कोरबा। जिले के विकासखंड पाली मुख्यालय से ६ किलोमीटर दूर
ग्राम केराझरिया में जानकी बाई निवास करती है। वह गोड जनजाति की है। जब वह १२ साल की
थी तब से ही अपने माता-पिता को कोसापालन कर परिवार का पालन पोषण करते हुए देखा था। उसके मायके के
गांव तेलईगुडी जो कि पाली से 18 किलोमीटर दूरी
पर है। कृषि मजदूरी एवं वनोपज संग्रहण ही मुख्य आय का साधन था। लगभग ८-१० वर्ष बाद जानकी की शादी होने के बाद
वह अपने ससुराल केराझरिया आई तो उसके ससुराल की आर्थिक हालत भी ठीक नहीं थीं।
सभी कृषि मजदूर थे। इस स्थिति से निपटने के लिए वह विरासत में मिली कोसा कृमिपालन के
लिए प्रयास करने लगी तथा इस संबंध में उसने अपने पति एवं ससुराल वालों से बातें की
तो वे जल्दी ही जानकी की योजना से सहमत हो गए। जानकी नजदीक के ही कोसा
बीज केंद्र पाली में संपर्क किया और कृमिपालन
करने लगी ।इसप्रकार उसके घर की आर्थिक स्थिति ठीक हो गयी है अब जानकी का कच्चा मकान, पक्के मकान में
तब्दील हो गया हैं। अब तो गांव वाले भी कई मौकों पर जानकी की सलाह मशविरा करते थे
है। गांव में उनकी पूछ परख भी बढ गई है। कोसा कृमिपालन ही जानकी के परिवार की
आजीविका का मुख्य साधन है। हमारा परिवार सदैव यह कोशिश करता है कि विभाग के अधिकारियों
के निर्देश में हम अधिक से अधिक कोसाफल
उत्पादन करें और अधिक राशि कमाये ताकि परिवार की और भी सपने आसानी
से साकार कर सकें। कोसा कृमिपालन से कोसा उत्पादन कर जानकी अपने परिवार का जीविकोपार्जन
अच्छी तरीके से कर रही हूं और उनका परिवार अभी खुशहाल जीवन जी रहा है।
शाश्वत राष्ट्रबोध
छत्तीसगढ़ ग्राम जागरण पत्रिका
मंगलवार, 17 अप्रैल 2012
पाक के हिन्दुओं को निकाला तो होगा प्रचण्ड आन्दोल
नई दिल्ली। पाकिस्तान व बंग्लादेश में प्रताडित हो रहे हिन्दुओं के प्रति भारत सरकार का उदासीन रवैया हिन्दू समाज के प्रति घोर अन्याय है। विहिप के केन्द्रीय मंत्री डा सुरेन्द्र जैन ने दक्षिणी दिल्ली के बिजबासन मे रह रहे पाक से आए हिन्दुओं के साथ हवन यज्ञ व सत्संग में भाग लेकर कहा कि भारत हिन्दू धर्म की जन्म स्थली है इसलिए संपूर्ण विश्व का हिन्दू जब भी संकट में होता है, वह भारत की ओर आशा भरी निगाह से देखता है।
उन्होंने मांग की कि पाकिस्तान से पीडित और प्रताडित होकर आए हिन्दुओं को नागरिकता प्रदान करने की कार्यवाही तुरन्त प्रारम्भ करनी चाहिए। सरकार को आडे हाथों लेते हुए उन्होंने चेताया कि यदि किसी ने इन्हे भारत से बाहर करने का दुस्साहस किया तो इसके विरोध में एक प्रचण्ड आन्दोलन खडा किया जएगा।
डा सुरेन्द्र जैन ने कहा कि पाकिस्तान के हिन्दुओं के प्रति भारत सरकार का नैतिक और संवैधानिक दायित्व बनता है। नेहरू-लियाकत पैक्ट के अनुसार पाकिस्तान व बंग्लादेश में रह रहे हिन्दुओं के हितों की रक्षा करना भारत सरकार की जिम्मेदारी है। आज पाकिस्तान में हिन्दुओं का कत्लेआम हो रहा है, उनकी सम्पत्ति और लडकियां छीनी जा रही हैं।
उन्होंने मांग की कि भारत में पाक से जान बचाकर आए हिन्दुओं के पुनस्र्थापन की व्यबस्था भारत सरकार को करनी चाहिए। सरकार अपनी जिम्मेदारी समझे या न समझे, विश्व हिन्दू परिषद अपने दायित्व को समझती है। हमने पहले भी पाक से आए हिन्दुओं को यहां बसाया है। अब भी विहिप इसके लिए संकल्पबद्ध है। विहिप इनके लिए रोजी रोटी की व्यबस्था करेगा तथा भारत में इन्हें बसाने हेतु हर संभव प्रयास करेगा। डा जैन ने यह भी कहा कि मुसलमानों की तकलीफ़ों की झूठी कहानियों पर आंसू बहाने बाली इस सरकार को हिन्दुओं के प्रति भी संवेदनशील होना चाहिए, इनको नागरिकता प्रदान करने की कार्यवाही तुरन्त प्रारम्भ करनी चाहिए।
उन्होंने चेतावनी भरे स्वर में कहा कि यदि किसी ने इन्हे भारत से बाहर करने का दुस्साहस किया तो इसके बिरोध में प्रचण्ड आन्दोलन खडा किया जाएगा।
पूर्वी भारत ने उठाया दूसरी हरित क्रांति का बीड़ा
दिल्ली। देश में दूसरी हरित क्रांति का बीड़ा पूर्वी भारत ने उठा लिया है और बिहार व झारखंड में गेहूं तथा धान के जबर्दस्त उत्पादन के साथ वर्ष २०१२ में २५ करोड़ टन से अधिक खाद्यान्नों के उत्पादन का अनुमान व्यक्त किया है। वहीं दलहन व तिलहन फसलों के लिए केन्द्र सरकार द्वारा चलायी जा रही सैकड़ों करोड़ रूपए की योजना पर पानी फिर गया है और चालू वर्ष में दालों व तिलहनी फसलों की पैदावार घटेगी।
कपास और गन्ना कफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्की फसलों की बंपर पैदावार का अनुमान व्यक्त किया गया है। सवा अरब से अधिक की आबादी को भोजन उपलब्ध कराने के लिए दूसरी हरित क्रांति की जिम्मेदारी पूर्वी उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ के ऊपर डाली गयी है। देश में वर्ष २०१२ में होने वाले कुल खाद्यान्न उत्पादन २५ करोड़ ४२ लाख टन में से अकेले पूर्वी क्षेत्र में ही सवा करोड़ टन से अधिक उत्पादन का अनुमान लगाया गया है।
कृषि सचिव पी.के. बसु ने चालू वर्ष का दूसरे अग्रिम फसल उत्पादन का अनुमान जारी करते हुए कहा कि इस वर्ष गेहूं उत्पादन ८ करोड़ ८३ लाख टन और चावल का १० करोड़ २७ लाख टन से अधिक उत्पादन होने का अनुमान है। पिछले वर्ष चावल ९ करोड़ ५९ लाख और गेहूं ८ करोड़ ६८ लाख टन था।
कश्मीर के हिन्दू आज भी अपने घरों से दूर
देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था। अखंड भारत दो भागों में विभाजित हो गया। जब देश धर्म के आधार पर विभाजित हो ही गया तो हिन्दुस्तान में रहने वाले सभी मुसलमानों को पाकिस्तान चले जाना चाहिए था और पाकिस्तान में रहने वाले हिन्दुओं को भारत में आना था। यह बात तब भी उठी थी, देश भयंकर रक्तपात से नहा उठा था।
उसके बाद भी बात यही नहीं रूकी। बल्कि हमारे देश के कर्णधारों ने उस समय यह भी कह दिया कि जो लोग स्वेच्छा से जाना चाहे वे जा सकते है और यहीं एक दूसरी विभाजन की नींव पड़ गई। देश के आजाद होने के बाद हिन्दुस्तानी सोचते थे कि अब केवल हिन्दू ही हिन्दुस्तान में राज करेगा, परन्तु आज देश के आजाद होने के इतने वर्षों बाद भी हिन्दू राष्ट्र नहीं बन पाया। आज अपने ही हिन्दू भाई अपने ही घर में बेगाने बन गये है।
जिन मुहल्लों, नगरों, जिलों या प्रदेशों में हिन्दू अल्पसंख्यक हो गये है उन्हें घर छोड़कर जाना पड़ रहा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण जम्मू-कश्मीर है...
२६ जनवरी को भारत अपना ६२वां गणतंत्र दिवस मनाने जा रहा है लेकिन विडम्बना है कि कश्मीर के हिन्दू आज भी अपने घरों से दूर हैं और विस्थापित जीवन जीने को मजबूर हैं। केन्द्र व राज्य सरकारों की भेदभावपूर्ण नीतियों के कारण १९ जनवरी १९९० को कश्मीरी हिन्दुओं को अपने ही घरों से विस्थापित होना पड़ा।
वर्ष १९८९ से पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद द्वारा कश्मीर की सभ्यता व संस्कृति तथा सांस्कृतिक धरोहरों को कुचलने का प्रयास किया जा रहा है। कश्मीर से हिंदुओं का निर्मूलन आतंकियों तथा स्थानीय अलगाववादियों का एक प्रमुख मुद्दा रहा है, क्योंकि कश्मीरी हिन्दू अलगाववादियों की राह का सबसे बड़ा रोड़ा थे। इसी कारण शांतिप्रिय हिन्दू समुदाय आतंकियों का प्रमुख निशाना बना।
०४ जनवरी १९९० को कश्मीर के एक स्थानीय अखबार च्आफताबज् ने हिज्बुल मुजाहिदीन द्वारा जारी एक विज्ञप्ति प्रकाशित की। इसमें सभी हिंदुओं को कश्मीर छोडऩे के लिये कहा गया था। एक और स्थानीय अखबार च्अल-सफाज् में भी यही विज्ञप्ति प्रकाशित हुई। विदित हो कि हिज्बुल मुजाहिदीन का गठन जमात-ए-इस्लामी द्वारा जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी व जिहादी गतिविधियों को संचालित करने के मद्देनजर वर्ष १९८९ में हुआ।
आतंकियों के फरमान से जुड़ी खबरें प्रकाशित होने के बाद कश्मीर घाटी में अफरा-तफरी मच गयी। सड़कों पर बंदूकधारी आतंकी और कट्टरपंथी क़त्ल-ए-आम करते और भारत-विरोधी नारे लगाते खुलेआम घूमते रहे। अमन और ख़ूबसूरती की मिसाल कश्मीर घाटी जल उठी। जगह-जगह धमाके हो रहे थे, मस्जिदों से अज़ान की जगह भड़काऊ भाषण गूंज रहे थे। दीवारें पोस्टरों से भर गयीं, सभी कश्मीरी हिन्दुओं को आदेश था कि वह इस्लाम का कड़ाई से पालन करें। लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला की सरकार इस भयावह स्थिति को नियन्त्रित करने में विफल रही।
कश्मीर के मूल निवासी कश्मीरी हिन्दुओं की सभ्यता व संस्कृति लगभग पांच हजार वर्ष से भी ज्यादा पुरानी है। इनके मकानों, दुकानों तथा अन्य प्रतिष्ठानों को चिह्नित कर उस पर नोटिस चस्पा कर दिया गया। नोटिसों में लिखा था कि वे या तो २४ घंटे के भीतर कश्मीर छोड़ दें या फिर मरने के लिये तैयार रहें। आतंकियों ने कश्मीरी हिन्दुओं को प्रताडि़त करने के लिए मानवता की सारी हदें पार कर दीं। यहां तक कि अंग-विच्छेदन जैसे हृदयविदारक तरीके भी अपनाए गये। संवेदनहीनता की पराकाष्ठा यह थी कि किसी को मारने के बाद ये आतंकी जश्न मनाते थे। कई शवों का समुचित दाह-संस्कार भी नहीं करने दिया गया।
१९ जनवरी १९९० को श्री जगमोहन ने जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल का दूसरी बार पदभार संभाला। कश्मीर में व्यवस्था को बहाल करने के लिये सबसे पहले कर्फ्यू लगा दिया गया लेकिन यह भी आतंकियों को रोकने में नाकाम रहा। सारे दिन जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) और हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकी आम लोगों को कर्फ्यू तोड़ सड़क पर आने के लिए उकसाते रहे। विदित हो कि राज्य में १९ जनवरी से ९ अक्टूबर १९९६ तक राष्ट्रपति शासन रहा।
अन्तत: १९ जनवरी की रात निराशा और अवसाद से जूझते लाखों कश्मीरी हिन्दुओं का साहस टूट गया। उन्होंने अपनी जान बचाने के लिये अपने घर-बार तथा खेती-बाड़ी को छोड़ अपने जन्मस्थान से पलायन का निर्णय लिया। इस प्रकार लगभग ३,५०,००० कश्मीरी हिन्दू विस्थापित हो गये। इससे पहले जेकेएलएफ ने भारतीय जनता पार्टी के नेता पंडित टीकालाल टपलू की श्रीनगर में १४ सितम्बर १९८९ को दिन-दहाड़े हत्या कर दी। श्रीनगर के न्यायाधीश एन.के. गंजू की भी गोली मारकर हत्या कर दी गयी। इसके बाद करीब ३२० कश्मीरी हिन्दुओं की नृशंस हत्या कर दी गयी जिसमें महिला, पुरूष और बच्चे शामिल थे।
विस्थापन के पांच वर्ष बाद तक कश्मीरी हिंदुओं में से लगभग ५५०० लोग विभिन्न शिविरों तथा अन्य स्थानों पर काल का ग्रास बन गये। इनमें से लगभग एक हजार से ज्यादा की मृत्यु च्सनस्ट्रोकज् की वजह से हुई; क्योंकि कश्मीर की सर्द जलवायु के अभ्यस्त ये लोग देश में अन्य स्थानों पर पडऩे वाली भीषण गर्मी सहन नहीं कर सके। क़ई अन्य दुर्घटनाओं तथा हृदयाघात का शिकार हुए।
यह विडंबना ही है कि इतना सब होने के बावजूद इस घटना को लेकर शायद ही कोई रिपोर्ट दर्ज हुई हो। यदि यह घटना एक समुदाय विशेष के साथ हुई होती तो केन्द्र व राज्य सरकारें धरती-आसमान एक कर देतीं। मीडिया भी छोटी से छोटी जानकारी को बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन करता। लेकिन चूंकि पीडि़त हिंदू थे इसलिये न तो कुछ लिखा गया, न ही कहा गया। सरकारी तौर पर भी कहा गया कि कश्मीरी हिन्दुओं ने पलायन का निर्णय स्वेच्छा से लिया। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने एक सतही जांच के बाद सभी तथ्यों को ताक पर रख इस घटना को नरसंहार मानने से साफ इन्कार कर दिया। जबकि सत्यता यह थी कि सैकड़ों महिला, पुरुष और बच्चों की नृशंस हत्या हुई थी।
भारत का संविधान देश में किसी भी व्यक्ति को जाति, मजहब, भाषा और प्रांत के आधार पर विभाजित किये बिना सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार देता है। कश्मीरी पंडितों का पलायन क्या इस अधिकार का हनन नहीं है ? केवल सरकार ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर के मनवाधिकार संगठन भी इस मामले पर मौन रहे। विख्यात अंर्तराष्ट्रीय संगठनों; जैसे- एशिया वॉच, एम्नेस्टी इंटरनेशनल तथा कई अन्य संस्थाओं में इस मामले पर सुनवाई आज भी लम्बित है। उनके प्रतिनिधि अभी तक दिल्ली, जम्मू तथा भारत के अन्य राज्यों में स्थित उन विभिन्न शिविरों का दौरा नहीं कर सके हैं जहां कश्मीरी हिन्दुओं के परिवार शरणार्थियों का जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
यह भी कम चिन्ताजनक नहीं कि कश्मीरी हिन्दुओं के निष्कासन के २२ वर्षों बाद भी इनकी सुनने वाले कुछ लोग ही हैं। इन विस्थापितों की दुर्दशा का मामला राजनीतिक दलों द्वारा राष्ट्रीय मुद्दा बनाया जाना चाहिए था। लेकिन यह दुर्भाग्य ही है कि आज दलों के लिए सेल्फ रूल, स्वायत्तता और सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफस्पा) हटाना ही प्रमुख मुद्दा है।
छात्रों से सरस्वती पूजन का मौलिक अधिकार छीना
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्र-छात्राओं ने जमकर विरोध जताया
सरस्वती माता को ज्ञान की देवी कहा गया है। इसीलिए बसंत पंचमी के दिन सरस्वती माता की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, खासकर स्कूलों में। स्वयं शिक्षक -शिक्षिका ही सरस्वती पूजन के लिए प्रोत्साहित करते है। परन्तु यहां तो बिलकुल विपरीत हुआ। हिन्दू छात्र-छात्राओं के भावनाओं का खुलकर केवल मजाक ही नहीं उड़ाया, बल्कि पूजन के सामग्रियों को ठोकर मारकर सक्त हिदायत दी गई कि स्कूल में सरस्वती पूजन नहीं होगी। साथ ही अगुवाई करने वाले छात्र को स्कूल से ही निलंबित कर दिया गया।
कोरबा। निर्मला स्कूल में बसंत पंचमी पर सरस्वती पूजा करने वाले छात्र संजय को निलंबित करते ही बवाल मच गया। स्कूल खुलते ही छात्र नेताओं ने भीड़ के साथ स्कूल में धावा बोल दिया। वहां जमकर हंगामा हुआ। इस मामले में कलेक्टर ने जांच समिति का गठन किया है। ११वीं के छात्र संजय साहू बसंत पंचमी पर पूजन सामग्री के लेकर स्कूल पहुंचा था। भोजन अवकाश के समय कक्षा ११वीं के छात्र-छात्राएं सरस्वती पूजा करने की तैयारी में जुटे हुए थे । इसी बीच इसकी जानकारी स्कूल की प्राचार्य अजया मेरी को लगी तो उन्होंने कक्षा ११वीं के छात्र-छात्राओं को मौके पर बुलाकर फटकार लगाते हुए पूजा किए जाने से मना किया। साथ ही संजय साहू को एक सप्ताह के लिए सस्पेंड कर दिया। इसकी जानकारी एनएसयूआई, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, विहिप को लगी तो उन्होंने इस कार्यवाही को गलत बताते हुए छात्र को स्कूल में वापस लिए जाने व प्राचार्य के खिलाफ कार्यवाही किए जाने की मांग की थी। एनएसयूआई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के बैनर तले छात्र नेता निर्मला स्कूल के मुख्य द्वार पर जा पहुंचे और स्कूल प्रबंधन के खिलाफ नारेबाजी करने लगे। तकरीबन एक घंटे तक यह दौरा चलता रहा। इसके उपरांत छात्र नेता व स्कूल में अध्ययनरत छात्र-छात्राएं स्कूल से रैली निकालकर रामपुर चौकी जा पहुंचे और इस मामले की लिखित शिकायत पुलिस से की। छात्र नेता पुन: निर्मला स्कूल पहुंचे और प्राचार्य के खिलाफ नारेबाजी करने लगे। देखते ही देखते आंदोलन उग्र रूप लेने लगा। छात्र नेता चाहते थे कि प्राचार्य अजया मेरी स्कूल परिसर में सब के सामने सरस्वती पूजा करें। लगभग १०.३० बजे तक हंगामा का सिलसिला जारी रहा। इसके उपरांत स्कूल की एक शिक्षिका वहां पहुंची और सब के समाने अगरबत्ती जलाकर सरस्वती पूजा की गई। तब जाकर छात्र नेता शांत हुए।
कलेक्टर ने ली सज्ञान
निर्मला स्कूल के मामले को लेकर कलेक्टर आरपीएस त्यागी ने छात्र नेताओं और स्कूल प्रबंधन की बैठक लेकर समझाइश दी। छात्र संजय को सस्पेंड किए जाने के मामले में कलेक्टर त्यागी ने जांच समिति गठित की है जो इस मामले की जांच की रिपोर्ट पेश करेगी।
प्राचार्य पर होनी चाहिए कार्यवाही
अजय के साथ अध्ययनरत छात्र विकास साहू ने रामपुर पुलिस से लिखित शिकायत की है कि प्राचार्य अजया मेरी ने पूजन सामग्री को लात मारी थी और एक सप्ताह के लिए संजय को निलंबित करने की बात कही थी। कक्षा में अध्ययरत अन्य छात्रों ने भी इसका समर्थन किया है।
सोमवार, 16 अप्रैल 2012
ये मुरझाये चेहरे मुस्कराहट मांगते है
वृद्धावस्था उम्र का एक ऐसा पड़ाव है जो सभी के जीवन में आता है। यहां आकर मनुष्य के जिन्दगी की
सभी भेदभाव समाप्त हो जाते हैं। पुरुष, महिला, धनवान, गरीब, शिक्षित, अशिक्षित सभी के चेहरे झुर्रियों के साथ
मुरझाने लगते हैं। तरह-तरह की शारीरिक और मानसिक व्याधियां
पीड़ा देती हैं और एक स्तर पर डॉक्टर भी हाथ खड़े कर देते हैं। परिवार का आधार
शक्ति देता है, किन्तु आने वाले समय में यह सहारा भी टूटता नजर आता है, क्योंकि
बच्चों की दूसरी पीढ़ी महानगरों की भीड़ भरी जिन्दगी में अपने वृद्ध माता-पिता को
गांव से बुलाकर शहर की बस्तियों में प्रसन्नता से नहीं रख सकेगी। जनता के शहरी
पलायन और खेती के व्यवसाय के हस के साथ परिवार विघटित होंगे और इसकी सबसे अधिक कीमत में वृद्ध सम्पत्ति होंगे, जो अकेले होंगे और उन दो में से भी एक के चले जाने पर अकेली वृद्ध जिन्दगी इस विचार मात्र से नहीं मुस्करा सकेगी
कि हमारा बेटा विदेशों में लाखों कमा रहा है।
भारत में वृद्धावस्तथा की विभीषिका
पहली बार महसूस होने लगी है। शिक्षा के कारण परिवार की दूसरी पीढ़ी गांव छोड़कर
बड़े शहरों की ओर प्रयाण कर रही है और अशक्त माँ-बाप बुढ़ापे से अपनी जमींने बेचकर
अकेले जीने के लिए अभिशप्त होने जा रहे हैं। यह स्थिति अभी तो भुगतने योग्य है, किन्तु
बीस वर्ष के बाद जो दूसरी पीढ़ी आयेगी वह अपने बुजुर्गो की सेवा तो क्या उन्हें
अपने पास रखने के लिए एक
कमरा भी नहीं जुटा सकेगी। यह किसी पश्चिम का
असर नहीं है। यह तो विकास की नियति है। हमारे यहां स्थिति सबसे अधिक विषम है। क्योंकि, जनसंख्या की भीड़ के दबाव के कारण सरकार वृद्धों को वह सामाजिक सुरक्षा नहीं दे पा रही है,
जो अन्य विकसित देशों में परिवार के अभाव को
पूरा करती है। वृद्धावस्था पेंशन,
स्वास्थ्य सेवा सुविधा तथा शहर और कस्बों
में आवास की उपलब्धता वृद्ध की मूल आवश्यकताएं है। ये वृद्धाश्रम हमारे यहां नहीं के
बराबर है और जो धार्मिक
संस्थाएं इन्हें चला रही हैं, उनमें
अव्यवस्था और भ्रष्टाचार इस सीमा तक है कि वृद्ध लोग उसका संगठित मुकाबला नहीं कर
सकते। अत: वृद्धाश्रमों का निर्माण एक नई आवश्यकता है और इस आश्रम परिवार को अपना
निजी परिवार बनाना या समझना एक दूसरी स्थिति है, जो आने
वाले वर्षों में बनानी पड़ेगी। ये वृद्धाश्रम जिला और तहसील स्तरों पर बनाये जाने
चाहिए। दस हजार की पंचायत आबादी पर एक सौ वृद्धों को आवासीय सुविधा देने वाला
आश्रम महात्मा गांधी नरेगा के श्रम से प्रत्येक पंचायत
समिति में बनवाये जा सकते हैं।
पचास हजार की आबादी पर दो सौ या तीन
सौ आवासियों की सुविधा के बड़े आश्रम स्थापित किये जा सकते हैं। इनमें स्थानीय
संस्थायें, दानदाता तथा कारपोरेट जगत के लोग सहयोग कर सकते हैं। ये आश्रम
धीरे-धीरे ऐसी संस्कृति विकसित कर सकते हैं कि वृद्धजन एक नया
परिवार पाकर अपने पुराने परिवार को भूल जायें। उन्हें पेंशन की सुविधा हो और
स्वास्थ्य सेवा तथा धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों
में उन्हें सहभागिता करने का अवसर भी मिल सके। ये नई संस्थायें पश्चिम की नकल न होकर
भारतीय वृद्ध जीवन की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाये जायें। स्वयं वृद्ध लोग अपने
दान-पुण्य से इन्हें सशक्त बना स·ते हैं। वृद्धावस्था के मुरझाते चेहरे मुस्कराहट मांग रहे हैं।
-
त्रिलोकी दास खण्डेलवाल
श्रद्धा का जागरण
भौतिक तम में भटक रहे
मानव को हम पुन: बचाए॥
और पकड़कर आत्मज्ञान के
राजमार्ग पर लाये ॥
हम लोगों ने धर्म पर श्रद्धा लगभग
छोड़ दी है। पढ़ा-लिखा कहलाने वाला जो समाज है, वह तो कुछ जानता ही नहीं। मैंने एक बार एक लड़की को अपनी माँ को मम्मी कहकर पुकारते हुए सुना। मैंने कहा
मिस्र देश में पुराने राजाओं की बड़ी-बड़ी कब्रें हैं। उनको पिरामिड बोलते हैं।
उनमें पुराने राजाओं के शवों को मसाला भरकर सुरक्षित रखा गया है। उन मुर्दो को
मम्मी बोलते हैं। तुम्हारी माँ तो जीती-जागती और प्रसन्न दिखाई दे रही है। तुम उनको
मुर्दा क्यों कहती हो? इस प्रकार की कई बातें बिना सोचे-समझे ग्रहण कर, हम लोग
अपनेपन को भुला रहे हैं। विश्व के अन्य हिस्सों में रहने वाले हिन्दू चाहते हैं कि
वहां पूजापाठ इत्यादि होता रहे,
अपने पुराने सर्वश्रेष्ठ धर्मग्रथों का
वाचन-पाठन हो और लोगों को उनसे शिक्षा प्राप्त हो। परन्तु जब वह भारत की ओर देखता
है तो उसे निराशा होती है। जगत् के हिन्दुओं को एकत्रित करने के लिए जब हम खड़े
हुए हैं, तब स्वयं हिन्दू बनकर रहना अतीव आवश्यक है। इसके
लिए प्रत्येक को हिन्दू पद्धति के अनुसार आचरण करना होगा।
यदि अपने मन में अपने परंपरागत
आचारों के संबंध में उपेक्षा का विचार आ जाए, तो वह विचार जीवन की सभी बातों तक प्रवेश कर सकता है। चीन और पाकिस्तान ने हमारी भूमि हड़प ली है। परन्तु
उसमें क्या है? ऐसा कहने वाले बड़ी संख्या में मिलते हैं। वह भी इसी विचार
पद्धति का परिणाम है।
संगठित जीवन-निर्माण करने के लिए एक लक्ष्य, एक
उपास्य, एक ध्येय की आवश्यकता है। यह उपास्य लक्ष्य कौन-सा
हो, यह हमें विचार करना है। कभी-कभी चार लोग मिलकर कोई काम करते हैं। राजनीतिक दलों के भी संगठन होते हैं। किन्तु यह संगठन तात्कालिक होते हैं, स्थायी नहीं रह पाते। किसी तात्कालिक लक्ष्य को
सामने रख·कर समाज को संगठित नहीं किया जा सकता।
अत: अपने अनेकविध आचार-विचार हम
लोगों को बड़ी आस्था और श्रद्धा के साथ अपने जीवन में उतारने चाहिए। हमें नित्य
स्मरण रहे कि हम एक अति प्राचीन महान हिन्दू समाज के अंग-प्रत्यंग हैं और उसी
परंपरा को आगे बढ़ाने का दायित्व हमारे ऊपर है। इसी परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए
क्षमता प्राप्त करने के लिए हम अपने आचारों-विचारों का पालन करें.
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