कोरबा। जिले के विकासखंड पाली मुख्यालय से ६ किलोमीटर दूर
ग्राम केराझरिया में जानकी बाई निवास करती है। वह गोड जनजाति की है। जब वह १२ साल की
थी तब से ही अपने माता-पिता को कोसापालन कर परिवार का पालन पोषण करते हुए देखा था। उसके मायके के
गांव तेलईगुडी जो कि पाली से 18 किलोमीटर दूरी
पर है। कृषि मजदूरी एवं वनोपज संग्रहण ही मुख्य आय का साधन था। लगभग ८-१० वर्ष बाद जानकी की शादी होने के बाद
वह अपने ससुराल केराझरिया आई तो उसके ससुराल की आर्थिक हालत भी ठीक नहीं थीं।
सभी कृषि मजदूर थे। इस स्थिति से निपटने के लिए वह विरासत में मिली कोसा कृमिपालन के
लिए प्रयास करने लगी तथा इस संबंध में उसने अपने पति एवं ससुराल वालों से बातें की
तो वे जल्दी ही जानकी की योजना से सहमत हो गए। जानकी नजदीक के ही कोसा
बीज केंद्र पाली में संपर्क किया और कृमिपालन
करने लगी ।इसप्रकार उसके घर की आर्थिक स्थिति ठीक हो गयी है अब जानकी का कच्चा मकान, पक्के मकान में
तब्दील हो गया हैं। अब तो गांव वाले भी कई मौकों पर जानकी की सलाह मशविरा करते थे
है। गांव में उनकी पूछ परख भी बढ गई है। कोसा कृमिपालन ही जानकी के परिवार की
आजीविका का मुख्य साधन है। हमारा परिवार सदैव यह कोशिश करता है कि विभाग के अधिकारियों
के निर्देश में हम अधिक से अधिक कोसाफल
उत्पादन करें और अधिक राशि कमाये ताकि परिवार की और भी सपने आसानी
से साकार कर सकें। कोसा कृमिपालन से कोसा उत्पादन कर जानकी अपने परिवार का जीविकोपार्जन
अच्छी तरीके से कर रही हूं और उनका परिवार अभी खुशहाल जीवन जी रहा है।
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