वाले खरपतवारों और इसकी मिट्टी सभी का प्रयोग
पारंपरिक चिकित्सा में औषधि के रूप में होता रहा है। औषधीय धान से कई तरह के पारंपरिक व्यंजन भी तैयार किए जाते हैं। ये व्यंजन न केवल स्वादिष्ट होते हैं बल्कि
स्वास्थ्यवर्धक भी होते हैं। दिक्कत यह है कि इन किस्मों का उत्पादन बहुत कम
है. इसकी वजह से ही किसानों ने इसका उत्पादन धीरे धीरे बंद कर दिया है।
ग्राम पौंडसरी के वनौषधी कृषक दीनदयाल वर्मा औषधीय धान की किस्मों के संरक्षण एवं संवर्धन के हिमायती
हैं। उनका मानना है, इस विशिष्ट धान को प्रोत्साहन छत्तीसगढ़ को विश्वस्तर पर
प्रसिद्धि दिलवा सकता है. साथ ही किसानों द्वारा की जा रही धान की कम लाभप्रद खेती
को अधिक आमदनी वाला खेती बना सकता है।
चावल की किस्में और उपयोग
करहनी - लकवा
महाराजी - प्रसव के बाद शक्ति के लिए
नागकेश्लर - श्वास संबंधी रोग
कालीमूँछ - त्वचारोग
लाइचा - गर्भस्थ शिशु के त्वचा रोग
रेसारी - पशु चिकित्सा
इस विशिष्ट धान को प्रोत्साहन
छत्तीसगढ़ को विश्वस्तर पर प्रसिद्धि दिलवा सकता है. साथ ही किसानों द्वारा की जा
रही धान की कम लाभप्रद खेती को अधिक आमदनी वाला खेती बना सकता है।
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